Wednesday, June 22, 2016

मुरली 23 जून 2016

23-06-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे– अमृतवेले का समय बहुत-बहुत अच्छा है, इसलिए सवेरे-सवेरे उठकर एकान्त में बैठ बाबा से मीठी-मीठी बातें करो”   
प्रश्न:
कौन-सी नॉलेज निरन्तर योगी बनने में बहुत मदद करती है?
उत्तर:
ड्रामा की। जो कुछ बीता, ड्रामा की भावी। जरा भी स्थिति हलचल में न आये। भल कैसी भी परिस्थिति हो, अर्थक्वेक आ जाए, धन्धे में घाटा पड़ जाए लेकिन जरा भी संशय पैदा न हो– इसको कहते हैं महावीर। अगर ड्रामा की यथार्थ नॉलेज नहीं तो आंसू बहाते रहेंगे। निरन्तर योगी बनने में ड्रामा की नॉलेज बहुत मदद करती है।
गीत:-
ओम् नमो शिवाए........   
ओम् शान्ति।
बच्चे अब अच्छी रीति समझते हैं पतित दुनिया का अब अन्त हो रहा है। पावन दुनिया की आदि हो रही है। यह सिर्फ तुम बच्चे ही जानते हो। और बच्चों को ही यह डायरेक्शन वा श्रीमत मिलती है। कौन देते हैं? ऊंच ते ऊंच भगवान। समझाते रहते हैं कि पतित से पावन बनना है। यह नॉलेज तुम्हारे लिए है और तो सब पतित हैं। यह पतित दुनिया विनाश जरूर होनी है। पतित कहा जाता है विकारी को। बाप समझाते हैं कि तुम जन्म-जन्मान्तर एक-दो को दु:ख देते आये हो, इसलिए तुम आदि-मध्य-अन्त दु:ख पाते हो। एक-दो को पतित बनाते हो। पुकारते भी हैं कि हम पतित हैं, परन्तु बुद्धि में पूरा बैठता नहीं है। कहते भी हैं पतित-पावन आओ परन्तु फिर भी पतितपना छोड़ते नहीं हैं। अभी तुम समझते हो सारी बात है पावन बनने की। यह समझाने वाला भी तो कोई चाहिए। समझाने वाला है ही एक। बाकी यह जो गुरू लोग हैं, ये किसको पावन बना नहीं सकते। पावन भी सिर्फ एक जन्म के लिए नहीं, जन्म-जन्मान्तर के लिए बनना है। तुम्हारे में भी जो ज्ञानवान हैं वे तीखे होते हैं। ड्रामा अनुसार वह नूँध है। तुम्हारे में भी महावीरपना चाहिए। वह आयेगा बाप की याद में रहने से। बाप बहुत अच्छी रीति बैठ समझाते हैं। जैसे बाबा कहते हैं कि सवेरे उठकर याद करो। वह समय बहुत सुन्दर है याद करने का, जिसको प्रभात कहा जाता है। भक्ति मार्ग में भी कहते हैं राम सिमर प्रभात मोरे मन। बाप भी कहते हैं सवेरे उठ बाप को याद करो तो बड़ा मजा आयेगा। बाप की याद में बैठ यही ख्याल करना चाहिए कि कैसे किसको समझायें? अमृतवेले का वायुमण्डल बड़ा शुद्ध रहता है। दिन में तो गोरखधन्धा रहता है। रात को 12 बजे तक तो विकारी वायुमण्डल रहता है। साधू-सन्त, भक्त आदि सब भक्ति भी प्रभात को करते हैं। यूँ तो याद दिन में भी कर सकते हैं। धन्धे में भल रहे, बुद्धि का योग, जिस देवता का पुजारी होगा उनके पास होगा। परन्तु ऐसा किसका रहता नहीं है। भक्ति मार्ग में सिर्फ दर्शन के लिए मेहनत करते हैं। मिलता कुछ भी नहीं। उनको भी भक्ति करते-करते तमोप्रधान बनना ही है। भक्ति मार्ग में भी शिव पर बलि चढ़ाते