Tuesday, January 7, 2020

07-01-2020 प्रात:मुरली

07-01-2020 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - ज्ञान की धारणा के साथ-साथ सतयुगी राजाई के लिए याद और पवित्रता का बल भी जमा करो"
प्रश्न:
अभी तुम बच्चों के पुरूषार्थ का क्या लक्ष्य होना चाहिए?
उत्तर:
सदा खुशी में रहना, बहुत-बहुत मीठा बनना, सबको प्रेम से चलाना.... यही तुम्हारे पुरूषार्थ का लक्ष्य हो। इसी से तुम सर्वगुण सम्पन्न 16 कला सम्पूर्ण बनेंगे।
प्रश्न:
जिनके कर्म श्रेष्ठ हैं, उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:
उनके द्वारा किसी को भी दु:ख नहीं पहुँचेगा। जैसे बाप दु:ख हर्ता सुख कर्ता है, ऐसे श्रेष्ठ कर्म करने वाले भी दु:ख हर्ता सुख कर्ता होंगे।
गीत:-
छोड़ भी दे आकाश सिंहासन........
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत सुना। यह मीठे-मीठे रूहानी बच्चे किसने कहा? दोनों बाप ने कहा। निराकार ने भी कहा तो साकार ने भी कहा इसलिए इनको कहा जाता है बाप व दादा। दादा है साकारी। अभी यह गीत तो भक्तिमार्ग के हैं। बच्चे जानते हैं बाप आया हुआ है और बाप ने सारे सृष्टि चक्र का ज्ञान बुद्धि में बिठाया। तुम बच्चों की भी बुद्धि में है-कि हमने 84 जन्म पूरे किये, अब नाटक पूरा होता है। अब हमको पावन बनना है, योग वा याद से। याद और नॉलेज यह तो हर बात में चलता है। बैरिस्टर को जरूर याद करेंगे और उनसे नॉलेज लेंगे। इसको भी योग और नॉलेज का बल कहा जाता है। यहाँ तो यह है नई बात। उस योग और ज्ञान से बल मिलता है हद का। यहाँ इस योग और ज्ञान से बल मिलता है बेहद का क्योंकि सर्वशक्तिमान् अथॉरिटी है। बाप कहते हैं मैं ज्ञान का सागर भी हूँ। तुम बच्चे अब सृष्टि चक्र को जान गये हो। मूल-वतन, सूक्ष्मवतन... सब याद है। जो नॉलेज बाप में है, वह भी मिली है। तो नॉलेज को भी धारण करना है और राजाई के लिए बाप बच्चों को योग और पवित्रता भी सिखलाते हैं। तुम पवित्र भी बनते हो। बाप से राजाई भी लेते हो। बाप अपने से भी ज्यादा मर्तबा देते हैं। तुम 84 जन्म लेते-लेते मर्तबा गँवा देते हो। यह नॉलेज तुम बच्चों को अभी मिली है। ऊंच ते ऊंच बनने की नॉलेज ऊंच ते ऊंच बाप द्वारा मिलती है। बच्चे जानते हैं अभी हम जैसेकि बापदादा के घर में बैठे हैं। यह दादा (ब्रह्मा), माँ भी है। वह बाप तो अलग है, बाकी यह माँ भी है। परन्तु यह मेल का चोला होने कारण फिर माता मुकरर की जाती है, इनको भी एडाप्ट किया जाता है। उनसे फिर रचना हुई है। रचना भी है एडाप्टेड। बाप बच्चों को एडाप्ट करते हैं, वर्सा देने के लिए। ब्रह्मा को भी एडाप्ट किया है। प्रवेश करना वा एडाप्ट करना बात एक ही है। बच्चे समझते हैं और समझाते भी हैं - नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार सबको यही समझाना है कि हम अपने परमपिता परमात्मा की श्रीमत पर इस भारत को फिर से श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनाते हैं, तो खुद को भी बनना पड़े। अपने को देखना है कि हम श्रेष्ठ बने हैं? कोई भ्रष्टाचार का काम कर किसको दु:ख तो नहीं देते हैं? बाप कहते हैं मैं तो आया हूँ बच्चों को सुखी बनाने तो तुमको भी सबको सुख देना है। बाप कभी किसको दु:ख नहीं दे सकता। उनका नाम ही है दु:ख हर्ता सुख कर्ता। बच्चों को अपनी जांच करनी है-मन्सा, वाचा, कर्मणा हम किसको दु:ख तो नहीं देते हैं? शिवबाबा कभी किसको दु:ख नहीं देते। बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प तुम बच्चों को यह बेहद की कहानी सुनाता हूँ। अब तुम्हारी बुद्धि में है कि हम अपने घर जायेंगे फिर नई दुनिया में आयेंगे। अब की पढ़ाई अनुसार अन्त में तुम ट्रांसफर हो जायेंगे। वापिस घर जाकर फिर नम्बरवार पार्ट बजाने आयेंगे। यह राजधानी स्थापन हो रही है।
