Saturday, February 6, 2016

मुरली 07 फरवरी 2016

07-02-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:18-03-81 मधुबन

“मुश्किल को सहज करने की युक्ति ‘सदा बाप को देखो”
आज विशेष लण्डन निवासियों से मिलने आये हैं। मिलने का अर्थ है बाप समान बनना। जब से बाप से मिले तो बापदादा ने क्या इशारा दिया? बच्चे आप सब श्रेष्ठ आत्मायें बाप समान सर्व गुणों में, सर्व प्राप्तियों में मास्टर हो। बाप से भी श्रेष्ठ बाप के सिर के ताज हो। जो पहले-पहले इशारा मिला उसी इशारे प्रमाण बाप समान मास्टर सर्वशक्तिवान, मास्टर सर्वगुण सम्पन्न बने हो? जब अभी बाप समान बनो तब ही भविष्य में विश्व में राज्य अधिकारी देवता बन सकते हो। बाप समान कहाँ तक बने हैं यह चेकिंग करते रहते हो? एक-एक गुण, एक-एक शक्ति को सामने रखते हुए अपने में चेक करो कि कितने परसेन्ट में गुण व शक्ति स्वरूप बने हैं? यह फालो करना तो सहज है ना। बापदादा सामने एग्जाम्पल हैं। निराकारी रूप में और साकार रूप में दोनों ही रूप में बाप को देख फालो करते चलो। वैसे भी कहावत है जैसा बाप वैसे बच्चे। और सन शोज़ फादर भी गाया हुआ है। बाप और बच्चे का सम्बन्ध ही है फालो करने का। मुश्किल है नहीं, लेकिन बना लेते हो क्योंकि अगर मुश्किल हो तो सदा ही मुश्किल लगना चाहिए। कोई को सहज लगता, कोई को मुश्किल लगता। यह क्यों? और कभी उसी को सहज लगता– कभी मुश्किल लगता। यह क्यों? इससे क्या सिद्ध होता है? चलने वाले की कोई कमजोरी है जो मुश्किल लगता है।

बाप की महिमा है जो अभी तक भक्त भी गाते हैं, साथ-साथ आप महान आत्माओं, पूज्य आत्माओं की भी वही महिमा है। याद है वह कौन-सी महिमा है? कोई भी मुश्किल कार्य आत्माओं के ऊपर आते हैं तो किसके पास जाते हैं? या बाप के पास या आप देव आत्माओं के पास। जो औरों की भी मुश्किल को सहज करने वाले हैं वह स्वयं मुश्किल अनुभव कैसे करेंगे। मुश्किल अनुभव करने के समय विशेष कौन-सी बात बुद्धि में आती है जो मुश्किल बना देती है? बहुत अनुभवी हो ना। बाप को देखने के बजाए बातों को देखने लग जाते हो। बातों में जाने से फिर कई क्वेश्चन उत्पन्न हो जाते हैं। अगर बाप को देखो जैसे बाप बिन्दु है वैसे ही हर बात को बिन्दु लगा दो। बातें हैं वृक्ष और बाप है बीज। आप विस्तार वाले वृक्ष को हाथ में उठाने चाहते हो इसलिए न बाप हाथ में आता, न वृक्ष। बाप को भी किनारे कर देते हो और वृक्ष के विस्तार को भी अपनी बुद्धि में समा नहीं सकते हो। तो जो चाहना रखते हो वह न पूरी होने के कारण दिलशिकस्त हो जाते हो। दिलशिकस्त की मुख्य निशानी होगी बार-बार किसी न किसी परिस्थिति की, चाहे व्यक्ति की शिकायतें ही करते रहेंगे। और जितनी शिकायतें करते उतना ही खुद आपेही फँसते जाते क्योंकि यह विस्तार एक जाल बन जाता है। जितना ही फिर उससे निकलने की कोशिश करते हैं उतना फँसते जाते, या होंगी बातें या होगा बाप। बातें सुनना और बातें सुनाना यह तो आधाकल्प किया। भक्ति मार्ग की भागवत या रामायण क्या है? कितनी लम्बी बातें हैं। जब बातें थी तो बाप नहीं था। अब भी जब बातों में जाते हो तो बाप को खो लेते हो। फिर कौन-सा खेल करते हो? (ऑख मिचौनी का) तीसरे नेत्र को पट्टी बाँधकर और ढूंढते हो। बाप बुलाता रहता और आप ढूंढते रहते। आखिर क्या होता? बाप स्वंय ही आकर स्वयं का साथ दिलाते। ऐसा खेल क्यों करते हो? क्योंकि बातों के विस्तार में रंग बिरंगी बातें होती हैं, वह अपनी तरफ आकर्षित कर लेती हैं। उससे किनारा हो जाए तो सदा सहजयोगी हो जाएं। लण्डन निवासी तो मुश्किल का अनुभव नहीं करते हैं ना?

