Thursday, June 11, 2015

मुरली 12 जून 2015

“मीठे बच्चे - अब तुम नये सम्बन्ध में जा रहे हो, इसलिए यहाँ के कर्मबन्धनी सम्बन्धों को भूल, कर्मातीत बनने का पुरूषार्थ करो”  

प्रश्न:

बाप किन बच्चों की वाह-वाह करते हैं? सबसे अधिक प्यार किन्हों को देते हैं?

उत्तर:

बाबा गरीब बच्चों की वाह-वाह करते हैं, वाह गरीबी वाह! आराम से दो रोटी खाना है, हबच (लालच) नहीं। गरीब बच्चे बाप को प्यार से याद करते हैं। बाबा अनपढ़े बच्चों को देख खुश होते हैं क्योंकि उन्हें पढ़ा हुआ भूलने की मेहनत नहीं करनी पड़ती है।

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) इस पुरानी दुनिया की पुरानी चीजों को देखते हुए भी नहीं देखना है। नर से नारायण बनने के लिए कहनी, करनी एक समान बनानी है।

2) अविनाशी ज्ञान रत्नों का कदर रखना है, यह बहुत बड़ी कमाई है, इसमें उबासी या झुटका नहीं आना चाहिए। नाम-रूप की ग्रहचारी से बचने के लिए याद में रहने का पुरूषार्थ करना है।

वरदान:

सेन्स और इसेन्स के बैलेन्स द्वारा अपनेपन को स्वाहा करने वाले विश्व परिवर्तक भव!  

सेन्स अर्थात् ज्ञान की पाइंटस, समझ और इसेन्स अर्थात् सर्व शक्ति स्वरूप स्मृति और समर्थ स्वरूप। इन दोनों का बैलेन्स हो तो अपनापन वा पुरानापन स्वाहा हो जायेगा। हर सेकण्ड, हर संकल्प, हर बोल और हर कर्म विश्व परिवर्तन की सेवा प्रति स्वाहा होने से विश्व परिवर्तक स्वत:बन जायेंगे। जो अपनी देह की स्मृति सहित स्वाहा हो जाते हैं उनके श्रेष्ठ वायब्रेशन द्वारा वायुमण्डल का परिवर्तन सहज होता है।

स्लोगन:

प्राप्तियों को याद करो तो दु:ख व परेशानी की बातें भूल जायेंगी।  

ओम् शांति ।

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12-06-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - अब तुम नये सम्बन्ध में जा रहे हो, इसलिए यहाँ के कर्मबन्धनी सम्बन्धों को भूल, कर्मातीत बनने का पुरूषार्थ करो”  

प्रश्न:

बाप किन बच्चों की वाह-वाह करते हैं? सबसे अधिक प्यार किन्हों को देते हैं?

उत्तर:

बाबा गरीब बच्चों की वाह-वाह करते हैं, वाह गरीबी वाह! आराम से दो रोटी खाना है, हबच (लालच) नहीं। गरीब बच्चे बाप को प्यार से याद करते हैं। बाबा अनपढ़े बच्चों को देख खुश होते हैं क्योंकि उन्हें पढ़ा हुआ भूलने की मेहनत नहीं करनी पड़ती है।

