Saturday, September 23, 2017

24-09-17 प्रात:मुरली

24/09/17 मधुबन "अव्यक्त-बापदाद" ओम् शान्ति 11-01-83

"समर्थ की निशानी- संकल्प, बोल, कर्म, स्वभाव, संस्कार बाप समान"
आज रूहानी बाप बच्चों से दिलाराम को दी हुई दिल का समाचार पूछने आये हैं। सभी ने दिलाराम को दिल दी है ना! जब एक दिलाराम को दिल दे दी तो उसके सिवाए और कोई आ नहीं सकता। दिलाराम को दिल देना अर्थात् दिल में बसाना। इसी को ही सहज योग कहा जाता हे। जहाँ दिल होगी वहाँ ही दिमाग भी चलेगा। तो दिल में भी दिलाराम और दिमाग में भी अर्थात् स्मृति में भी दिलाराम। और कोई भी स्मृति वा व्यक्ति दिलाराम के बीच आ नहीं सकता - ऐसा अनुभव करते हो? जब दिल और दिमाग अर्थात् स्मृति, संकल्प, शक्ति सब बाप को दे दी, तो बाकी रहा ही क्या! मन, वाणी और कर्म से बाप के हो गये। संकल्प भी यह किया कि हम बाप के हैं और वाणी से भी यही कहते हो ‘मेरा बाबा', मैं बाबा का। और कर्म में भी जो सेवा करते हो वह भी बाप की सेवा, वह मेरी सेवा - ऐसे ही मन, वाणी और कर्म से बाप के बन गये ना। बाकी मार्जिन क्या रही जहाँ से कोई संकल्प मात्र भी आवे? कोई भी संकल्प वा किसी प्रकार की भी आकर्षण आने का कोई दरवाजा वा खिड़की रह गई है क्या? आने का रास्ता है ही मन, बुद्धि, वाणी और कर्म - चारों तरफ चेक करो कि जरा भी किसको आने की मार्जिन तो नहीं है? मार्जिन है? स्वप्न भी इसी ही आधार पर आते हैं। जब बाप को एक बार कहा कि यह सब कुछ तेरा फिर बाकी क्या रहा? इसी को ही निरन्तर याद कहा जाता है। कहने और करने में अन्तर तो नहीं कर देते हो? तेरा में मेरा मिक्स तो नहीं कर देते हो? सूर्यवंशी अर्थात् गोल्डन एजड। उसमें मिक्स तो नहीं होगा ना! डाइमन्ड भी बेदाग हो। कोई दाग रह तो नहीं गया है?
जिस समय भी कोई कमजोरी वर्णन करते हो, चाहे संकल्प की, बोल की, चाहे संस्कार स्वभाव की, तो शब्द क्या कहते हो? मेरा विचार ऐसा कहता है वा मेरा संस्कार ही ऐसा है। लेकिन जो बाप का संस्कार, संकल्प सो मेरा संस्कार, संकल्प। जब बाप जैसा संकल्प, संस्कार हो जाता है तो ऐसे बोल कभी नहीं बोलेंगे कि क्या करूँ, मेरा स्वभाव संस्कार ऐसा है? क्या करूँ, यह शब्द ही कमजोरी का है। समर्थ की निशानी है - सदा बाप समान संकल्प, बोल, कर्म, स्वभाव, संस्कार हो। बाप के अलग, मेरे अलग यह हो नहीं सकता। उनके संकल्प में, बोल में, हर बात में बाबा, बाबा शब्द नैचुरल होगा। और कर्म करते करावनहार करा रहा है - यह अनुभव होगा। जब सबमें बाबा आ गया तो बाप के आगे माया आ नहीं सकती, या बाप होगा या माया? लण्डन निवासी बाबा, बाबा कहते, स्मृति में रखते सदाकाल के लिए मायाजीत हो गये हैं? जब वर्सा सदाकाल का लेते हो तो याद भी सदाकाल की चाहिए ना। मायाजीत भी सदाकाल के लिए चाहिए।
