Sunday, March 1, 2020

24-02-2020 प्रात:मुरली

24-02-2020 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - तुम बहुत बड़े जौहरी हो, तुम्हें अविनाशी ज्ञान रत्नों रूपी जवाहरात देकर सबको साहूकार बनाना है”
प्रश्न:
अपने जीवन को हीरे जैसा बनाने के लिए किस बात की बहुत-बहुत सम्भाल चाहिए?
उत्तर:
संग की। बच्चों को संग उनका करना चाहिए जो अच्छा बरसते हैं। जो बरसते नहीं, उनका संग रखने से फायदा ही क्या! संग का दोष बहुत लगता है, कोई किसके संग से हीरे जैसा बन जाते हैं, कोई फिर किसके संग से ठिक्कर बन जाते हैं। जो ज्ञानवान होंगे वह आपसमान जरूर बनायेंगे। संग से अपनी सम्भाल रखेंगे।
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों को सारी सृष्टि, सारा ड्रामा अच्छी रीति बुद्धि में याद है। कान्ट्रास्ट भी बुद्धि में है। यह सारा बुद्धि में पक्का रहना चाहिए कि सतयुग में सब श्रेष्ठाचारी, निर्विकारी, पावन, सालवेन्ट थे। अभी तो दुनिया भ्रष्टाचारी, विकारी, पतित इनसालवेन्ट है। अभी तुम बच्चे संगमयुग पर हो। तुम उस पार जा रहे हो। जैसे नदी और सागर का जहाँ मेल होता है, उनको संगम कहते हैं। एक तरफ मीठा पानी, एक तरफ खारा पानी होता है। अब यह भी है संगम। तुम जानते हो बरोबर सतयुग में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था फिर ऐसे चक्र फिरा। अभी है संगम। कलियुग के अन्त में सब दु:खी हैं, इसको जंगल कहा जाता है। सतयुग को बगीचा कहा जाता। अभी तुम कांटों से फूल बन रहे हो। यह स्मृति तुम बच्चों को होनी चाहिए। हम बेहद के बाप से वर्सा ले रहे हैं। यह बुद्धि में याद रखना है। 84 जन्मों की कहानी तो बिल्कुल कॉमन है। समझते हो - अब 84 जन्म पूरे हुए। तुम्हारी बुद्धि में तरावट है कि हम अभी सतयुगी बगीचे में जा रहे हैं। अब हमारा जन्म इस मृत्युलोक में नहीं होगा। हमारा जन्म होगा अमरलोक में। शिवबाबा को अमरनाथ भी कहते हैं। वह हमको अमर कहानी सुना रहे हैं, वहाँ हम शरीर में होते भी अमर रहेंगे। अपनी खुशी से टाइम पर शरीर छोड़ेंगे, उसको मृत्युलोक नहीं कहा जाता। तुम किसको भी समझायेंगे तो समझेंगे-बरोबर इनमें तो पूरा ज्ञान है। सृष्टि का आदि और अन्त तो है ना। छोटा बच्चा भी जवान और वृद्ध होता है फिर अन्त आ जाता है, फिर बच्चा बनता है। सृष्टि भी नई बनती फिर क्वार्टर पुरानी, आधी पुरानी फिर सारी पुरानी होती है। फिर नई होगी। यह सब बातें और कोई एक-दो को सुना नहीं सकते। ऐसी चर्चा कोई कर नहीं सकते। सिवाए तुम ब्राह्मणों के और कोई को रूहानी नॉलेज मिल न सके। ब्राह्मण वर्ण में आयें तब सुनें। सिर्फ ब्राह्मण ही जानें। ब्राह्मणों में भी नम्बरवार हैं। कोई यथार्थ रीति सुना सकते हैं, कोई नहीं सुना सकते हैं तो उन्हों को कुछ मिलता नहीं है। जौहरियों में भी देखेंगे कोई के पास तो करोड़ों का माल रहता है, कोई के पास तो 10 हज़ार का भी माल नहीं होगा। तुम्हारे में भी ऐसे हैं। जैसे देखो यह जनक है, यह अच्छा जौहरी है। इनके पास वैल्युबुल जवाहरात हैं। किसको देकर अच्छा साहूकार बना सकती है। कोई छोटा जौहरी है, जास्ती दे नहीं सकते तो उनका पद भी कम हो जाता है। तुम सब जौहरी हो, यह अविनाशी ज्ञान रत्नों के जवाहरात हैं। जिसके पास अच्छे रत्न होंगे वह साहूकार बनेंगे, औरों को भी बनायेंगे। ऐसे तो नहीं, सब अच्छे जौहरी होंगे। अच्छे-अच्छे