Tuesday, April 9, 2019

08-04-19 प्रात:मुरली

08-04-2019 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

''मीठे बच्चे - यह संगमयुग उत्तम से उत्तम बनने का युग है, इसमें ही तुम्हें पतित से पावन बन पावन दुनिया बनानी है''
प्रश्नः-
अन्तिम दर्दनाक सीन को देखने के लिए मज़बूती किस आधार पर आयेगी?
उत्तर:-
शरीर का भान निकालते जाओ। अन्तिम सीन बहुत कड़ी है। बाप बच्चों को मजबूत बनाने के लिए अशरीरी बनने का इशारा देते हैं। जैसे बाप इस शरीर से अलग हो तुम्हें सिखलाते हैं, ऐसे तुम बच्चे भी अपने को शरीर से अलग समझो, अशरीरी बनने का अभ्यास करो। बुद्धि में रहे कि अब घर जाना है।
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चे हैं तो जिस्म के साथ। बाप भी अभी जिस्म के साथ हैं। इस घोड़े वा गाड़ी पर सवार हैं और बच्चों को क्या सिखलाते हैं? जीते जी मरना कैसे होता है और कोई यह सिखला न सके सिवाए बाप के। बाप का परिचय सब बच्चों को मिला है, वह ज्ञान सागर पतित-पावन है। ज्ञान से ही तुम पतित से पावन बनते हो और पावन दुनिया भी बनानी है। इस पतित दुनिया का ड्रामा प्लैन अनुसार विनाश होना है। सिर्फ जो बाप को पहचानते हैं और ब्राह्मण भी बनते हैं, वही फिर पावन दुनिया में आकर राज्य करते हैं। पवित्र बनने के लिए ब्राह्मण भी जरूर बनना है। यह संगमयुग है ही पुरुषोत्तम अर्थात् उत्तम ते उत्तम पुरुष बनने का युग। कहेंगे उत्तम तो बहुत साधू, सन्त, महात्मा, वजीर, अमीर, प्रेजीडेन्ट आदि हैं। परन्तु नहीं, यह तो कलियुगी भ्रष्टाचारी दुनिया पुरानी दुनिया है, पतित दुनिया में पावन एक भी नहीं। अभी तुम संगमयुगी बनते हो। वो लोग पतित-पावनी पानी को समझते हैं। सिर्फ गंगा नहीं, जो भी नदियाँ हैं, जहाँ भी पानी देखते हैं, समझते हैं पानी पावन करने वाला है। यह बुद्धि में बैठा हुआ है। कोई कहाँ, कोई कहाँ जाते हैं। मतलब पानी में स्नान करने जाते हैं। परन्तु पानी से तो कोई पावन हो न सके। अगर पानी में स्नान करने से पावन हो जाते फिर तो इस समय सारी सृष्टि पावन होती। इतने सब पावन दुनिया में होने चाहिए। यह तो पुरानी रस्म चली आती है। सागर में भी सारा किचड़ा आदि जाकर पड़ता है, फिर वह पावन कैसे बनायेंगे? पावन तो बनना है आत्मा को। इसके लिए तो परमपिता चाहिए जो आत्माओं को पावन बनाये। तो तुमको समझाना है - पावन होते ही सतयुग में हैं, पतित होते हैं कलियुग में। अभी तुम संगमयुग पर हो। पतित से पावन होने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हो। तुम जानते हो हम शूद्र वर्ण के थे, अब ब्राह्मण वर्ण के बने हैं। शिवबाबा प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा बनाते हैं। हम हैं सच्चे-सच्चे मुख वंशावली ब्राह्मण। वह हैं कुख वंशावली। प्रजापिता, तो प्रजा सारी हो गई। प्रजा का पिता है ब्रह्मा। वो तो ग्रेट ग्रेट ग्रैन्ड फादर हो गया। जरूर वह था फिर कहाँ गया? पुनर्जन्म तो लेते हैं ना। यह तो बच्चों को बताया है, ब्रह्मा भी पुनर्जन्म लेते हैं। ब्रह्मा