Wednesday, June 24, 2020

24-06-2020 प्रात:मुरली

24-06-20 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "मातेश्वरी'' रिवाइज: 26-04-65 मधुबन

गीत:-
जाने न नज़र, पहचाने जिगर...
"आप आत्मायें जब स्वच्छ बनो तब यह संसार सुखदाई बनें, दु:खों का कारण - 5 विकारों के वशीभूत होकर किये गये कर्म'' (मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य)
गीत:- जाने न नज़र, पहचाने जिगर...
अपने बेहद बाप की महिमा सुनी। कॉमन मनुष्य की ऐसी महिमा नहीं हो सकती है। यह उसी एक की महिमा है जो इस महिमा का अधिकारी है क्योंकि उनकी महिमा उनके कर्तव्य अनुसार गाई जाती है। उनका कर्तव्य सब मनुष्य आत्माओं से महान है क्योंकि सभी मनुष्य आत्माओं के लिये ही उनका कर्तव्य है। तो सबसे ऊंचा हो गया ना क्योंकि सबके लिये सबका गति सद्गति दाता एक। ऐसे नहीं कहेंगे कि थोड़ों की गति सद्गति की। वह है सर्व का गति सद्गति दाता। तो सबकी अथॉरिटी हो गई ना। वैसे भी कॉमन तरह से देखा जाए तो महिमा तब ही होती है जब कोई कर्तव्य करता है। जिन्होंने कुछ-न-कुछ थोड़ा बहुत ऐसा काम किया है तो उनकी देखो महिमा है। तो बाप की भी जो महिमा है कि वह ऊंचे ते ऊंचा है, तो जरूर उसने यहाँ आ करके महान कर्तव्य किया है और वो हमारे लिये, मनुष्य सृष्टि के लिये महान ऊंच कर्तव्य किया क्योंकि इस सृष्टि का हर्ता कर्ता उसे कहा जाता है। तो उसने आ करके मनुष्य सृष्टि को ऊंच बनाया है। प्रकृति सहित सबको परिवर्तन में लाया है। लेकिन किस युक्ति से लाया है? वह बैठ करके समझाते हैं क्योंकि ऐसे नहीं है पहले मनुष्य आत्मा, आत्मा को चेन्ज लाने से फिर आत्मा के बल से, अपने कर्म के बल से फिर यह सब प्रकृति तत्व आदि पर भी उनका बल काम करता है। लेकिन बनाने वाला तो वह हो गया ना, इसलिये बनाने वाला वो परन्तु बनाते कैसे हैं? जब तक मनुष्य आत्मा ऊंची न बनें तब तक आत्मा के आधार से शरीर प्रकृति तत्व आदि यह सभी नम्बरवार उसी ताकत में आते हैं, उससे फिर सारी सृष्टि हरी-भरी सुखदाई बनती है।
तो मनुष्य सृष्टि को सुखदाई बनाने वाला बाप जानता है कि मनुष्य सृष्टि सुखदाई कैसे बनेगी? जब तक आत्मायें स्वच्छ नहीं बनी हैं तब तक संसार सुखदाई नहीं हो सकता है इसलिये वो आ करके पहले-पहले आत्माओं को ही स्वच्छ बनाते हैं। अभी आत्मा को इम्प्युरिटी (अस्वच्छता) लगी है। पहले उस इम्प्युरिटी को निकालना है। फिर आत्मा के बल से हर चीज़ से उनकी तमोप्रधानता बदल करके सतोप्रधानता होगी, जिसको कहेंगे कि सभी गोल्डन एजेड में आ जाते हैं, तो यह तत्व आदि सब गोल्डन एजेड स्टेज में आ जाते हैं। परन्तु पहले आत्मा की स्टेज बदलती है। तो आत्माओं का बदलाने वाला अर्थात् आत्माओं को प्यूरिफाईड बनाने वाला फिर अथॉरिटी वो हो गया। तुम देखते हो ना कि अभी दुनिया बदलती जा रही है। पहले तो अपने को बदलना है, जब हम अपने को बदलेंगे तब उसके आधार से दुनिया बदलेगी। अगर अभी तक हमारे में फर्क नहीं आया है, अपने को ही नहीं बदला है तो फिर दुनिया कैसे बदलेगी इसलिए अपनी जाँच रोज़ करो। जैसे पोतामेल रखने वाले रात को अपना खाता देखते हैं ना कि आज क्या