ओम् शान्ति।

अब बाप को बच्चों के प्रति रोज़-रोज़ बोलने की दरकार नहीं रहती कि अपने को आत्मा समझो। आत्म- अभिमानी भव अथवा देही-अभिमानी भव... अक्षर है तो वही ना। बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो। आत्मा में ही 84 जन्मों का पार्ट भरा हुआ है। एक शरीर लिया, पार्ट बजाया फिर शरीर खलास हो जाता है। आत्मा तो अविनाशी है। तुम बच्चों को यह ज्ञान अभी ही मिलता है और कोई को इन बातों का पता नहीं है। अब बाप कहते हैं-कोशिश कर जितना हो सके बाप को याद करो। धन्धेधोरी में लग जाने से तो इतनी याद नहीं ठहरती। गृहस्थ व्यवहार में रहकर कमल फूल समान पवित्र बनना है। फिर जितना हो सके मुझे याद करो। ऐसे नहीं कि हमको नेष्ठा में बैठना है। नेष्ठा अक्षर भी रांग है। वास्तव में है ही याद। कहाँ भी बैठे हो, बाप को याद करो। माया के तूफान तो बहुत आयेंगे। कोई को क्या याद आयेगा, कोई को क्या। तूफान आयेंगे जरूर फिर उस समय उनको मिटाना पड़ता है कि न आयें। यहाँ बैठे-बैठे भी माया बहुत तंग करती रहेगी। यही तो युद्ध है। जितने हल्के होंगे उतने बंधन कम होंगे। पहले तो आत्मा निर्बन्धन है, जब जन्म लेती तो माँ-बाप में बुद्धि जाती है फिर स्त्री को एडाप्ट करते हैं, जो चीज़ सामने नहीं थी वह सामने आ जाती, फिर बच्चे पैदा होंगे तो उनकी याद बढ़ेगी। अब तुम सबको यह भूल जाना है, एक बाप को ही याद करना है, इसलिए ही बाप की महिमा है। तुम्हारा मात-पिता आदि सब कुछ वही है, उनको ही याद करो। वह तुमको भविष्य के लिए सब कुछ नया देते हैं। नये संबंध में ले आते हैं। सम्बन्ध तो वहाँ भी होगा ना। ऐसे तो नहीं कि कोई प्रलय हो जाती है। तुम एक शरीर छोड़ फिर दूसरा लेते हो। जो बहुत अच्छे-अच्छे हैं वह जरूर ऊंच कुल में जन्म लेंगे। तुम पढ़ते ही हो भविष्य 21 जन्म के लिए। पढ़ाई पूरी हुई और प्रालब्ध शुरू होगी। स्कूल में पढ़कर ट्रांसफर होते हैं ना। तुम भी ट्रांसफर होने वाले हो-शान्तिधाम फिर सुखधाम में। इस छी-छी दुनिया से छूट जायेंगे। इसका नाम ही है नर्क। सतयुग को कहा जाता है स्वर्ग। यहाँ मनुष्य कितने घोर अन्धियारे में हैं। धनवान जो हैं वह समझते हैं हमारे लिए यहाँ ही स्वर्ग है। स्वर्ग होता ही है नई दुनिया में। यह पुरानी दुनिया तो विनाश हो जानी है। जो कर्मातीत अवस्था वाले होंगे वह कोई धर्मराज पुरी में सज़ायें थोड़ेही भोगेंगे। स्वर्ग में तो सज़ा होगी ही नहीं। वहाँ गर्भ भी महल रहता है। कोई दु:ख की बात नहीं। यहाँ तो गर्भ जेल है जो सज़ायें खाते रहते हैं। तुम कितना बार स्वर्गवासी बनते हो-यह याद करो तो भी सारा चक्र याद रहे। एक ही बात लाखों रूपये की है। यह भूल जाने से, देह-अभिमान में आने से माया नुकसान करती है। यही मेहनत है। मेहनत बिगर ऊंच पद नहीं पा सकते। बाबा को कहते हैं-बाबा हम अनपढ़े हैं, कुछ नहीं जानते। बाबा तो खुश होते हैं क्योंकि यहाँ तो पढ़ा हुआ सब भूलना है। यह तो थोड़े टाइम के लिए शरीर निर्वाह आदि के लिए पढ़ना है। जानते हो ना-यह सब खलास होने का है। जितना हो सके बाप को याद करना है और रोटी टुकड़ा खुशी से खाना है। वाह गरीबी इस समय की। आराम से रोटी टुकड़ खाना है। हबच (लालच) नहीं। आजकल अनाज मिलता कहाँ है। चीनी आदि भी धीरे-धीरे करके मिलेगी ही नहीं। ऐसे नहीं, तुम ईश्वरीय सर्विस करते हो तो तुमको गवर्मेन्ट दे देगी। वह तो कुछ भी जानते नहीं। हाँ, बच्चों को कहा जाता है-गवर्मेन्ट को समझाओ कि हम सब मिलकर माँ-बाप के पास जाते हैं, उन्हों को बच्चों के लिए टोली भेजनी होती है। यहाँ तो साफ कह देते कि है ही नहीं। लाचारी थोड़ी दे देते हैं। जैसे फकीर लोगों को कोई साहूकार होगा तो मुट्ठी भरकर दे देगा। गरीब होगा तो थोड़ा बहुत दे देगा। चीनी आदि आ सकती है परन्तु बच्चों का योग कम हो जाता है। याद न रहने कारण, देह-अभिमान में आने के कारण कोई काम हो नहीं सकता। यह काम पढ़ाई से इतना नहीं होगा जितना योग से होगा। वह बहुत कम है। माया याद को उड़ा देती है। रूसतम को और ही अच्छी रीति पकड़ती है। अच्छे-अच्छे फर्स्टक्लास बच्चों पर भी ग्रहचारी बैठती है। ग्रहचारी बैठने का मुख्य कारण योग की कमी है। ग्रहचारी के कारण ही नाम-रूप में फँस मरते हैं। यह बड़ी मंजिल है। अगर सच्ची मंजिल पानी है, तो याद में रहना पड़े।

