Thursday, April 2, 2020

02-04-2020 प्रात:मुरली

02-04-2020 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - बाप तुम रूहों से रूहरिहान करते हैं, तुम आये हो बाप के पास 21 जन्मों के लिए अपनी लाइफ इनश्योर करने, तुम्हारी लाइफ ऐसी इनश्योर होती है जो तुम अमर बन जाते हो"
प्रश्नः-
मनुष्य भी अपनी लाइफ इनश्योर कराते और तुम बच्चे भी, दोनों में अन्तर क्या है?
उत्तर:-
मनुष्य अपनी लाइफ इनश्योर कराते कि मर जायें तो परिवार वालों को पैसा मिले। तुम बच्चे इनश्योर करते हो कि 21 जन्म हम मरें ही नहीं। अमर बन जायें। सतयुग में कोई इनश्योर कम्पनियाँ होती नहीं। अभी तुम अपनी लाइफ इनश्योर कर देते हो फिर कभी मरेंगे नहीं, यह खुशी रहनी चाहिए।
गीत:-
यह कौन आज आया सवेरे.......
ओम् शान्ति। रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों से रूहरिहान करते हैं, तुम बच्चे जानते हो बाप हमको अभी 21 जन्म तो क्या 40-50 जन्मों लिए इनश्योर कर रहे हैं। वो लोग इनश्योर करते हैं कि मर जाएं तो उनके परिवार को पैसा मिले। तुम इनश्योर करते हो 21 जन्मों के लिए मरें ही नहीं। अमर बनाते हैं ना। तुम अमर थे, मूलवतन भी अमरलोक है। वहाँ मरने जीने की बात नहीं रहती। वो है आत्माओं का निवास स्थान। अब यह रूहरिहान बाप अपने बच्चों से करते हैं और कोई से नहीं करते। जो रूह अपने को जानती है उनसे ही बात करते हैं। बाकी और कोई बाप की भाषा को समझेंगे नहीं। प्रदर्शनी में इतने आते हैं, तुम्हारी भाषा को समझते हैं क्या। कोई मुश्किल थोड़ा समझते हैं। तुमको भी समझाते-समझाते कितने वर्ष हुए हैं तो भी कितने थोड़े समझते हैं। है भी सेकण्ड में समझने की बात। हम आत्मायें जो पावन थी वही पतित बनी हैं फिर हमको पावन बनना है। उसके लिए स्वीट फादर को याद करना है। उनसे स्वीट और कोई चीज़ होती नहीं। इस याद करने में ही माया के विघ्न पड़ते हैं। यह भी जानते हो बाबा हमको अमर बनाने आये हैं। पुरूषार्थ कर अमर बन, अमरपुरी का मालिक बनना है। अमर तो सब बनेंगे। सतयुग को कहा ही जाता है अमरलोक। यह है मृत्युलोक। यह अमरकथा है, ऐसे नहीं कि सिर्फ शंकर ने पार्वती को अमरकथा सुनाई। वह तो सब हैं भक्ति मार्ग की बातें। तुम बच्चे सिर्फ मुझ एक से ही सुनो। मामेकम् याद करो। ज्ञान मैं ही दे सकता हूँ। ड्रामा प्लेन अनुसार सारी दुनिया तमोप्रधान बनी है। अमरपुरी में राज्य करना - उसको ही अमर पद कहा जाता है। वहाँ इनश्योर कम्पनियाँ आदि होती नहीं। अभी तुम्हारी लाइफ इनश्योर कर रहे हैं। तुम कभी मरेंगे नहीं। यह बुद्धि में खुशी रहनी चाहिए। हम अमरपुरी के मालिक बनते हैं, तो अमरपुरी को याद करना पड़े। वाया मूल-वतन ही जाना होता है। यह भी मनमनाभव हो जाता। मूलवतन है मनमनाभव, अमरपुरी है मध्याजीत भव। हर एक बात में दो अक्षर ही आते हैं। तुमको कितने प्रकार से अर्थ समझाते हैं। तो बुद्धि में बैठे। सबसे जास्ती मेहनत है ही इसमें। अपने को आत्मा निश्चय करना है। हम आत्मा ने यह जन्म लिया है। 