जमा हुआ? सब अपना हिसाब रखते हैं। तो यह भी अपना पोतामेल रखना है कि सारे दिन में हमारा कितना फायदा रहा, कितना नुकसान रहा? अगर नुकसान में कुछ ज्यादा गया तो फिर दूसरे दिन के लिये फिर खबरदार रहना है। इसी तरह से अपना अटेन्शन रखने से फिर हम फायदे में जाते-जाते अपनी जो पोजीशन है उसको पकड़ते चलेंगे। तो ऐसी जाँच रखते अपने को बदला हुआ महसूस करना चाहिए। ऐसे नहीं कि हम तो देवता बनेंगे, वह तो पीछे बनेंगे, अभी जैसे हैं वैसे ठीक हैं...। नहीं। अभी से वह देवताई संस्कार बनाने हैं। अभी तक जो 5 विकारों के वश संस्कार चलते थे, अभी देखना है कि उन विकारों से हम छूटते जा रहे हैं? हमारे में जो क्रोध आदि था वह निकलता जा रहा है? लोभ या मोह आदि जो था वह सब विकारी संस्कार बदलते जा रहे हैं? अगर बदलते जा रहे हैं, छूटते जा रहे हैं तो मानो हम बदलते जा रहे हैं। अगर नहीं छूटते हैं तो समझो कि अभी हम बदले नहीं है। तो बदलने का फर्क महसूस होना चाहिए, अपने में चेन्ज आनी चाहिए। ऐसे नहीं कि सारा दिन विकारी खाते में ही चलते रहें, बाकी समझें कि हमने अच्छा कोई दान-पुण्य किया, बस। नहीं। हमारा जो कर्म का खाता चलता है, उसी में हमको सम्भलना है। हम जो कुछ करते हैं उसमें किसी विकार के वश हो अपना विकर्मी खाता तो नहीं बनाते हैं? इसमें अपने आपको सम्भालना है। यह सारा पोतामेल रखना है और सोने से पहले 10-15 मिनट अपने को देखना चाहिए कि सारा दिन हमारा कैसे बीता? कई तो नोट भी करते हैं क्योंकि पिछले पापों का जो सिर पर बोझ है उसे भी मिटाना है, उसके लिए बाप का फरमान है मुझे याद करो, तो वह भी हमने कितना समय याद में दिया? क्योंकि यह चार्ट रखने से दूसरे दिन के लिये सावधान रहेंगे। ऐसे सावधान रहते-रहते फिर सावधान हो जायेंगे फिर हमारे कर्म अच्छे रहते चलेंगे और फिर ऐसा कोई पाप नहीं होगा। तो पापों से ही तो बचना है ना।
हमको इन विकारों ने ही बुरा बनाया है। विकारों के कारण ही हम दु:खी हुए हैं। अभी हमें दु:ख से छूटना है तो यही मुख्य चीज़ है। भक्ति में भी परमात्मा को हम पुकारते हैं, याद करते हैं जो भी कुछ यत्न (पुरुषार्थ) करते हैं, वह किसलिये करते हैं? सुख और शान्ति के लिये करते हैं ना! तो उसकी यह प्रैक्टिकल प्रैक्टिस अभी कराई जाती है। यह प्रैक्टिकल करने की कॉलेज है, इसकी प्रैक्टिस करने से हम स्वच्छ अथवा पवित्र बनते जायेंगे। फिर हमारा जो आदि सनातन पवित्र प्रवृत्ति का लक्ष्य है वो हम पा लेंगे। जैसे कोई डाक्टर बनने के लिए डाक्टरी कॉलेज में जायेगा, तो डॉक्टरी प्रैक्टिस से डॉक्टर बनता जायेगा। इसी तरह से हम भी इस कॉलेज में इस पढ़ाई से अथवा इस प्रैक्टिस से इन विकारों से अथवा पाप कर्म करने से छूटते स्वच्छ होते जायेंगे। फिर स्वच्छ की डिग्री क्या है? देवता।
