Monday, June 15, 2015

मुरली 16 जून 2015

“मीठे बच्चे - जब तक जीना है तब तक पढ़ना और पढ़ाना है, खुशी और पद का आधार है पढ़ाई”  

प्रश्न:

सर्विस की सफलता के लिए मुख्य गुण कौन-सा चाहिए?

उत्तर:

सहनशीलता का। हर बात में सहनशील बनकर आपस में संगठन बनाकर सर्विस करो। भाषण आदि के प्रोग्राम लेकर आओ। मनुष्यों को नींद से जगाने के लिए अनेक प्रबन्ध निकलेंगे। जो तकदीरवान बनने वाले हैं वह पढ़ाई भी रूची से पढ़ेंगे।

गीतः

हमें उन राहों पर चलना है .......

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) समय निकाल एकान्त में अपने आपसे बातें कर अपने को उमंग में लाना है। आपसमान बनाने की सेवा के साथ-साथ साक्षी होकर हर एक के पार्ट को देखने का अभ्यास करना है।

2) बाप को याद कर अपने आपको सुधारना है। अपनी दिल से पूछना है कि मैं मैसेन्जर बना हूँ, कितनों को आप समान बनाता हूँ?

वरदान:

त्रिकालदर्शी स्टेज द्वारा व्यर्थ का खाता समाप्त करने वाले सदा सफलतामूर्त भव!  

त्रिकालदर्शी स्टेज पर स्थित होना अर्थात् हर संकल्प, बोल वा कर्म करने के पहले चेक करना कि यह व्यर्थ है या समर्थ है! व्यर्थ एक सेकण्ड में पदमों का नुकसान करता है, समर्थ एक सेकेण्ड में पदमों की कमाई करता है। सेकण्ड का व्यर्थ भी कमाई में बहुत घाटा डाल देता है जिससे की हुई कमाई भी छिप जाती है इसलिए एक काल दर्शी हो कर्म करने के बजाए त्रिकालदर्शी स्थिति पर स्थित होकर करो तो व्यर्थ समाप्त हो जायेगा और सदा सफलतामूर्त बन जायेंगे।

स्लोगन:

मान, शान और साधनों का त्याग ही महान त्याग है।  

ओम् शांति ।

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16-06-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - जब तक जीना है तब तक पढ़ना और पढ़ाना है, खुशी और पद का आधार है पढ़ाई”  

प्रश्न:

सर्विस की सफलता के लिए मुख्य गुण कौन-सा चाहिए?

उत्तर:

सहनशीलता का। हर बात में सहनशील बनकर आपस में संगठन बनाकर सर्विस करो। भाषण आदि के प्रोग्राम लेकर आओ। मनुष्यों को नींद से जगाने के लिए अनेक प्रबन्ध निकलेंगे। जो तकदीरवान बनने वाले हैं वह पढ़ाई भी रूची से पढ़ेंगे।

गीतः

हमें उन राहों पर चलना है .......