जौहरी बड़े-बड़े सेन्टर्स पर भेज देते हैं। बड़े आदमियों को अच्छी जवाहरात दी जाती है। बड़े-बड़े दुकानों पर एक्सपर्ट रहते हैं। बाबा को भी कहा जाता है-सौदागर-रत्नागर। रत्नों का सौदा करते हैं फिर जादूगर भी है क्योंकि उनके पास ही दिव्य दृष्टि की चाबी है। कोई नौधा भक्ति करते हैं तो उनको साक्षात्कार हो जाता है। यहाँ वह बात नहीं है। यहाँ तो अनायास घर बैठे भी बहुतों को साक्षात्कार होता है। दिन-प्रतिदिन सहज होता जायेगा। कइयों को ब्रह्मा का और कृष्ण का भी साक्षात्कार होता है। उनको कहते हैं ब्रह्मा के पास जाओ। जाकर उनके पास प्रिन्स बनने की पढ़ाई पढ़ो। यह पवित्र प्रिन्स-प्रिन्सेज चले आते हैं ना। प्रिन्स को पवित्र भी कह सकते हैं। पवित्रता से जन्म होता है ना। पतित को भ्रष्टाचारी कहेंगे। पतित से पावन बनना है, यह बुद्धि में रहना चाहिए। जो किसको समझा भी सको। मनुष्य समझते हैं, यह तो बड़े सेन्सीबुल हैं। बोलो-हमारे पास कोई शास्त्रों आदि की नॉलेज नहीं है। यह है रूहानी नॉलेज, जो रूहानी बाप समझाते हैं। यह है त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु, शंकर। यह भी रचना हैं। रचयिता एक बाप है, वह होते हैं हद के क्रियेटर, यह है बेहद का बाप, बेहद का क्रियेटर। बाप बैठकर पढ़ाते हैं, मेहनत करनी होती है। बाप गुल-गुल (फूल) बनाते हैं। तुम हो ईश्वरीय कुल के, तुमको बाप पवित्र बनाते हैं। फिर अगर अपवित्र बनते हैं तो कुल कलंकित बनते हैं। बाप तो जानते हैं ना। फिर धर्मराज द्वारा बहुत सजा दिलायेंगे। बाप के साथ धर्मराज भी है। धर्मराज की ड्युटी भी अभी पूरी होती है। सतयुग में तो होगी ही नहीं। फिर शुरू होती है द्वापर से। बाप बैठ कर्म, अकर्म, विकर्म की गति समझाते हैं। कहते हैं ना-इसने आगे जन्म में ऐसे कर्म किये हैं, जिसकी यह भोगना है। सतयुग में ऐसे नहीं कहेंगे। बुरे कर्मों का वहाँ नाम नहीं होता। यहाँ तो बुरे-अच्छे दोनों हैं। सुख-दु:ख दोनों हैं। परन्तु सुख बहुत थोड़ा है। वहाँ फिर दु:ख का नाम नहीं। सतयुग में दु:ख कहाँ से आया! तुम बाप से नई दुनिया का वर्सा लेते हो। बाप है ही दु:ख हर्ता सुख कर्ता। दु:ख कब से शुरू होता है, यह भी तुम जानते हो। शास्त्रों में तो कल्प की आयु ही लम्बी-चौड़ी लिख दी है। अभी तुम जानते हो आधाकल्प के लिए हमारे दु:ख हर जायेंगे और हम सुख पायेंगे। यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है, इस पर समझाना बड़ा सहज है। यह सब बातें तुम्हारे सिवाए और कोई की बुद्धि में हो न सकें। लाखों वर्ष कह देने से सब बातें बुद्धि से निकल जाती हैं।
अभी तुम जानते हो -यह चक्र 5 हज़ार वर्ष का है। कल की बात है जबकि इन सूर्यवंशी-चन्द्रवंशियों का राज्य था। कहते भी हैं ब्राह्मणों का दिन, ऐसे नहीं शिवबाबा का दिन कहेंगे। ब्राह्मणों का दिन फिर ब्राह्मणों की रात। ब्राह्मण फिर भक्ति मार्ग में भी चले आते हैं। अभी है संगम। न दिन है, न रात है। तुम जानते हो हम ब्राह्मण फिर देवता बनेंगे फिर त्रेता में क्षत्रिय बनेंगे। यह तो बुद्धि में पक्का याद कर लो। इन बातों को और कोई नहीं जानते हैं। वह तो कहेंगे शास्त्रों में इतनी आयु लिखी है, तुमने फिर यह हिसाब कहाँ से लाया है? यह अनादि ड्रामा बना-बनाया है, यह कोई नहीं जानते। तुम बच्चों की बुद्धि में है, आधाकल्प है सतयुग-त्रेता फिर आधा से भक्ति