बच्चे जानते हैं अभी जो पुरूषार्थ करेंगे वही पुरूषार्थ तुम्हारा कल्प-कल्प का सिद्ध होगा। पहले-पहले तो सभी को बुद्धि में बिठाना चाहिए कि रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज को बाप के सिवाए कोई नहीं जानते हैं। ऊंच ते ऊंच बाप का नाम ही गुम कर दिया है। त्रिमूर्ति नाम तो है, त्रिमूर्ति रास्ता भी है, त्रिमूर्ति हाउस भी है। त्रिमूर्ति कहा जाता है ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को। इन तीनों का रचयिता जो शिवबाबा है उस मूल का नाम ही गुम कर दिया है। अभी तुम बच्चे जानते हो ऊंच ते ऊंच है शिवबाबा, फिर है त्रिमूर्ति। बाप से हम बच्चे यह वर्सा लेते हैं। बाप की नॉलेज और वर्सा यह दोनों स्मृति में रहें तो सदैव हर्षित रहेंगे। बाप की याद में रह फिर तुम किसको भी ज्ञान का तीर लगायेंगे तो अच्छा असर होगा। उसमें शक्ति आती जायेगी। याद की यात्रा से ही शक्ति मिलती है। अभी शक्ति गुम हो गई है क्योंकि आत्मा पतित तमोप्रधान हो गई है। अब मूल फिकरात यह रखनी है कि हम तमोप्रधान से सतोप्रधान बनें। मन्मनाभव का अर्थ भी यह है। गीता जो पढ़ते हैं उनसे पूछना चाहिए - मन्मनाभव का अर्थ क्या है? यह किसने कहा मुझे याद करो तो वर्सा मिलेगा? नई दुनिया स्थापन करने वाला कोई कृष्ण तो नहीं है। वह प्रिन्स है। यह तो गाया हुआ है ब्रह्मा द्वारा स्थापना। अब करनकरावनहार कौन? भूल गये हैं। उनके लिए सर्वव्यापी कह देते हैं। कहते हैं ब्रह्मा, विष्णु, शंकर आदि सबमें वही है। अब इसको कहा जाता है अज्ञान। बाप कहते हैं तुमको 5 विकारों रूपी रावण ने कितना बेसमझ बनाया है। तुम जानते हो बरोबर हम भी पहले ऐसे थे। हाँ, पहले उत्तम से उत्तम भी हम ही थे फिर नीचे गिरते महान् पतित बनें। शास्त्रों में दिखाया है राम भगवान ने बन्दर सेना ली, यह भी ठीक है। तुम जानते हो हम बरोबर बन्दर मिसल थे। अभी महसूसता आती है यह है ही भ्रष्टाचारी दुनिया। एक-दो को गाली देते कांटा लगाते रहते हैं। यह है कांटों का जंगल। वह है फूलों का बगीचा। जंगल बहुत बड़ा होता है। गार्डन बहुत छोटा होता है। गार्डन बड़ा नहीं होता है। बच्चे समझते हैं बरोबर इस समय यह बड़ा भारी कांटों का जंगल है। सतयुग में फूलों का बगीचा कितना छोटा होगा। यह बातें तुम बच्चों में भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार समझते हैं। जिनमें ज्ञान और योग नहीं है, सर्विस में तत्पर नहीं हैं तो फिर अन्दर में इतनी खुशी भी नहीं रहती। दान करने से मनुष्य को खुशी होती है। समझते हैं इसने आगे जन्म में दान-पुण्य किया है तब अच्छा जन्म मिला है। कोई भक्त होते हैं, समझेंगे हम भक्त अच्छे भक्त के घर में जाकर जन्म लेंगे। अच्छे कर्मों का फल भी अच्छा मिलता है। बाप बैठ कर्म-अकर्म-विकर्म की गति बच्चों को समझाते हैं। दुनिया इन बातों को नहीं जानती। तुम जानते हो अभी रावण राज्य होने कारण मनुष्यों के कर्म सब विकर्म बन जाते हैं। पतित तो बनना ही है। 