ओम् शान्ति।

क्या विचार करके यहाँ मधुबन में तुम बच्चे आते हो! क्या पढ़ाई पढ़ने आते हो? किसके पास? (बापदादा के पास) यह है नई बात। कब ऐसा भी सुना कि बापदादा के पास पढ़ने जाते हैं, सो भी बापदादा दोनों इकट्ठे हैं। वण्डर है ना। तुम वण्डरफुल बाप की सन्तान हो। तुम बच्चे भी न रचता, न रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानते थे। अभी उस रचता और रचना को तुमने नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार जाना है। जितना जाना है और जितना जिसको समझाते हो उतनी खुशी और भविष्य का पद होगा। मूल बात है अभी हम रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं। सिर्फ हम ब्राह्मण-ब्राह्मणियाँ ही जानते हैं। जब तक जीना है, अपने को निश्चय करना है कि हम बी.के. हैं और शिवबाबा से वर्सा ले रहे हैं सारे विश्व का। पूरी रीति पढ़ते हैं वा कम पढ़ते हैं, वह बात अलग है, फिर भी जानते तो हैं ना। हम उनके बच्चे हैं फिर प्रश्न उठता है पढ़ने अथवा न पढ़ने का। उस अनुसार ही पद मिलेगा। गोद में आया निश्चय तो होगा हम राजाई के हकदार बनें। फिर पढ़ाई में भी रात-दिन का फर्क पड़ जाता है। कोई तो अच्छी रीति पढ़ते और पढ़ाते हैं और कुछ सूझता ही नहीं है। बस पढ़ना और पढ़ाना है, यह अन्त तक चलना है। स्टूडेन्ट लाइफ में कोई अन्त तक पढ़ाई नहीं चलती। समय होता है। तुमको तो जब तक जीना है पढ़ना और पढ़ाना है। अपने से पूछना है कितने को बाप रचयिता का परिचय देते हैं? मनुष्य तो मनुष्य ही हैं। देखने में कोई फर्क नहीं पड़ता। शरीर में फर्क नहीं। यह अन्दर बुद्धि में पढ़ाई गूँजती रहती है। जितना जो पढ़ेगा, उतनी उनको खुशी भी रहेगी। अन्दर में यह रहता है कि हम नये विश्व का मालिक बनूँगा। अभी हम स्वर्ग द्वार जाते हैं। अपनी दिल से सदैव पूछते रहो, हमारे में कितना फ़र्क है? बाप ने हमको अपना बनाया है, हम क्या से क्या बनते हैं। पढ़ाई पर ही मदार है। पढ़ाई से मनुष्य कितना ऊंच बनते हैं। वह तो सब अल्पकाल क्षण भंगुर के मर्तबे हैं। उनमें कुछ भी रखा नहीं हैं। जैसेकि कोई काम के नहीं। लक्षण कुछ भी नहीं थे। अब इस पढ़ाई से कितना ऊंच बनते हैं। सारा अटेन्शन पढ़ाई पर देना है। जिसकी तकदीर में है उनकी दिल पढ़ाई में लगती है। औरों को भी पढ़ाई लिए भिन्न- भिन्न रीति पुरूषार्थ कराते रहते हैं। दिल होती है उनको पढ़ाकर बैकुण्ठ का मालिक बनायें। मनुष्यों को नींद से जगाने के लिए कितना माथा मारते रहते हैं और मारते रहेंगे। यह