Saturday, June 13, 2015

मुरली 14 जून 2015

होली हंस और अमृतवेला रूपी मानसरोवर

वरदान:

ताज और तख्त को सदा कायम रखने वाले निरन्तर स्वत:योगी भव!  

वर्तमान समय बाप द्वारा सभी बच्चों को ताज और तख्त मिलता है, अभी का यह ताज व तख्त अनेक जन्मों के लिए ताज, तख्त प्राप्त कराता है। विश्व कल्याण की जिम्मेवारी का ताज और बापदादा का दिलतख्त सदा कायम रहे तो निरन्तर स्वत:योगी बन जायेंगे। उन्हें किसी भी प्रकार की मेहनत करने की बात नहीं क्योंकि एक तो संबंध समीप का है दूसरा प्राप्ति अखुट है। जहाँ प्राप्त होती है वहाँ स्वत:याद होती है।

स्लोगन:

प्लेन बुद्धि से प्लैन को प्रैक्टिकल में लाओ तो सफलता समाई हुई है।  

ओम् शांति ।

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14-06-15 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:17-12-79 मधुबन

होली हंस और अमृतवेला रूपी मानसरोवर

आज चारों ओर के रूहानी हंसों वा होली हंसों के संगठन को देख रहे हैं। सभी होलीहंस सदा ज्ञान रत्न ग्रहण करते और कराते हैं। हँसों का भोजन अमूल्य मोती होते हैं। ऐसे ही आप सब होली हँसों के बुद्धि का भोजन ज्ञान रत्न हैं। अमृतबेले से बाप-दादा के साथ रूह-रूहान द्वारा, रूहानी मिलन द्वारा ज्ञान रत्नों को धारण करते हो। शक्तियों को धारण करते हो। ऐसे ही सारा दिन मनन शक्ति द्वारा धारण किये हुए रत्नों को व शक्तियों को अपने जीवन में धारण कर और औरों को कराते हो।

अमृतवेले मिलन मनाने की शक्ति, ग्रहण करने अर्थात् धारण करने की शक्ति, बाप द्वारा हर रोज के विशेष शुद्ध संकल्प रूपी प्रेरणा को कैच करने की शक्ति सबसे ज्यादा आवश्यक है। अमृतवेले के समय हरेक धारण करने की शक्ति द्वारा धारणामूर्त बन जाते हैं। अमृतवेले विशेष दो मूर्तियाँ चाहिए - एक धारणामूर्त दूसरा अनुभवी मूर्त क्योंकि अमृतवेले बाप- दादा विशेष बच्चों के प्रति दाता के स्वरूप और मिलन मनाने के लिए सर्व सम्बन्धों के स्नेह सम्पन्न स्वरूप, सर्व खज़ानों से झोली भरने वाले भोले भण्डारी के रूप में होते हैं। उस समय जो भी करना चाहो, बाप को मनाना चाहो, रिझाना चाहो, सम्बन्ध निभाना चाहो, सहज विधि का अनुभव चाहो, सर्व विधियाँ और सिद्धियाँ सहज प्राप्त कर सकते हो। प्राप्ति के भण्डार और देने वाला दाता सहज ही प्राप्त हो सकता है। सर्व गुणों की खानें, सर्व शक्तियों की खानें बच्चों के लिए खुली हैं। अमृतवेले के एक सेकेण्ड का अनुभव सारे दिन और रात में सर्व प्राप्ति स्वरूप के अनुभव का आधार है। बापदादा भी हरेक से जी-भर करके बातें करने के लिए, फरियाद सुनने के लिए, कमज़ोरी मिटाने के लिए, अनेक प्रकार के पाप बख्शाने के लिए, लाड़-प्यार देने के लिए सब बातों के लिए फ्री हैं। वह समय ऑफीशियल नहीं है। भोले-भण्डारी के रूप में है। इतना गोल्डन चान्स होते हुए भी कोई बच्चे चान्स ले रहे हैं और कोई चान्स लेने वालों को देख रहे हैं। क्यों? चाहना भी है फिर भी बीच में रूकावट क्या है - उसको जानते हो?

