Sunday, June 28, 2015

मुरली 28 जून 2015

जहान को रोशन करने वालों की महफिल

वरदान:

नॉलेजफुल स्थिति द्वारा परिस्थितियों को पार करने वाले अंगद समान अचल-अडोल भव!  

रावण राज्य की कोई भी परिस्थिति व व्यक्ति जरा भी संकल्प रूप में भी हिला न सके। ऐसे अचल- अडोल भव के वरदानी बनो क्योंकि कोई भी विघ्न गिराने के लिए नहीं, मजबूत बनाने के लिए आता है। नॉलेजफुल कभी पेपर को देखकर कनफ्यूज नहीं होते। माया किसी भी रूप में आ सकती है-लेकिन आप योगाग्नि जगाकर रखो, नॉलेजफुल स्थिति में रहो तो सब विघ्न स्वत: समाप्त हो जायेंगे और आप अचल अडोल स्थिति में स्थित रहेंगे।

स्लोगन:

शुद्ध संकल्प का खजाना जमा हो तो व्यर्थ संकल्पों में समय नहीं जायेगा।  




ओम् शांति ।

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28-06-15 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:24-12-79 मधुबन
जहान को रोशन करने वालों की महफिल

आज बापदादा हरेक बच्चे को देख हर्षित हो रहे हैं क्योंकि बापदादा जानते हैं कि हरेक बच्चा कितनी श्रेष्ठ आत्मा है। हरेक बच्चा जहान का नूर है अर्थात् नूरे-जहान है। बाप-दादा के भी नयनों के सितारे हैं। बच्चों को नयनों पर बिठाकर ही चलते हैं अर्थात् नयनों में समाये हुए हैं। नयनों की महिमा बहुत गाई हुई है। अगर नयन नहीं तो मानव-जीवन के लिए जहान नहीं। जैसे शरीर में नयनों का महत्व है ऐसे तुम हरेक बच्चे जहान के नूर हो। आप नूरे-जहान के बिना भी जहान का कोई मूल्य नहीं। जहान के नूर अपनी इस स्थिति पर स्थित होते हैं तो जहान भी सुखमय बन जाता है, श्रेष्ठ बन जाता है। और जहान के नूर अपनी श्रेष्ठ स्थिति से नीचे आ जाते हैं तो जहान भी असार संसार बन जाता है। इतना आप सबके ऊपर आधार है। जैसे कहावत है आप जागे तो संसार जागा, आप सोये तो संसार सोया। ऐसे संसार के आधार मूर्त हो। आपकी चढ़ती कला से सर्व की चढ़ती का सम्बन्ध है। आपकी गिरती कला से विश्व की गिरती कला का सम्बन्ध है। इतनी जिम्मेवारी हरेक के ऊपर है। ऐसे समझ करके चलते हो? ऐसी स्मृति रहती है? बाप-दादा हरेक बच्चे की वर्तमान स्थिति को देखते हैं। हरेक जहान का नूर कहाँ तक जग को रोशन कर रहे हैं। आँखों को ही जीवन की ज्योति कहते हैं। आप सब जग की ज्योति हो। अगर जग की ज्योति स्वयं ही हिलती रहेगी तो जग का क्या हाल होगा। यहाँ भी यह हद की लाइट नहीं जलती या हिलती है तो क्या महसूस करते हो? क्या उस समय अच्छा लगता है? ऐसे ही अगर आप जहान की ज्योति हलचल में आती हो तो विश्व की आत्माओं का क्या हाल होता होगा?