प्रदर्शनी आदि तो कुछ नहीं, आगे चलकर और प्रबन्ध निकलेंगे समझाने लिए। अभी बाप पावन बना रहे हैं तो बाप की शिक्षा पर अटेन्शन देना चाहिए। हर बात में सहनशील भी होना चाहिए। आपस में मिलकर संगठन कर भाषणों आदि के प्रोग्राम रखने चाहिए। एक अल्फ पर भी हम बहुत अच्छा समझा सकते हैं। ऊंच ते ऊंच भगवान कौन? एक अल्फ पर तुम दो घण्टा भाषण कर सकते हो। यह भी तुम जानते हो अल्फ को याद करने से खुशी रहती है। अगर बच्चों का याद की यात्रा में अटेन्शन कम है, अल्फ को याद नहीं करते हैं तो नुकसान जरूर होता है। सारा मदार याद पर है। याद करने से एकदम हेविन में चले जाते हैं। याद भूलने से ही गिर पड़ते हैं। इन बातों को और कोई समझ न सके। शिवबाबा को तो जानते ही नहीं। भल कितना भी कोई भभके से पूजा करते हो, याद करते हो फिर भी समझते नहीं। तुमको बाप से बहुत बड़ी जागीर मिलती है। भक्ति मार्ग में कृष्ण का दीदार करने लिए कितना माथा मारते हैं, अच्छा दर्शन हुआ फिर क्या? फायदा तो कुछ भी हुआ नहीं। दुनिया देखो किन बातों पर चल रही है। तुम जैसे कि गन्ने का रस सुगर पीते हो, बाकी सब मनुष्य छिलका चूसते हैं। तुम अभी सुगर पीकर पूरा पेट भर आधाकल्प सुख पाते हो, बाकी सब भक्ति मार्ग के छिलके चूसते नीचे उतरते आते हैं। अब बाप कितना प्यार से पुरूषार्थ कराते हैं। परन्तु तकदीर में नहीं है तो अटेन्शन नहीं देते। न खुद अटेन्शन देते हैं, न औरों को देने देते हैं। न खुद अमृत पीते हैं, न पीने देते हैं। बहुतों की ऐसी एक्टिविटी चलती है। अगर पूरी रीति पढ़ते नहीं, रहमदिल नहीं बनते, किसका कल्याण नहीं करते तो वह क्या पद पायेंगे! पढ़ने और पढ़ाने वाले कितना ऊंच पद पाते हैं। पढ़ते नहीं हैं तो क्या पद होगा-वह भी आगे चल रिजल्ट का पता पड़ जायेगा। फिर समझेंगे-बरोबर बाबा हमको कितना वारनिंग देते थे। यहाँ बैठे हो, बुद्धि में रहना चाहिए-हम बेहद के बाप पास बैठे हैं। वह हमको ऊपर से आकर इस शरीर द्वारा पढ़ाते हैं कल्प पहले मुआफ़िक। अब हम फिर से बाप के सामने बैठे हैं। उनके साथ ही हमको चलना है। छोड़कर नहीं जाना है। बाप हमको साथ ले जायेंगे। यह पुरानी दुनिया विनाश हो जायेगी। यह बातें और कोई नहीं जानते। आगे चलकर जानेंगे, बरोबर पुरानी दुनिया खत्म होनी है। मिल तो कुछ भी नहीं सकेगा। यह बातें और कोई नहीं जानते। टू लेट हो जायेंगे। हिसाब-किताब चुक्तू कर सबको वापिस जाना है। यह भी जो सेन्सीबुल बच्चे हैं वही जानते हैं। बच्चे वह जो सर्विस पर उपस्थित हैं। माँ-बाप को फालो करते हैं। जैसे बाप रूहानी सेवा करते हैं वैसे तुमको करनी है। कई बच्चे हैं जिनको यह धुन लगी रहती है, जिनकी बाबा महिमा करते हैं, उन जैसा बनना है। टीचर मिलती तो सबको है। यहाँ भी सब आते हैं। यहाँ तो बड़ा टीचर बैठा है। बाप को याद ही नहीं करते तो सुधरेंगे कैसे। नॉलेज तो बहुत सहज है। 