5 विकारों की सबमें प्रवेशता है। भल दान-पुण्य आदि करते हैं, अल्पकाल के लिए उसका फल मिल जाता है। फिर भी पाप तो करते ही हैं। रावण राज्य में जो भी लेन-देन होती है वह है ही पाप की। देवताओं के आगे कितना स्वच्छता से भोग लगाते हैं। स्वच्छ बनकर आते हैं परन्तु जानते कुछ भी नहीं। बेहद के बाप की भी कितनी ग्लानि कर दी है। वह समझते हैं कि यह हम महिमा करते हैं कि ईश्वर सर्वव्यापी है, सर्वशक्तिमान है, परन्तु बाप कहते हैं यह इन्हों की उल्टी मत है।
तुम पहले-पहले बाप की महिमा सुनाते हो कि ऊंच ते ऊंच भगवान एक है, हम उनको ही याद करते हैं। राजयोग की एम ऑब्जेक्ट भी सामने खड़ी है। यह राजयोग बाप ही सिखलाते हैं। कृष्ण को बाप नहीं कहेंगे, वह तो बच्चा है, शिव को बाबा कहेंगे। उनको अपनी देह नहीं। यह मैं लोन पर लेता हूँ इसलिए इनको बापदादा कहते हैं। वह है ऊंच ते ऊंच निराकार बाप। रचना को रचना से वर्सा मिल न सके। लौकिक सम्बन्ध में बच्चे को बाप से वर्सा मिलता है। बच्ची को तो मिल न सके।
अब बाप ने समझाया है तुम आत्मायें हमारे बच्चे हो। प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे-बच्चियाँ हो। ब्रह्मा से वर्सा नहीं मिलना है। बाप का बनने से ही वर्सा मिल सकता है। यह बाप तुम बच्चों को सम्मुख बैठ समझाते हैं। इनके कोई शास्त्र तो बन नहीं सकते। भल तुम लिखते हो, लिटरेचर छपाते हो फिर भी टीचर के सिवाए तो कोई समझा न सके। बिना टीचर किताब से कोई समझ न सके। अब तुम हो रूहानी टीचर्स। बाप है बीजरूप, उनके पास सारे झाड़ के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज है। टीचर के रूप में बैठ तुमको समझाते हैं। तुम बच्चों को तो सदैव खुशी रहनी चाहिए कि हमको सुप्रीम बाप ने अपना बच्चा बनाया है, वही हमको टीचर बनकर पढ़ाते हैं। सच्चा सतगुरू भी है, साथ में ले जाते हैं। सर्व का सद्गति दाता एक है। ऊंच ते ऊंच बाप ही है जो भारत को हर 5 हज़ार वर्ष बाद वर्सा देते हैं। उनकी शिव जयन्ती मनाते हैं। वास्तव में शिव के साथ त्रिमूर्ति भी होना चाहिए। तुम त्रिमूर्ति शिव जयन्ती मनाते हो। सिर्फ शिवजयन्ती मनाने से कोई बात सिद्ध नहीं होगी। बाप आते हैं और ब्रह्मा का जन्म होता है। बच्चे बने, ब्राह्मण बने और एम ऑब्जेक्ट सामने खड़ी है। बाप खुद आकर स्थापना करते हैं। एम आब्जेक्ट भी बिल्कुल क्लीयर है सिर्फ कृष्ण का नाम डालने से सारी गीता का महत्व चला गया है। यह भी ड्रामा में नूँध है। यह भूल फिर भी होने वाली ही है। खेल ही सारा ज्ञान और भक्ति का है। बाप कहते हैं लाडले बच्चे, सुखधाम, शान्तिधाम को याद करो। अलफ और बे, कितना सहज है। तुम किसी से भी पूछो मन्मनाभव का अर्थ क्या है? देखो क्या कहते हैं? बोलो भगवान किसको कहा जाए? ऊंच ते ऊंच भगवान है ना। उनको सर्वव्यापी थोड़ेही कहेंगे। वह तो सबका बाप है। अभी त्रिमूर्ति शिवजयन्ती आती है। तुमको त्रिमूर्ति शिव का चित्र निकालना चाहिए। ऊंच ते ऊंच है शिव, फिर सूक्ष्म वतनवासी ब्रह्मा, विष्णु, शंकर। ऊंच ते ऊंच है शिवबाबा। वह भारत को स्वर्ग बनाते हैं। उनकी जयन्ती तुम क्यों नहीं मनाते हो? जरूर भारत को वर्सा दिया था। उनका राज्य