बाप कहते हैं - ध्यान से भी ज्ञान अच्छा। ज्ञान से याद अच्छी। ध्यान में जास्ती जाने से माया के भूतों की प्रवेशता हो जाती है। ऐसे बहुत हैं जो फालतू ध्यान में जाते हैं। क्या-क्या बोलते हैं, उन पर विश्वास नहीं करना। ज्ञान तो बाबा की मुरली में मिलता रहता है। बाप खबरदार करते रहते हैं। ध्यान कोई काम का नहीं है। बहुत माया की प्रवेशता हो जाती है। अहंकार आ जाता है। ज्ञान तो सबको मिलता रहता है। ज्ञान देने वाला शिवबाबा है। मम्मा को भी यहाँ से ज्ञान मिलता था ना। उनको भी कहेंगे मनमनाभव। बाप को याद करो, दैवीगुण धारण करो। अपने को देखना है हम दैवी गुण धारण करते हैं? यहाँ ही दैवीगुण धारण करने हैं। कोई को देखो अभी फर्स्टक्लास अवस्था है, खुशी से काम करते, घण्टे के बाद क्रोध का भूत आया, खत्म। फिर स्मृति आती है, यह तो हमने भूल की। फिर सुधर जाते हैं। घड़ी-घड़ी के घड़ियाल - बाबा पास बहुत हैं, अभी देखो बड़े मीठे, बाबा कहेंगे ऐसे बच्चों पर तो कुर्बान जाऊं। घण्टे बाद फिर कोई न कोई बात में बिगड़ पड़ते। क्रोध आया, सारी की कमाई खत्म हो गई। अभी-अभी कमाई, अभी-अभी घाटा हो जाता। सारा मदार याद पर ही है। ज्ञान तो बड़ा सहज है। छोटा बच्चा भी समझा ले। परन्तु मैं जो हूँ, जैसा हूँ, यथार्थ रीति जानें। अपने को आत्मा समझें, इस रीति छोटे बच्चे थोड़ेही याद कर सकेंगे। मनुष्यों को मरने समय कहा जाता है भगवान को याद करो। परन्तु याद कर न सके क्योंकि यथार्थ कोई भी जानते नहीं हैं। कोई भी वापिस जा नहीं सकते। न विकर्म विनाश होते हैं। परम्परा से ऋषि-मुनि आदि सब कहते आये कि रचता और रचना को हम नहीं जानते। वह तो फिर भी सतोगुणी थे। आज के तमोप्रधान बुद्धि फिर कैसे जान सकते। बाप कहते हैं यह लक्ष्मी-नारायण भी नहीं जानते। राजा-रानी ही नहीं जानते तो फिर प्रजा कैसे जानेंगी। कोई भी नहीं जानते। अभी सिर्फ तुम बच्चे ही जानते हो। तुम्हारे में भी कोई हैं जो यथार्थ रीति जानते हैं, कहते हैं बाबा घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। बाप कहते हैं-कहाँ भी जाओ सिर्फ बाप को याद करो। बड़ी भारी कमाई है। तुम 21 जन्मों के लिए निरोगी बनते हो। ऐसे बाप को अन्तर्मुख हो याद करना चाहिए ना। परन्तु माया भुलाकर तूफान में ला देती है, इसमें अन्तर्मुख हो विचार सागर मंथन करना है। विचार सागर मंथन करने की बात भी अभी की है। यह है पुरूषोत्तम बनने का संगमयुग। यह भी वन्डर है, तुम बच्चों ने देखा है-एक ही घर में तुम कहते हो हम संगमयुगी हैं और हाफ पार्टनर वा बच्चा आदि कलियुगी है। कितना फर्क है। बड़ी महीन बात बाप समझाते हैं। घर में रहते हुए भी बुद्धि में है कि हम फूल बनने के लिए पुरूषार्थ कर रहे हैं। यह है अनुभव की बातें। प्रैक्टिकल में मेहनत करनी है। याद की ही मेहनत है। एक ही घर में एक हंस तो दूसरा बगुला। फिर कोई बड़े फर्स्टक्लास होते हैं। कभी विकार का ख्याल भी नहीं आता है। साथ में रहते भी पवित्र रहते हैं, हिम्मत दिखाते हैं तो उन्हें कितना ऊंच पद मिलेगा। ऐसे भी बच्चे हैं ना। कई तो देखो विकार के लिए कितना मारते झगड़ा करते हैं, अवस्था वह होनी चाहिए जो संकल्प में भी कभी अपवित्र बनने का ख्याल न आये। बाप हर प्रकार से राय देते रहते हैं। तुम जानते हो श्री श्री की मत से हम श्री लक्ष्मी, श्री नारायण बनते हैं। श्री माना ही श्रेष्ठ। सतयुग में है नम्बरवन श्रेष्ठ। त्रेता में दो डिग्री कम हो जाती हैं। यह ज्ञान तुम बच्चों को अभी मिलता है।

