Monday, April 29, 2019

29-04-19 प्रात:मुरली

29-04-2019 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

''मीठे बच्चे - बाप को प्यार से याद करो तो तुम निहाल हो जायेंगे, नज़र से निहाल होना माना विश्व का मालिक बनना''
प्रश्नः-
नज़र से निहाल कींदा स्वामी सतगुरू.... इसका वास्तविक अर्थ क्या है?
उत्तर:-
आत्मा को बाप द्वारा जब तीसरी आंख मिलती है और उस आंख से बाप को पहचान लेती है तो निहाल हो जाती अर्थात् सद्गति मिल जाती है। बाबा कहते - बच्चे, देही-अभिमानी बन तुम मेरे से नज़र लगाओ अर्थात् मुझे याद करो, और संग तोड़ एक मेरे संग जोड़ो तो बेहाल अर्थात् कंगाल से निहाल अर्थात् साहूकार बन जायेंगे।
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चे किसके पास आते हैं? रूहानी बाप के पास। समझते हो हम शिवबाबा के पास जाते हैं। यह भी जानते हैं शिवबाबा सब आत्माओं का बाप है। यह भी बच्चों को निश्चय चाहिए कि वह सुप्रीम टीचर भी है तो सुप्रीम गुरू भी है। सुप्रीम को परम कहा जाता है। उस एक को ही याद करना है। नज़र से नज़र मिलाते हैं। गायन है नज़र से निहाल कींदा स्वामी सतगुरू। उनका अर्थ चाहिए। नज़र से निहाल किसको? जरूर सारी दुनिया के लिए कहेंगे क्योंकि सर्व का सद्गति दाता है। सर्व को इस पतित दुनिया से ले जाने वाला है। अब नज़र किसकी? क्या यह आखें? नहीं, तीसरी आंख मिलती है ज्ञान की। जिससे आत्मा जानती है यह हम सभी आत्माओं का बाप है। बाप आत्माओं को राय देते हैं कि मुझे याद करो। बाप आत्माओं को समझाते हैं। आत्मायें ही पतित तमोप्रधान बनी हैं। अब यह तुम्हारा 84वां जन्म है, यह नाटक पूरा होता है। पूरा होना भी चाहिए जरूर। हर कल्प पुरानी दुनिया से नई बनती है। नई सो फिर पुरानी होती है। नाम भी अलग है। नई दुनिया का नाम है सतयुग। बाप ने समझाया है पहले तुम सतयुग में थे, फिर पुनर्जन्म लेते 84 जन्म बिताये। अब तुम्हारी आत्मा तमोप्रधान बन गई है। बाप को याद करेंगे तो निहाल हो जायेंगे। बाप सम्मुख कहते हैं मुझे याद करो, मैं कौन? परमपिता परमात्मा। बाप कहते हैं - बच्चे, देही-अभिमानी बनो, देह-अभिमानी नहीं बनो। आत्म-अभिमानी बन तुम मेरे में नज़र लगाओ तो तुम निहाल हो जायेंगे। बाप को याद करते रहो, इसमें कोई तकलीफ नहीं। आत्मा ही पढ़ती है, पार्ट बजाती है। कितनी छोटी है। जब यहाँ आते हैं तो 84 जन्मों का पार्ट बजाते हैं। फिर वही पार्ट रिपीट करना है। 84 जन्मों का पार्ट बजाते आत्मा पतित बन पड़ी है। अब आत्मा में कुछ भी दम नहीं रहा है। अब आत्मा निहाल नहीं, बेहाल अर्थात् कंगाल है। फिर निहाल कैसे बने? यह अक्षर भक्ति मार्ग के हैं, जिस पर बाप समझाते हैं। वेद, शास्त्र, चित्रों आदि पर भी समझाते हैं। तुमने यह चित्र श्रीमत पर बनाये हैं। आसुरी मत पर तो अनेक ढेर के ढेर चित्र हैं। वह हैं मिट्टी पत्थर के। उनका कोई आक्यूपेशन नहीं। यहाँ तो बाप आकर बच्चों को पढ़ाते हैं। भगवानुवाच है तो उनकी नॉलेज हो