यह देवतायें तो गाये हुए हैं ना, उनकी महिमा है सर्वगुण सम्पन्न, सोलह कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी... तो ऐसे कैसे बनेंगे? ऐसे नहीं हम तो बने बनाये हैं, नहीं। बनना है क्योंकि हम ही बिगड़े हैं हमको ही बनना है। ऐसे नहीं देवताओं की कोई दूसरी दुनिया है। हम मनुष्य ही देवता बनने हैं। वह देवता ही गिरे हैं, अब फिर चढ़ना है। लेकिन चढ़ने का ढंग बाप सिखला रहे हैं। अभी उनके साथ हमें अपना रिलेशन जोड़ना है। अभी बाप ने आ करके रोशनी दी है, आखिर तुम मेरे हो अभी मेरे हो करके कैसे रहो। जैसे लौकिक में बाप बच्चों का, बच्चा बाप का कैसे होकर रहता है। ऐसे तुम तन, मन, धन से मेरे हो करके चलो। कैसे चलो! उसका आदर्श (प्रमाण) यह (बाबा) है जिसके तन में आता है, वह अपना तन मन धन सब उनके हवाले कर उनका होकरके चल रहे हैं। ऐसे फॉलो फादर। इसमें और कुछ पूछने की और मूँझने की बात नहीं है। सीधी साफ बात है। तो अभी चलते रहो। ऐसे नहीं सुनो बहुत और धारण करो थोड़ा। नहीं। सुनो थोड़ा धारण करो बहुत। जो सुनते हो उसको प्रैक्टिकल में कैसे लायें उसका पूरा ख्याल रखते रहो। अपनी प्रैक्टिस को आगे बढ़ाते रहो। ऐसे नहीं सुनते रहें, सुनते रहें...। नहीं। आज जो सुना उसको अगर कोई प्रैक्टिकल में लाये, बस हम आज से उसी स्टेज में चलेंगे। विकारों के वश होकर कोई ऐसा काम नहीं करेंगे और अपनी ऐसी दिनचर्या बनायेंगे, अपना ऐसा चार्ट रखेंगे। अगर इसको कोई प्रैक्टिकल प्रैक्टिस में लाये तो तो देखो क्या हो जायेगा। तो अभी जो कहा ना, उसको प्रैक्टिकल में लाना। जो कहते हो, जो सुनते हो वह करो। बस। दूसरी बात नहीं। सिर्फ करनी के ऊपर जोर दो। समझा। जैसे बाप और दादा दोनों को अच्छी तरह से जानते हो ना, ऐसे अब फालो करो। ऐसे फालो करने वाले जो सपूत बच्चे हैं अथवा मीठे-मीठे बच्चे हैं, ऐसे बच्चों प्रति यादप्यार और गुडमार्निंग।
दूसरी मुरली:- 1957
गीत:- मेरा छोटा-सा देखो ये संसार है...।
यह गीत किस समय का गाया हुआ है क्योंकि इस संगम समय ही हम ब्राह्मण कुल का यह छोटा-सा संसार है। यह हमारा कौन-सा परिवार है, वह नम्बरवार बतलाते हैं। हम परमपिता परमात्मा शिव के पोत्रे हैं, ब्रह्मा सरस्वती की मुख संतान हैं और विष्णु शंकर हमारे ताया जी हैं और हम आपस में सभी भाई बहन ठहरे। यह है अपना छोटा-सा संसार... इनके आगे और सम्बन्ध रचा ही नहीं है, इसी समय का इतना ही सम्बन्ध कहेंगे। देखो हमारा सम्बन्ध कितना बड़ी अथॉरिटी से है! हमारा ग्रैण्ड पप्पा है शिव, उनका नाम कितना भारी है, वो सारी मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है। सर्व आत्माओं का कल्याणकारी होने कारण उनको कहा जाता है हर हर भोलानाथ शिव महादेव। वो सारी सृष्टि का दु:ख हर्ता, सुख कर्ता है, उस द्वारा हमें सुख-शान्ति-पवित्रता का बड़ा हक मिलता है, शान्ति में फिर कोई कर्मबन्धन का हिसाब-किताब नहीं रहता। परन्तु यह दोनों वस्तु पवित्रता के आधार पर रखते हैं। जब तक पिता की परवरिश का पूर्ण वर्सा ले, पिता से सर्टीफिकेट नहीं मिला है, तब तक वो वर्सा मिल नहीं सकता। देखो, ब्रह्मा के ऊपर कितना बड़ा काम है - मलेच्छ 5 विकारों में मैली अपवित्र आत्माओं को गुलगुल बनाते हैं, जिस अलौकिक कार्य का उजूरा फिर सतयुग का पहला नम्बर श्रीकृष्ण पद मिलता है। अब देखो उस पिता के साथ तुम्हारा कैसा सम्बन्ध है! तो कितना बेफिकर और खुश होना चाहिए। अब हर एक अपनी दिल से पूछे हम उनके पूर्ण रीति हो चुके हैं?
