Saturday, June 11, 2016

मुरली 12 जून 2016

12-06-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:08-10-81 मधुबन

“ब्रह्मा बाप की एक शुभ आशा”
आज बापदादा विजयी रत्नों को देख रहे हैं। आज भक्त लोग विजय दशमी मना रहे हैं। भक्तों का है जलाना और तुम बच्चों का है मिलन मनाना। जलाने के बाद मिलन मनाना होता है। भक्ति मार्ग में भी रावण को जलाने के बाद अर्थात् विजय प्राप्त करने के बाद कौन सा मिलन दिखाते हैं? भक्ति की बातों को तो अच्छी तरह से जानते हो। रावण समाप्त होने के बाद कौन सी स्टेज हो जाती है? उसकी निशानी क्या है? “भरत मिलाप”। यह है ब्रदरहुड की स्थिति। भाई-भाई के दृष्टि की निशानी है– सेवा और स्नेह। स्नेह की निशानी दीपमाला दिखाई है। सेवा की सफलता का आधार ब्रदरहुड दिखाया है। इसके बिना दीपमाला नहीं मना सकते। दीपमाला के सिवाए राज्य तिलक नहीं कर सकते। तो आज का यादगार विजय दशमी मनाई है? इसका आधार पहले अष्टमी मनाते हैं। बिना अष्टमी के विजय नहीं। तो कहाँ तक पहुंचे हो? अष्टमी मनाई है? सभी नौ दुर्गा बन गये हैं? अष्ट शक्ति और एक शक्तिवान। सर्व शक्तिवान बाप के साथ अष्ट शक्ति स्वरूप, ऐसे नौ दुर्गा बने हैं? दुर्गा अर्थात् दुर्गुण समाप्त कर सर्वगुण सम्पन्न बनें तब ही दशहरा मना सकते हैं। तो बापदादा देखने आये हैं कि बच्चों ने दशहरा मनाया है? हर एक अपने आपको अच्छी तरह से जानते हो और मानते भी हो कि मैंने दशहरा मनाया है? या अष्टमी मनाई है? अविनाशी तीली लगाई है या अल्प समय की तीली लगाई है? रावण को जलाया है या सर्व वंश को जलाया है? रावण को समाप्त किया है वा रावणराज्य को समाप्त किया है?

आज वतन में ब्रह्मा बाप की रूह-रिहान चल रही थी– किस समय? (क्लास के समय) बापदादा भी बच्चों की रूह-रिहान सुनते हैं। सभी मैजारिटी बच्चे, जब यह प्रश्न पूछा जाता है कि दशहरा मनाया है? तो न ना में हाथ उठाते न हाँ में हाथ उठाते हैं। अगर लिखते भी हैं तो जवाब देने में भी बड़े चतुर हैं। झूठ भी नहीं बोलते, लेकिन स्पष्ट भी नहीं लिखते। तीन चार जवाब सबको आते हैं और उन्हीं जवाब में कोई न कोई जवाब देते हैं। तो ब्रह्मा बाप की रूह-रिहान चल रही थी। ब्रह्मा बाप तो घर के गेट का उद्घाटन करने के लिए बच्चों का आह्वान कर रहे हैं। लेकिन सबके आज के प्रश्न के उत्तर कागज पर नहीं, मन के संकल्प द्वारा तो बाप के आगे स्पष्ट ही हैं। क्लास के समय बच्ची (दादी) प्रश्न पूछ रही थी और बापदादा सबके उत्तर देख रहे थे। उत्तर का सार तो सुना ही दिया। सुनाने की भी आवश्यकता नहीं है, आप ज्यादा जानते हो। उत्तर देखते हुए ब्रह्मा बाप ने क्या किया? बड़ी अच्छी बात की। ब्रह्मा बाप के विशेषता सम्पन्न संस्कार को जानते हो। विशेषता के संस्कार का ही पार्ट बजाया, अब वह क्या होगा? उस बात का सम्बन्ध ब्रह्मा बाप के आदिकाल की प्रवेशता के जीवन से सम्बन्धित है। जब रिजल्ट देखी तो एक सेकेण्ड के लिए ब्रह्मा बाप बड़े सोच में पड़ गये और बोले– आज एक बात हमारी पूर्ण करनी पड़ेगी, कौन सी? ब्रह्मा बाप ने बोला, “आज हमें चाबी दे दो।” कौन सी? सबके बुद्धियों को परिवर्तन करने की, सम्पन्न बनाने की। जैसे आदि में भी चाबी का नशा था, खजाना है, चाबी है बस खोलना है। ऐसे ब्रह्मा बाप ने भी आज सम्पन्न बनाने के चाबी की बाप से मांगनी की। उस समय के दृश्य को साकार में अनुभव करने वाले जान सकते हैं कि ब्रह्मा और बाप की कैसी रूह-रूहान चलती थी। अब ब्रह्मा को चाबी दे सकते हैं? और ब्रह्मा को बाप ना कर सकते हैं? बच्चे भी न ना करते हैं, न हाँ करते हैं।

