Tuesday, April 28, 2020

25-04-2020 प्रात:मुरली

25-04-2020 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - हर एक की नब्ज देख पहले उसे अल्फ का निश्चय कराओ फिर आगे बढ़ो, अल्फ के निश्चय बिना ज्ञान देना टाइम वेस्ट करना है"
प्रश्नः-
कौन-सा मुख्य एक पुरुषार्थ स्कॉलरशिप लेने का अधिकारी बना देता है?
उत्तर:-
अन्तर्मुखता का। तुम्हें बहुत अन्तर्मुखी रहना है। बाप तो है कल्याणकारी। कल्याण के लिए ही राय देते हैं। जो अन्तर्मुखी योगी बच्चे हैं वह कभी देह-अभिमान में आकर रूसते वा लड़ते नहीं। उनकी चलन बड़ी रॉयल शानदार होती है। बहुत थोड़ा बोलते हैं, यज्ञ सर्विस में रुचि रखते हैं। वह ज्ञान की ज्यादा तिक-तिक नहीं करते, याद में रहकर सर्विस करते हैं।
ओम् शान्ति। अक्सर करके देखा जाता है प्रदर्शनी सर्विस के समाचार भी आते हैं तो मूल बात जो बाप के पहचान की है, उस पर पूरा निश्चय न बिठाने से बाकी जो कुछ समझाते रहते हैं, वह कोई की बुद्धि में बैठना मुश्किल है। भल अच्छा-अच्छा कहते हैं परन्तु बाप की पहचान नहीं। पहले तो बाप की पहचान हो। बाप के महावाक्य हैं मुझे याद करो, मैं ही पतित-पावन हूँ। मुझे याद करने से तुम पतित से पावन बन जायेंगे। यह है मुख्य बात। भगवान एक है, वही पतित-पावन है। ज्ञान का सागर, सुख का सागर है। वही ऊंच ते ऊंच है। यह निश्चय हो जाए तो फिर भक्ति मार्ग के जो शास्त्र, वेद अथवा गीता भागवत है, सब खण्डन हो जाएं। भगवान तो खुद कहते हैं, यह मैंने नहीं सुनाया है। मेरा ज्ञान शास्त्रों में नहीं है। वह है भक्ति मार्ग का ज्ञान। मैं तो ज्ञान दे सद्गति करके चला जाता हूँ। फिर यह ज्ञान प्राय: लोप हो जाता है। ज्ञान की प्रालब्ध पूरी होने के बाद फिर भक्ति मार्ग शुरू होता है। जब बाप का निश्चय बैठे तो समझे, भगवानुवाच - यह भक्ति मार्ग के शास्त्र हैं। ज्ञान और भक्ति आधा-आधा चलती है। भगवान जब आते हैं तो अपना परिचय देते हैं - मैं कहता हूँ 5 हज़ार वर्ष का कल्प है, मैं तो ब्रह्मा मुख से समझा रहा हूँ। तो पहली मुख्य बात बुद्धि में बिठानी है कि भगवान कौन है? यह बात जब तक बुद्धि में नहीं बैठी है तब तक और कुछ भी समझाने से कुछ असर नहीं होगा। सारी मेहनत ही इस बात में है। बाप आते ही हैं कब्र से जगाने। शास्त्र आदि पढ़ने से तो नहीं जगेंगे। परम आत्मा है ज्योति स्वरूप तो उनके बच्चे भी ज्योति स्वरूप हैं। परन्तु तुम बच्चों की आत्मा पतित बनी है, जिस कारण ज्योति बुझ गई है। तमोप्रधान हो गये हैं। पहले-पहले बाप का परिचय न देने से फिर जो भी मेहनत करते हैं, ओपीनियन आदि लिखाते हैं वह कुछ काम का नहीं रहता इसलिए सर्विस होती नहीं है। निश्चय हो तो समझें बरोबर ब्रह्मा द्वारा ज्ञान दे रहे हैं। मनुष्य ब्रह्मा को देख कितना मूँझते हैं क्योंकि बाप की पहचान नहीं है। तुम सब जानते हो भक्ति मार्ग अब पास हो गया है। कलियुग में है भक्ति मार्ग और अब संगम पर है ज्ञान मार्ग। हम संगमयुगी हैं। राजयोग सीख रहे हैं। दैवीगुण धारण करते हैं नई दुनिया के लिए। जो संगमयुग पर नहीं वह दिन-प्रतिदिन तमोप्रधान बनते ही जाते