और सरस्वती, माँ और बाप। वही फिर महाराजा-महारानी लक्ष्मी-नारायण बनते हैं, जिसको विष्णु कहा जाता है। वही फिर 84 जन्मों के बाद आकर ब्रह्मा-सरस्वती बनते हैं। यह राज़ तो समझाया है। कहते भी हैं जगत अम्बा तो सारे जगत की माँ हो गई। लौकिक माँ तो हर एक की अपने-अपने घर में बैठी है। परन्तु जगत अम्बा को कोई जानते ही नहीं। ऐसे ही अन्धश्रद्धा से कह देते हैं। जानते कोई को भी नहीं। जिसकी पूजा करते हैं उनके आक्यूपेशन को नहीं जानते। अभी तुम बच्चे जानते हो रचयिता है ऊंचे ते ऊंच। यह उल्टा झाड़ है, इनका बीजरूप ऊपर में है। बाप को ऊपर से नीचे आना पड़े, तुमको पावन बनाने। तुम बच्चे जानते हो बाबा आया हुआ है हमको इस सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान देकर फिर उस नई सृष्टि का चक्रवर्ती राजा-रानी बनाते हैं। इस चक्र के राज़ को दुनिया में तुम्हारे सिवाए और कोई नहीं जानते हैं। बाप कहते हैं फिर 5 हज़ार वर्ष बाद आकर तुमको सुनाऊंगा। यह ड्रामा बना बनाया है। ड्रामा के क्रियेटर, डायरेक्टर, मुख्य एक्टर्स और ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को न जानें तो उनको बेअक्ल कहेंगे ना। बाप कहते हैं 5 हज़ार वर्ष पहले भी हमने तुमको समझाया था। तुमको अपना परिचय दिया था। जैसे अब दे रहे हैं। तुमको पवित्र भी बनाया था, जैसे अब बना रहा हूँ। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। वही सर्वशक्तिमान् पतित-पावन है। गायन भी है अन्त-काल जो फलाना सिमरे.... वल वल अर्थात् घड़ी-घड़ी ऐसी योनि में जाये। अब इस समय तुम जन्म तो लेते हो परन्तु सूकर, कूकर, कुत्ते, बिल्ली नहीं बनते हो।

अभी बेहद का बाप आया हुआ है। कहते हैं मैं तुम सभी आत्माओं का बाप हूँ। यह सब काम चिता पर बैठ काले हो गये हैं, इन्हों को फिर ज्ञान चिता पर चढ़ाना है। तुम अब ज्ञान चिता पर चढ़े हो। ज्ञान चिता पर चढ़ फिर विकारों में जा न सकें। प्रतिज्ञा करते हैं हम पवित्र रहेंगे। बाबा कोई वह राखी नहीं बँधवाते हैं। यह तो भक्तिमार्ग का रिवाज चला आता है। वास्तव में यह है इस समय की बात। तुम समझते हो पवित्र बनने बिगर पावन दुनिया का मालिक कैसे बनेंगे? फिर भी पक्का कराने के लिए बच्चों से प्रतिज्ञा कराई जाती है। कोई ब्लड से लिखकर देते हैं, कोई कैसे लिखते हैं। बाबा आप आये हैं, हम आप से वर्सा जरूर लेंगे। निराकार साकार में आते हैं ना। जैसे बाप परमधाम से उतरते हैं, वैसे तुम आत्मायें भी उतरती हो। ऊपर से नीचे आती हो पार्ट बजाने। यह तुम समझते हो यह सुख और दु:ख का खेल है। आधाकल्प सुख, आधाकल्प दु:ख है। बाप समझाते हैं 3/4 से भी तुम जास्ती सुख भोगते हो। आधाकल्प के बाद भी तुम धनवान थे। कितने बड़े मन्दिर आदि बनवाते हैं। दु:ख तो पीछे होता है, जब बिल्कुल तमोप्रधान भक्ति बन जाती है। बाप ने समझाया है तुम पहले-पहले अव्यभिचारी भक्त थे, सिर्फ एक की भक्ति करते थे। जो बाप तुमको देवता बनाते हैं, सुखधाम ले जाते हैं, उनकी ही तुम पूजा करते थे फिर बाद में व्यभिचारी भक्ति शुरू होती है। पहले एक की पूजा फिर देवताओं की पूजा करते थे। अभी तो 5 भूतों के बने हुए शरीरों की पूजा करते हैं। चैतन्य की भी, तो जड़ की भी पूजा करते हैं। 