जहान के सितारे वा जहान के नूर, आप सबके ऊपर सबकी नज़र है। सबको इंतज़ार है। किस बात का? भक्ति मार्ग में एक शंकर के लिए कह दिया है कि आँख खोली और परिवर्तन हो गया लेकिन यह गायन आप शिववंशी नूरे जहान का है। यह जहान की आँखें जब अपनी सम्पूर्ण स्टेज तक पहुँचेंगी अर्थात् सम्पूर्णता की आँख खोलेंगी तो सेकेण्ड में परिवर्तन हो जायेगा। तो जहान के नूर, बताओ, सम्पूर्णता की आँख कब खोलेंगे? आँख खोली तो अब भी है लेकिन अभी बीच- बीच में माया की धूल पड़ जाती है तो आँखें हिलती रहती हैं। जैसे स्थूल आँखों में भी धूल पड़ जाती है तो आँख का क्या हाल होता है। एकाग्र रीति से दृष्टि नहीं दे सकेंगे। सारा विश्व आप जहान के आँखों की एक सेकेण्ड की दृष्टि लेने के लिए इंतज़ार में है कि कब हमारे इष्ट देवों वा देवियों की हमारे ऊपर दृष्टि पड़ेगी, जो हम नज़र से निहाल हो जायेंगे। ऐसे नज़र से निहाल करने वाले अगर स्वयं अपनी आँख मलते रहेंगे तो नज़र से निहाल कैसे करेंगे। नज़र से निहाल होने वालों की लम्बी क्यू है इसलिए सदा सम्पूर्णता की आँख खुली रहे। बापदादा जहान के नूरों का वन्डरफुल दृश्य देखते हैं। जहान के नूर भी अपने नयनों को एकाग्र नहीं रख सकते। कोई निहाल करते-करते हल्के से झुटके भी खा लेते हैं। अब झुटके वाले नज़र से निहाल कैसे करेंगे। संकल्पों का घुटका ही झुटका है। आपके भक्त आपको देख रहे हैं और दर्शनीय मूर्त झुटके खा रहे हैं। तो भक्तों का क्या हाल होगा इसलिए आँखों का मलना और झुटका खाना बन्द करना पड़े तब दर्शनीय मूर्त बन सकते हो।

अमृतवेले जहान के नूर को बाप-दादा देखते हैं कि जहान के नूर हिल रहे हैं या एकाग्र हैं। अनेक प्रकार की रूप रेखायें देखते हैं। वह तो आप सब जानते हो ना? वर्णन भी क्या करें। बीती सो-बीती। अब से अपने महत्व को जान, कर्तव्य को जान सदा जागती ज्योति बनकर रहो। सेकेण्ड में स्व-परिवर्तन से विश्व-परिवर्तन कर सकते हो। इसकी प्रैक्टिस करो अभी-अभी कर्मयोगी, अभी-अभी कर्मातीत स्टेज। जैसे पुरानी दुनिया का दृष्टान्त देते हैं। आपकी रचना कछुआ सेकेण्ड में सब अंग समेट लेता है। समेटने की शक्ति रचना में भी है। आप मास्टर रचता समेटने की शक्ति के आधार से सेकेण्ड में सर्व संकल्पों को समाकर एक संकल्प में सेकेण्ड में स्थित हो सकते हो?