अपने आपको बिजी रखने का तरीका सीखो। न समय होगा, न विस्तार में जायेंगे। जैसे जब कोई विशाल प्रोग्राम रखते हो और बहुत बिजी होते हो उस समय कुछ भी होता रहे, आप उससे किनारे होते हो। सेवा की ही धुन में लगे हुए होते हो। खाने वा सोने का भी ख्याल नहीं रहता। ऐसे विश्व कल्याणकारी आत्मायें सदा विशाल कार्य का प्लान इमर्ज रखो। इतना विशाल कार्य अपनी बुद्धि को दो जिससे फुर्सत ही नहीं हो। अपनी बुद्धि को बिजी रखने की डेली डायरी बनाओ। इससे सदा सहजयोग का स्वतः अनुभव करेंगे।

वर्णन करते हो सहज राजयोग, यह तो नहीं कहते हो कभी सहज योग, कभी मुश्किल योग। तो जैसा नाम है उसी स्वरूप में सब बच्चों को बापदादा देखने चाहते हैं। मास्टर सर्वशक्तिवान बनने के बाद भी मुश्किल अनुभव करेंगे तो सहज कब होगा? अब नहीं तो कब नहीं। इसके लिए आपस में प्रोग्राम बनाओ।

लण्डन पार्टी–

1. एक-एक रत्न अति प्रिय और अमूल्य है क्योंकि हरेक रत्न की अपनी-अपनी विशेषता है। सर्व की विशेषताओं द्वारा ही विश्व का कार्य सम्पन्न होना है। जैसे कोई स्थूल चीज भी बनाते हैं, उसमें अगर सब चीजें न डालो, साधारण मीठा या नमक भी न डालो तो चाहे कितनी भी बढ़िया चीज़ बनाओ लेकिन वह खाने योग्य नहीं बन सकती। तो ऐसे ही विश्व के इतने श्रेष्ठ कार्य के लिए हरेक रत्न की आवश्यकता है। सबकी अंगुली चाहिए। चित्र में भी सबकी अंगुली दिखाते हैं ना। सिर्फ महारथियों की नहीं, सबकी अंगुली से ही विश्व परिवर्तन का कार्य सम्पन्न होना है। सब अपनी-अपनी रीति से महारथी हैं। बापदादा भी अकेले कुछ नहीं कर सकते। बापदादा बच्चों को आगे रखते हैं, निमित्त आत्मायें भी सबको आगे रखती हैं। तो सभी बहुत-बहुत आवश्यक और श्रेष्ठ रत्न हो। बापदादा के स्वीकार किये हुए रत्न हो। यादगार में तो दिखाते हैं भगवान की पत्थर पर भी नज़र पड़ जाए तो पत्थर भी पारस बन जाता है, आप तो उनके स्वीकार किये हुए श्रेष्ठ रत्न हो। अपने कार्य की श्रेष्ठता को, मूल्य को जानो। शक्तियों का अपना गायन है और पाण्डवों का अपना। तो आप सब महान आत्मायें हो। महान आत्मा की निशानी क्या है? जो जितना महान होगा उतना निर्माण होगा। महान आत्मायें सदा अपने को ओबीडियेन्ट सर्वेन्ट ही अनुभव करती हैं। ऐसा ही ग्रुप है ना। शक्ति भवन की शक्तियों को तो अपना शक्ति स्वरूप स्वतः याद रहता होगा? स्थान से स्थिति भी याद आती है। शक्ति की विशेषता है मायाजीत। शक्ति के आगे किसी भी प्रकार की माया आ नहीं सकती, क्योंकि शक्ति माया के ऊपर सवारी करती है। शक्तियों के हाथ में सदा त्रिशूल दिखाते हैं। यह किसकी निशानी है? त्रिशूल स्टेज की निशानी है। संगमयुग के जो टाइटिल हैं– मास्टर त्रिमूर्ति, त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी, त्रिलोकीनाथ, यह सब स्थिति की निशानी इस त्रिशूल में आ जाती हैं। तो यह स्टेज स्मृति में रहती हैं? निरन्तर को अन्डरलाइन करो। बहुत अच्छा भाग्य बनाया है जो विश्व के वायुमण्डल से किनारे किया। बापदादा भी बच्चों के भाग्य को देख खुश होते हैं।