गई। स्टूडेन्ट जानते हैं यह फलाना टीचर है। यहाँ तुम बच्चे जानते हो कि बेहद का बाप एक ही बार आकर ऐसी वन्डरफुल पढ़ाई पढ़ाते हैं। इस पढ़ाई और उस पढ़ाई में रात-दिन का फ़र्क है। वह पढ़ाई पढ़ते-पढ़ते रात पड़ जाती है, इस पढ़ाई से दिन में चले जाते हैं। वह पढ़ाईयां तो जन्म-जन्मान्तर पढ़ते आये। इसमें तो बाप साफ बतलाते हैं कि आत्मा जब पवित्र होगी तब धारणा होगी। कहते हैं शेरणी का दूध सोने के बर्तन में ही ठहरता है। तुम बच्चे समझते हो, हम अब सोने का बर्तन बन रहे हैं। होंगे तो मनुष्य ही परन्तु आत्मा को सम्पूर्ण पवित्र बनना है। 24 कैरेट था, अभी 9 कैरेट हो गया है। आत्मा की ज्योति जो जगी हुई थी वह अब बुझ गई है। ज्योति जगी हुई और बुझी हुई वालों में भी फ़र्क है। ज्योति कैसे जगी और पद कैसे पाया - यह बाप ही समझाते हैं। बाप कहते हैं मुझे याद करो। जो मुझे अच्छी तरह याद करेंगे मैं भी उनको अच्छी तरह याद करुँगा। यह भी बच्चे जानते हैं नज़र से निहाल करने वाला एक बाप ही स्वामी है। इनकी आत्मा भी निहाल होती है। तुम सब परवाने हो, उनको शमा कहते हैं। कोई परवाने सिर्फ फेरी पहनने आते हैं। कोई अच्छी तरह पहचान लेते हैं तो जीते जी मर जाते हैं। कोई फेरी पहन चले जाते हैं, फिर कभी-कभी आते हैं, फिर चले जाते हैं। इस संगम का ही सारा गायन है। इस समय जो कुछ चलता है उनके ही शास्त्र बनते हैं। बाप एक ही बार आकर वर्सा देकर चले जाते हैं। बेहद का बाप जरूर बेहद का वर्सा देंगे। गायन भी है 21 पीढ़ी। सतयुग में वर्सा कौन देते हैं? भगवान् रचयिता ही आधाकल्प के लिए वर्सा देते हैं रचना को। याद भी सब उनको करते हैं। वह बाप भी है तो टीचर भी है, स्वामी, सतगुरू भी है। भल तुम और किसको भी स्वामी सतगुरू कहते होंगे। परन्तु सत एक ही बाप है। ट्रूथ हमेशा ही बाप को कहा जाता है। वह ट्रूथ क्या आकर करते हैं? वही पुरानी दुनिया को सचखण्ड बना देते हैं। सचखण्ड के लिए हम पुरूषार्थ कर रहे हैं। जब सचखण्ड था तो और सब खण्ड नहीं थे। यह सब पीछे आते हैं। सचखण्ड का किसको भी पता ही नहीं। बाकी जो अब खण्ड हैं उनका तो सबको मालूम है। अपने-अपने धर्म स्थापक को जानते हैं। बाकी सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी और इस संगमयुगी ब्राह्मण कुल को कोई जानते नहीं हैं। प्रजापिता ब्रह्मा को मानते हैं, कहते हैं हम ब्राह्मण ब्रह्मा की औलाद हैं, परन्तु वह हैं कुख वंशावली, तुम हो मुख वंशावली। वह हैं अपवित्र, तुम मुख वंशावली हो पवित्र। तुम मुख-वंशावली बन फिर छी-छी दुनिया रावण राज्य से चले जाते हो। वहाँ रावण राज्य होता नहीं। अब तुम चलते हो नई दुनिया में। उनको कहते हैं वाइसलेस वर्ल्ड। वर्ल्ड ही नई और पुरानी होती है। कैसे होती है यह भी तुम जान गये हो। दूसरा तो कोई की बुद्धि में नहीं है। लाखों वर्ष की बात को कोई जान भी न सके। यह तो थोड़े समय की बात है। यह बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं।