माया भी बड़ी चतुर है। विशेष उस समय बाप से किनारा कराने के लिए आ जाती है। विशेष बहाने बाज़ी के खेल में बच्चों को रिझा लेती है। जैसे बाज़ीगर अपनी बाज़ी में लोगों को आकर्षित कर लेते हैं, वैसे माया भी अनेक प्रकार के अलबेलेपन, आलस्य और व्यर्थ संकल्पों की बहाने बाज़ी में रिझा लेती है, इसलिए गोल्डन चान्स को गँवा लेते हैं। और फिर ऐसे समय को गँवाने के कारण, सहज प्राप्ति से वंचित होने के कारण सारा दिन का कमज़ोर फाउन्डेशन हो जाता है। सारे दिन में चाहे कितना भी पुरूषार्थ करें लेकिन सारे दिन के आदि अर्थात् फाउन्डेशन का समय कमज़ोर होने के कारण मेहनत ज्यादा करनी पड़ती, प्राप्ति कम होती है। प्राप्ति कम होने के कारण दो प्रकार की अवस्था का अनुभव करते हैं। एक तो चलते-चलते थकावट अनुभव करते हैं, दूसरा चलते-चलते दिलशिकस्त हो जाते हैं। और फिर क्या सोचते हैं? ना मालूम मंजिल पर कब पहुँचेंगे? समय नज़दीक है या दूर है? कब प्रत्यक्षता होगी और सतयुगी सृष्टि में जायेंगे? यह प्रवृत्ति के बन्धन कब तक रहेंगे? वर्तमान की प्राप्ति को छोड़ भविष्य को देखते हैं।

वर्तमान प्राप्ति की लिस्ट सदा सामने रखो, ‘तो कब होगा’ यह खत्म होकर हो रहा है, में आ जायेंगे। दिल-शिकस्त होने के बजाए दिल-खुश हो जायेंगे। वर्तमान से किनारा नहीं करो। माया की बहानेबाज़ी को पहचानो। माया बहाने में आपको राज़ी कर देती है इसलिए बाप को रिझा नहीं सकते हो अर्थात् सहज साधन अपना नहीं सकते हो। वरदान के रूप में जो प्राप्ति करनी चाहिए उसकी बजाए मेहनत कर प्राप्ति करने में लग जाते हो इसलिए अमृतवेले की सहज प्राप्ति की बेला को जानते हुए उसका लाभ उठाओ। खुले भण्डारों से प्रारब्ध की झोली भर लो, वरदाता और भाग्य विधाता से अमृतवेले के समय जो तकदीर की रेखा खिंचवाना चाहो, वह खींचने के लिए तैयार हैं। तकदीर की रेखा वरदाता से सहज व श्रेष्ठ खिंचवा लो। उस समय यह भोले भगवान के रूप में है, लवफुल है तो लव के आधार से श्रेष्ठ लकीर खिंचवा लो। जो चाहे, जितने जन्मों के लिए चाहे, चाहे अष्ट रत्नों में, चाहे 108 की माला में, बाप-दादा की खुली आफर है - और क्या चाहिए!

मालिक बनो और अधिकार लो। कोई भी खज़ाने पर ताला-चाबी नहीं है। मेहनत की चाबी नहीं है। नहीं तो फिर सारे दिन संकल्प करो कि जो भी हूँ, जैसी भी हूँ, आपकी हूँ। माया की बाज़ी को पार कर साथ में आकर के बैठ जाओ। बस। यह माया की बाज़ी साइडसीन है। उनमें रूकना नहीं। आ जाओ और बैठ जाओ। संकल्प और बुद्धि अर्थात् मन और बुद्धि बाप के हवाले कर दो। यह करना नहीं आता? बाप की दी हुई वस्तु बाप को देने में मुश्किल क्यों? कभी तेरी कभी फिर मेरी कहते हो, इस तेरी मेरी के चक्र में आ जाते हो। अमृतवेला हुआ आँख खुली और सेकेण्ड में जम्प लगाकर बाप के साथ बैठ जाओ। साथ के कारण जो बाप के खज़ाने सो आपके खज़ाने अनुभव होंगे। नॉलेज के आधार पर नहीं लेकिन प्राप्ति के आधार पर। अधिकार के तख्त पर बैठे हुए होने के कारण अधिकारी पन का अनुभव होगा। तो बाप खुदा दोस्त के रूप में अधिकार का तख्त ऑफर कर रहे हैं। उठो और तख्त पर बैठ जाओ। थोड़े समय के अधिकार के तख्त निवासी होने से भी जो चाहो वह बना सकते हो। जैसे हद के राजा थोड़े समय की राजाई क्या अधिकार में नहीं कर लेते हैं? अब बेहद तख्तनशीन इस गोल्डन समय पर वर्तमान समय सहज ही अपनी गोल्डन एज स्थिति बना सकते हो। और भविष्य गोल्डन एज दुनिया में श्रेष्ठ पद प्राप्त कर सकते हो। समझा, सहज पुरूषार्थ का समय और सहज साधन। फिर सहज को छोड़ मुश्किल में क्यों जाते हो? अब सहज पुरुषार्थी बनेंगे या मुश्किल? जब बाप सहज मिला तो मार्ग मुश्किल कैसे होगा! सहज पुरुषार्थी बनो। मुश्किल का नाम-निशान खत्म करो तो दुनिया की मुश्किलातों को खत्म कर सकेंगे।ऐसे सदा अधिकारी, तख्तनशीन, माया की बाज़ी में पास होने वाले, सदा बाप के राज़ों को जानने वाले, ‘मेहनत’ को ‘मोहब्बत’ में परिवर्तन करने वाले, दिलशिकस्त के बदले दिल-खुश रहने वाले, अपने दिल-खुश से जहान को खुश करने वाले ऐसे सदा बाप के साथ रहने वाले सर्व श्रेष्ठ आत्माओं को बाप-दादा का याद, प्यार और नमस्ते।