इस ईश्वरीय सभा का कायदा है - जिन्हें ज्ञान रत्नों का कदर है, कभी उबासी आदि नहीं लेते हैं उन्हें आगे-आगे बैठना चाहिए। कोई-कोई बच्चे बाप के सामने बैठे भी झुटका खाते, उबासी देते रहते। उनको फिर पिछाड़ी में जाकर बैठना चाहिए। यह ईश्वरीय सभा है बच्चों की। परन्तु कई ब्राह्मणियाँ ऐसे-ऐसे को भी ले आती हैं, यूँ तो बाप से धन मिलता है, एक-एक वरशन्स लाखों रूपये का है। तुम जानते हो ज्ञान मिलता ही है संगम पर। तुम कहते हो बाबा हम फिर से आये हैं बेहद का वर्सा लेने। मीठे-मीठे बच्चों को बाबा बार-बार समझाते हैं यह छी-छी दुनिया है, तुम्हारा है बेहद का वैराग्य। बाप कहते हैं इस दुनिया में तुम जो कुछ देखते हो वह कल होगा नहीं। मन्दिरों आदि का नाम निशान हीं नही रहेगा। वहाँ स्वर्ग में उन्हों को पुरानी चीज़ देखने की दरकार नहीं। यहाँ तो पुरानी चीज़ का कितना मूल्य है। वास्तव में कोई चीज़ का मूल्य नहीं है सिवाए एक बाप के। बाप कहते हैं मैं न आऊं तो तुम राजाई कैसे लो। जिनको मालूम है वही आकर बाप से वर्सा लेते हैं, इसलिए कोटों में कोई कहा जाता है। कोई भी बात में संशय नहीं आना चाहिए। भोग आदि की भी रस्म- रिवाज है। इनसे ज्ञान और याद का कोई कनेक्शन नहीं है। और कोई बात से तुम्हारा तैलुक नहीं। सिर्फ दो बातें हैं अल्फ और बे, बादशाही। अल्फ भगवान को कहा जाता है। अंगुली से भी ऐसे इशारा करते हैं ना। आत्मा इशारा करती है ना।