हैं, जिसको काशी कलवट कहते हैं। शिव को याद करते-करते कुएं में कूद पड़ते हैं। शिव के ऊपर बलि चढ़ाते हैं। वह है भक्ति मार्ग की बलि। यह है ज्ञान मार्ग की बलि। वह भी मुश्किल, यह भी मुश्किल। भक्ति मार्ग में इससे कुछ फायदा नहीं। यह जैसे आत्मा अपने शरीर का घात करती है। यह कोई ज्ञान नहीं है। वह भी कह देते आत्मा सो परमात्मा। आत्म-अभिमानी तो एक बाप ही है, जो बच्चों को समझाते हैं कि परमात्मा तो मैं एक ही हूँ। हम आत्मा सो परमात्मा कहना– यह बड़े से बड़ी झूठ है। यह तो हो नहीं सकता।

बाप कहते हैं-मैं आता ही हूँ पतितों को पावन बनाने, सो पावन बना रहा हूँ। बाकी तो ड्रामा में जो होना है सो होगा ही। समझो अर्थक्वेक होती है, छत गिर जाती है, कहेंगे भावी, कल्प पहले भी ऐसे हुआ था। इसमें जरा भी हिलने की दरकार नहीं। ड्रामा पर पक्का खड़ा रहना है। इसको ही महावीर कहा जाता है। एक्सीडेंट आदि तो ढेर के ढेर होते रहते हैं। फिर किसकी रक्षा करते हैं क्या? यह तो ड्रामा में नूँध है। ऐसा ही ड्रामा में पार्ट है। जो ड्रामा को नहीं जानते वह देह को याद कर आंसू बहाते हैं। वह कभी शिवबाबा को याद नहीं कर सकते क्योंकि शिवबाबा से प्यार नहीं है। सच्ची प्रीत नहीं है। बाप के साथ तो पूरी प्रीत होनी चाहिए। शिवबाबा के साथ प्रीत बुद्धि तुम कल्प-कल्प बनते हो। देवताओं की बाप के साथ प्रीत बुद्धि थी, ऐसे नहीं कहेंगे। उन्होंने इस प्रीत से वह पद पाया है। वहाँ तो मालूम भी नहीं रहेगा-सारे कल्प में तुमको शिवबाबा का पता भी नहीं रहता है जो प्रीत रख सको। अभी बाप ने अपना परिचय दिया है। अब बाप कहते हैं कि और संग तोड़ मुझ एक साथ जोड़ो। यह विनाश काल तो जरूर है। यह भी तुम बच्चे जानते हो। मनुष्य तो बिल्कुल ही घोर अन्धियारे में हैं। तुम अभी समझते हो हमको तो बाप से पूरा वर्सा लेना है। याद बिगर सतोप्रधान नहीं बन सकेंगे। सर्जन बन अपने रोग को देखना है। श्रीमत पर देखना है कि हमारी बाप के साथ कितनी प्रीत है? अमृतवेले ही बाप को याद करना अच्छा है। प्रभात का समय बहुत अच्छा है। उस समय माया के तूफान नहीं आयेंगे। रात को 12 बजे तक तपस्या करने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि टाइम ही गन्दा होता है। वायुमण्डल खराब रहता है। तो एक बजे तक छोड़ देना चाहिए। एक के बाद वायुमण्डल अच्छा रहता है। बाप कहते हैं– अपना तो है ही सहज राजयोग, भल आराम से बैठो। बाबा अपना अनुभव भी सुनाते हैं। कैसे बाबा से बातें करता हूँ। बाबा कैसा वन्डरफुल यह ड्रामा है! आप कैसे आकर पतित से पावन बनाते हो! सारी दुनिया को कैसे पलटाते हो! बड़ा वण्डर है! जैसे बाप को ख्याल आते हैं वैसे बच्चों को भी आने चाहिए। कैसे मनुष्यों का बेड़ा पार करें अथवा कैसे नईया पार करें। बाप कहते हैं-तुम पुकारते रहते हो हे पतित-पावन आओ। अब मैं आया हूँ, अब तुम पतित