शुरू होती है। वह हो जाता है त्रेता और द्वापर का संगम। द्वापर में भी यह शास्त्र आदि आहिस्ते-आहिस्ते बनते हैं। भक्ति मार्ग की सामग्री बड़ी लम्बी-चौड़ी है। जैसे झाड़ कितना लम्बा-चौड़ा है। इसका बीज है बाबा। यह उल्टा झाड़ है। पहले-पहले आदि सनातन देवी-देवता धर्म है। यह बातें जो बाप सुनाते हैं, यह हैं बिल्कुल नई। इस देवी-देवता धर्म के स्थापक को कोई नहीं जानते। कृष्ण तो बच्चा है। ज्ञान सुनाने वाला है बाप। तो बाप को उड़ाए बच्चे का नाम डाल दिया है। कृष्ण के ही चरित्र आदि बैठ दिखाये हैं। बाप कहते हैं लीला कोई कृष्ण की नहीं है। गाते भी हैं-हे प्रभू तेरी लीला अपरम-अपार है। लीला एक की ही होती है। शिवबाबा की महिमा बड़ी न्यारी है। वह तो है सदा पावन रहने वाला, परन्तु वह पावन शरीर में तो आ न सके। उनको बुलाते ही हैं-पतित दुनिया को आकर पावन बनाओ। तो बाप कहते हैं मुझे भी पतित दुनिया में आना पड़ता है। इनके बहुत जन्मों के अन्त में आकर प्रवेश करता हूँ। तो बाप कहते हैं मुख्य बात अल्फ को याद करो, बाकी यह सारी है रेज़गारी। वह सब तो धारण कर न सके। जो धारण कर सकते हैं, उन्हों को समझाता हूँ। बाकी तो कह देता हूँ मन्मनाभव। नम्बरवार बुद्धि तो होती है ना। बादल कोई तो खूब बरसते हैं, कोई थोड़ा बरसकर चले जाते हैं। तुम भी बादल हो ना। कोई तो बिल्कुल बरसते ही नहीं हैं। ज्ञान को खींचने की ताकत नहीं है। मम्मा-बाबा अच्छे बादल हैं ना। बच्चों को संग उनका करना चाहिए जो अच्छा बरसते हैं। जो बरसते ही नहीं उनसे संग रखने से क्या होगा? संग का दोष भी बहुत लगता है। कोई तो किसके संग से हीरे जैसा बन जाते हैं, कोई फिर किसके संग से ठिक्कर बन जाते हैं। पीठ पकड़नी चाहिए अच्छे की। जो ज्ञानवान होगा वह आपसमान फूल बनायेगा। सत् बाप से जो ज्ञानवान और योगी बने हैं उनका संग करना चाहिए। ऐसे नहीं समझना है कि हम फलाने का पूँछ पकड़कर पार हो जायेंगे। ऐसे बहुत कहते हैं। परन्तु यहाँ तो वह बात नहीं है। स्टूडेन्ट किसकी पूँछ पकड़ने से पास हो जायेंगे क्या! पढ़ना पड़े ना। बाप भी आकर नॉलेज देते हैं। इस समय वह जानते हैं हमको ज्ञान देना है। भक्ति मार्ग में उनकी बुद्धि में यह बातें नहीं रहती कि हमको जाकर ज्ञान देना है। यह सब ड्रामा में नूँध है। बाबा कुछ करते नहीं हैं। ड्रामा में दिव्य दृष्टि मिलने का पार्ट है तो साक्षात्कार हो जाता है। बाप कहते हैं ऐसे नहीं कि मैं बैठ साक्षात्कार कराता हूँ। यह ड्रामा में नूँध है। अगर कोई देवी का साक्षात्कार करना चाहते हैं, देवी तो नहीं करायेगी ना। कहते हैं-हे भगवान, हमको साक्षात्कार कराओ। बाप कहते हैं ड्रामा में नूँध होगी तो हो जायेगा। मैं भी ड्रामा में बांधा हुआ हूँ।
बाबा कहते हैं मैं इस सृष्टि में आया हुआ हूँ। इनके मुख से मैं बोल रहा हूँ, इनकी आंखों से तुमको देख रहा हूँ। अगर यह शरीर न हो तो देख कैसे सकूँगा? पतित दुनिया में ही मुझे आना पड़ता है। स्वर्ग में तो मुझे बुलाते ही नहीं हैं। मुझे बुलाते ही संगम पर हैं। जब संगमयुग पर आकर शरीर लेता हूँ तब ही देखता हूँ। निराकार रूप में तो कुछ देख नहीं सकता हूँ। आरगन्स बिगर आत्मा कुछ भी कर न सके। बाबा कहते हैं मैं देख कैसे सकता, चुरपुर कैसे कर सकता, बिगर शरीर के। यह तो अन्धश्रद्धा है, जो कहते हैं ईश्वर सब कुछ देखता है, सब कुछ वह करते हैं। देखेगा फिर