Saturday, June 18, 2016

मुरली 19 जून 2016

19-06-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:09-10-81 मधुबन

“अन्तर्मुखी ही सदा बन्धनमुक्त और योगयुक्त”
आज बापदादा अपने सदा सहयोगी, सदा शक्ति स्वरूप, सदा मुक्त और योगयुक्त ऐसे विशेष बच्चों को अमृतवेले से विशेष रूप से देख रहे हैं। बापदादा ने हर एक बच्चे की दो बातों की विशेषता देखी। एक बात– मुक्त कहाँ तक हुए हैं! दूसरी बात– जीवनमुक्त कहाँ तक हुए हैं? जीवनमुक्त अर्थात् योगयुक्त। बापदादा के पास भी बच्चों के मन के संकल्प की हर सेकेण्ड की रेखायें स्पष्ट दिखाई देती हैं, रेखाओं को देख बापदादा ने मुस्कराते हुए विशेष एक बात का चित्र देखा, जिस चित्र में दो प्रकार के लक्षण देखे।

एक “सदा अन्तर्मुखी”। जिस कारण स्वयं भी सदा सुख के सागर में समाये हुए और अन्य आत्माओं को भी सदा सुख के संकल्प और वायब्रेशन द्वारा, वृत्ति और बोल द्वारा, सम्बन्ध और सम्पर्क द्वारा, सुख की अनुभूति कराते हैं।

दूसरे– “बाह्यमुखी”। जो सदा बाह्यमुखता के कारण, बाह्य अर्थात् व्यक्त भाव, व्यक्ति के भाव-स्वभाव और व्यक्त भाव के वायब्रेशन, संकल्प, बोल और सम्बन्ध, सम्पर्क द्वारा एक दो को व्यर्थ की तरफ उकसाने वाले, सदा अल्पकाल के मुख के लड्डु खाने और औरों को भी यही खिलाने वाले, सदा किसी न किसी प्रकार के चिन्तन में रहने वाले, आन्तरिक सुख, शान्ति और शक्ति से सदा दूर रहने वाले, कभी-कभी थोड़ी सी झलक अनुभव करने वाले, ऐसे बा¿मुखी भी देखे।

दीपावली आ रही है ना। तो बिजनेसमैन तो अपने चौपड़े देखेंगे। पुराने खाते, नये खाते देखेंगे, बाप क्या देखेंगे? बाप भी हर बच्चे के पुराने खाते कहाँ तक समाप्त हुए हैं, नये खाते में क्या-क्या जमा किया है, यही चौपड़े देखते हैं। तो आज यह अन्तर देख रहे थे क्योंकि कल भी सुनाया कि ब्रह्मा बाप को अब किस बात का इन्तजार है? (उद्घाटन का) इसी उद्घाटन के लिए क्या तैयारी कर रहे हो, किसी से भी उद्घाटन कराते हो तो क्या करते हो? क्या चीजें रखते हो? उद्घाटन के पहले जो भी रिबन बांधते हो या फूलों को बांधते हो, उसे पहले कैंची से काटते हो फिर उद्घाटन होता है। और कैंची को रखते कहाँ हो? फूलों से सजी हुई थाली के अन्दर। इससे क्या सिद्ध होता है? बन्धनमुक्त होने के पहले स्वयं को गुणों के फूलों से सम्पन्न करना है तो स्वत: ही बन्धनमुक्त हो ही जायेंगे। उद्घाटन की तैयारी क्या हुई? एक तरफ स्वयं को सम्पन्न बनाना, लेकिन सम्पन्न बनने के पहले बाह्यमुखता के बन्धनों से मुक्त होना। ऐसे तैयार हुए हो? बाह्यमुखता के रस बाहर से बड़े आकर्षित करते हैं, इसलिए इसको कैंची लगाओ। यह रस ही सूक्ष्म बंधन बन सफलता की मंजिल से दूर कर देते हैं। प्रशंसा हो जाती लेकिन प्रत्यक्षता और सफलता नहीं हो सकती, इसलिए अब उद्घाटन की तैयारी करो। उद्घाटन की तैयारी करने वाले सदा फूलों के बगीचे में बापदादा द्वारा लगी हुई फुलवाड़ी, फूलों के विशेषता की खुशबू लेने में और उसी खुशबू को सूंघने में सदा तत्पर होंगे अर्थात् उनकी जीवन रूपी थाली में सदा फूल ही फूल होंगे। ऐसे तैयार हो? इसमें नम्बरवन कौन जायेगा? मधुबन वाले या दिल्ली वाले? बहुत मर्तबा मिलेगा। बादादा के साथ-साथ उद्घाटन करने वाले, इससे बड़ा भाग्य और क्या है? समान वाली आत्मायें ही साथ में उद्घाटन करेंगी। ऐसे तो नहीं समझते हो कि उद्घाटन करना माना सदा के लिए सूक्ष्मवतनवासी बनना वा मूल वतनवासी बनना। ब्रह्मा बाप के साथ मूलवतन निवासी क्या सभी बनेंगे या थोड़े बनेंगे? क्या समझते हो? सब सर्विस स्थान छोड़कर के साथ जायेंगे? साथ जायेंगे वा रूकेंगे? (साथ जायेंगे) अच्छा सूक्ष्मवतन में ब्रह्मा बाप गया फिर आप यहाँ क्यों बैठ गये? तो क्या करेंगे? (दादी से) (साथ चलेंगे) अच्छा दीदी-दादी दोनों ही साथ जायेंगे? क्या होगा? यह भी विचित्र रहस्य है। तो विशेष बात थी– उद्घाटन के लिए तैयार हो? दिल्ली वाले तैयार हैं? निमित्त सेवाधारी क्या समझते हो? कोई आशायें तो नहीं रही हुई हैं? (संगम अच्छा लगता है) बापदादा ही चले जायेंगे फिर भी रहेंगे? कब तक रहना है? साथ में जाने वाले तो धर्मराज को टाटा करेंगे, धर्मराज के पास जायेंगे ही नहीं। अच्छा– बाप तो चौपड़े साफ देखने चाहते हैं। थोड़ा भी पुराना खाता अर्थात् बाह्यमुखता का खाता, संकल्प वा संस्कार रूप में न रह जाए। सदा सर्व बन्धनमुक्त और योगयुक्त, इसी बाह्यमुखता के वायुमण्डल को समाप्त करने के लिए इस वर्ष विशेष इशारा दे रहे हैं। सेवा करो, खूब करो लेकिन बाह्यमुखता से अन्तर्मुखी बनकर करो। वह होगा अन्तर्मुखता की सूरत द्वारा। सेवा में बाह्यमुखता में ज्यादा आ जाते हो इसलिए– सेवा अच्छी है, सेवा बहुत करते हैं– सिर्फ यह नाम बाला होता है। बाप इन्हों का बड़ा अच्छा है, बाप ऊंचे ते ऊंचा है– यह प्रत्यक्षता की सफलता कम होती है इसलिए सुनाया बाह्यमुखता की रिजल्ट– प्रशंसा करेंगे लेकिन प्रसन्नचित्त नहीं बनेंगे। “बाप के बन जायें”, यह है प्रसन्नचित्त बनना। ऐसे सदा अन्तर्मुखी, सदा प्रसन्नचित्त, अन्य आत्माओं को भी सदा प्रसन्नचित बनाने वाले, सदा स्वयं को गुण सम्पन्न, बाप समान, सदा सुख के सागर में समाये हुए, सदा एक बाप दूसरा न कोई, इसी लगन में मगन रहने वाले– ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद प्यार और नमस्ते।

दिल्ली जोन:- बापदादा को सभी बच्चे अति प्रिय हैं क्योंकि बापदादा ने विशेषताओं के आधार पर ड्रामा अनुसार चुनकर इस ब्राह्मण परिवार के गुलदस्ते में लाया है। यह चैतन्य फूलों का गुलदस्ता है ना। हरेक फूल की विशेषता रंग-रूप अपना- अपना होता है। किसमें खुशबू ज्यादा होगी, किसका रंग रूप गुलदस्ते को सजाने वाला होगा लेकिन है तो दोनों ही आवश्यक। सिर्फ गुलाब के फूलों का गुलदस्ता बनाओ और वैरायटी का बनाओ, तो सुन्दर क्या लगेगा? वैरायटी भी चाहिए। लेकिन गुलाब के फूलों को तो सदा बीच में डालेंगे और वैरायटी फूलों को किनारे पर डालेंगे। तो मैं कौन हूँ? वह हरेक अपने आपको जानता है। बापदादा के बेहद के गुलदस्ते के अन्दर मेरा स्थान कहाँ है, वह भी जानते हो क्योंकि गुलदस्ते के अन्दर तो हो ना। यह तो पक्का है तब मधुबन के अन्दर आये हो।