चारों ओर की हलचल की परिस्थितियाँ हों फिर भी सेकेण्ड में हलचल होते हुए भी अचल बन जाओ। फुलस्टॉप लगाना आता है? पुलस्टॉप लगाने में कितना समय लगता है? फुलस्टॉप लगाना इतना सहज होता है जो बच्चा भी लगा सकता है। क्वेश्चन मार्क नहीं लगा सकेगा, लेकिन फुलस्टॉप लगा सकेगा। तो वर्तमान समय हलचल बढ़ने का समय है। लेकिन प्रकृति की हलचल और प्रकृतिपति का अचल होना। अब तो प्रकृति भी छोटे-छोटे पेपर ले रही है लेकिन फाइनल पेपर में पाँचों तत्वों का विकराल रूप होगा। एक तरफ प्रकृति का विकाराल रूप, दूसरी तरफ पाँचों ही विकारों का अन्त होने के कारण अति विकराल रूप होगा। अपना लास्ट वार आ॰जमाने वाले होंगे। तीसरी तरफ सर्व आत्माओं के भिन्न-भिन्न रूप होंगे। एक तरफ तमोगुणी आत्माओं का वार, दूसरी तरफ भक्त आत्माओं की भिन्न-भिन्न पुकार। चौथी तरफ क्या होगा? पुराने संस्कार। लास्ट समय वह भी अपना चान्स लेंगे। एक बार आकर फिर सदा के लिए विदाई लेंगे। संस्कार का स्वरूप क्या होगा? किसी के पास कर्मभोग के रूप में आयेंगे, किसी के पास कर्म सम्बन्ध के बन्धन के रूप में आयेंगे। किसी के पास व्यर्थ संकल्प के रूप में आयेंगे। किसी के पास विशेष अलबेलेपन और आलस्य के रूप में आयेंगे। ऐसे चारों ओर का हलचल का वातावरण होगा। राज्य सत्ता, धर्म सत्ता, विज्ञान सत्ता और अनेक प्रकार के बाहुबल सब अपनी सत्ताओं की हलचल में होंगे। ऐसे समय पर फुलस्टॉप लगाना आयेगा या क्वेश्चन मार्क सामने आयेगा? क्या होगा? इतनी समेटने की शक्ति अनुभव करते हो? देखते हुए न देखो, सुनते हुए न सुनो। प्रकृति की हलचल देख प्रकृतिपति बन प्रकृति को शान्त करो। अपने फुलस्टाप की स्टेज से प्रकृति की हलचल को स्टाप करो। तमोगुणी से सतोगुणी स्टेज में परिवर्तन करो। ऐसा अभ्यास है? ऐसे समय का आह्वान कर रहे हो ना? समेटने की शक्ति अपने पास जमा करो। इसके लिए विशेष अभ्यास चाहिए। अभी-अभी साकारी, अभी-अभी आकारी, अभी-अभी निराकारी। इन तीनों स्टेजेस में स्थित रहना इतना सहज हो जाए, जैसे साकार रूप में सहज ही स्थित हो जाते हो वैसे आकारी और निराकारी स्थिति भी मेरी स्थिति है, तो अपनी स्थिति में स्थित होना तो सहज होना चाहिए। जैसे साकार रूप में एक ड्रेस चेन्ज कर दूसरी ड्रेस धारण करते हो ऐसे यह स्वरूप की स्थिति परिवर्तन कर सको। साकार स्वरूप की स्मृति को छोड़ आकारी फरिश्ता स्वरूप बन जाओ। तो फरिश्तेपन की ड्रेस सेकेण्ड में धारण कर लो। ड्रेस चेन्ज करना नहीं आता? ऐसे अभ्यास बहुत समय से चाहिए तब ऐसे समय पर पास हो जायेंगे। समझा, समय की गति कितनी विकराल रूप लेने वाली है। ऐसे समय के लिए एवररेडी हो ना? या डेट बतायेंगे तब तैयार होंगे। डेट का मालूम होने से सोल कान्सेस के बजाए डेट कान्सेस हो जायेंगे। फिर फुल पास हो नहीं सकेंगे इसलिए डेट बताई नहीं जायेगी लेकिन डेट स्वयं ही आप सबको टच होगी। ऐसे अनुभव करेंगे जैसे इन आँखों के आगे कोई दृश्य देखते हो तो कितना स्पष्ट दिखाई देता है। ऐसे इनएडवान्स भविष्य स्पष्ट रूप में अनुभव करेंगे। लेकिन इसके लिए जहान के नूरों की आँखें सदा खुली रहें। अगर माया की धूल होगी तो स्पष्ट देख नहीं सकेंगे। समझा, क्या अभ्यास करना है? ड्रेस बदली करने का अभ्यास करो।