कैसे? जब आरगन्स मिलें तब देखे ना। बाप कहते हैं-अच्छा वा बुरा काम ड्रामानुसार हर एक करते हैं। नूँध है। मैं थोड़ेही इतने करोड़ों मनुष्यों का बैठ हिसाब रखूँगा, मुझे शरीर है तब सब कुछ करता हूँ। करनकरावनहार भी तब कहते हैं। नहीं तो कह न सकें। मैं जब इसमें आऊं तब आकर पावन बनाऊं। ऊपर में आत्मा क्या करेगी? शरीर से ही पार्ट बजायेगी ना। मैं भी यहाँ आकर पार्ट बजाता हूँ। सतयुग में मेरा पार्ट है नहीं। पार्ट बिगर कोई कुछ कर न सके। शरीर बिगर आत्मा कुछ कर नहीं सकती। आत्मा को बुलाया जाता है, वह भी शरीर में आकर बोलेगी ना। आरगन्स बिगर कुछ कर न सके। यह है डीटेल की समझानी। मुख्य बात तो कहा जाता है बाप और वर्से को याद करो। बेहद का बाप इतना बड़ा है, उनसे वर्सा कब मिलता होगा-यह कोई जानते नहीं। कहते हैं आकर दु:ख हरो, सुख दो, परन्तु कब? यह किसको पता नहीं है। तुम बच्चे अभी नई बातें सुन रहे हो। तुम जानते हो हम अमर बन रहे हैं, अमरलोक में जा रहे हैं। तुम अमरलोक में कितना बार गये हो? अनेक बार। इसका कभी अन्त नहीं होता। बहुत कहते हैं क्या मोक्ष नहीं मिल सकता? बोलो-नहीं, यह अनादि अविनाशी ड्रामा है, यह कभी विनाश नहीं हो सकता है। यह तो अनादि चक्र फिरता ही रहता है। तुम बच्चे इस समय सच्चे साहेब को जानते हो। तुम सन्यासी हो ना। वह फ़कीर नहीं। सन्यासियों को भी फ़कीर कहा जाता है। तुम राजऋषि हो, ऋषि को सन्यासी कहा जाता है। अभी फिर तुम अमीर बनते हो। भारत कितना अमीर था, अभी कैसा फ़कीर बन गया है। बेहद का बाप आकर बेहद का वर्सा देते हैं। गीत भी है-बाबा आप जो देते हो सो कोई दे न सके। आप हमको विश्व का मालिक बनाते हो, जिसको कोई लूट न सके। ऐसे-ऐसे गीत बनाने वाले अर्थ नहीं सोचते। तुम जानते हो वहाँ पार्टीशन आदि कुछ नहीं होगी। यहाँ तो कितनी पार्टीशन हैं। वहाँ आकाश-धरती सारी तुम्हारी रहती है। तो इतनी खुशी बच्चों को रहनी चाहिए ना। हमेशा समझो शिवबाबा सुनाते हैं क्योंकि वह कभी हॉली डे नहीं लेते, कभी बीमार नहीं होते। याद शिवबाबा की ही रहनी चाहिए। इनको कहा जाता है निरहंकारी। मैं यह करता हूँ, मैं यह करता हूँ, यह अहंकार नहीं आना चाहिए। सर्विस करना तो फ़र्ज है, इसमें अहंकार नहीं आना चाहिए। अहंकार आया और गिरा। सर्विस करते रहो, यह है रूहानी सेवा। बाकी सब है जिस्मानी। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप जो पढ़ाते हैं, उसका रिटर्न गुल-गुल (फूल) बनकर दिखाना है। मेहनत करनी है। कभी भी ईश्वरीय कुल का नाम बदनाम नहीं करना है, जो ज्ञानवान और योगी हैं, उनका ही संग करना है।
2) मैं-पन का त्याग कर निरहंकारी बन रूहानी सेवा करनी है, इसे अपना फ़र्ज समझना है। अहंकार में नहीं आना है।
वरदान:
अपने फरिश्ते स्वरूप द्वारा सर्व को वर्से का अधिकार दिलाने वाले आकर्षण-मूर्त भव
फरिश्ते स्वरूप की ऐसी चमकीली ड्रेस धारण करो जो दूर-दूर तक आत्माओं को अपनी तरफ आकर्षित करे और सर्व को भिखारीपन से छुड़ाए वर्से का अधिकारी बना दे। इसके लिए ज्ञान मूर्त, याद मूर्त और सर्व दिव्य गुण मूर्त बन उड़ती कला में स्थित रहने का अभ्यास बढ़ाते चलो। आपकी उड़ती कला ही सर्व को चलते-फिरते फरिश्ता सो देवता स्वरूप का साक्षात्कार करायेगी। यही विधाता, वरदाता पन की स्टेज है।
स्लोगन:
औरों के मन के भावों को जानने के लिए सदा मनमनाभव की स्थिति में स्थित रहो।