हैं। उस तरफ तमोप्रधानता बढ़ती जाती है, इस तरफ तुम्हारा संगमयुग पूरा होता जा रहा है। यह समझने की बातें हैं ना। समझाने वाले भी नम्बरवार हैं। बाबा रोज़ पुरुषार्थ कराते हैं। निश्चयबुद्धि विजयन्ती। बच्चों में तिक-तिक करने की आदत बहुत है। बाप को याद करते ही नहीं। याद करना बड़ा कठिन है। बाप को याद करना छोड़ अपनी ही तिक-तिक सुनाते रहते हैं। बाप के निश्चय बिगर और चित्रों तरफ बढ़ना ही नहीं चाहिए। निश्चय नहीं तो कुछ भी समझेंगे नहीं। अल्फ का निश्चय नहीं तो बाकी बे ते में जाना टाइम वेस्ट करना है। किसकी नब्ज को जानते नहीं, ओपनिंग करने वाले को भी पहले बाप का परिचय देना है। यह है ऊंच ते ऊंच बाप ज्ञान का सागर। बाप यह ज्ञान अभी ही देते हैं। सतयुग में इस ज्ञान की दरकार नहीं रहती। पीछे शुरू होती है भक्ति। बाप कहते हैं जब दुर्गति अर्थात् मेरी निंदा पूरी होने का समय होता है तब मैं आता हूँ। आधाकल्प उन्हों को निंदा करनी ही है, जिनकी भी पूजा करते, आक्यूपेशन का पता नहीं। तुम बच्चे बैठ समझाते हो परन्तु खुद का ही बाबा से योग नहीं तो औरों को क्या समझा सकेंगे। भल शिवबाबा कहते हैं परन्तु योग में बिल्कुल रहते नहीं तो विकर्म भी विनाश नहीं होते हैं, धारणा नहीं होती है। मुख्य बात है एक बाप को याद करना।
जो बच्चे ज्ञानी तू आत्मा के साथ-साथ योगी नहीं बनते हैं, उनमें देह-अभिमान का अंश जरूर होगा। योग के बिगर समझाना कोई काम का नहीं। फिर देह-अभिमान में आकर किसी न किसी को तंग करते रहेंगे। बच्चे भाषण अच्छा करते हैं तो समझते हैं हम ज्ञानी तू आत्मा हैं। बाप कहते हैं ज्ञानी तू आत्मा तो हो परन्तु योग कम है, योग पर पुरुषार्थ बहुत कम है। बाप कितना समझाते हैं - चार्ट रखो। मुख्य है ही योग की बात। बच्चों में ज्ञान के समझाने का शौक तो है लेकिन योग नहीं है। तो योग बिगर विकर्म विनाश नहीं होंगे फिर पद क्या पायेंगे! योग में तो बहुत बच्चे फेल हैं। समझते हैं हम 100 प्रतिशत हैं। परन्तु बाबा कहते 2 प्रतिशत हैं। बाबा खुद बतलाते हैं भोजन खाते समय याद में रहता हूँ, फिर भूल जाता हूँ। स्नान करता हूँ तो भी बाबा को याद करता हूँ। भल उनका बच्चा हूँ फिर भी याद भूल जाती है। समझते हो यह तो नम्बरवन में जाने वाला है, जरूर ज्ञान और योग ठीक होगा। फिर भी बाबा कहते हैं योग में बहुत मेहनत है। ट्रायल करके देखो फिर अनुभव सुनाओ। समझो दर्जी कपड़ा सिलाई करते हैं तो देखना चाहिए बाबा की याद में रहता हूँ। बहुत मीठा माशुक है। उनको जितना याद करेंगे तो हमारे विकर्म विनाश होंगे, हम सतोप्रधान बन जायेंगे। अपने को देखें हम कितना समय याद में रहता हूँ। बाबा को रिजल्ट बतानी चाहिए। याद में रहने से ही कल्याण होगा। बाकी जास्ती समझाने से कल्याण नहीं होगा। समझते कुछ नहीं हैं। अल्फ बिगर काम कैसे चलेगा? एक अल्फ का पता नहीं बाकी तो बिन्दी, बिन्दी हो जाती। अल्फ के साथ बिन्दी देने से फायदा होता है। योग नहीं तो सारा दिन टाइम वेस्ट करते रहते। बाप को तो तरस पड़ता है, यह क्या पद पायेंगे। तकदीर में नहीं है तो बाप भी क्या करें। बाप तो घड़ी-घड़ी समझाते