Monday, June 1, 2015

मुरली 02 जून 2015

मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - तुम्हारा पहला-पहला शब्क (पाठ) है - मैं आत्मा हूँ, शरीर नहीं, 
आत्म-अभिमानी होकर रहो तो बाप की याद रहेगी'' 

प्रश्न:- तुम बच्चों के पास कौन सा गुप्त खजाना है, जो मनुष्यों के पास नहीं है? 
उत्तर:- तुम्हें भगवान बाप पढ़ाते हैं, उस पढ़ाई की खुशी का गुप्त खजाना तुम्हारे पास है। 
तुम जानते हो हम जो पढ़ रहे हैं, भविष्य अमरलोक के लिए न कि इस मृत्युलोक के लिए। 
बाप कहते हैं सवेरे-सवेरे उठकर घूमो फिरो, सिर्फ पहला-पहला पाठ याद करो तो खुशी 
का खजाना जमा होता जायेगा। 

धारणा के लिए मुख्य सार:- 

1) योगबल से अपनी सर्व कर्मेन्द्रियों को वश में करना है। एक वृक्षपति बाप की याद में रहना 
है। सच्चा वैष्णव अर्थात् पवित्र बनना है। 

2) सवेरे उठकर पहला पाठ पक्का करना है कि मैं आत्मा हूँ, शरीर नहीं। हमारा रूहानी बाबा 
हमको पढ़ाते हैं, यह दु:ख की दुनिया अब बदलनी है...... ऐसे बुद्धि में सारा ज्ञान सिमरण होता रहे। 

वरदान:- न्यारे और प्यारे बनने का राज़ जानकर राज़ी रहने वाले राज़युक्त भव 

जो बच्चे प्रवृत्ति में रहते न्यारे और प्यारे बनने का राज़ जानते हैं वह सदा स्वयं भी स्वयं से 
राज़ी रहते हैं, प्रवृत्ति को भी राज़ी रखते हैं। साथ-साथ सच्ची दिल होने के कारण साहेब भी 
सदैव उन पर राज़ी रहता है। ऐसे राज़ी रहने वाले राजयुक्त बच्चों को अपने प्रति व अन्य किसी 
के प्रति किसी को काज़ी बनाने की जरूरत नहीं रहती क्योंकि वह अपना फैंसला अपने आप 
कर लेते हैं इसलिए उन्हें किसी को काज़ी, वकील या जज बनाने की जरूरत ही नहीं। 

स्लोगन:- सेवा से जो दुआयें मिलती हैं-वह दुआयें ही तन्दरूस्ती का आधार हैं।