बाप कहते हैं मैं आता ही तब हूँ जब ख़ास भारत में धर्म ग्लानि होती है। दूसरी जगह तो किसको पता ही नहीं कि निराकार परमात्मा क्या चीज़ है। बड़ा-बड़ा लिंग बनाकर रख दिया है। बच्चों को समझाया है - आत्मा का साइज़ कभी छोटा-बड़ा नहीं होता है। जैसे आत्मा अविनाशी है, वैसे बाप भी अविनाशी है। वह है सुप्रीम आत्मा। सुप्रीम माना वह सदैव पवित्र और निर्विकारी है। तुम आत्मायें भी निर्विकारी थी, दुनिया भी निर्विकारी थी। उनको कहा ही जाता है सम्पूर्ण निर्विकारी, नई दुनिया फिर जरूर पुरानी होती है। कला कम होती जाती है। दो कला कम चन्द्रवंशी राज्य था फिर दुनिया पुरानी बनती जाती है। पीछे और-और खण्ड आते जाते हैं। उनको कहा जाता है बाइप्लाट, परन्तु मिक्सअप हो जाते हैं। ड्रामा प्लैन अनुसार जो कुछ होता है वह फिर रिपीट होगा। जैसे बौद्धियों का कोई बड़ा आया, कितनों को बौद्ध धर्म में ले गया। धर्म को बदला दिया। हिन्दुओं ने अपना धर्म आपेही बदला है क्योंकि कर्म भ्रष्ट होने से धर्म भ्रष्ट भी हो पड़े हैं। वाम मार्ग में चले गये हैं। जगन्नाथ के मन्दिर में भी भल गये होंगे, परन्तु कोई का कुछ ख्याल नहीं चलता। खुद विकारी हैं तो उन्हों को भी विकारी दिखा दिया है। यह नहीं समझते कि देवतायें जब वाम-मार्ग में गये हैं, तब ऐसे बने हैं। उस समय के ही यह चित्र हैं। देवता नाम तो बड़ा अच्छा है। हिन्दू तो हिन्दुस्तान का नाम है। फिर अपने को हिन्दू कह दिया है। कितनी भूल है इसलिए बाप कहते हैं यदा यदाहि धर्मस्य.... बाबा भारत में आते हैं। ऐसे तो नहीं कहते - मैं हिन्दुस्तान में आता हूँ। यह है भारत, हिन्दुस्तान वा हिन्दू धर्म है नहीं। मुसलमानों ने हिन्दुस्तान नाम रखा है। यह भी ड्रामा में नूँध है। अच्छी रीति समझना चाहिए। यह भी नॉलेज है। पुनर्जन्म लेते-लेते वाम मार्ग में आते-आते भ्रष्टाचारी बन पड़ते हैं, फिर उन्हों के आगे जाकर कहते हैं, आप सम्पूर्ण निर्विकारी हो। हम विकारी पापी हैं और कोई खण्ड वाले ऐसे नहीं कहेंगे। हम नींच हैं अथवा हमारे में कोई गुण नहीं हैं। ऐसे कहते कभी सुना नहीं होगा। सिक्ख लोग भी ग्रंथ के आगे बैठते हैं परन्तु ऐसे कभी नहीं कहते कि नानक, तुम निर्विकारी, हम विकारी। नानक पंथी कंगन लगाते हैं, वह है निर्विकारीपने की निशानी। परन्तु विकार बिगर रह नहीं सकते हैं। झूठी निशानियां रख दी हैं। जैसे हिन्दू लोग जनेऊ पहनते हैं, पवित्रता की निशानी है। आजकल तो धर्म को भी नहीं मानते। इस समय भक्ति मार्ग चल रहा है। इनको कहा जाता है भक्ति कल्ट। ज्ञान कल्ट सतयुग में है। सतयुग में देवतायें हैं सम्पूर्ण निर्विकारी। कलियुग में सम्पूर्ण निर्विकारी कोई हो न सके। प्रवृत्ति मार्ग वालों की स्थापना तो बाप ही करते हैं। बाकी सब गुरू हैं निवृत्ति मार्ग वाले, उनसे उन्हों का जोर जास्ती हो गया है। बाप कहते हैं यह जो कुछ तुमने पढ़ा है, उनसे मैं नहीं मिलता हूँ। मैं जब आता हूँ तो सबको नज़र से निहाल कर देता हूँ। गायन भी है नज़र से निहाल कींदा स्वामी सतगुरू.... यहाँ तुम क्यों आये हो? निहाल बनने। विश्व का मालिक बनने। बाप को याद करो तो निहाल बन जायेंगे। ऐसे कभी कोई कहेंगे नहीं कि ऐसा करने से तुम यह बन जायेंगे। बाप ही कहते हैं तुमको यह बनना है। यह लक्ष्मी-नारायण कैसे बने? कोई को मालूम नहीं है। तुम बच्चों को बाप सब कुछ बताते हैं, यही 84 जन्म ले पतित बने फिर तुमको यह बनाने आया हूँ।