हैं - दैवीगुण अच्छे रखो, बाप की याद में रहो। याद बहुत जरूरी है। याद से लॅव होगा तब ही श्रीमत पर चल सकेंगे। प्रजा तो ढेर बननी है। तुम यहाँ आये ही हो - यह लक्ष्मी-नारायण बनने, इसमें मेहनत है। भल स्वर्ग में जायेंगे परन्तु सजायें खाकर फिर पिछाड़ी में आकर पद पायेंगे थोड़ा-सा। बाबा तो सब बच्चों को जानते हैं ना। जो बच्चे योग में कच्चे हैं वह देह-अभिमान में आकर रूसते और लड़ते-झगड़ते रहेंगे। जो पक्के योगी हैं उनकी चलन बड़ी रॉयल शानदार होगी, बहुत थोड़ा बोलेंगे। यज्ञ सर्विस में भी रुचि रहेगी। यज्ञ सर्विस में हड्डियाँ भी चली जाएं। ऐसे-ऐसे कोई हैं भी। परन्तु बाबा कहते याद में जास्ती रहो तो बाप से लॅव होगा और खुशी में रहेंगे।
बाप कहते हैं मैं भारत खण्ड में ही आता हूँ। भारत को ही आकर ऊंचा बनाता हूँ। सतयुग में तुम विश्व के मालिक थे, सद्गति में थे फिर दुर्गति किसने की? (रावण ने) कब शुरू हुई? (द्वापर से) आधाकल्प लिए सद्गति एक सेकेण्ड में पाते हो, 21 जन्मों का वर्सा पा लेते हो। तो जब भी कोई अच्छा आदमी आये तो पहले-पहले उनको बाप का परिचय दो। बाप कहते हैं - बच्चे, इस ज्ञान से ही तुम्हारी सद्गति होगी। तुम बच्चे जानते हो यह ड्रामा चल रहा है सेकण्ड बाई सेकण्ड। यह बुद्धि में याद रहे तो भी तुम अच्छी रीति स्थिर रहेंगे। यहाँ बैठे हो तो भी बुद्धि में रहे यह सृष्टि चक्र जूँ मुआफिक कैसे फिरता रहता है। सेकण्ड-सेकण्ड टिक-टिक होती रहती है। ड्रामा अनुसार ही सारा पार्ट बज रहा है। एक सेकण्ड पास हुआ खत्म। रोल होता जाता है। बहुत आहिस्ते-आहिस्ते फिरता है। यह है बेहद का ड्रामा। बूढ़े आदि जो हैं उनकी बुद्धि में यह बातें बैठ न सकें। ज्ञान भी बैठ न सके। योग भी नहीं फिर भी बच्चे तो हैं। हाँ, सर्विस करने वालों का पद ऊंच है। बाकी का कम पद होगा। यह पक्का ख्याल रखो। यह बेहद का ड्रामा है, चक्र फिरता रहता है। जैसे रिकार्ड फिरता रहता है ना। हमारी आत्मा में भी ऐसे रिकार्ड भरा हुआ है। छोटी आत्मा में इतना सारा पार्ट भरा हुआ है, इनको ही कुदरत कहा जाता है। देखने में तो कुछ भी नहीं आता है। यह समझ की बातें हैं। मोटी बुद्धि वाले समझ न सके। इनमें हम जो बोलते जाते हैं, टाइम पास होता जाता फिर 5 हज़ार वर्ष बाद रिपीट होगा। ऐसी समझ कोई के पास नहीं। जो महारथी होंगे वह घड़ी-घड़ी इन बातों पर ध्यान देकर समझाते रहेंगे इसलिए बाबा कहते हैं पहले-पहले तो गांठ बांधो - बाप के याद की। बाप कहते हैं मुझे याद करो। आत्मा को अब घर जाना है। देह के सब सम्बन्ध छोड़ देने हैं। जितना हो सके बाप को याद करते रहो। यह पुरुषार्थ है गुप्त। बाबा राय देते हैं, परिचय भी बाप का ही दो। याद कम करते हैं तो परिचय भी कम देते हैं। पहले तो बाप का परिचय बुद्धि में बैठे। बोलो, अब लिखो बरोबर वह हमारा बाप है। देह सहित सब कुछ छोड़ एक बाप को याद करना है। याद से ही तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बनेंगे। मुक्तिधाम, जीवनमुक्तिधाम में तो दु:ख-दर्द होता ही नहीं। दिन-प्रतिदिन अच्छी बातें समझाई जाती हैं। आपस में भी यही बातें