Wednesday, June 22, 2016

मुरली 22 जून 2016

22-06-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे– पूरा वर्सा लेने के लिए एक बाप से पूरी प्रीत रखो, तुम्हारी प्रीत किसी भी देहधारी से नहीं होनी चाहिए”   
प्रश्न:
जो अपने दैवी सम्प्रदाय के होंगे उनके सामने कौन से अक्षर घूमते रहेंगे?
उत्तर:
जब तुम उन्हें बतायेंगे कि बाप को याद करने से विकर्म विनाश होते हैं और देवी-देवता धर्म की स्थापना होती है तो यह अक्षर उनके सामने घूमते रहेंगे। उनकी बुद्धि में आयेगा हमें देवता बनना है इसलिए हमारा खान-पान शुद्ध होना चाहिए।
गीत:-
भोलेनाथ से निराला....   
ओम् शान्ति।
भोलेनाथ के बच्चे सुन रहे हैं। किससे? भोलानाथ से। भोलानाथ शिव को ही कहा जाता है। उनका नाम ही शिव है। भोलानाथ के बच्चे अर्थात् शिव के बच्चे। आत्मायें सुन रही हैं इन कानों से। अभी तुम बच्चे आत्म-अभिमानी बने हो। बच्चे टेप पर भी मुरली सुनते हैं तो समझते हैं शिवबाबा हमको अपना परिचय देते हैं, मैं सभी आत्माओं का बाप हूँ। जिसवो तुम परमपिता परम आत्मा यानी परमात्मा कहते हो। उनको सदैव फादर ही कहते हैं। कौन कहते हैं कि वह फादर है? आत्मा। आत्मा को अब ज्ञान मिला है और कोई मनुष्य मात्र को यह ज्ञान नहीं है। हम आत्मा को दो बाप हैं। एक साकार, एक है निराकार। वह परमपिता है, यह समझानी और कोई दे न सके। बाप के सिवाए और कोई यह पूछ न सके। बाप ही पूछते हैं तुम जो कहते हो परमपिता परमात्मा, गॉड फादर, वह तुम किसके लिए कहते हो? क्या लौकिक बाप के लिए वा पारलौकिक बाप के लिए? लौकिक फादर को गॉड फादर कहेंगे? हिन्दी में अक्षर भी है परमपिता। वह तो एक ही निराकार है। ईश्वर, प्रभू वा भगवान कहने से बाप सिद्ध नहीं होता। गॉड फादर अक्षर अच्छा है। आत्मा ने कहा वह हमारा गॉड फादर है। लौकिक फादर तो सिर्फ शरीर का बाप है। तुम सबसे पूछा जाता है, तुमको कितने फादर्स हैं? एक है लौकिक, दूसरा है पारलौकिक। दोनों में बड़ा कौन? जरूर कहेंगे पारलौकिक फादर। उनकी महिमा है-सब पतितों को पावन बनाने वाला पारलौकिक बाप। यह भी अभी तुम समझते हो। दुनिया में यह कोई भी नहीं समझते। बाप ने समझाया है-तुमको पारलौकिक बाप से प्रीत है। औरों की है विनाश काले विप्रीत बुद्धि। विनाश का अभी समय है। वही महाभारत की लड़ाई अब लगनी है। एरोप्लेन, टैंक्स आदि एक दो को सप्लाई कर रहे हैं। सबको देते जाते हैं। पैसे से जिसको जो चाहे उनको देते जाते हैं। उधार पर भी लेते हैं। तो प्लेन, बारूद आदि यह सब खरीद करते हैं। यह सब चीजे बड़ी महंगी होती हैं। विलायत वाले बनाते हैं, वह फिर बेचते रहते हैं। भारतवासी थोड़ेही एरोप्लेन आदि बेचते हैं। यह सब चीजे बाहर से आई हुई हैं। अब जो चीज खरीद करेंगे सो जरूर काम में लायेंगे। फेंकने के लिए थोड़ेही लेंगे। वह है विनाश काले विप्रीत बुद्धि यादव सम्प्रदाय, जो यूरोप में रहते हैं। उसमें सब आ गये। भारत तो अविनाशी खण्ड है क्योंकि अविनाशी बाप का बर्थ प्लेस है। बाप आते ही तब हैं जब पुरानी दुनिया खत्म होनी है और जन्म वहाँ लेते हैं जहाँ कभी खत्म नहीं होना है। बाप आया था तब तो शिव जयन्ती मनाते हैं परन्तु उन्हों को यह पता नहीं है कि शिवबाबा कब आते हैं। आते भी उस समय हैं जबकि विनाश के लिए तैयारियाँ हो रही हैं।