लण्डन है सेवा का फाउन्डेशन स्थान। तो फाउण्डेशन के स्थान पर रहने वाले भी फाउन्डेशन के समान सदा मजबूत हैं? क्या करें, कैसे करें, ऐसी कोई भी कम्पलेन्ट तो नहीं है ना। बहुत करके ड्रामा भी माया के ही करते हो ना! हर ड्रामा में माया न आने वाली भी आ जाती है। माया के बिना शायद ड्रामा नहीं बना सकते हो। माया के भी भिन्न-भिन्न स्वरूप दिखाते हो ना। हर बात का परिवर्तक स्वरूप हो, इसका ड्रामा दिखाओ। माया का मुख्य स्वरूप क्या है, उसको तो अच्छी तरह से जानते हो। लेकिन मायाजीत बनने के बाद वही माया के स्वरूप कैसे बदल जाते हैं, वह ड्रामा दिखाओ। जैसे शारीरिक दृष्टि जिसको काम कहते, तो उसके बजाए आत्मिक स्नेह रूप में बदल जाता - ऐसे सब विकार परिवर्तक रूप में हो जाते। तो क्या परिवर्तन हुआ, यह प्रैक्टिकल में अनुभव भी करो और दिखाओ भी।
लण्डन निवासियों ने विशेष स्व की उन्नति प्रति और विश्व कल्याण प्रति कौन सा लक्ष्य रखा है? सभी को विशेष सदा यही स्मृति में रहे कि हम हैं ही फरिश्ते। फरिश्ते का स्वरूप क्या, बोल क्या, कर्म क्या होता, वह स्वत: ही फरिश्ते रूप से चलते चलेंगे। ''फरिश्ता हूँ, फरिश्ता हूँ'' - इसी स्मृति को सदा रखो। जबकि बाप के बन गये और सब कुछ मेरा सो तेरा कर दिया तो क्या बन गये। हल्के फरिश्ते हो गये ना। तो इस लक्ष्य को सदा सम्पन्न करने के लिए एक ही शब्द कि सब बाप का है, मेरा कुछ नहीं - यह स्मृति में रहे। जहाँ मेरा आवे तो वहाँ तेरा कह दो। फिर कोई बोझ नहीं फील होगा। हर वर्ष कदम आगे बढ़ रहा है और सदा आगे बढ़ते रहेंगे, उड़ती कला में जाने वाले फरिश्ते हैं यह तो पक्का है ना। नीचे ऊपर, नीचे ऊपर होने वाले नहीं। अच्छा -
लण्डन निवासियों की महिमा तो सभी जानते हैं। आपको सब किस नज़र से देखते हैं? सदा मायाजीत क्योंकि पावरफुल डबल पालना मिल रही है। बापदादा की तो सदा पालना है ही लेकिन बाप ने जिन्हों को निमित्त बनाया है, वह भी पावरफुल पालना मिल रही है। निराकार, आकार और साकार तीनों को फालो करो तो क्या बन जायेंगे? फरिश्ता बन जायेंगे ना। लण्डन निवासी अर्थात् नो कम्पलेन्ट, नो कन्फ्यूज़। अलौकिक जीवन वाले, स्वराज्य करने वाले सब किंग और क्वीन हो ना। आपका नशा है ना।
कुमारियों से:- कुमारियाँ तो अपना भाग्य देख सदा हर्षित होती हैं। कुमारी लौकिक जीवन में भी ऊंची गायी जाती है और ज्ञान में तो कुमारी है ही महान। लौकिक में भी श्रेष्ठ आत्मायें और पारलौकिक में भी श्रेष्ठ आत्मायें। ऐसे अपने को महान समझती हो? आप तो ‘हाँ' ऐसे कहो जो दुनिया सुने। कुमारियों को तो बापदादा अपने दिल की तिजोरी में रखता है कि किसी की भी नज़र न लगे। ऐसे अमूल्य रत्न हो। कुमारियाँ सदा पढ़ाई और सेवा इसी में ही बिजी रहती हैं। कुमारी जीवन में बाप मिल गया और चाहिए ही क्या! अनेक सम्बन्धों में भटकना नहीं पड़ा, बच गई। एक में सर्व सम्बन्ध मिल गये। नहीं तो पता है कितने व्यर्थ के सम्बन्ध हो जाते, सासू का, ननंद का, भाभियों का....सबसे बच गई ना। न जाल में फँसी, न जाल से छुड़ाने का समय ही था। कुमारियाँ तो हैं ही डबल लाइट। कुमारियाँ सदा बाप समान सेवाधारी और बाप समान सर्व धारणाओं स्वरूप। कुमारी जीवन अर्थात् प्युअर जीवन। प्युअर आत्मायें श्रेष्ठ आत्मायें हुई ना। तो बापदादा कुमारियों को महान पूज्य आत्मा के रूप में देखते हैं। पवित्र आत्मायें सर्व की और बाप की प्रिय हैं।