लेकिन इतना अवश्य है कि ब्रह्मा बाप को बच्चों को सदा सम्पन्न देखने की बहुत-बहुत इच्छा है। बनने हैं यह नहीं, अब बन जायें। जब भी बच्चों की बातें चलती हैं तो ब्रह्मा की सूरत दीपमाला के समान बन जाती, ऐसा तीव्र उमंग और मास्टर सागर के समान ऊंची लहर पैदा होती जो उसी उमंग की ऊंची लहर में सबको सम्पन्न बनाए दीपमाला जगा दें। ब्रह्मा बाप के साकारी चरित्र में भी यह अनुभव किया है कि ब्रह्मा को एक बोल जन्म से ही नहीं अच्छा लगता, वह कौन सा? अपने कार्य में भी वह अच्छा नहीं लगा, न बच्चों के। “कब कर लेंगे?” यह शब्द अच्छा नहीं लगा। हर बात में अब किया और कराया। सेवा के प्लेन में देखो, स्व के परिवर्तन में देखो, अभी-अभी जाओ, अभी-अभी करो, ट्रेन का टाइम थोड़ा है तो भी जाओ, ट्रेन लेट हो जायेगी। तो क्या संस्कार रहा? अभी-अभी, कब नहीं लेकिन अब। तो जैसे विशेष भाषा “अभी- अभी” की सुनी, ऐसे ही आज भी वतन में, अभी-अभी होना चाहिए, यही भाषा चल रही थी। एक और हंसी की बात सुनाते हैं, वह क्या होगी? ब्रह्मा बाप स्वयं सम्पन्न होने के कारण यह देख नहीं सकते कि बच्चे “कब-कब” क्यों करते हैं! इसलिए बार-बार बाप को कहते, यह क्यों नहीं बदलते, यह ऐसे क्यों करते हैं? अब तक यह क्यों कहते हैं? आश्चर्य लगता है। ड्रामा की बात अलग रही, यह रमणीक हंसी की बात है। ऐसे नहीं ड्रामा को नहीं जानते हैं लेकिन देख-देख कर स्नेह के कारण बाप से हँसते हैं। बाप से हँसी करना तो छुट्टी है ना। बाप भी मुस्कराते हैं। तो अब ब्रह्मा बाप क्या चाहते हैं, यह तो जान लिया ना? अब मुक्त बन, मुक्तिधाम के गेट को खोलने के लिए बाप के साथी बनो। यह है ब्रह्मा बाप की बच्चों के प्रति शुभ आशा। पहले यह दीवाली मनाओ, बाप के शुभ आशा का दीपक जगाओ। इसी एक दीपक से दीपमाला स्वत: ही जग जायेगी। समझा? अच्छा-फिर भरत मिलाप का रहस्य सुनायेंगे। अच्छा-