अब बाप कहते हैं वह है यूरोपवासी यादव सम्प्रदाय जो सतयुग में होते नहीं। न बौद्धी, न क्रिश्चियन आदि होते हैं। अब बाप कहते हैं उन्हों की है विनाश काले विप्रीत बुद्धि क्योंकि परमात्मा बाप को सर्वव्यापी कह देते हैं। तुम हो विनाश काले प्रीत बुद्धि। तुम बाप को जानते हो। तुम समझते हो हमने 84 जन्म लिए हैं। 84 जन्मों में पाप आत्मा, तमोप्रधान बन गये हैं। भारतवासियों ने ही 84 जन्म लिए हैं। अब नाटक पूरा होता है, सबको वापिस जाना है। तुमको बाप राजयोग सिखा रहे हैं। यह है सबकी कयामत का समय अर्थात् मौत का समय। तो उन यादवों की भी ईश्वर से प्रीत नहीं है, इसलिए विनाश काले विप्रीत बुद्धि कहा जाता है। कोई भी देहधारी मनुष्य से प्रीत नहीं लगानी है। वह तो है रचना, उनसे वर्सा मिल न सके। भाई को भाई से वर्सा थोड़ेही मिलता है। यह तो अच्छी रीति से समझाया है।

तुम बच्चे अभी समझते हो- उनकी है विनाश काले विप्रीत बुद्धि और तुम्हारी है प्रीत बुद्धि। इसमें भी जो तीव्र प्रीत वाले हैं, बाप से पूरी प्रीत रखते हैं। हम बाबा से 21 जन्म स्वर्ग का वर्सा लेते हैं। वह बाबा ही सत्य बताते हैं और कोई से प्रीत नहीं रखनी है। जब नया मकान बनाते हैं तो फिर नये मकान से प्रीत लग जाती है। समझा जाता है पुराना मकान टूट जाना है। तो हम भी पुरानी दुनिया से दिल तोड़ते जाते हैं। बाप समझाते हैं-दिन-प्रतिदिन वायुमण्डल खराब होता जायेगा। देखते हो कितने हंगामें होते हैं, तो समझेंगे कि बस अभी यह खलास होते हैं। हमको जाना है नई दुनिया में। तो नई दुनिया को याद करना पड़े। बेहद के बाप और वर्से को याद करना है और कोई को याद करने से कुछ मिलेगा नहीं। मनुष्य भक्ति मार्ग में तो कितना याद करते हैं। माँ बाप मित्र सम्बन्धियों को याद करते हुए भी फिर देवी-देवताओं को कितना याद करते हैं। पानी में स्नान करते हैं, उनको पतित-पावनी कहते हैं। दिखाते हैं, तीर मारा और गंगा निकल आई। गंगा जल मुख में देते हैं। समझते हैं थोड़ा भी गंगा जल मिलने से मुक्ति को पा लेंगे। बाप कहते हैं यहाँ हैं ज्ञान की बातें। तुम थोड़ा भी ज्ञान सुनते हो तो फल मिल जाता है। यह ज्ञान सुनने की बात है। अमृत पीने की चीज नहीं है, यह नॉलेज है। ऐसे नहीं समझो कि भोग के दिन अमृत पिलाते हैं। नहीं, वह तो मीठा पानी है। बाकी यह है ज्ञान की बात। ज्ञान अर्थात् बाप और सृष्टि के आदिमध् य-अन्त को जानना। यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, कौन 84 जन्म लेते हैं। सब तो ले न सकें। पहले-पहले भारतवासी ही आते हैं। वही पूरे 84 जन्म लेते हैं। जो देवता थे वही 84 जन्म भोग पतित बन जाते हैं। बाप आकर फिर काँटों से फूल बनाते हैं। मनुष्य देह-अभिमान में आकर 5 विकारों में फँस पड़ते हैं। अब है रावण राज्य। सतयुग था दैवी राज्य। शिवबाबा ही स्वर्ग की पुरी रचते हैं। सूर्यवंशी लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। अभी तुम जानते हो स्थापना हो रही है। तुम्हारी विनाश काले प्रीत बुद्धि है, इसलिए विजयी हैं। सारे विश्व पर तुम विजय पाते हो। यह अच्छी रीति याद रखना है। हम भारतवासी जो अभी कलियुग में हैं सो फिर बदलकर स्वर्ग में जायेंगे। पुरानी दुनिया को छोड़ना है। यह विकारी सम्बन्ध, इसको बंधन कहा जाता है। तुम विकारी बंधन से निकल निर्विकारी सम्बन्ध में जाते हो फिर दूसरे जन्म में तुम विकारी बंधन में नहीं आयेंगे। वहाँ है ही निर्विकारी सम्बन्ध, इस समय आसुरी बंधन है। आत्मा कहती है हमारी शिवबाबा से प्रीत है। तुम ब्राह्मणों की प्रीत है क्योंकि यथार्थ रीति जानते हो। बाप को, सृष्टि चक्र को जान तुम फिर औरों को समझाते हो। जितना जो औरों को समझायेंगे तो बहुतों का कल्याण करेंगे। जो जास्ती समझते हैं वही होशियार हैं, ऊंच पद भी वही पाते हैं। सर्विस कम करते हैं तो पद भी कम पायेंगे। पतित तो सारी दुनिया है। हर एक को पतित से पावन होने का रास्ता बताना है और कोई उपाय नहीं है। याद से ही विकर्म विनाश होंगे। जो दैवी सम्प्रदाय के हैं उनके सामने यह अक्षर गूँजेंगे, समझेंगे यह तो ठीक बात है। बरोबर हम देवी-देवता बनते हैं। हमारा भोजन भी शुद्ध चाहिए। दैवीगुण भी यहाँ धारण करने हैं, सर्वगुण सम्पन्न बनना है। अभी तुम बन रहे हो। यह लक्ष्मी-नारायण देवतायें हैं, इनको भोग लगाते हैं तो क्या सिगरेट आदि का भोग लगाते हैं? सिगरेट पीने वाला ऊंच पद पा नहीं सकता। यह कोई दैवी चीज नहीं है। सिगरेट पियेंगे वा लहसुन प्याज आदि खायेंगे तो और ही गिर जायेंगे। कहते हैं यह छोड़ने से तबियत खराब हो जाती है। बाप कहते हैं-शिवबाबा को याद करो। यह आदतें सब छोड़ दो तो तुम्हारी सद्गति होगी। सिगरेट की आदत तो बहुतों में रहती है। समझानी दी जाती है, देवताओं को कभी भी यह भोग नहीं लगाया जाता है। तो तुमको इन जैसा यहाँ ही बनना है। तुम छीछी चीजें खाते रहेंगे तो वह बांस आती रहेगी। सिगरेट वा शराब पीने वालों से दूर से ही बांस आती है। तो तुम बच्चों को दैवीगुण धारण करने हैं, वैष्णव बनना है। जैसे विष्णु की सन्तान हैं, तुम विष्णु अर्थात् दैवी सन्तान बनते हो। यहाँ हो तुम ईश्वरीय सन्तान। यह तुम्हारा सर्वोत्तम जन्म है। देवताओं से भी उत्तम तुम हो। तुम औरों को भी उत्तम बनाने वाले हो। यह है बेहद के बाप की मशीनरी। क्रिश्चियन लोगों की मशीनरी होती है ना। अपने क्रिश्चियन धर्म में बहुतों को कनवर्ट करते हैं। यह है ईश्वरीय मशीनरी। तुम शूद्र से ब्राह्मण धर्म में कनवर्ट हो फिर देवता धर्म में कनवर्ट हो जाते हो। तुम जानते हो हम शूद्र से अब ब्राह्मण बने हैं। तुम जीते जी मरे हो फिर जाकर देवता बनेंगे। गर्भ से जन्म मिलेगा।