5 तत्वों के बने हुए शरीर को देवताओं से भी ऊंच समझते हैं। देवताओं को तो सिर्फ ब्राह्मण हाथ लगाते हैं। तुम्हारे तो ढेर के ढेर गुरू लोग हैं। यह बाप बैठ बताते हैं। यह (दादा) भी कहते हैं हमने भी सब कुछ किया। भिन्न-भिन्न हठयोग आदि, कान, नाक मोड़ना आदि सब कुछ किया। आखरीन सब कुछ छोड़ देना पड़े। वह धंधा करें या यह धंधा करें? पिनकी (सुस्ती) आती रहती थी, तंग हो जाता था। प्राणायाम आदि सीखने में बड़ी तकलीफ होती है। आधाकल्प भक्ति मार्ग में थे, अभी मालूम पड़ता है। बाप बिल्कुल एक्यूरेट बताते हैं। वह कहते हैं भक्ति परम्परा से चली आती है। अब सतयुग में भक्ति कहाँ से आई। मनुष्य बिल्कुल समझते नहीं। मूढ़ बुद्धि हैं ना। सतयुग में तो ऐसे नहीं कहेंगे। बाप कहते हैं मैं हर 5 हज़ार वर्ष बाद आता हूँ। शरीर भी उनका लेता हूँ जो अपने जन्मों को नहीं जानते हैं। यही नम्बरवन जो सुन्दर था, वही अब श्याम बन गया है। आत्मा भिन्न-भिन्न शरीर धारण करती है। तो बाप कहते हैं जिसमें मैं प्रवेश करता हूँ, उसमें अभी बैठा हूँ। क्या सिखलाने? जीते जी मरना। इस दुनिया से तो मरना है ना। अभी तुमको पवित्र होकर मरना है। मेरा पार्ट ही पावन बनाने का है। तुम भारतवासी बुलाते ही हो - हे पतित-पावन। और कोई ऐसे नहीं कहते - हे लिबरेटर, दु:ख की दुनिया से छुड़ाने के लिए आओ। सब मुक्तिधाम में जाने के लिए ही मेहनत करते हैं। तुम बच्चे फिर पुरुषार्थ करते हो - सुखधाम के लिए। वह है प्रवृत्ति मार्ग वालों के लिए। तुम जानते हो हम प्रवृत्ति मार्ग वाले पवित्र थे। फिर अपवित्र बने। प्रवृत्ति मार्ग वालों का काम निवृत्ति मार्ग वाले कर न सकें। यज्ञ, तप, दान आदि सब प्रवृत्ति मार्ग वाले करते हैं। तुम अभी फील करते हो कि अभी हम सबको जानते हैं। शिवबाबा हम सबको घर बैठे पढ़ा रहे हैं। बेहद का बाप बेहद का सुख देने वाला है। उनसे तुम बहुत समय के बाद मिलते हो तो प्रेम के आंसू आते हैं। बाबा कहने से ही रोमांच खड़े हो जाते हैं - ओहो! बाबा आया है हम बच्चों की सर्विस में। बाबा हमको इस पढ़ाई से गुल-गुल बनाकर ले जाते हैं। इस गन्दी छी-छी दुनिया से हमको ले जायेंगे अपने साथ। भक्ति मार्ग में तुम्हारी आत्मा कहती थी बाबा आप आयेंगे तो हम वारी जायेंगे। हम आपके ही बनेंगे, दूसरा कोई नहीं। नम्बरवार तो हैं ही। सबका अपना-अपना पार्ट है। कोई तो बाप को बहुत प्यार करते हैं, जो स्वर्ग का वर्सा देते हैं। सतयुग में रोने का नाम नहीं होता। यहाँ तो कितना रोते हैं। जब स्वर्ग में गया तो फिर रोना क्यों चाहिए और ही बाजा बजाना चाहिए। वहाँ तो बाजा बजाते हैं। तमोप्रधान शरीर खुशी से छोड़ देते हैं। यह रस्म भी शुरू यहाँ से होती है। यहाँ तुम कहेंगे हमको अपने घर जाना है। वहाँ तो समझते हो पुनर्जन्म लेना है। तो बाप सब बातें समझा देते हैं। भ्रमरी का मिसाल भी तुम्हारा है। तुम ब्राह्मणियां हो, विष्टा के कीड़ों को तुम भूँ-भूँ करती हो। तुमको तो बाप कहते हैं इस शरीर को भी छोड़ देना है। जीते जी मरना है। बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो, अब हमको वापिस जाना है। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है। देह को भूल जाओ। बाप तो बहुत मीठा है। कहते हैं मैं तुम बच्चों को विश्व का मालिक बनाने आया हूँ। अब शान्तिधाम और सुखधाम को याद करो। अल्फ और बे। यह है दु:खधाम। शान्तिधाम हम आत्माओं का घर है। हमने पार्ट बजाया, अब हमें घर जाना है। वहाँ यह छी-छी शरीर नहीं रहता है। अभी तो यह बिल्कुल ही जड़जड़ीभूत शरीर हो गया है। अब हमको बाप सम्मुख बैठ सिखलाते हैं, इशारे में। मैं भी आत्मा हूँ, तुम भी आत्मा हो। मैं शरीर से अलग होकर तुमको भी वही सिखलाता हूँ। तुम भी अपने को शरीर से अलग समझो। अभी घर जाना है। यहाँ तो रहने का अभी नहीं है। यह भी जानते हो अभी विनाश होना है। भारत में रक्त की नदियां बहेंगी। फिर भारत में ही दूध की नदियां बहेंगी। यहाँ सब धर्म वाले इकट्ठे हैं। सब आपस में लड़ मरेंगे। यह पिछाड़ी का मौत है। पाकिस्तान में क्या-क्या होता था। बड़ी कड़ी सीन थी। कोई देखे तो बेहोश हो जाए। अभी बाबा तुमको मजबूत बनाते हैं। शरीर का भान भी निकाल देते हैं।

बाबा ने देखा, बच्चे याद में नहीं रहते हैं, बहुत कमज़ोर हैं इसलिए सर्विस भी नहीं बढ़ती है। घड़ी-घड़ी लिखते हैं - बाबा, याद भूल जाती है, बुद्धि लगती नहीं है। बाबा कहते हैं योग अक्षर छोड़ दो। विश्व की बादशाही देने वाले बाप को तुम भूल जाते हो! आगे भक्ति में बुद्धि कहीं और तरफ चली जाती थी तो अपने को चुटकी काटते थे। बाबा कहते तुम आत्मा अविनाशी हो। सिर्फ तुम पावन और पतित बनते हो। बाकी आत्मा कोई छोटी-बड़ी नहीं होती है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बच्चों को रूहानी बाप की नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपने आपसे बातें करो - ओहो! बाबा आया है हमारी सर्विस में। वह हमें घर बैठे पढ़ा रहे हैं! बेहद का बाबा बेहद का सुख देने वाला है, उनसे हम अभी मिले हैं। ऐसे प्यार से बाबा कहो और खुशी में प्रेम के आंसू आ जाएं। रोमांच खड़े हो जाएं।
2) अब वापस घर जाना है इसलिए सबसे ममत्व निकाल जीते जी मरना है। इस देह को भी भूलना है। इससे अलग होने का अभ्यास करना है।
वरदान:-
कर्मो के हिसाब-किताब को समझकर अपनी अचल स्थिति बनाने वाले सहज योगी भव
चलते-चलते अगर कोई कर्मो का हिसाब किताब सामने आता है तो उसमें मन को हिलाओ नहीं, स्थिति को नीचे ऊपर नहीं करो। चलो आया तो परखकर उसे दूर से ही खत्म कर दो। अभी योद्धे नहीं बनो। सर्वशक्तिवान बाप साथ है तो माया हिला नहीं सकती। सिर्फ निश्चय के फाउन्डेशन को प्रैक्टिकल में लाओ और समय पर चूज़ करो तो सहजयोगी बन जायेंगे। अब निरन्तर योगी बनो, युद्ध करने वाले योद्धे नहीं।
स्लोगन:-
डबल लाइट रहना है तो अपनी सर्व जिम्मेवारियों का बोझ बाप हवाले कर दो।