पाण्डव भवन (दिल्ली) के पाण्डव क्या करत भये? यादगार में भी यही समाचार पूछा ना! पाण्डव क्या कर रहे हैं? पाण्डव भवन है नेक्स्ट मधुबन। तो पाण्डव भवन निवासी क्या सर्विस का प्लैन बना रहे हो? ऐसी सेवा करो जो सबकी नजर सेवा के कारण पाण्डव भवन की तरफ जाये, यह है नई बात। ऐसा कुछ प्लैन बनाया है? पाण्डव भवन है ही विश्व के अन्दर विशेष भवन। तो विशेष में वी.आई.पी. स्थान हो गया तो जैसे वी.आई.पी. स्थान है, वैसे वी.आई.पी.की सेवा हो ना। दिल्ली है वी.आई.पी.की नगरी और स्थान भी वी.आई.पी. और करने वाले भी अच्छे महावीर वी.आई.पी. हो। तो अभी क्या करेंगे? अपनी दिनचर्या को सेट करो। अभी देखो यहाँ (मधुबन में) इतना बड़ा कार्य है, दिनचर्या सेट होने के कारण चारों ओर के कार्य में सफलता तो पा रहे हैं। कार्य बढ़ रहा है लेकिन दिनचर्या सेट होने के कारण कार्य ठीक हो जाता है, सिर्फ यह अटेन्शन। सुबह से रात तक अपना फिक्स प्रोग्राम डेली डायरी बनाओ क्योंकि जिम्मेवार आत्मायें हो, रिवाजी आत्मायें नहीं। विश्व कल्याणकारी आत्मायें हो। तो जितना बड़ा आदमी होता है, उसकी दिनचर्या सेट होती है। बड़े आदमी की निशानी है एक्यूरेट। एक्यूरेट का साधन है दिनचर्या की सेटिंग। एक व्यक्ति 10 व्यक्ति का कार्य कर सकता है। सेटिंग से समय, एनर्जा बच जाती है। इसके कारण एक के बजाए 10 कार्य हो जाते हैं। अच्छा-सदा सन्तुष्ट आत्मायें हो ना? सदा बाप के साथ अर्थात् सदा सन्तुष्ट। बाप और आप सदा कम्बाइन्ड हो तो कम्बाइन्ड की शक्ति कितनी बड़ी है, एक कार्य के बजाए हजार कार्य कर सकते हो क्योंकि हजार भुजाओं वाला बाप आपके साथ है।

2) सभी सहजयोगी हो ना? बाप का बनना अर्थात् सहजयोगी बनना क्योकि बच्चा अर्थात् भाग्यशाली। बच्चे को सिवाए बाप के और है ही क्या? माँ होते हुए भी प्राप्ति का आधार बाप है। प्यार के सम्बन्ध में मां याद आयेगी, प्राप्ति के सम्बन्ध में बाप याद आयेगा। योग लगाना न पड़े लेकिन न चाहते हुए भी एक बाप के सिवाए और कोई नजर न आये। बाप का बनना अर्थात् सहजयोगी बनना। अच्छा– ओम् शान्ति।

3) सहज पुरूषार्थी वा सहजयोगी बच्चों की मुख्य निशानियां

1) सहज पुरूषार्थी अर्थात् आये हुए हिमालय पर्वत जितनी समस्या को भी उड़ती कला के आधार पर सेकेण्ड में पार कर सहज सर्व प्राप्ति करने वाले होंगे।

2) सदा वर्तमान और भविष्य प्रालब्ध पाने के अनुभवी, उन्हें प्रालब्ध सदा ऐसे स्पष्ट दिखाई देगी जैसे स्थूल नेत्रों द्वारा स्थूल वस्तु स्पष्ट दिखाई देती है।