अपने भाग्य को सदा सामने रखते हुए समर्थ आत्मा बन सेवा में समर्थी लाते रहो। यही बड़ा पुण्य है। जो स्वयं को प्राप्ति हुई है वह औरों को भी कराओ। खजानों को बाँटने से खजाना और ही बढ़ेगा - ऐसे शुभ संकल्प रखने वाली कुमारी हो ना। अच्छा।
टीचर्स के साथ:- विश्व के शोकेस में विशेष शोपीस हो ना। सबकी नजर निमित्त बने हुए सेवाधारी कहो, शिक्षक कहो, उन्हीं पर ही रहती है। सदा स्टेज पर हो। कितनी बड़ी स्टेज है और कितने देखने वाले हैं? सभी आप निमित्त आत्माओं से प्राप्ति की भावना रखते हैं। सदा यह स्मृति में रहता है? सेन्टर पर रहती हो वा स्टेज पर रहती हो? सदा बेहद की अनेक आत्माओं के बीच बड़े ते बड़ी स्टेज पर हो इसलिए सदा दाता के बच्चे देते रहो और सर्व की भावनायें सर्व की आशायें पूर्ण करते रहो। महादानी और वरदानी बनो, यही आपका स्वरूप है। इस स्मृति से हर संकल्प, बोल और कर्म हीरो पार्ट के समान हो क्योंकि विश्व की आत्मायें देख रही हैं। सदा स्टेज पर ही रहना, नीचे नहीं आना। निमित्त सेवाधारियों को बापदादा अपना फ्रैन्डस समझते हैं क्योंकि बाप भी शिक्षक है तो बाप समान निमित्त बनने वाले फ्रैन्डस हुए ना। तो इतनी समीप की आत्मायें हो। ऐसे सदा अपने को बाप के साथ वा समीप अनुभव करती हो? जब भी बाबा कहो तो हजार भुजाओं के साथ बाबा आपके साथ है। ऐसे अनुभव होता है? जो निमित्त बने हुए हैं उन्हीं को बापदादा एकस्ट्रा सहयोग देते हैं। इसीलिए बड़े फखुर से बाबा कहो, बुलाओ, तो हाजिर हो जायेंगे। बापदादा तो ओबीडियन्ट है ना। अच्छा।

24-09-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त-बापदादा" रिवाइज:13-01-83 मधुबन
स्वदर्शन चक्रधारी ही चक्रवर्ती राज्य भाग्य के अधिकारी
सभी अपने को स्वदर्शन चक्रधारी समझते हो? स्वदर्शन चक्रधारी ही भविष्य में चक्रवर्ती राज्य भाग्य के अधिकारी बनते हैं। स्वदर्शन चक्रधारी अर्थात् सारे चक्र के अन्दर अपने सर्व भिन्न-भिन्न पार्ट को जानने वाले। सभी ने यह विशेष बात जान ली कि हम सब इस चक्र के अन्दर हीरो पार्ट बजाने वाली विशेष आत्मायें हैं। इस अन्तिम जन्म में हीरे-तुल्य जीवन बनाने से सारे कल्प के अन्दर हीरो पार्ट बजाने वाले बन जाते हैं। आदि से अन्त तक क्या-क्या जन्म लिए हैं, सब स्मृति में है? क्योंकि इस समय नॉलेजफुल बनते हो। इस समय ही अपने सभी जन्मों को जान सकते हो, तो 5 हजार वर्ष की जन्म-पत्री को जान लिया। कोई भी जन्मपत्री बताने वाले अगर किसको सुनायेंगे भी तो दो चार छे जन्म का ही बतायेंगे। लेकिन आप सबको बापदादा ने सभी जन्मों की जन्मपत्री बता दी है। तो आप सभी मास्टर नॉलेजफुल बन गये ना। सारा हिसाब चित्रों में भी दिखा दिया है। तो जरूर जानते हो तब तो चित्रों में दिखाया है ना। अपनी जन्मपत्री का चित्र देखा है? उस चित्र को देख करके ऐसा अनुभव करते हो कि यह हमारी जन्मपत्री का चित्र है वा समझते हो नॉलेज समझाने का चित्र है। यह तो नशा है ना कि हम ही विशेष आत्मायें सृष्टि के आदि से अन्त तक का पार्ट बजाने वाली हैं। ब्रह्मा बाप के साथ-साथ सृष्टि के आदि पिता और आदि माता के साथ सारे कल्प में भिन्न-भिन्न पार्ट बजाते आये हो ना। ब्रह्मा बाप के साथ पूरे कल्प की प्रीति की रीति निभाने वाले हो ना। निर्वाण जाने की इच्छा वाले तो नहीं हो ना! जिसने आदि नहीं देखी उसने क्या किया! आप सबने कितनी बार सृष्टि के आदि का सुनहरी दृश्य देखा है! वह समय, वह राज्य, वह अपना स्वरूप, वह सर्व सम्पन्न जीवन, अच्छी तरह से याद है वा याद दिलाने की जरूरत है? अपने आदि के जन्म अर्थात् पहले जन्म और अब लास्ट के जन्म दोनों के महत्व को अच्छी तरह से जान लिया है ना! दोनों की महिमा अपरमपार है।