अव्यक्त बापदादा से पार्टियों की पर्सनल मुलाकात

1. मन्सा सेवा का सहज साधन अटूट निश्चय:- जो भी सदा निश्चय बुद्धि होकर विजयी रहते हैं, उन निश्चय बुद्धियों द्वारा वायुमण्डल शुद्ध होता जाता है। वह मन्सा सेवा करते हैं क्योंकि चारों ओर के व्यक्ति निश्चय बुद्धि आत्माओं को देख समझते हैं कि इनको कुछ मिला है। चाहे कितना भी घमण्डी हो, ज्ञान को न भी सुनते हों लेकिन अन्दर में यह समझते जरूर हैं कि इनका जीवन कुछ बना है। तो जो शुरू से अटल निश्चय बुद्धि रहे हैं। उनकी यह सेवा चलती रहती है। यह भी मन्सा सेवा है।

2. माया से सेफ रहने का साधन - अटेन्शन रूपी चौकीदार सुजाग रहें:-

सभी सदा स्वदर्शन चक्रधारी बनकर चलते हो? सदा अपना स्वरूप स्वदर्शन चक्रधारी का याद रहता है? जो सदा स्वदर्शन चक्रधारी हैं वह अनेक प्रकार के माया के चक्रों से मुक्त रहते हैं। एक स्वदर्शन चक्र अनेक व्यर्थ चक्रों को खत्म करने वाला है, माया को भगाने वाला है। स्वदर्शन चक्रधारी के आगे माया ठहर नहीं सकती। स्वदर्शन चक्रधारी सदा सम्पन्न होने के कारण अचल रहते हैं। ऐसे सदा सम्पन्न अर्थात् मालामाल रहने वाले हो? माया खाली करने की कोशिश करती है लेकिन जो सदा खबरदार है, सुजाग है, जागती ज्योत है तो माया कुछ नहीं कर पाती। अटेन्शन रूपी चौकीदार सुजाग हों तो सदा सेफ रहेंगे। तो सदा जागती ज्योत बनो इसीलिए यादगार मन्दिरों में भी अखण्ड ज्योति जगाते हैं। बुझने नहीं देते। अखण्ड ज्योति जगाने का फैशन पड़ा कहाँ से? संगम पर तुम सब चैतन्य में जागती ज्योति बने हो तभी यह यादगार चला आता है। अगर खण्डन हो जाती है तो बुरा मानते हैं। तो चैतन्य में आप सब क्या हैं? अखण्ड ज्योति, खण्डित चीज़ कभी भी पूज्य हो नहीं सकती।

3) बाप द्वारा की गई महिमा का सुमिरण करने से समर्थ स्टेज का अनुभव: -

सदा अपने भाग्य की महिमा के गीत गाते रहते हो? जैसे स्थूल साधारण गीत भी गाते हैं तो कितना खुशी में आ जाते हैं। भक्तिमार्ग में कीर्तन करते हैं तो भी कितना खुश होते हैं। तो आप सभी भी बाप द्वारा की गई महिमा के गीत सदा गाते रहो। पहले हम क्या थे और बाप ने क्या बना दिया, उसी का सुमिरण करते सदा हर्षित रहो, इसी सुमिरण में समर्थी समाई हुई है क्योंकि बाप ने समर्थ बनाया है ना। जो स्वप्न में बनना न था, वह साकार स्वरूप में अनुभव कर रहे हो इसीलिए बापदादा सभी बच्चों को लकी सितारे कहते हैं। तो लकी सितारे हो ना? सितारा कहा ही उसको जाता है जो सदा जगमगाता रहे। जो बाप द्वारा शक्तियाँ व ज्ञान का खज़ाना मिला है उसमें जगमगाते रहो। ऐसे हो? बादलों में छिपने वाले तो नहीं हो? सदा अपनी चमक से विश्व को रोशन करने वाले हो ना? खुशी-खुशी से पुरानी दुनिया से किनारा कर लिया है। अब पुरानी दुनिया के निवासी नहीं हो, संगमयुगी निवासी हो। तो पुरानी दुनिया से किनारा हो गया या करना है - क्या समझते हो? कोई पुराने मित्र से मिलने के लिए पुरानी दुनिया की चीजें खरीदने तो नहीं जाते हो। आजकल बार्डर पर खड़े हुए भी कभी-कभी जानबूझ कर दुश्मन के देश में चले जाते हैं। आप बार्डर क्रास कर पुरानी दुनिया में चले तो नहीं जाते हो? नई दुनिया सामने खड़ी है, पुरानी दुनिया का किनारा कर चुके हो। संकल्प से भी पुरानी दुनिया में नहीं जाना। गये तो फंस जायेंगे इसलिए सदा अपने को संगमयुगी समझो। संगम पर बाप याद आयेगा, वर्सा याद आयेगा।