करो। लायक भी बनना चाहिए ना। ब्राह्मण होकर और बाप की रूहानी सेवा न करे तो क्या काम का। पढ़ाई को तो अच्छी रीति धारण करना चाहिए ना। बाबा जानते हैं बहुत हैं जिनको एक अक्षर भी धारण नहीं होता है। यथार्थ रीति बाप को याद करते नहीं हैं। राजा-रानी का पद पाने में मेहनत है। जो मेहनत करेंगे वही ऊंच पद पायेंगे। मेहनत करे तब राजाई में जा सकते। नम्बरवन को ही स्कॉलरशिप मिलती है। यह लक्ष्मी-नारायण स्कॉलरशिप लिये हुए हैं। फिर हैं नम्बरवार। बहुत बड़ा इम्तहान है ना। स्कॉलरशिप की ही माला बनी हुई है। 8 रत्न हैं ना। 8 हैं, फिर हैं 100, फिर हैं 16 हजार। तो कितना पुरुषार्थ करना चाहिए माला में पिरोने लिए। अन्तर्मुखी रहने का पुरुषार्थ करने से स्कॉलरशिप लेने के अधिकारी बन जायेंगे। तुम्हें बहुत अन्तर्मुखी रहना है। बाप तो है कल्याणकारी। तो कल्याण के लिए ही राय देते हैं। कल्याण तो सारी दुनिया का होना है। परन्तु नम्बरवार हैं। तुम यहाँ बाप के पास पढ़ने के लिए आये हो। तुम्हारे में भी वह स्टूडेन्ट अच्छे हैं जो पढ़ाई पर ध्यान देते हैं। कोई तो बिल्कुल ध्यान नहीं देते हैं। ऐसे भी बहुत समझते हैं जो भाग्य में होगा। पढ़ाई की एम ही नहीं है। तो बच्चों को याद का चार्ट रखना है। हमको अब वापिस घर जाना है। ज्ञान तो यहाँ ही छोड़ जायेंगे। ज्ञान का पार्ट पूरा हो जाता है। आत्मा इतनी छोटी, उनमें कितना पार्ट है, वन्डर है ना। यह सारा अविनाशी ड्रामा है। ऐसे-ऐसे भी तुम अन्तर्मुखी हो अपने से बातें करते रहो तो तुमको बहुत खुशी हो कि बाप आकर ऐसी बातें सुनाते हैं कि आत्मा कब विनाश नहीं होगी। ड्रामा में एक-एक मनुष्य का, एक-एक चीज़ का पार्ट नूँधा हुआ है। इनको बेअन्त भी नहीं कहेंगे। अन्त तो पाया है परन्तु यह है अनादि। कितनी चीजें हैं। इनको कुदरत कहें! ईश्वर की कुदरत भी नहीं कह सकते। वह कहते हैं हमारा भी इसमें पार्ट है। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) योग में बहुत मेहनत है, ट्रायल करके देखना है कि कर्म में कितना समय बाप की याद रहती है! याद में रहने से ही कल्याण है, मीठे माशूक को बहुत प्यार से याद करना है, याद का चार्ट रखना है।
2) महीन बुद्धि से इस ड्रामा के राज़ को समझना है। यह बहुत-बहुत कल्याणकारी ड्रामा है, हम जो बोलते हैं वा करते हैं वह फिर 5 हज़ार वर्ष बाद रिपीट होगा, इसे यथार्थ समझ खुशी में रहना है।
वरदान:-
आपस में स्नेह की लेन - देन द्वारा सर्व को सहयोगी बनाने वाले सफलतामूर्त भव
अभी ज्ञान देने और लेने की स्टेज पास की, अब स्नेह की लेन-देन करो। जो भी सामने आये, सम्बन्ध में आये तो स्नेह देना और लेना है - इसको कहा जाता है सर्व के स्नेही व लवली। ज्ञान दान अज्ञानियों को करना है लेकिन ब्राह्मण परिवार में इस दान के महादानी बनो। संकल्प में भी किसके प्रति स्नेह के सिवाए और कोई उत्पत्ति न हो। जब सभी के प्रति स्नेह हो जाता है तो स्नेह का रिसपॉन्स सहयोग होता है और सहयोग की रिजल्ट सफलता प्राप्त होती है।
स्लोगन:-
एक सेकण्ड में व्यर्थ संकल्पों पर फुलस्टॉप लगा दो - यही तीव्र पुरूषार्थ है।