Saturday, April 25, 2015

मुरली 26 अप्रैल 2015

प्रीत की रीति वरदान:- पुरानी देह और दुनिया को भूलने वाले बापदादा के दिलतख्तनशीन भव ! संगमयुगी श्रेष्ठ आत्माओं का स्थान है ही बापदादा का दिलतख्त। ऐसा तख्त सारे कल्प में नहीं मिल सकता। विश्व के राज्य का वा स्टेट के राज्य का तख्त तो मिलता रहेगा लेकिन यह तख्त नहीं मिलेगा-यह इतना विशाल तख्त है जो चलो, फिरो, खाओ-सोओ लेकिन सदा तख्तनशीन रह सकते हो। जो बच्चे सदा बापदादा के दिलतख्तनशीन रहते हैं वे इस पुरानी देह वा देह की दुनिया से विस्मृत रहते हैं, इसे देखते हुए भी नहीं देखते। स्लोगन:- हद के नाम, मान, शान के पीछे दौड़ लगाना अर्थात् परछाई के पीछे पड़ना। ओम् शांति ।