पुरूषार्थ में स्व की उन्नति और सेवा की वृद्धि - दोनों का बैलेन्स चाहिए। दोनों के प्लैन्स बनाते रहते हो? अभी क्या प्लैन बनाया है? (उज्जैन में कुम्भ मेले पर आध्यात्मिक मेला) मेले की धूमधाम से तैयारी कर रहे हो। अच्छा है। लेकिन यह विशेष अटेन्शन रखना - मेले का वातावरण ऐसा शान्तमय हो जो हलचल से घमासान की वृत्ति लेकर आने वाले महसूस करें कि कोई भिन्न स्थान पर आये हैं। चारों ओर आवाज़ हो और आपके पास ऐसा अनुभव करें जैसे शान्ति के कुण्ड में पहुँच गये। बाहर जो ड्यूटी पर हो वह भी शान्ति के वरदानी होकर रहें। आपके शान्ति के वायब्रेशन्स उनको शान्त कर दें। इससे सारे मेले में यह आवाज़ हो जायेगा कि दो मिनट के लिए गये लेकिन अच्छी ही शान्ति का अनुभव करके आये। जैसे शुरू-शुरू में स्थापना के समय जो आते थे, तो ओम की ध्वनि से महसूस करते थे कि यह कोई शान्ति का स्थान है। ऐसे इस मेले में शान्ति का अनुभव करें। मेले में जो आते हैं उनका मूड ही कुछ और होता है। वह मेला तो है जैसे बाज़ार, उसी रूप से अशान्ति से आते हैं ऐसे को शान्ति का अनुभव कराना बहुत जरूरी है, जिससे विशेषता लगे।

सभी को स्नेह से निमन्त्रण देना - आपका स्नेह देख करके सब खुश होंगे। कोई कैसे भी बोले लेकिन आप लोग शान्ति से, स्नेह से बोलेंगे तो उसका भी प्रभाव पड़ेगा। समय प्रति समय स्टेज पर आये हुए देख अन्दर से मानते हैं। अभी सबकी ऑखे थोड़ा नीचे हुई है, सिर नहीं झुका है। आखिर तो सब झुकने वाले हैं। सबका झुकना अर्थात् जय-जयकार होना। फिर क्रान्ति के बाद शान्ति हो जायेगी। अभी झुकने का पहला पोज शुरू हुआ है, आखरीन पांव तक झुकेंगे।

4) रहमदिल बाप के रहम दिल बच्चों का कर्तव्य - सभी को ठिकाना देना:-

सभी ने भिखारीपन की जीवन का भी अनुभव किया और अब मालामाल बन गये हो। मालामाल बनने वाले बच्चे किसी को भी देखेंगे तो रहम आयेगा कि इस आत्मा को ठिकाना मिल जाये। इनका भी कल्याण हो जाये। तो जो भी सम्पर्क में आये उसे बाप का परिचय जरूर देना। जैसे कोई घर में आता है तो उसे पानी तो पूछा जाता है ना! अगर ऐसे ही चला जाये तो बुरा समझते हैं ना! ऐसे ही सम्पर्क में जो भी आये तो उसे बाप के परिचय का पानी जरूर पूछो। थोड़ा सुनाया तो पानी पूछा - सप्ताह कोर्स कराया तो ब्रह्मा भोजन कराया। कुछ न कुछ देना जरूर क्योंकि दाता के बच्चे हो। अच्छा-

वरदान:

ताज और तख्त को सदा कायम रखने वाले निरन्तर स्वत:योगी भव!  

वर्तमान समय बाप द्वारा सभी बच्चों को ताज और तख्त मिलता है, अभी का यह ताज व तख्त अनेक जन्मों के लिए ताज, तख्त प्राप्त कराता है। विश्व कल्याण की जिम्मेवारी का ताज और बापदादा का दिलतख्त सदा कायम रहे तो निरन्तर स्वत:योगी बन जायेंगे। उन्हें किसी भी प्रकार की मेहनत करने की बात नहीं क्योंकि एक तो संबंध समीप का है दूसरा प्राप्ति अखुट है। जहाँ प्राप्त होती है वहाँ स्वत:याद होती है।

स्लोगन:

प्लेन बुद्धि से प्लैन को प्रैक्टिकल में लाओ तो सफलता समाई हुई है।