84 जन्म में भिन्न-भिन्न नाम, रूप, देश, काल फिरते आये हैं। सतयुग में इतने जन्म, त्रेता में इतने....... यह भी बहुत बच्चे भूल जाते हैं। मुख्य बात है अपने को आत्मा समझ स्वीट बाप को याद करना। उठते-बैठते यह बुद्धि में रहने से खुशी रहेगी। फिर से बाबा आया हुआ है, जिसको हम आधाकल्प याद करते थे कि आओ आकर पावन बनाओ। पावन रहते हैं मूलवतन में और अमरपुरी सतयुग में। भक्ति में मनुष्य पुरूषार्थ करते हैं मुक्ति में वा कृष्णपुरी में जाने के लिए। मुक्ति कहो अथवा निर्वाणधाम कहो, वानप्रस्थ अक्षर करेक्ट है। वानप्रस्थी तो शहर में ही रहते हैं। संन्यासी लोग तो घरबार छोड़ जंगल में जाते हैं। आजकल के वानप्रस्थियों में कोई दम नहीं है। संन्यासी तो ब्रह्म को भगवान कह देते। ब्रह्म लोक नहीं कहते। अभी तुम बच्चे जानते हो पुनर्जन्म तो किसका भी बंद नहीं होता। अपना-अपना पार्ट सब बजाते हैं। आवागमन से कभी छूटना नहीं है। इस समय करोड़ों मनुष्य हैं और भी आते रहेंगे, पुनर्जन्म लेते रहेंगे। फिर फर्स्ट फ्लोर खाली होगा। मूलवतन है फर्स्ट फ्लोर, सूक्ष्मवतन है सेकण्ड फ्लोर। यह है थर्ड फ्लोर अथवा इनको ग्राउण्ड फ्लोर कहो। दूसरा कोई फ्लोर है नहीं। वह समझते हैं स्टार्स में भी दुनिया है। ऐसे है नहीं। फर्स्ट फ्लोर में आत्मायें रहती हैं। बाकी मनुष्यों के लिए तो यह दुनिया है।
तुम बेहद के वैरागी बच्चे हो, तुम्हें इस पुरानी दुनिया में रहते हुए भी इन आंखों से सब कुछ देखते हुए नहीं देखना है। यह है मुख्य पुरूषार्थ; क्योंकि यह सब खत्म हो जायेगा। ऐसे नहीं कि संसार बना ही नहीं है। बना हुआ है परन्तु उनसे वैराग्य हो जाता अर्थात् सारी पुरानी दुनिया से वैराग्य। भक्ति, ज्ञान और वैराग्य। भक्ति के बाद है ज्ञान, फिर भक्ति का वैराग्य हो जाता। बुद्धि से समझते हो कि यह पुरानी दुनिया है। यह हमारा अन्तिम जन्म है, अभी सबको वापिस जाना है। छोटे बच्चों को भी शिवबाबा की याद दिलानी है। उल्टे-सुल्टे खान-पान आदि की कोई आदत नहीं डालनी चाहिए। छोटेपन से जैसी आदत डालो वैसी आदत पड़ जाती है। आजकल संग का दोष बड़ा गंदा है। संग तारे कुसंग बोरे...... यह विषय सागर वेश्यालय है। सत तो एक ही परमपिता परमात्मा है। गॉड इज वन कहा जाता है। वह आकर सत्य बात समझाते हैं। बाप कहते हैं हे रूहानी बच्चों, मैं तुम्हारा बाप तुमसे रूहरिहान कर रहा हूँ। मुझे तुम बुलाते हो ना। वही ज्ञान का सागर, पतित-पावन है। नई सृष्टि का रचयिता है। पुरानी सृष्टि का विनाश कराते हैं। यह त्रिमूर्ति तो प्रसिद्ध है। ऊंच ते ऊंच है शिव। अच्छा, फिर सूक्ष्मवतन में हैं ब्रह्मा-विष्णु-शंकर। उन्हों का साक्षात्कार भी होता है क्योंकि पवित्र हैं ना। उन्हों को चैतन्य में इन आंखों से देख नहीं सकते। बहुत नौधा भक्ति से देख सकते हैं। समझो कोई हनूमान का भक्त होगा तो उनका साक्षात्कार होगा। शिव के भक्त को तो झूठ बताया गया है कि परमात्मा अखण्ड ज्योति स्वरूप है। बाप कहते हैं मैं तो इतनी छोटी-सी बिन्दी हूँ, वह कहते अखण्ड ज्योति स्वरूप अर्जुन को दिखाया। उसने कहा बस मैं सहन नहीं कर सकता हूँ। उनको दीदार हुआ तो यह गीता में लिखा हुआ है। मनुष्य समझते हैं अखण्ड ज्योति का साक्षात्कार हुआ। अब बाप कहते हैं यह सब भक्ति मार्ग की बातें दिलखुश करने की हैं। मैं तो कहता ही नहीं हूँ कि मैं अखण्ड ज्योति-स्वरूप हूँ। जैसे बिन्दी मिसल तुम्हारी आत्मा है वैसे मैं हूँ। जैसे तुम ड्रामा के बंधन में हो वैसे मैं भी ड्रामा के बंधन में बांधा हुआ हूँ। सब आत्माओं को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। पुनर्जन्म तो सबको लेना ही है। नम्बरवार सबको आना ही