Wednesday, April 22, 2015

मुरली 23 अप्रैल 2015

“मीठे बच्चे - यह रूहानी हॉस्पिटल तुम्हें आधाकल्प के लिए एवरहेल्दी बनाने वाली है, यहाँ तुम देही-अभिमानी होकर बैठो |” प्रश्न:- धन्धा आदि करते भी कौन-सा डायरेक्शन बुद्धि में याद रहना चाहिए? उत्तर:- बाप का डायरेक्शन है तुम किसी साकार वा आकार को याद नहीं करो, एक बाप की याद रहे तो विकर्म विनाश हों। इसमें कोई ये नहीं कह सकता कि फुर्सत नहीं। सब कुछ करते भी याद में रह सकते हो। धारणा के लिए मुख्य सार :- 1) रूप-बसन्त बन मुख से सदैव रत्न निकालने हैं, बहुत-बहुत मीठा बनना है। कभी भी पत्थर (कटु वचन) नहीं निकालना है। 2) ज्ञान और योग में तीखा बन अपना और दूसरों का कल्याण करना है। अपनी ऊंच तकदीर बनाने का पुरूषार्थ करना है। अन्धों की लाठी बनना है। वरदान:- निरन्तर याद और सेवा के बैलेन्स से बचपन के नाज़ नखरे समाप्त करने वाले वानप्रस्थी भव! छोटी-छोटी बातों में संगम के अमूल्य समय को गंवाना बचपन के नाज़ नखरे हैं। अब यह नाज़ नखरे शोभते नहीं, वानप्रस्थ में सिर्फ एक ही कार्य रह जाता है - बाप की याद और सेवा। इसके सिवाए और कोई भी याद न आये, उठो तो भी याद और सेवा, सोओ तो भी याद और सेवा-निरन्तर यह बैलेन्स बना रहे। त्रिकालदर्शी बनकर बचपन की बातें वा बचपन के संस्कारों का समाप्ति समारोह मनाओ, तब कहेंगे वानप्रस्थी। स्लोगन:- सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न आत्मा की निशानी है सन्तुष्टता, सन्तुष्ट रहो और सन्तुष्ट करो। ओम् शांति ।