आज मधुबन में तीन नदियों का संगम हैं। देहली, यू.पी. और फारेन। त्रिवेणी का संगम है। आज सागर गंगा में नहाने आये हैं। बाप तो गंगाओं को ही आगे करेंगे। तीनों ही नदियाँ अपनी-अपनी रफ्तार से पावन बनाने की सेवा में लगी हैं। हरेक की महिमा एक दूसरे से महान है क्योंकि फॉरेन से आवाज़ निकलना है। देहली में राजधानी बननी है और यू.पी. में यादगार बनने हैं। तो तीनों का महत्व अपना-अपना श्रेष्ठ हुआ ना। फॉरेन का आवाज़ अभी शुरू होने वाला है और देहली की पुरानी गद्दी अभी हिलने वाली है। और यू.पी. के भक्त सब अपने इष्ट देवों को ढूँढ भक्ति का फल लेने के लिए तड़प रहे हैं। भक्त भी तैयार हो रहे हैं अपने इष्ट देवों से मिलने के लिए। अभी मास्टर भगवान तैयार हो जाओ तो दर्शन का पर्दा खुले। दर्शन का पर्दा है - समय। अब तीनों ही अपने कार्य की वृद्धि में तीव्रता लाओ। वह आवाज़ जल्दी पहुँचावें, वह राजधानी जल्दी तैयार करें और वह भक्तों की प्यास जल्दी पूर्ण करें तब जय-जयकार हो जायेगी। समझा, तीनों नदियों को क्या करना है। फॉरेन को फौरन करना है। फॉरेन वालों ने पुरूषार्थ अच्छा किया है। गहने तो तैयार कर लिए हैं। अभी क्या करना है? अभी ज़ेवरों के बीच हीरे लगाने हैं। हीरो तथा हीरोइन पार्ट बजाने वाले। अच्छा, यू.पी. क्या करेगी? जैसे यू.पी. में गली-गली में मन्दिर हैं ऐसे यू.पी. में गली-गली में सेवाकेन्द्र हों तब भक्ति और ज्ञान का मुकाबला होगा। भक्ति, ज्ञान के आगे नमस्कार करेगी। देहली क्या करेगी? जमुना के किनारे पर अभी राजयोग महल बनेंगे तब जमुना के किनारे पर फिर महल बनेंगे। अभी राजयोग प्लेस बनाओ फिर पैलेस बनेंगे। फाउन्डेशन तो अभी डालना है ना। अभी राजयोग भवन बनेगा। यू.पी. को धर्म युद्ध का खेल दिखाना चाहिए। सुनाया ना, अभी तो सिर्फ धर्म नेताएं जो ऊंची ऑखे करके सामना करते थे, अभी आँखें नीचे की हैं। लेकिन अब सिर झुकाना है। अब आप लोगों की स्टेज पर आते हैं। लेकिन अपनी स्टेज पर आपको चीफ गेस्ट कर बुलावें तब कहेंगे कि सिर झुकाया है। अच्छा!

बाप-दादा के सर्व संकल्पों को पूर्ण करने वाले, श्रेष्ठ शुभ आशाओं के दीपक, सदा फुल स्टॉप लगाने वाले, सदा एवररेडी बहुत समय के अभ्यासी, स्व-परिवर्तन से विश्व-परिवर्तन करने वाले, त्रिवेणी नदियों को बाप-दादा का याद प्यार और नमस्ते।

पार्टियों से:-

ज्ञानी तू आत्माओं का विशेष कर्तव्य है - भक्ति-स्थान को ज्ञान-स्थान बनाना सभी आत्माओं को यह अनुभव करा रहे हो कि सिवाए बाप की नॉलेज के और जो भी नॉलेज है वह बिना रस के है अर्थात् कोई रस नहीं हैं? यह अनुभव करें कि हम क्या कर रहे हैं और यह क्या पा रहे हैं। हम सुनने वाले वो सुनाने वाले हैं, भटकने वाले हैं और यह पाने वाले हैं। जब ऐसा अनुभव करें तब जय-जयकार हो। जितना आप सेवा के अर्थ निमित्त बनी हुई श्रेष्ठ आत्माएं सर्व अनुभवों के रस में रहेंगी उतना वह अपने को नीरस अनुभव करेंगे। तो क्या समझते हो? अभी उनको ऐसा संकल्प आता है कि यह मक्खन खाने वाले हैं और हम सभी छाछ पीने वाले हैं?