84 जन्मों का चक्र है कितना सहज। परन्तु कितना माथा मारना पड़ता है। बाप कितनी सहज बात समझाते हैं। बाप को और 84 के चक्र को याद करो तो बेड़ा पार हो जायेगा। यह मैसेज सबको देना है। अपनी दिल से पूछो-कहाँ तक मैसेन्जर बना हूँ? जितना बहुतों को जगायेंगे उतना इनाम मिलेगा, अगर जगाता नहीं हूँ तो जरूर कहाँ सोया हुआ हूँ फिर मुझे इतना ऊंच पद तो मिलेगा नहीं। बाबा रोज़-रोज़ कहते हैं शाम को अपना सारे दिन का पोतामेल निकालो। सर्विस पर भी रहना है। मूल बात है बाप का परिचय देना। बाप ने ही भारत को स्वर्ग बनाया था। अभी नर्क है फिर स्वर्ग होगा। चक्र तो फिरना है। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है। बाप को याद करो तो विकार निकल जायेंगे। सतयुग में बहुत थोड़े होते हैं। फिर रावण राज्य में कितनी वृद्धि होती है। सतयुग में 9 लाख फिर धीरे-धीरे वृद्धि को पायेंगे। जो पहले पावन थे वही फिर पतित बनते हैं। सतयुग में देवताओं का पवित्र प्रवृत्ति मार्ग था। वही फिर अपवित्र प्रवृत्ति वाले बन पड़े हैं। ड्रामा अनुसार यह चक्र फिरना ही है। अब फिर तुम पवित्र प्रवृत्ति मार्ग के बन रहे हो। बाप ही आकर पवित्र बनाते हैं। कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। तुम आधाकल्प पवित्र थे फिर रावण राज्य में तुम पतित बने हो। यह भी तुम अभी समझते हो। हम भी बिल्कुल वर्थ नाट ए पेनी थे। अभी कितनी नॉलेज मिली है। जिससे हम क्या से क्या बनते हैं! बाकी जो भी इतने धर्म हैं, यह खत्म हो जाने हैं। सब मरेंगे ऐसे जैसे जानवर मरते हैं। जैसे बर्फ पड़ती है तो कितने जानवर पक्षी आदि मर जाते हैं। नैचुरल कैलेमिटीज भी आयेंगी। यह सब खत्म हो जायेगा। यह सब मरे पड़े हैं। इन आंखों से जो तुम देखते हो वह फिर नहीं होगा। नई दुनिया में बिल्कुल ही थोड़े रहेंगे। यह ज्ञान तुम्हारी बुद्धि में है, ज्ञान का सागर बाप ही तुमको ज्ञान का वर्सा दे रहे हैं। तुम जानते हो सारी दुनिया में किचड़ा ही किचड़ा है। हम भी किचड़े में मैले पड़े थे। बाबा किचड़े से निकाल अब कितना गुल-गुल बना रहे हैं। हम यह शरीर छोड़ेंगे, आत्मा पवित्र हो जायेगी।