यहाँ तुमको बाप ने धर्म का बच्चा बनाया है, धर्मात्मा बनाने। बाप ने तुमको अपना बनाया है। बच्चों को बाप सिखलाते हैं, ब्राह्मण से फिर देवता बनते हैं। यह मनुष्य कितने ऊंचे हैं, इनमें सब दैवीगुण हैं। जब तुम आत्मा पवित्र बन जायेंगी, तो फिर शरीर भी पवित्र चाहिए। पुराने शरीर को खत्म होना है फिर तुमको शरीर नया सतोप्रधान चाहिए। सतयुग में 5 तत्व भी सतोप्रधान बन जायेंगे। बाप कहते हैं-तुम शूद्र वर्ण में थे। अब फिर ब्राह्मण वर्ण के बने हो फिर दैवी वर्ण में आयेंगे। 84 जन्म लेंगे ना। ब्राह्मण वर्ण को गुम कर दिया है। अब बाप शूद्र से ब्राह्मण बनाए फिर देवता बनाते हैं। अब तुम ब्राह्मण हो चोटी। बाजोली होती है ना। अभी ब्राह्मण हैं फिर देवता, क्षत्रिय.... फिर ब्राह्मण बनेंगे। इसको चक्र कहा जाता है। अभी तुम ब्राह्मण वर्ण में हो। यह नॉलेज अभी है फिर तो प्रालब्ध मिल जायेगी। वहाँ सदा सुखी रहेंगे, 21 जन्म नम्बरवार इस समय के पुरूषार्थ अनुसार। कोई राजाई घराने में, कोई प्रजा में जायेंगे। राजाई घराने में सुख बहुत है फिर कलायें कम होती हैं। तुमको 84 जन्मों का ज्ञान मिला है। स्मृति आई है। बाप आकर समझाते हैं मीठे-मीठे बच्चों, तुम्हारे अब 84 जन्म पूरे हुए हैं। कोई ने 84 जन्म, 80, 50, या 60 जन्म भी लिये हैं। सबसे जास्ती तुम भारतवासी सुख देखते हो। इस ड्रामा में तुम्हारा नाम बाला है। देवताओं से भी तुम ऊंच हो। तुम जानते हो हम सो पूज्य बनते हैं। सतयुग में हम किसको भी पूजते नहीं, न हमको कोई पूजते हैं। वहाँ हम हैं ही पूज्य फिर कलायें कम होती जाती हैं। हम पूज्य से फिर पुजारी बन माथा टेकते हैं। द्वापर में हम पुजारी बनना शुरू करते हैं। अन्त में फिर सभी व्यभिचारी बन जाते हैं। यह शरीर पाँच तत्वों का बना हुआ है, उनकी कोई बैठ पूजा करते हैं तो उसको कहा जाता है भूत पूजा। हर एक में 5 भूत हैं। देह-अभिमान का भूत फिर काम-क्रोध का भूत। भूत सम्प्रदाय कहो अथवा आसुरी सम्प्रदाय कहो, बात एक ही है। बाप आकर फिर दैवी सम्प्रदाय बनाते हैं। बाप आते हैं भूतों से छुड़ाने और अपने साथ योग लगाए देवता बनाते हैं। गुरूनानक ने भी महिमा गाई है कि परमपिता परमात्मा ने मनुष्य को देवता बनाया। वही पतितों को पावन बनाने वाला है। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) ब्राह्मण से देवता बनने के लिए जो भी छी-छी आदतें हैं उन सबको छोड़ना है। शूद्रों को ब्राह्मण धर्म में कनवर्ट कर देवता बनाने के लिए ईश्वरीय् मिशन के कार्य में सहयोगी बनना है। शराब, सिगरेट या जो भी गन्दी आदतें है वह निकाल देनी हैं।
2) इस विनाश काल के समय में एक बाप से सच्ची प्रीत रखनी है। पुराना मकान टूटने वाला है इसलिए इससे दिल निकाल नये से लगानी है।
वरदान:
मरजीवा स्थिति द्वारा हिम्मत और हुल्लास की अविनाशी स्टैम्प लगाने वाले प्राप्ति सम्पन्न भव!   
जो प्राप्तियों से सम्पन्न होते हैं उनके हर चलन, नैन चैन से उमंग-उत्साह दिखाई देता है। लेकिन हिम्मत और हुल्लास की अविनाशी स्टैम्प लगाने के लिए अपने पास्ट के वा ईश्वरीय मर्यादाओं के विपरीत जो संस्कार, स्वभाव, संकल्प वा कर्म होते हैं उनसे मरजीवा बनो। प्रतिज्ञा रूपी स्वीच को सेट कर प्रैक्टिकल में प्रतिज्ञा प्रमाण चलते रहो। हिम्मत के साथ हुल्लास हो तो प्राप्ति की झलक दूर से ही दिखाई देगी।
स्लोगन:
मेले वा झमेले में डबल लाइट रहने वाला ही धारणामूर्त है।