ऐसे बापदादा के श्रेष्ठ संकल्प को साकार में लाने वाले, अविनाशी दृढ़ संकल्प की तीली लगाए अविनाशी विजयी बनने वाले, साकार बाप के समान सदा “अब” की भाषा कर्म में लाने वाले, कभी को समाप्त कर सभी को साकार बाप की मूर्त, सूरत में दिखाने वाले, ऐसे विजयी रत्नों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

कुमारियों से:- कुमारियां तो हैं ही उड़ता पंछी क्योंकि कुमारियां अर्थात् सदा हल्की। कुमारी अर्थात् कोई बोझ नहीं। हल्की चीज ऊपर जायेगी ना। सदा ऊपर जाने वाले माना ऊंची स्टेज पर जाने वाले। तो ऐसी हो? कहाँ तक पहुँची हो? जो बाप की श्रीमत है उसी प्रमाण, उसी लकीर के अन्दर सदा रहने वाले सदा ऊपर उड़ते रहते हैं। तो लकीर के अन्दर रहने वाली कौन हुई? सच्ची सीता। तो सभी सच्ची सीताएं हो ना? पक्का? लकीर के बाहर पांव निकाला तो रावण आ जायेगा। रावण इन्तजार में रहता है कि कहाँ कोई पांव निकाले और मैं भगाऊं! तो कुमारी अर्थात् सच्ची सीता। यहाँ से बाहर जाकर बदल नहीं जाना क्योंकि मधुबन में वायुमण्डल के वरदान का प्रभाव रहता, यहाँ एकस्ट्रा लिफ्ट होती है, वहाँ मेहनत से चलना पड़ेगा। कुमारियों को देखकर बापदादा को हजार गुणा खुशी होती है क्योंकि कसाईयों से बच गई। तो खुशी होगी ना। अच्छा– अभी पक्का वायदा करके जाना।

पाण्डवों से:- सभी पाण्डव शक्ति स्वरूप हो ना? शक्ति और पाण्डव कम्बाईन्ड हो? सर्वशक्तिवान के आगे शक्ति बन जाते और पार्ट बजाने मे पाण्डव। सर्वशक्तिवान को शक्ति बन कर याद नहीं करेंगे तो मजा नहीं आयेगा। आत्मा सीता है और वह राम है। तो इस पार्ट में भी बहुत मजा है। यही पार्ट सबसे वन्डरफुल है संगम का, जो पाण्डव शक्तियां बन जाती और शक्तियां भाई बन जाती। इससे सिद्ध होता है कि देहभान भूल गये। आत्मा में दोनों ही संस्कार हैं, कभी मेल का कभी फीमेल का पार्ट तो बजाया है ना। संगम पर मजा है आशिक बन माशुक को याद करना। शक्ति बनकर सर्वशक्तिवान को याद करना। सीता बनकर राम को याद करना।

माताओं से:- शक्ति सेना सदा शस्त्रधारी है ना? शक्ति का श्रंगार ही है शस्त्र। जो सदा शस्त्रधारी है वही सदा महादानी, वरदानी है। सब शस्त्र कायम रहते हैं? कभी-कभी नहीं, सदा। शक्तियों की तपस्या ने सर्वशक्तिवान को लाया। अभी शक्तियों को सर्वशक्तिवान को प्रत्यक्ष करना है। हर कदम में वरदान देते जाओ, शुभ भावना से सबको वरदान देना है। सुख के सागर के बच्चे सदा सुख स्वरूप हो ना? सदा मिलन मेले की खुशी में झूलते रहते हो ना! खाते, पीते, चलते, अशोक अर्थात् संकल्प मात्र में भी शोक व दु:ख की लहर न आये। सदा सुख स्वरूप। दु:ख को तलाक देने वाले क्योंकि दु:ख की दुनिया में आधा कल्प रहे, अब तो सुख की बारी है। सुख का सागर मिला तो दु:ख काहे का। सदा सुखी– यही वरदान बाप से सदा के लिए मिल गया। अच्छा।

प्रश्न:- जब स्थूल साधन समाप्त हो जायेंगे उस समय सेवा करने के लिए अभी से किस बात पर ध्यान चाहिए?