है। पहले नम्बर वाला फिर नीचे जाता है। कितनी बातें बाप समझाते हैं। यह समझाया है कि सृष्टि रूपी चक्र फिरता रहता है। जैसे दिन के बाद रात आती है वैसे कलियुग के बाद सतयुग, फिर त्रेता....... फिर संगमयुग आता है। संगमयुग पर ही बाप चेंज करते हैं। जो सतोप्रधान थे अब वही तमोप्रधान बने हैं। वही फिर सतोप्रधान बनेंगे। बुलाते भी हैं हे पतित-पावन आओ। तो अब बाप कहते हैं मनमनाभव। मैं आत्मा हूँ, मुझे बाप को याद करना है। यह यथार्थ रीति कोई मुश्किल समझते हैं। हम आत्माओं का बाप कितना मीठा है। आत्मा ही मीठी है ना। शरीर तो खत्म हो जाता है फिर उनकी आत्मा को बुलाते हैं। प्यार तो आत्मा से ही होता है ना। संस्कार आत्मा में रहते हैं। आत्मा ही पढ़ती सुनती है, देह तो खत्म हो जाती है। मैं आत्मा अमर हूँ। फिर तुम मेरे लिए रोते क्यों हो? यह तो देह-अभिमान है ना। तुम्हारा देह में प्यार है, होना चाहिए आत्मा में प्यार। अविनाशी चीज़ में प्यार होना चाहिए। विनाशी चीज़ में प्यार होने से ही लड़ते-झगड़ते हैं। सतयुग में हैं देही-अभिमानी, इसलिए खुशी से एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं। रोना पीटना कुछ भी नहीं होता।
तुम बच्चों को अपनी आत्म-अभिमानी अवस्था बनाने के लिए बहुत प्रैक्टिस करनी है - मैं आत्मा हूँ, अपने भाई (आत्मा) को बाप का सन्देश सुनाता हूँ, हमारा भाई इन आरगन्स द्वारा सुनता है, ऐसी अवस्था जमाओ। बाप को याद करते रहो तो विकर्म विनाश होते रहेंगे। खुद को भी आत्मा समझो, उनको भी आत्मा समझो तब पक्की आदत हो जाये, यह है गुप्त मेहनत। अन्तर्मुख हो इस अवस्था को पक्का करना है। जितना समय निकाल सको उतना इसमें लगाओ। 8 घण्टा तो धंधा आदि भल करो। नींद भी करो। बाकी इसमें लगाओ। 8 घण्टा तक पहुँचना है, तब तुमको बहुत खुशी रहेगी। पतित-पावन बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश हों। ज्ञान तुमको अभी ही संगम पर मिलता है। महिमा सारी इस संगमयुग की है, जबकि बाप बैठ तुमको ज्ञान समझाते हैं। इसमें स्थूल कोई बात नहीं। यह जो तुम लिखते हो वह सब खत्म हो जायेगा। नोट भी इसलिए करते हैं तो प्वाइंट्स नोट होने से याद रहेगी। कोई की बुद्धि तीखी होती है तो बुद्धि में याद रहती है। नम्बरवार तो हैं ना। मुख्य बात, बाप को याद करना है और सृष्टि चक्र को याद करना है। कोई विकर्म नहीं करना है। गृहस्थ व्यवहार में भी रहना है। पवित्र जरूर बनना है। कई गन्दे ख्यालात वाले बच्चे समझते हैं - हमको यह फलानी बहुत अच्छी लगती है, इनसे हम गन्धर्वी विवाह कर लें। परन्तु यह गन्धर्वी विवाह तो तब कराते हैं जबकि मित्र-सम्बन्धी आदि बहुत तंग करते हैं, तो उनको बचाने लिए। ऐसे थोड़ेही सब कहेंगे हम गन्धर्वी विवाह करेंगे। वह कभी रह नहीं सकेंगे। पहले दिन ही जाकर गटर में पड़ेंगे। नाम रूप में दिल लग जाती है। यह तो बड़ी खराब बात है। गन्धर्वी विवाह करना कोई मासी का घर नहीं है। एक-दो से दिल लगी तो कह देते गन्धर्वी विवाह करें। इसमें सम्बन्धियों को बड़ा खबरदार रहना चाहिए। समझना चाहिए यह बच्चे काम के नहीं। जिससे दिल लगी है उससे हटा देना चाहिए। नहीं तो बातें करते रहेंगे। इस सभा में बड़ी खबरदारी रखनी होती है। आगे चल बड़े कायदेसिर सभा लगेगी। ऐसे-ऐसे ख्यालात वाले को आने नहीं देंगे।