2. सदा अपने को पूज्य आत्मायें समझकर चलते हो? पूज्य आत्मायें अर्थात् महान आत्मायें। महान बनने की विशेषता है– सदा अपने को मेहमान समझ चलना। जो मेहमान समझकर चलता है वही महान पूज्य बन जाता है। क्यों? क्योंकि त्याग का भाग्य बन जाता है। मेहमान समझने से अपने देह रूपी मकान से भी निर्मोही हो जाते। मेहमान का अपना कुछ नहीं होता, सब कुछ होता भी है लेकिन अपनापन नहीं होता, कार्य में सब वस्तु लगायेंगे लेकिन अपनेपन का भाव नहीं होगा, इसलिए न्यारा भी और सर्व वस्तुओं को कार्य में लाने वाला प्यारा भी। ऐसे मेहमान समझने वाले प्रवृत्ति में रहते, सेवा के साधनों को अपनाते सदा न्यारे और बाप के प्यारे रहते हैं। ऐसे महान हो ना? मेहमान समझते हो ना? आज यहाँ हैं कल चलेंगे अपने घर। फिर आयेंगे अपने राज्य में। यही धुन लगी है ना इसलिए सदा देह से उपराम। जब देह से उपराम हो जाते हैं तो देह के सम्बन्ध और वैभवों से उपराम हुए ही पड़े हैं। यह उपराम अवस्था कितनी प्यारी है - अभी-अभी कार्य में आये, अभी-अभी उपराम। ऐसा अनुभव है ना। आपके जड़ चित्र पूज्य रूप में मन्दिरों में रखते हैं, लेकिन भक्ति में भी संगम की उपराम स्टेज की परम्परा चली आती है। मन्दिर लक्ष्मी-नारायण का, लेकिन लक्ष्मी-नारायण अपना समझेंगे? उपराम हैं ना। जड़ चित्र जो पूज्य बनते हैं उन्हों में भी अपनापन नहीं तो चैतन्य पूज्य आत्मायें उनमें भी सदा मेहमान वृत्ति। जितनी मेहमान की वृत्ति रहेगी उतनी प्रवृत्ति श्रेष्ठ और स्टेज ऊंची रहेगी। लण्डन निवासी नाम मात्र कहा जाता है, लेकिन हैं सब मेहमान। आज यहाँ हैं कल वहाँ होंगे। आज और कल दो शब्दों में सारा चक्कर स्मृति में आ जाता। ऐसी महान आत्मायें पूज्य हो ना। लण्डन निवासियों का निश्चय और उमंग बहुत अच्छा है। कमजोर आत्मायें नहीं हैं। विघ्न आया और पार किया। बकरियाँ नहीं हैं, सब शेरनियाँ हैं। बकरीपन अर्थात् मैं-मैं पन खत्म। शक्ति सेना का झण्डा अच्छा बुलन्द है। एक-एक शक्ति सर्वशक्तिवान बाप को प्रत्यक्ष करने वाली है। जब शक्ति सेना मैदान में आ जायेगी तब जय-जयकार होगी। पहले जय-जयकार का नारा कहाँ बजेगा? लण्डन में या अमेरिका में? बापदादा सदा स्नेही बच्चों को अमृतबेले मुबारक देते हैं। ‘ वाह मेरे बच्चे वाह’– यह गीत गाते हैं। गीत सुनने आता है? टीचर्स के साथ– यह लण्डन की सेवा का श्रृंगार है। जैसे लण्डन के म्युज़ियम में रानी का श्रृंगार रखा है ना। वैसे बापदादा के भी म्युजियम में बापदादा की सेवा के श्रृंगार हो। सदा महान और सदा निर्माण। यही विशेषता स्वयं को भी महान बनाती है और सेवा को भी महान बनाती है। संस्कार मिलाने में तो होशियार हो ना? जैसे स्थूल में अगर किसको हाथ पाँव चलाने नहीं आते तो दूसरे साथी क्या करते? हाथ में हाथ मिलाकर साथ दे करके उनको सिखा देते हैं। तो आप भी क्या करती हो? आगे बढ सहयोगी बन सहयोग का हाथ दे संस्कार मिलाने की डान्स सिखाती हो ना। इसमें तो नम्बरवन हो ना, इसी विशेषता के आधार पर जो सबसे ज्यादा संस्कार मिलाने की डांस करता, बाप का सहयोगी बनता - वही फर्स्ट जन्म में श्रीकृष्ण के साथ हाथ मिलाकर डान्स करेगा। डान्स करनी है ना? संस्कारों की रास मिलाने का सबसे सहज तरीका है– स्वयं नम्रचित बन जाओ और दूसरे को श्रेष्ठ सीट दे दो। उनको सीट पर बिठायेंगे तो वह आपको स्वतः ही उतरकर बिठा देगा। लेकिन आप बैठने की कोशिश करेंगे तो वह बैठने नहीं देगा। लेकिन आप उसे बिठायेंगे तो वह आपेही उतरकर आपको बिठायेगा। तो बिठाना ही बैठना हो जायेगा। ‘पहले-आप’ का पाठ पक्का हो। फिर संस्कार सहज ही मिल जायेंगे। सीट भी मिल जायेगी, रास भी हो जायेगी। और भविष्य में भी रास करने का चान्स मिल जायेगा तो कितनी सहज बात है।

