Thursday, April 23, 2015

मुरली 24 अप्रैल 2015

“मीठे बच्चे - अपने ऊपर रहम करो, बाप जो मत देते हैं उस पर चलो तो अपार खुशी रहेगी, माया के श्राप से बचे रहेंगे |” प्रश्न:- माया का श्राप क्यों लगता है? श्रापित आत्मा की गति क्या होगी? उत्तर:- 1. बाप और पढ़ाई का (ज्ञान रत्नों का) निरादर करने से, अपनी मत पर चलने से माया का श्राप लग जाता है, 2. आसुरी चलन है, दैवीगुण धारण नहीं करते तो अपने पर बेरहमी करते हैं। बुद्धि को ताला लग जाता है। वह बाप की दिल पर चढ़ नहीं सकते। धारणा के लिए मुख्य सार :- 1) सदा एक बाप की तरफ ही दृष्टि रखनी है। देही-अभिमानी बनने का पुरुषार्थ कर माया के धोखे से बचना है। कभी कुदृष्टि रख अपने कुल का नाम बदनाम नहीं करना है। 2) सर्विस के लिए भाग दौड़ करते रहना है। सर्विसएबुल और आज्ञाकारी बनना है। अपना और दूसरों का कल्याण करना है। कोई भी बदचलन नहीं चलनी है। वरदान:- निश्चय की अखण्ड रेखा द्वारा नम्बरवन भाग्य बनाने वाले विजय के तिलकधारी भव! जो निश्चयबुद्धि बच्चे हैं वह कभी कैसे वा ऐसे के विस्तार में नहीं जाते। उनके निश्चय की अटूट रेखा अन्य आत्माओं को भी स्पष्ट दिखाई देती है। उनके निश्चय के रेखा की लाइन बीच-बीच में खण्डित नहीं होती। ऐसी रेखा वाले के मस्तक में अर्थात् स्मृति में सदा विजय का तिलक नज़र आयेगा। वे जन्मते ही सेवा की जिम्मेवारी के ताजधारी होंगे। सदा ज्ञान रत्नों से खेलने वाले होंगे। सदा याद और खुशी के झूले में झूलते हुए जीवन बिताने वाले होंगे। यही है नम्बरवन भाग्य की रेखा। स्लोगन:- बुद्धि रूपी कम्प्युटर में फुलस्टॉप की मात्रा आना माना प्रसन्नचित रहना। ओम् शांति ।