जो बच्चे रूहानी सर्विस पर तत्पर रहते हैं, जो योग में रहकर सर्विस करते हैं, वही सतयुगी राजधानी स्थापन करने में मददगार बनते हैं। सर्विसएबुल बच्चों को बाप का डायरेक्शन है - आराम हराम है। जो बहुत सर्विस करते हैं वह जरूर राजा-रानी बनेंगे। जो-जो मेहनत करते हैं, आप समान बनाते हैं, उनमें ताकत भी रहती है। स्थापना तो ड्रामा अनुसार होनी ही है। अच्छी रीति सब प्वाइंट्स धारण कर फिर सर्विस में लग जाना चाहिए। आराम भी हराम है। सर्विस ही सर्विस, तब ऊंच पद पायेंगे। बादल आये और रिफ्रेश होकर गये सर्विस पर। सर्विस तो तुम्हारी बहुत निकलेगी। किस्म-किस्म के चित्र निकलेंगे, जो मनुष्य झट समझ जाएं। यह चित्र आदि भी इप्रूव होते जायेंगे। इसमें भी जो हमारे ब्राह्मण कुल के होंगे वह अच्छी रीति समझेंगे। समझाने वाले भी अच्छे हैं तो कुछ समझेंगे। जो अच्छी रीति धारणा करते हैं, बाप को याद करते हैं - उनके चेहरे से ही मालूम पड़ जाता है। बाबा हम तो आपसे पूरा वर्सा लेंगे तो उनके अन्दर खुशी के ढोल बजते रहेंगे, सर्विस का बहुत शौक होगा। रिफ्रेश हुए और यह भागे। सर्विस के लिए हर एक सेन्टर से बहुत तैयार होने चाहिए। तुम्हारी सर्विस तो बहुत फैलती जायेगी। तुम्हारे साथ मिलते जायेंगे। आखरीन एक दिन संन्यासी भी आयेंगे। अभी तो उन्हों की राजाई है। उन्हों के पैरों पर पड़ते हैं, पूजते हैं। बाप कहते हैं यह भूत पूजा है। मेरे तो पैर हैं नहीं, इसलिए पूजने भी नहीं देंगे। मैंने तो यह तन लोन लिया है इसलिए इनको भाग्यशाली रथ कहा जाता है।
इस समय तुम बच्चे बहुत सौभाग्यशाली हो क्योंकि तुम यहाँ ईश्वरीय सन्तान हो। गायन भी है आत्मायें परमात्मा अलग रहे बहुकाल...... तो जो बहुतकाल से अलग रहे हैं वही आते हैं, उनको ही आकर पढ़ाता हूँ। कृष्ण के लिए थोड़ेही कह सकेंगे। वह तो पूरे 84 जन्म लेते हैं। यह है उनका अन्तिम जन्म, इसलिए नाम भी इस एक का श्याम-सुन्दर पड़ा है। शिव का तो किसी को पता नहीं है कि क्या चीज़ है। यह बात बाप ही आकर समझाते हैं। मैं हूँ परम आत्मा, परमधाम में रहने वाला हूँ। तुम भी वहाँ के रहने वाले हो। मैं सुप्रीम पतित-पावन हूँ। तुम अभी ईश्वरीय बुद्धि वाले बने हो। ईश्वर की बुद्धि में जो ज्ञान है वह तुमको सुना रहे हैं। सतयुग में भक्ति की बात नहीं होती। यह ज्ञान तुमको अभी मिल रहा है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अन्तर्मुखी होकर अपनी अवस्था को जमाना है, अभ्यास करना है - मैं आत्मा हूँ, अपने भाई (आत्मा) को बाप का सन्देश देता हूँ...... ऐसा आत्म-अभिमानी बनने की गुप्त मेहनत करनी है।
2) रूहानी सर्विस का शौक रखना है। आप समान बनाने की मेहनत करनी है। संग का दोष बड़ा गन्दा है, उससे अपने को सम्भालना है। उल्टे खान-पान की आदत नहीं डालनी है।
वरदान:-
खुदाई खिदमतगार की स्मृति द्वारा सहज याद का अनुभव करने वाले सहजयोगी भव
खुदाई खिदमतगार अर्थात् जो खुदा व बाप ने खिदमत (सेवा) दी है, उसी सेवा में सदा तत्पर रहने वाले। सदा यही नशा रहे कि हमें स्वयं खुदा ने खिदमत दी है। कार्य करते हुए, जिसने कार्य दिया है उसको कभी भूला नहीं जाता। तो कर्मणा सेवा में भी यह स्मृति रहे कि बाप के डायरेक्शन अनुसार कर रहे हैं तो सहज याद का अनुभव करते सहजयोगी बन जायेंगे।
स्लोगन:-
सदा गॉडली स्टूडेन्ट लाइफ की स्मृति रहे तो माया समीप नहीं आ सकती।