बाप कहते हैं भक्ति मार्ग में तुम मुझे याद करते हो। तुम सब मेरे आशिक हो। यह भी जानते हो बाबा कल्प-कल्प आकर सब मनुष्य मात्र को दु:ख से छुड़ाए शान्ति और सुख देते हैं, तब बाबा ने कहा था कि सिर्फ यह बोर्ड लिख दो कि विश्व में शान्ति बेहद का बाप कैसे स्थापन कर रहे हैं सो आकर समझो। एक सेकण्ड में विश्व का मालिक 21 जन्म लिए बनना है तो आकर समझो। घर में बोर्ड लगा दो, तीन पैर पृथ्वी पर तुम बड़े से बड़ी हॉस्पिटल, युनिवर्सिटी खोल सकते हो। याद से 21 जन्म लिए निरोगी और पढ़ाई से स्वर्ग की बादशाही मिल जाती है। प्रजा भी कहेगी कि हम स्वर्ग के मालिक हैं। आज मनुष्यों को लज्जा आती है क्योंकि नर्कवासी हैं। खुद कहते हैं हमारा बाप स्वर्गवासी हुआ, तो नर्कवासी हो ना। जब मरेंगे तो स्वर्ग में जायेंगे। कितनी सहज बात है। अच्छा काम करने वाले के लिए खास कहते हैं यह बहुत महादानी था। यह स्वर्ग गया। परन्तु जाता कोई भी नहीं है। नाटक जब पूरा होता है तो सभी स्टेज पर आकर खड़े होते हैं। यह लड़ाई भी तब लगेगी जब सभी एक्टर्स यहाँ आ जायेंगे फिर लौटेंगे। शिव की बरात कहते हैं ना। शिवबाबा के साथ सभी आत्मायें जायेंगी। मूल बात अभी 84 जन्म पूरे हुए। अब इस जुत्ती को छोड़ना है। जैसे सर्प पुरानी खाल छोड़ नई लेते हैं। तुम नई खाल सतयुग में लेंगे। श्रीकृष्ण कितना खूबसूरत है, कितनी उसमें कशिश है। फर्स्टक्लास शरीर है। ऐसे हम लेंगे। कहते हैं ना-हम तो नारायण बनेंगे। यह तो सड़ी हुई छी-छी खल है। यह हम छोड़कर जायेंगे नई दुनिया में। यह याद करते खुशी क्यों नहीं होती, जब कहते हो हम नर से नारायण बनते हैं! इस सत्य नारायण की कथा को अच्छी रीति समझो। जो कहते हो वह करके दिखाओ। कहनी, करनी एक चाहिए। धंधा आदि भी भल करो। बाप कहते हैं हाथों से काम करो, दिल बाप की याद में रहे। जितनी-जितनी धारणा करेंगे उतना तुम्हारे पास नॉलेज की वैल्यु होती जायेगी, नॉलेज की धारणा से तुम कितना धनवान बनते हो। यह है रूहानी नॉलेज। तुम आत्मा हो, आत्मा ही शरीर से बोलती है। आत्मा ही ज्ञान देती है। आत्मा ही धारण करती है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) इस पुरानी दुनिया की पुरानी चीजों को देखते हुए भी नहीं देखना है। नर से नारायण बनने के लिए कहनी, करनी एक समान बनानी है।

2) अविनाशी ज्ञान रत्नों का कदर रखना है, यह बहुत बड़ी कमाई है, इसमें उबासी या झुटका नहीं आना चाहिए। नाम-रूप की ग्रहचारी से बचने के लिए याद में रहने का पुरूषार्थ करना है।

वरदान:

सेन्स और इसेन्स के बैलेन्स द्वारा अपनेपन को स्वाहा करने वाले विश्व परिवर्तक भव!  

सेन्स अर्थात् ज्ञान की पाइंटस, समझ और इसेन्स अर्थात् सर्व शक्ति स्वरूप स्मृति और समर्थ स्वरूप। इन दोनों का बैलेन्स हो तो अपनापन वा पुरानापन स्वाहा हो जायेगा। हर सेकण्ड, हर संकल्प, हर बोल और हर कर्म विश्व परिवर्तन की सेवा प्रति स्वाहा होने से विश्व परिवर्तक स्वत:बन जायेंगे। जो अपनी देह की स्मृति सहित स्वाहा हो जाते हैं उनके श्रेष्ठ वायब्रेशन द्वारा वायुमण्डल का परिवर्तन सहज होता है।

स्लोगन:

प्राप्तियों को याद करो तो दु:ख व परेशानी की बातें भूल जायेंगी।