उत्तर:- स्वयं के संकल्पों को पावरफुल बनाने पर ध्यान चाहिए जिससे उसका प्रभाव दूर तक पहुंच सके। संकल्प में इतनी शक्ति आ जाये जो आपने यहाँ संकल्प किया और वहाँ फल मिला। जैसे बाप भक्ति का फल देते हैं वैसे आप श्रेष्ठ आत्मायें परिवार में सहयोग का फल दो और उस फल का भिन्न-भिन्न अनुभव करो अभी यह सेवा आरम्भ करो।

प्रश्न:- बापदादा द्वारा कौन-कौन से अविनाशी खजाने प्राप्त हुए हैं? उन खजानों से प्राप्तियां क्या हुई हैं?

उत्तर:- 1- पहला बड़े से बड़ा खजाना है ज्ञान धन, जिससे पुरानी देह और दुनिया से मुक्त, जीवनमुक्त स्थिति की प्राप्ति होती है और मुक्तिधाम में जाते हैं। 2- योग के खजाने से सर्व शक्तियों की प्राप्ति होती है। 3- धारणा करने के खजाने से सर्व गुणों की प्राप्ति होती है। 4- सेवा के खजाने से दुआओं का खजाना, खुशी का खजाना प्राप्त होता है। 5- संगम के समय का खजाना सबसे बड़े ते बड़ा अमूल्य खजाना है, जिसमें सर्व खजाने जमा कर सकते हो।

प्रश्न:- संगम का समय अमूल्य क्यों है?

उत्तर:- क्योंकि संगम समय पर ही परमात्म बाप और परमात्म बच्चों का मधुर मिलन होता है, जो और किसी युग में नहीं होता। 2- संगम समय ही है जिसमें बापदादा द्वारा सर्व खजाने प्राप्त होते हैं और कोई भी युग में जमा का खाता, जमा करने की बैंक ही नहीं है। 3- संगम के समय, एक जन्म में अनेक जन्मों के लिए खजाना जमा कर सकते हो।

प्रश्न:- खजाना देने वाला एक है, सबको एक जैसा एक ही समय पर देता है लेकिन खजाने धारण नम्बरवार होते हैं, क्यों?

उत्तर:- क्योंकि धारण करने में हर एक का अपना-अपना पुरूषार्थ है। एक तो अपने पुरूषार्थ से प्रालब्ध बना सकते हैं, दूसरा सदा स्वयं सन्तुष्ट रहना और सर्व को सन्तुष्ट करना, सन्तुष्टता की विशेषता से खजाना जमा कर सकते हैं और तीसरा सेवा से खुशी का खजाना प्राप्त कर सकते हैं।

प्रश्न:- सम्बन्ध-सम्पर्क में आते किस बात का ध्यान रहे तो सेवा में पुण्य का और दुआओं का खाता बहुत सहज जमा कर सकते हैं?

उत्तर:- सदा निमित्त भाव, निर्माण भाव, नि:स्वार्थ भाव, हर आत्मा प्रति शुभ भावना और शुभ कामना रहे तो सेवा में वा सम्बन्ध-सम्पर्क में आते पुण्य का खाता और दुआओं का खाता बहुत सहज जमा कर सकते हैं। अच्छा।
वरदान:
एक बाप में सारे संसार का अनुभव करने वाले बेहद के वैरागी भव!   
बेहद के वैरागी वही बन सकते जो बाप को ही अपना संसार समझते हैं। जिनका बाप ही संसार है वह अपने संसार में ही रहेंगे, दूसरे में जायेंगे ही नहीं तो किनारा स्वत: हो जायेगा। संसार में व्यक्ति और वैभव सब आ जाता है। बाप की सम्पत्ति सो अपनी सम्पत्ति-इसी स्मृति में रहने से बेहद के वैरागी हो जायेंगे। कोई को देखते हुए भी नहीं देखेंगे। दिखाई ही नहीं देंगे।
स्लोगन:
पावरफुल स्थिति का अनुभव करने के लिए एकान्त और रमणीकता का बैलेन्स रखो।