बाप सबको एकरस पढ़ाई पढ़ाते हैं परन्तु कइयों की बुद्धि बिल्कुल जड़ है, कुछ भी समझ नहीं सकते। यह भी ड्रामा में नूँध है। बाप कहते हैं इनकी तकदीर में नहीं है तो हम भी क्या कर सकते हैं। हम तो सबको एकरस पढ़ाते हैं। पढ़ते नम्बरवार हैं। कोई अच्छी रीति समझकर और समझाते हैं, औरों का भी जीवन हीरे जैसा बनाते हैं। कोई तो बनाते ही नहीं। उल्टा अहंकार कितना है। जैसे साइंस वालों को माइन्ड का कितना घमण्ड है, दूर-दूर आसमान को, समुद्र को देखने चाहते हैं। बाप कहते हैं इससे कोई फायदा ही नहीं। मुफ्त साइंस घमण्डी अपना माथा खराब कर रहे हैं। बड़ी-बड़ी पगार उन्हों को मिलती है, सब वेस्ट करते रहते हैं। ऐसे नहीं कि सोनी द्वारिका कोई नीचे से निकल आयेगी। यह तो ड्रामा का चक्र है जो फिरता रहता है। फिर हम समय पर अपने महल जाकर बनायेंगे-नई दुनिया में। कोई आश्चर्य खाते हैं, क्या ऐसे ही मकान फिर बनेंगे। जरूर, बाप दिखाते हैं तुम फिर ऐसे सोने के महल बनायेंगे। वहाँ तो सोना बहुत रहता है। अभी तक भी कोई- कोई तरफ सोने की पहाड़ियाँ बहुत हैं परन्तु सोना निकाल नहीं सकते हैं। नई दुनिया में तो सोने की अथाह खानियां थी, वह खत्म हो गई। अभी हीरे का दाम भी देखो कितना है। आज इतना दाम, कल पत्थरों मिसल हो जायेगा। बाप तुम बच्चों को बड़ी वण्डरफुल बातें सुनाते हैं और साक्षात्कार भी कराते हैं। तुम बच्चों को अब बुद्धि में यही रहना है - हम आत्माओं को अपना घर छोड़े 5 हज़ार वर्ष हुए हैं जिसको मुक्तिधाम कहते हैं। भक्ति मार्ग में मुक्ति के लिए कितना माथा मारते हैं परन्तु अभी तुम समझते हो सिवाए बाप के कोई मुक्ति दे नहीं सकते। साथ ले नहीं जा सकते। अभी तुम बच्चों की बुद्धि में नई दुनिया है, जानते हो यह चक्र फिरना है, तुमको और कोई बातों में जाना नहीं है। सिर्फ बाप को याद करना है, सबको यही कहते रहो-बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। बाप ने तुमको स्वर्ग का मालिक बनाया था ना। तुम मेरी शिव जयन्ती भी मनाते हो। कितना वर्ष हुआ? 5 हज़ार वर्ष की बात है। तुम स्वर्गवासी बने थे फिर 84 का चक्र लगाया है। यह भी ड्रामा बना हुआ है। तुमको यह सृष्टि चक्र आकर समझाता हूँ। अभी तुम बच्चों को स्मृति आई है, बहुत अच्छी तरह से। हम सबसे ऊंच पार्टधारी हैं। हमारा पार्ट बाबा के साथ है, हम बाबा की श्रीमत पर बाबा की याद में रहकर औरों को भी आप समान बनाते हैं। जो कल्प पहले थे वही बनेंगे। साक्षी होकर देखते रहेंगे और पुरूषार्थ भी कराते रहेंगे। सदा उमंग में रहने के लिए रोज़ एकान्त में बैठकर अपने साथ बातें करो। बाकी थोड़ा समय इस अशान्त दुनिया में हैं, फिर तो अशान्ति का नाम नहीं रहेगा। कोई मुख से कह न सके कि मन की शान्ति कैसे मिले। शान्ति के लिए तो जाते हैं परन्तु शान्ति का सागर तो एक बाप ही है, दूसरे कोई पास यह वस्तु है नहीं। वैसे तुम बच्चों की बुद्धि में गूँजना चाहिए-रचता और रचना को जानना - यह है ज्ञान। वह शान्ति के लिए, वह सुख के लिए। सुख होता है धन से। धन नहीं तो मनुष्य काम का नहीं। धन के लिए मनुष्य कितना पाप करते हैं। बाप ने अथाह धन दिया है। स्वर्ग सोने का, नर्क पत्थरों का। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) समय निकाल एकान्त में अपने आपसे बातें कर अपने को उमंग में लाना है। आपसमान बनाने की सेवा के साथ-साथ साक्षी होकर हर एक के पार्ट को देखने का अभ्यास करना है।

2) बाप को याद कर अपने आपको सुधारना है। अपनी दिल से पूछना है कि मैं मैसेन्जर बना हूँ, कितनों को आप समान बनाता हूँ?

वरदान:

त्रिकालदर्शी स्टेज द्वारा व्यर्थ का खाता समाप्त करने वाले सदा सफलतामूर्त भव!  

त्रिकालदर्शी स्टेज पर स्थित होना अर्थात् हर संकल्प, बोल वा कर्म करने के पहले चेक करना कि यह व्यर्थ है या समर्थ है! व्यर्थ एक सेकण्ड में पदमों का नुकसान करता है, समर्थ एक सेकेण्ड में पदमों की कमाई करता है। सेकण्ड का व्यर्थ भी कमाई में बहुत घाटा डाल देता है जिससे की हुई कमाई भी छिप जाती है इसलिए एक काल दर्शी हो कर्म करने के बजाए त्रिकालदर्शी स्थिति पर स्थित होकर करो तो व्यर्थ समाप्त हो जायेगा और सदा सफलतामूर्त बन जायेंगे।

स्लोगन:

मान, शान और साधनों का त्याग ही महान त्याग है।