जैसे सुनाया कि गली-गली में मन्दिर के बजाए राजयोग केन्द्र हों, अनुभव केन्द्र हो। भक्ति-स्थान को ज्ञान-स्थान बनाना यही ज्ञानी-तू-आत्माओं का विशेष कर्तव्य है। कब बनेगा ज्ञान स्थान? जब भक्ति से वैराग्य आ जाए तब ज्ञान का बीज पड़े। ऐसा अपनी मन्सा सेवा से भी वातावरण बनाओ जो यह अनुभव करें कि भक्ति से मिला कुछ नहीं। ऐसा उपराम हो जाएं तब फिर ज्ञान का बीज सहज पड़ेगा। इसके लिए कौन-सा साधन अपनाना पड़े? इसके लिए जो नामीग्रामी हैं और उनमें से भी जो स्नेह वाली आत्माएं हैं, एक हैं स्वार्थ वाली और एक हैं स्नेह वाली। स्नेह वाली आत्माओं को समीप लाते रहो। बार-बार स्नेह मिलन के सम्पर्क से उनको नजदीक लायेंगे तो उन द्वारा अनेकों का कल्याण होगा। पहले आपको थोड़ी मेहनत करनी पड़ेगी फिर वह स्वयं ही अपना संगठन बढ़ाते जायेंगे। जैसे फॉरेन से आवाज़ निकलेगा प्रत्यक्षता का, वैसे धर्म-स्थानों से यह आवाज़ निकले कि भक्ति होते भी कुछ और चाहिए। भक्ति से जो चाहना थी, वह पूर्ण नहीं हो रही है - क्यों? यह क्वेश्चन उठे तो यह क्वेश्चन ही प्रत्यक्षता करेगा। जैसे अभी धर्म-नेताओं में यह हलचल है कि आखिर भी धर्म में फूट क्यों होती जा रही है, टुकड़े-टुकड़े क्यों होते जा रहे हैं? मन में यह उलझन तो उत्पन्न हुई है लेकिन इस उलझन का ठिकाना मालूम पड़े - यह नहीं हुआ है। यह समझते हैं कि हमें जो करना चाहिए वह नहीं हो रहा है। लेकिन यह होना चाहिए, ऐसा नहीं उठता। भक्ति का फल क्यों नही मिल रहा है? भक्ति में जो होना चाहिए वह क्यों नहीं हो रहा है? जब ऐसे क्वेश्चन उठेंगे तभी नजदीक आयेंगे, ढूँढेंगे। भक्तों के ऊपर तरस आता है? भक्त हैं तो भोले ना। भोलों पर तरस जरूर पड़ता है। अभी संगठित रूप में दृढ़ संकल्प रखो कि भक्तों को, भोलों को ठिकाना जरूर दिखाना है। तब नम्बरवन बन सकेंगे।

(विदेशी बच्चों को क्रिसमस की मुबारक)सभी किसमिस जैसे मीठे-मीठे बच्चों को नये साल की नई उमंगें और नये खुशी की तरंगों से भरपूर खुशी की मुबारक हो। सारा वर्ष ऐसे सदा साथ का अनुभव करेंगे। यह क्रिसमस का दिन सदा के लिए बाप के साथ कम्बाइन्ड रहने का वरदान लिए हुए लाया है। कम्बाइन्ड भव। जैसे आज के दिन दो-दो मिलकर डान्स करते हो ना, वैसे सारा वर्ष बाप और आप खुशी में नाचते रहेंगे। सर्वशक्तियों की पैकेट बाप-दादा सौगात दे रहे हैं। मास्टर सर्वशक्तिमान बन सदा माया जीत रहने की बड़े-से-बड़ी सौगात है। अच्छा।


वरदान:

नॉलेजफुल स्थिति द्वारा परिस्थितियों को पार करने वाले अंगद समान अचल-अडोल भव!  

रावण राज्य की कोई भी परिस्थिति व व्यक्ति जरा भी संकल्प रूप में भी हिला न सके। ऐसे अचल- अडोल भव के वरदानी बनो क्योंकि कोई भी विघ्न गिराने के लिए नहीं, मजबूत बनाने के लिए आता है। नॉलेजफुल कभी पेपर को देखकर कनफ्यूज नहीं होते। माया किसी भी रूप में आ सकती है-लेकिन आप योगाग्नि जगाकर रखो, नॉलेजफुल स्थिति में रहो तो सब विघ्न स्वत: समाप्त हो जायेंगे और आप अचल अडोल स्थिति में स्थित रहेंगे।

स्लोगन:

शुद्ध संकल्प का खजाना जमा हो तो व्यर्थ संकल्पों में समय नहीं जायेगा।