जैसे आदि देव ब्रह्मा और आदि आत्मा श्रीकृष्ण, दोनों का अन्तर दिखाते हो और दोनों को साथ-साथ दिखाते हो - ऐसे ही आप सब भी अपना ब्राहमण स्वरूप और देवता स्वरूप दोनों को सामने रखते हुए देखो कि आदि से अन्त तक हम कितनी श्रेष्ठ आत्मायें रही हैं। तो बहुत नशा और खुशी रहेगी। बनाने वाले और बनने वाले दोनों की विशेषता है। बापदादा सभी बच्चों के दोनों ही स्वरूप देखकर हर्षित होते हैं। चाहे नम्बरवार हो, लेकिन देव आत्मा तो सभी बनेंगे ना। देवताओं को पूज्य, श्रेष्ठ महान सभी मानते हैं। चाहे लास्ट नम्बर की देव आत्मा हो फिर भी पूज्य आत्मा की लिस्ट में है। आधाकल्प राज्य भाग्य प्राप्त किया और आधाकल्प माननीय और पूज्यनीय श्रेष्ठ आत्मा बने। जो अपने चित्रों की पूजा, मान्यता चैतन्य रूप में ब्राहमण रूप से देव रूप की अभी भी देख रहे हो। तो इससे श्रेष्ठ और कोई हो सकता है? सदा इस स्मृति स्वरूप में स्थित रहो। फिर बार-बार नीचे की स्टेज से ऊपर की स्टेज पर जाने की मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।
सभी जहाँ से भी आए हैं लेकिन इस समय मधुबन निवासी हैं। तो सभी मधुबन निवासी सहज स्मृति स्वरूप बन गये हो ना। मधुबन निवासी बनना भी भाग्यवान की निशानी है क्योंकि मधुबन के गेट में आना और वरदान को सदा के लिए पाना। स्थान का भी महत्व है। सभी मधुबन निवासी वरदानी स्वरूप में स्थित हो ना। सम्पन्न-पन की स्टेज अनुभव कर रहे हो ना! सम्पन्न स्वरूप तो सदा खुशी में नाचते और बाप के गुण गाते। ऐसे खुशी में नाचते रहो जो आपको देखकर औरों का भी स्वत: खुशी में मन नाचने लगे। जैसे स्थूल डाँस को देख दूसरे के अन्दर भी नाचने का उमंग उत्पन्न हो जाता है ना। तो सदा ऐसे नाचो और गाते रहो। अच्छा।
डबल विदेशी बच्चों को यह भी विशेष चान्स है क्योंकि अभी सिकीलधे हो। जब डबल विदेशियों की भी संख्या बहुत हो जायेगी तो फिर क्या करेंगे। जैसे भारतवासी बच्चों ने डबल विदेशियों को चान्स दिया है ना, तो आप भी ऐसे दूसरों को चान्स देंगे ना। दूसरों की खुशी में अपनी खुशी अनुभव करना - यही महादानी बनना है।
वरदान:
निर्मानता द्वारा नव निर्माण करने वाले निराशा और अभिमान से मुक्त भव!
कभी भी पुरूषार्थ में निराश नहीं बनो। करना ही है, होना ही है, विजय माला मेरा ही यादगार है, इस स्मृति से विजयी बनो। एक सेकण्ड वा मिनट के लिए भी निराशा को अपने अन्दर स्थान न दो। अभिमान और निराशा - यह दोनों महाबलवान बनने नहीं देते हैं। अभिमान वालों को अपमान की फीलिंग बहुत आती है, इसलिए इन दोनों बातों से मुक्त बन निर्मान बनो तो नव निर्माण का कार्य करते रहेंगे।
स्लोगन:
विश्व सेवा के तख्तनशीन बनो तो राज्य तख्तनशीन बन जायेंगे।