Monday, June 1, 2015

मुरली 01 जून 2015

“मीठे बच्चे - तुम्हें स्मृति आई कि हमने 84 जन्मों का चक्र पूरा किया, अब जाते हैं अपने घर शान्तिधाम, घर जाने में बाकी थोड़ा समय है” प्रश्न:- जिन बच्चों को घर चलने की स्मृति रहती है, उनकी निशानी क्या होगी? उत्तर:- वह इस पुरानी दुनिया को देखते हुए भी नहीं देखेंगे। उन्हें बेहद का वैराग्य होगा, धन्धेधोरी में रहते भी हल्के रहेंगे। इधर-उधर झरमुई-झगमुई की बातों में अपना समय बरबाद नहीं करेंगे। अपने को इस दुनिया में मेहमान समझेंगे। धारणा के लिए मुख्य सार :- 1) स्वयं को पापों से मुक्त करने का पुरूषार्थ करना है, देह-अभिमान में कभी नहीं आना है। इस दुनिया की कोई भी चीज में मोह नहीं रखना है। 2) माया रूपी जिन्न से बचने के लिए बुद्धि को रूहानी धन्धे में बिजी रखना है। बाप का पूरा-पूरा मददगार बनना है। वरदान:- परमात्म मिलन द्वारा रूहरिहान का सही रेसपान्स प्राप्त वाले बाप समान बहुरूपी भव! जैसे बाप बहुरूपी है-सेकण्ड में निराकार से आकारी वस्त्र धारण कर लेते हैं, ऐसे आप भी इस मिट्टी की ड्रेस को छोड़ आकारी फरिश्ता ड्रेस, चमकीली ड्रेस पहन लो तो सहज मिलन भी होगा और रूहरिहान का क्लीयर रेसपान्स समझ में आ जायेगा क्योंकि वह ड्रेस पुरानी दुनिया की वृत्ति और वायब्रेशन से, माया के वाटर या फायर से प्रूफ है। उसमें माया इन्टरफिरयर नहीं कर सकती। स्लोगन:- दृढ़ता असम्भव में भी सम्भव करा देती है। ओम् शांति ।