बाप अपना परिचय भी देते हैं तो नज़र से निहाल भी करते हैं। यह किसके लिए कहते हैं? एक सतगुरू के लिए। वह गुरू लोग तो ढेर हैं और मातायें अबलायें हैं भोली। तुम सब भी भोलानाथ के बच्चे हो। शंकर के लिए कहा है आंख खोली विनाश हो गया। यह भी पाप हो जाये। बाप कभी ऐसे काम के लिए डायरेक्शन नहीं देते हैं। विनाश तो कोई और चीज़ों से होगा ना। बाप ऐसे डायरेक्शन नहीं देते। यह तो सब साइंस निकालते रहते हैं, समझते हैं हम अपने कुल का आपेही विनाश करते हैं। वह भी बांधे हुए हैं। छोड़ नहीं सकते। नाम कितना होता है। मून में जाते हैं परन्तु फायदा कुछ भी नहीं।

मीठे-मीठे बच्चे, तुम भी बाप से नज़र लगाओ अथवा हे आत्मा, अपने बाप को याद करो तो निहाल हो जायेंगे। बाबा कहते हैं - जो मुझे याद करते हैं, मैं भी उनको याद करता हूँ। जो मेरे लिए सर्विस करते हैं, मैं भी उनको याद करता हूँ, तो उनको बल मिलता है। तुम यहाँ सब बैठे हो जो निहाल हो जायेंगे, वही राजा बनेंगे। गायन भी है और संग तोड़ एक संग जोडूँ। एक है निराकार। आत्मा भी निराकार है। बाप कहते हैं मुझे याद करो। तुम खुद कहते हो हे पतित-पावन.... यह किसको कहा? ब्रह्मा को, विष्णु को, शंकर को? नहीं। पतित-पावन तो एक है, वह सदैव पावन ही है। उनको कहा जाता है सर्वशक्तिमान्। बाप ही सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज सुनाते हैं और सब शास्त्रों को जानते हैं। वह सन्यासी शास्त्र आदि पढ़कर टाइटिल लेते हैं। बाप को तो पहले ही टाइटिल मिला हुआ है। उनको पढ़कर थोड़ेही लेना है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) शमा पर जीते जी मरने वाला परवाना बनना है, सिर्फ फेरी लगाने वाला नहीं। ईश्वरीय पढ़ाई को धारण करने के लिए बुद्धि को सम्पूर्ण पावन बनाना है।
2) और सब संग तोड़ एक बाप के संग में रहना है। एक की याद से स्वयं को निहाल करना है।
वरदान:-
मनमनाभव के मंत्र द्वारा मन के बन्धन से छूटने वाले निर्बन्धन, ट्रस्टी भव
कोई भी बंधन पिंजड़ा है। पिंजड़े की मैना अब निर्बन्धन उड़ता पंछी बन गयी। अगर कोई तन का बंधन भी है तो भी मन उड़ता पंछी है क्योंकि मनमनाभव होने से मन के बन्धन छूट जाते हैं। प्रवृत्ति को सम्भालने का भी बन्धन नहीं। ट्रस्टी होकर सम्भालने वाले सदा निर्बन्धन रहते हैं। गृहस्थी माना बोझ, बोझ वाला कभी उड़ नहीं सकता। लेकिन ट्रस्टी हैं तो निर्बन्धन हैं और उड़ती कला से सेकण्ड में स्वीट होम पहुंच सकते हैं।
स्लोगन:-
उदासी को अपनी दासी बना दो, उसे चेहरे पर आने न दो।