लण्डन का सच्चा सेवाधारी ग्रुप है, सेवाधारी शब्द ही बहुत मीठा है। टीचर शब्द अच्छा लगता है या सेवाधारी? बाप भी अपने को ओबीडियेन्ट सर्वेन्ट कहते हैं, सर्वेन्ट कहने से ताजधारी स्वतः बन जायेंगे। तो चतुर बनने का यह तरीका है। मेहनत भी नहीं प्राप्ति भी ज्यादा। तो चतुर सुजान बाप के चतुर-सुजान बच्चे बनो।

फ्रान्स– याद की यात्रा में सदा चलते हुए हर कदम में पदमों की कमाई जमा कर रहे हो? हर कदम में पदमों की कमाई जमा करने वाले कितने मालामाल होंगे। ऐसी सम्पन्न आत्मा अपने को अनुभव करते हो? अखुट खजाना मिल गया है? खजाने की चाबी मिल गई है ना? चाबी लगाना आता है? कभी चाबी लगाते लगाते अटक तो नहीं जाती है? बहुत सहज चाबी है। ‘मैं अधिकारी हूँ।’ अधिकारी पन की स्मृति ही खजानों की चाबी है। यह चाबी लगाने आती है? इस चाबी से जो खजाना जितना भी चाहिए ले सकते हो। सुख चाहिए, शान्ति चाहिए, प्रेम चाहिए सब कुछ मिल सकता है।

प्रश्नः कौन सा वेट कम करो तो आत्मा शक्तिशाली बन जायेगी?

उत्तरः आत्मा पर वेस्ट का ही वेट है। वेस्ट संकल्प, वेस्ट वाणी, वेस्ट कर्म इससे ही आत्मा भारी हो जाती है। अब इस वेट को खत्म करो। इस वेट को समाप्त करने के लिए सदा सेवा में बिजी रहो। मनन शक्ति को बढाओ। मनन शक्ति से आत्मा शक्तिशाली बन जायेगी। जैसे भोजन हजम करने से खून बनता है, फिर वही शक्ति का काम करता, ऐसे मनन करने से आत्मा की शक्ति बढती है।

प्रश्नः कौन सा मंत्र भक्ति में बहुत ही प्रसिद्ध है, जिसकी स्मृति में रहो तो खुशी के झूले में झूलते रहेंगे?

उत्तरः भक्ति में ‘हम सो, सो हम’ का मंत्र बहुत प्रसिद्ध है, अभी आप बच्चे हम सो का राज़ प्रैक्टिकल में अनुभव कर रहे हो। यह मंत्र हमारे लिए है, हम ब्राहमण सो देवता बनेंगे। हम ही सो देवता थे, सो देवता हम ब्राहमण बने हैं। यह अभी पता चला। अब देवताओं के चित्र देखकर बुद्धि में आता यह हमारे ही चित्र हैं। यही वन्डर है। इसी स्मृति में रहो तो खुशी के झूले में झूलते रहेंगे।
वरदान:
सबको रिगार्ड देते हुए अपना रिकार्ड ठीक रखने वाले सर्व के स्नेही भव!  
जितना जो सभी को रिगार्ड देता है उतना ही अपने रिकार्ड को ठीक रख सकता है। दूसरों का रिगार्ड रखना अपना रिकार्ड बनाना है। जैसे यज्ञ के मददगार बनना ही मदद लेना है, वैसे रिगार्ड देना ही रिगार्ड लेना है। एक बार देना और अनेक बार लेने के हकदार बन जाना। वैसे कहते हैं छोटों को प्यार और बड़ों को रिगार्ड दो लेकिन जो सभी को बड़ा समझकर रिगार्ड देते हैं वह सबके स्नेही बन जाते हैं। इसके लिए हर बात में पहले आप का पाठ पक्का करो।
स्लोगन:
बापदादा की मिली हुई शिक्षायें समय पर याद आना ही तीव्र पुरुषार्थ है।