न बनो। पतित होकर सभा में आकर नहीं बैठो। नहीं तो वायुमण्डल अशुद्ध कर देते हो। बाबा को मालूम तो पड़ता है। देहली में, बाम्बे में ऐसे विकार में जाने वाले आकर बैठ जाते थे। गाया हुआ है असुर आकर विघ्न डालने बैठते थे। विकार में जाने वालों को असुर कहा जाता है। वायुमण्डल को खराब करते हैं। उनके लिए सजा बहुत कड़ी है। बाबा समझाते तो सभी बातें हैं फिर भी अपना घाटा करने के सिवाए रहते नहीं। झूठ भी बोलते हैं। नहीं तो फौरन लिख देना चाहिए– बाबा, हमसे यह भूल हुई, क्षमा करना। अपना पाप लिख दो। नहीं तो वृद्धि को पाते रहेंगे और रसातल में चले जायेंगे। आते हैं कुछ लेने लिए और ही कान कटा लेते। यह भी ड्रामा में पार्ट है। ऐसे असुर कल्प पहले भी थे, अब भी हैं। अमृत छोड़ विष पीते हैं। अपना भी घात करते हैं और औरों को भी नुकसान पहुँचाते हैं। वायुमण्डल खराब कर देते हैं। ब्राह्मणियाँ भी सब एक समान नहीं हैं। महारथी, घोड़ेसवार, प्यादे सब हैं।

तुम बच्चों को अथाह खुशी होनी चाहिए– बाबा मिला और बाकी क्या। हाँ, अपने बच्चों आदि को जरूर सम्भालना है। ऐसे नहीं कि बाबा यह सब आपके हैं, अब आप सम्भालो। हम तो आपके बन गये। बाप समझाते हैं कि गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र बनो। कोई भी पतित काम नहीं करो। बस पहली बात है काम की। द्रोपदी ने भी इस पर पुकारा कि हमको यह नंगन करते हैं। पुकारा भी तब था जब बाप सुनने वाला आया था। बाप के आने के पहले कोई भी पुकारते नहीं हैं। किसको पुकारेंगे? बाबा आया है तब ही पुकारते हैं। पतित से पावन बनकर फिर कहाँ जायेंगे? वापिस जाना है, वह तो यही समय है। सबका सद्गति दाता, लिबरेटर एक ही है। यहाँ तो दु:ख है। साधू-सन्त आदि कोई भी सुखी हो न सकें। सबको कोई न कोई दु:ख, रोग आदि होता ही है। कोई गुरू अन्धा लूला भी होता है। जरूर कोई ऐसा काम किया है तब तो अन्धा लूला आदि बनते हैं। सतयुग में कोई अन्धा लूला आदि थोड़ेही होगा। मनुष्य थोड़ेही समझते हैं। बाप ही आकर समझाते हैं। बाप ही ज्ञान का सागर पतित-पावन है। बाकी तो सब है भक्ति। वह भक्ति मार्ग ही अलग है। वह है सीढ़ी उतरने का मार्ग। उतरने में, जीवनबन्ध में आने में 84 जन्म लगते हैं और फिर एक सेकण्ड लगता है जीवनमुक्त बनने में। अगर उनकी मत पर चल बाप को याद करे तो। नम्बरवार तो हैं ना। कहते हैं हमको फलानी टीचर मिले तो अच्छा है। तो जरूर खुद कमजोर है तब तो कहते हैं फलानी को 2-4 मास के लिए भेज दो। बाबा कहते हैं यह भी भूल है। तुम ब्राह्मणी को क्यों याद करते हो जबकि बाप सहज बात बताते हैं– सिर्फ बाप को याद करो और स्वदर्शन चक्र फिराओ, औरों को भी समझाओ। बस। इसमें ब्राह्मणी आकर क्या करेगी? यह तो सेकण्ड की बात है। तुम धन्धे- धोरी में यह भूल जाते हो फिर भी ब्राह्मणी यही कहेगी मनमनाभव। कई बुद्धू लोग समझते नहीं हैं सिर्फ कहते हैं ब्राह्मणी अच्छी चाहिए। ज्ञान तो तुमको मिला है ना। बाप और वर्से को याद करो। देह-अभिमान को छोड़ो। यह हमारा सेन्टर है, यह इनका सेन्टर है। यह जिज्ञासू यहाँ क्यों जाते हैं... यह सब देह-अभिमान है। सब शिवबाबा के सेन्टर्स हैं, हमारा थोड़ेही सेन्टर है। तुमको यह क्यों होता है कि फलाना हमारे सेन्टर पर क्यों नहीं आता। कहाँ भी जाये। बाबा हमेशा कहते हैं कोई से भी मांगों नहीं। यह समझ सकते हैं कि बीज नहीं बोयेंगे तो मिलेगा क्या? भक्ति मार्ग में भी दान-पुण्य किया जाता है। तुम सब भक्ति मार्ग में ईश्वर अर्थ इनडायरेक्ट करते थे। फिर सन्यासियों को भी बहुत देते हैं। नहीं तो दान गरीबों को दिया जाता है, न कि साहूकारों को। इसमें अनाज का दान सबसे अच्छा होता है। सो भी बाप समझाते हैं दान करने से दूसरे जन्म में उसका फल मिल जाता है। ईश्वर ही सबको फल देते हैं। साधू-सन्त आदि कोई रिटर्न नहीं दे सकते हैं। देने वाला एक ही बाप है। किसके भी थ्रू देवे। बाप समझाते हैं कि तुम ईश्वर अर्थ देते थे तो भी दूसरे जन्म में तुमको एवजा दिलाते थे। अभी तो मैं डायरेक्ट आया हूँ। अभी तुमको 21 जन्म के लिए रिटर्न मिलेगा। फिर तो मौत सामने खड़ा है। भक्ति मार्ग में तुमको ऐसे नहीं कहते थे कि मौत सामने खड़ा है इसलिए अपना सफल करो। नहीं। तो अब बाप समझाते हैं-जिसको भी चाहिए यह रूहानी हॉस्पिटल खोल दो। कोई कहते हैं मकान बनायें, उसमें यह हॉस्पिटल खोलें। बाप कहते हैं-आज मकान बनाओ और कल मर जाओ तो यह सब खत्म हो जायेगा। शरीर पर भरोसा नहीं है। जो है उसमें ही तब तक एक कमरा रख दो, जिसमें रूहानी हॉस्पिटल, रूहानी कॉलेज बनाओ। बहुतों का कल्याण करेंगे तो बहुत ऊंच पद पायेंगे। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) श्रीमत पर अपने आपको देखना है कि इस विनाश काल में मेरी एक बाप से सच्ची प्रीत है? और सब संग तोड़ एक संग जोड़ी है? कभी कोई विकर्म करके असुर तो नहीं बनते? ऐसी चेकिंग कर स्वयं को परिवर्तन करना है।
2) इस शरीर पर कोई भरोसा नहीं इसलिए अपना सब कुछ सफल करना है। अपनी स्थिति एकरस, अचल बनाने के लिए ड्रामा के राज को बुद्धि में रखकर चलना है।
वरदान:
श्रेष्ठ कर्म द्वारा सिमरण योग्य बनने वाले योगयुक्त, युक्तियुक्त भव!   
आपका एक-एक कर्म जितना श्रेष्ठ होगा उतना ही श्रेष्ठ आत्माओं में सिमरण किये जायेंगे। भक्ति में नाम का सिमरण करते हैं, लेकिन यहाँ जो श्रेष्ठ आत्मायें हैं उनके गुणों और कर्मो को मिसाल बनाने के लिए सिमरण करते हैं। तो आप श्रेष्ठ कर्मो के आधार पर सिमरण योग्य बनते जायेंगे, इसके लिए योगयुक्त बनो। योगयुक्त बनने से हर संकल्प, शब्द वा कर्म युक्तियुक्त अवश्य होगा, उनसे अयुक्त कर्म वा संकल्प हो ही नहीं सकता– यह भी कनेक्शन है।
स्लोगन:
निमित्त और निर्माणचित्त-यही सच्चे सेवाधारी के लक्षण हैं।