Thursday, April 2, 2015

मुरली 03 अप्रैल 2015

“मीठे बच्चे - यह तुम्हारा बहुत अमूल्य जन्म है, इसी जन्म में तुम्हें मनुष्य से देवता बनने के लिए पावन बनने का पुरूषार्थ करना है” प्रश्न:- ईश्वरीय सन्तान कहलाने वाले बच्चों की मुख्य धारणा क्या होगी? उत्तर:- वह आपस में बहुत-बहुत क्षीरखण्ड होकर रहेंगे। कभी लूनपानी नहीं होंगे। जो देह-अभिमानी मनुष्य हैं वह उल्टा सुल्टा बोलते, लड़ते झगड़ते हैं। तुम बच्चों में वह आदत नहीं हो सकती। यहाँ तुम्हें दैवीगुण धारण करने हैं, कर्मातीत अवस्था को पाना है। धारणा के लिए मुख्य सार :- 1) अन्दर अपनी जांच करनी है - हम बाप की याद में कितना समय रहते हैं? दैवीगुण कहाँ तक धारण किये हैं? हमारे में कोई अवगुण तो नहीं हैं? हमारा खान-पान, चाल-चलन रॉयल है? फालतू बातें तो नहीं करते? झूठ तो नहीं बोलते हैं? 2) याद का चार्ट बढ़ाने के लिए अभ्यास करना है - हम सब आत्मायें भाई-भाई हैं। देह-अभिमान से दूर रहना है। अपनी एकरस स्थिति जमानी है, इसके लिए टाइम देना है। वरदान:- विजयीपन के नशे द्वारा सदा हर्षित रहने वाले सर्व आकर्षणों से मुक्त भव! विजयी रत्नों का यादगार-बाप के गले का हार आज तक पूजा जाता है। तो सदा यही नशा रहे कि हम बाबा के गले का हार विजयी रत्न हैं, हम विश्व के मालिक के बालक हैं। हमें जो मिला है वह किसी को भी मिल नहीं सकता-यह नशा और खुशी स्थाई रहे तो किसी भी प्रकार की आकर्षण से परे रहेंगे। जो सदा विजयी हैं वो सदा हर्षित हैं। एक बाप की याद के ही आकर्षण में आकर्षित हैं। स्लोगन:- एक के अन्त में खो जाना अर्थात् एकान्तवासी बनना। ओम् शांति ।