सोचना चाहिए कि जब परमात्मा बाप आया है तो उनसे हम कम्पलीट वर्सा ले लेवें। स्टूडेन्ट का काम है सम्पूर्ण पुरुषार्थ कर स्कॉलरशिप लेना, तो हम पहला नम्बर लॉटरी क्यों न विन करें! वह है विजय माला में पिरोया जाना। बाकी कोई हैं जो दो लड्डू पकड़कर बैठे हैं, यहाँ का भी हद का सुख लूँ और वहाँ भी वैकुण्ठ में कुछ-न-कुछ सुख ले लेंगे, ऐसे विचारवान को मध्यम और कनिष्ठ पुरुषार्थी कहेंगे, न कि सर्वोत्तम पुरुषार्थी। जब बाप देने में आनाकानी नहीं करता तो लेने वाले क्यों करते हैं? तब गुरुनानक ने कहा परमात्मा तो दाता है, समर्थ है मगर आत्माओं को लेने की भी ताकत नहीं, कहावत है देंदा दे, लेंदा थक पावे। (देने वाला देता है लेकिन लेने वाला थक जाता है) आपके दिल में आता होगा हम क्यों नहीं चाहेंगे कि हम भी यह पद पायें परन्तु देखो, बाबा कितनी मेहनत करता है, फिर भी माया कितना विघ्न डालती है, क्यों? अब माया का राज्य समाप्त होने वाला है। अब माया ने सारा सार निकाल दिया है तब ही परमात्मा आता है। उसमें सब रस समाया हुआ है, उनसे सभी सम्बन्धों की रसना मिलती है तब ही त्वमेव माताश्च पिता... आदि यह महिमा उस परमात्मा की गाई हुई है, तो बलिहारी इस समय की है जो ऐसा सम्बन्ध हुआ है।
तो परमात्मा के साथ इतना सम्पूर्ण सम्बन्ध जोड़ना है जो 21 जन्मों के लिये सुख प्राप्त हो जाये, यह है पुरुषार्थ की सिद्धि। परन्तु 21 जन्म का नाम सुन ठण्डे मत पड़ जाना। ऐसे नहीं सोचना कि 21 जन्मों के लिये इतना इस समय पुरुषार्थ भी करें, फिर भी 21 जन्मों के बाद गिरना ही है तो सिद्धि क्या हुई? परन्तु ड्रामा के अन्दर आत्माओं की जितनी सर्वोत्तम सिद्धि मुकरर है वो तो मिलेगी ना! बाप आकरके हमें सम्पूर्ण स्टेज पर पहुँचा देता है, परन्तु हम बच्चे बाबा को भूल जाते हैं तो जरूर गिरेंगे, इसमें बाप का कोई दोष नहीं है। अब कमी हुई तो हम बच्चों की, सतयुग त्रेता का सारा सुख इस जन्म के पुरुषार्थ पर आधार रखता है तो क्यों न सम्पूर्ण पुरुषार्थ कर अपना सर्वोत्तम पार्ट बजायें! क्यों न पुरुषार्थ कर वह वर्सा लेवें। पुरुषार्थ मनुष्य सदा सुख के लिये ही करता है, सुख दु:ख से न्यारे होने के लिये कोई पुरुषार्थ नहीं करता, वो तो ड्रामा के अन्त में परमात्मा आए सभी आत्माओं को सजा दे, पवित्र बनाए पार्ट से मुक्त करेंगे। यह तो परमात्मा का कार्य है वो अपने मुकरर समय पर आपेही आकर बताता है। अब जब आत्माओं को फिर भी पार्ट में आना ही पड़ेगा तो क्यों न सर्वोत्तम पार्ट बजायें।
अच्छा - मीठे-मीठे बच्चों प्रति माँ का यादप्यार। ओम् शान्ति।
वरदान:-
बाबा शब्द की स्मृति से कारण को निवारण में परिवर्तन करने वाले सदा अचल अडोल भव
कोई भी परिस्थिति जो भल हलचल वाली हो लेकिन बाबा कहा और अचल बनें। जब परिस्थितियों के चिंतन में चले जाते हो तो मुश्किल का अनुभव होता है। अगर कारण के बजाए निवारण में चले जाओ तो कारण ही निवारण बन जाए क्योंकि मास्टर सर्वशक्तिमान् ब्राह्मणों के आगे परिस्थितियां चींटी समान भी नहीं। सिर्फ क्या हुआ, क्यों हुआ यह सोचने के बजाए, जो हुआ उसमें कल्याण भरा हुआ है, सेवा समाई हुई है.. भल रूप सरकमस्टांश का हो लेकिन समाई सेवा है-इस रूप से देखेंगे तो सदा अचल अडोल रहेंगे।
स्लोगन:-
एक बाप के प्रभाव में रहने वाले किसी भी आत्मा के प्रभाव में आ नहीं सकते।