3) सहज पुरूषार्थी हर कदम में पदमों से भी ज्यादा कमाई का अनुभव करेंगे। किसी भी शक्ति से, किसी भी गुण के खजाने से, ज्ञान की पाइंट के खजाने से, खुशी से, नशे से कभी खाली नहीं होंगे।

4) सहज पुरूषार्थी कभी चलते हुए रास्ते में गिरेंगे नहीं अथवा रास्ते को टेढ़ा कह मोच नहीं खायेंगे। वह गाइड वा पण्डा बन सहज रास्ता पार करेंगे और करायेंगे।

5) वह सिर्फ लव में नहीं रहेंगे लेकिन लवलीन होंगे। लीन रहना अर्थात् समाया हुआ रहना। समाना अर्थात् समान बनना। वे सहज ही चारों ओर के वायब्रेशन से वायुमण्डल से दूर रहते हैं।

6) सहज पुरूषार्थी कभी अलबेले नहीं हो सकते। वे सदा हर समय बाप के साथ का अनुभव करेंगे। ऐसे सहज पुरूषार्थी ही सहजयोगी जीवन का अनुभव कर सकते हैं। सहज पुरूषार्थ अर्थात् अलबेलापन नहीं। प्रश्न:- आप शक्ति अवतार आत्माओं ने कौन सा कान्ट्रैक्ट लिया है?

उत्तर:- टेढे रास्ते को सीधा बनाना अर्थात् कलियुग को सतयुग बनाना, यह आपका कान्ट्रैक्ट है। आप ऐसे कह नहीं सकते कि क्या करें रास्ता टेढा है। रास्ते में अचानक गिरना या मोच आ जाना यह भी अटेन्शन की कमी है।

प्रश्न:- कौन से बोल ब्राह्मणों की भाषा के नहीं हो सकते?

उत्तर:- न चाहते भी हो जाता है। यह शब्द मास्टर सर्वशक्तिवान आत्मायें बोल नहीं सकती। चाहना एक, कर्म दूसरा हो तो शिवशक्ति नहीं कहेंगे। शिवशक्ति अर्थात् अधिकारी, अधीन नहीं। अधीनता के बोल ब्राह्मण भाषा के नहीं हैं।

प्रश्न:- बाप के याद की लगन, अग्नि का काम करती है, कैसे?

उत्तर:- जैसे अग्नि में कोई भी चीज डालो तो नाम, रूप, गुण सब बदल जाता है, ऐसे जब बाप के याद की लगन की अग्नि में पड़ते हो तो परिवर्तन हो जाते हो ना! मनुष्य से ब्राह्मण बन जाते, फिर ब्राह्मण से फरिश्ता सो देवता बन जाते। तो कैसे परिवर्तन हुए? लग्न की अग्नि से। अपनापन कुछ भी नहीं। मानव, मानव नहीं रहा फरिश्ता बन गया। जैसे कच्ची मिट्टी को साँचे में ढालकर आग में डालते हैं तो ईट बन जाती है, ऐसे यह भी परिवर्तन हो जाता है इसलिए इस याद को ही ज्वाला रूप कहा है। ज्वालामुखी भी प्रसिद्ध है, तो ज्वालादेवी वा देवतायं भी प्रसिद्ध हैं। अच्छा।
वरदान:
निर्विकारी वा फरिश्ते स्वरूप की स्थिति का अनुभव करने वाले आत्म-अभिमानी भव!   
जो बच्चे आत्म-अभिमानी बनते हैं वह सहज ही निर्विकारी बन जाते हैं। आत्म-अभिमानी स्थिति द्वारा मन्सा में भी निर्विकारीपन की स्टेज का अनुभव होता है। ऐसे निर्विकारी, जिन्हें किसी भी प्रकार की इम्प्युरिटी वा 5 तत्वों की आकर्षण आकर्षित नहीं करती-वही फरिश्ता कहलाते हैं। इसके लिए साकार में रहते हुए अपनी निराकारी आत्म-अभिमानी स्थिति में स्थित रहो।
स्लोगन:
जीवन में अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करने के लिए विशेष अमृतवेले एकान्तप्रिय बनो।