था। इसमें तो तुमको आर्य समाजी भी मदद देंगे क्योंकि वह भी शिव को मानते हैं। तुम अपना झण्डा चढ़ाओ। एक तरफ त्रिमूर्ति गोला, दूसरे तरफ झाड़। तुम्हारा झण्डा वास्तव में यह होना चाहिए। बन तो सकता है ना। झण्डा चढ़ा दो जो सब देखें। सारी समझानी इसमें है। कल्प वृक्ष और ड्रामा इनमें तो बिल्कुल क्लीयर है। सबको मालूम पड़ जायेगा कि हमारा धर्म फिर कब होगा। आपेही अपना-अपना हिसाब निकालेंगे। सबको इस चक्र और झाड़ पर समझाना है। क्राइस्ट कब आया? इतना समय वह आत्मायें कहाँ रहती हैं? जरूर कहेंगे निराकारी दुनिया में हैं। हम आत्मायें रूप बदलकर यहाँ आकर साकार बनते हैं। बाप को भी कहते हैं ना-आप भी रूप बदल साकार में आओ। आयेंगे तो यहाँ ना। सूक्ष्मवतन में तो नहीं आयेंगे। जैसे हम रूप बदलकर पार्ट बजाते हैं, आप भी आओ फिर से आकर राजयोग सिखलाओ। राजयोग है ही भारत को स्वर्ग बनाने का। यह तो बड़ी सहज बातें हैं। बच्चों को शौक चाहिए। धारणा कर औरों को करानी चाहिए। उसके लिए लिखापढ़ी करनी चाहिए। बाप भारत को आकर हेविन बनाते हैं। कहते भी हैं बरोबर क्राइस्ट से 3 हज़ार वर्ष पहले भारत पैराडाइज़ था इसलिए त्रिमूर्ति शिव का चित्र सबको भेज देना चाहिए। त्रिमूर्ति शिव की स्टैम्प बनानी चाहिए। इन स्टैम्प बनाने वालों की भी डिपार्टमेंट होगी। देहली में तो बहुत पढ़े लिखे हैं। यह काम कर सकते हैं। तुम्हारी कैपीटल भी देहली होनी है। पहले देहली को परिस्तान कहते थे। अब तो कब्रिस्तान है। तो यह सब बातें बच्चों की बुद्धि में आनी चाहिए।
अभी तुम्हें सदा खुशी में रहना है, बहुत-बहुत मीठा बनना है। सबको प्रेम से चलाना है। सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण बनने का पुरूषार्थ करना है। तुम्हारे पुरुषार्थ का यही लक्ष्य है परन्तु अभी तक कोई बना नहीं है। अभी तुम्हारी चढ़ती कला होती जाती है। धीरे-धीरे चढ़ते हो ना। तो बाबा हर प्रकार से शिव जयन्ती पर सेवा करने का इशारा देते रहते हैं। जिससे मनुष्य समझेंगे कि बरोबर इन्हों की नॉलेज तो बड़ी है। मनुष्यों को समझाने में कितनी मेहनत लगती है। मेहनत बिगर राजधानी थोड़ेही स्थापन होगी। चढ़ते हैं, गिरते हैं फिर चढ़ते हैं। बच्चों को भी कोई न कोई तूफान आता है। मूल बात है ही याद की। याद से ही सतोप्रधान बनना है। नॉलेज तो सहज है। बच्चों को बहुत मीठे ते मीठा बनना है। एम आब्जेक्ट तो सामने खड़ी है। यह (लक्ष्मी-नारायण) कितने मीठे हैं। इन्हों को देख कितनी खुशी होती है। हम स्टूडेन्ट की यह एम ऑब्जेक्ट है। पढ़ाने वाला है भगवान। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे, रूहानी बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप द्वारा मिली हुई नॉलेज और वर्से को स्मृति में रख सदैव हर्षित रहना है। ज्ञान और योग है तो सर्विस में तत्पर रहना है।
2) सुखधाम और शान्तिधाम को याद करना है। इन देवताओं जैसा मीठा बनना है। अपार खुशी में रहना है। रूहानी टीचर बन ज्ञान का दान करना है।
वरदान:
अन्तर्मुखता के अभ्यास द्वारा अलौकिक भाषा को समझने वाले सदा सफलता सम्पन्न भव
जितना-जितना आप बच्चे अन्तर्मुखी स्वीट साइलेन्स स्वरूप में स्थित होते जायेंगे उतना नयनों की भाषा, भावना की भाषा और संकल्प की भाषा को सहज समझते जायेंगे। यह तीन प्रकार की भाषा रूहानी योगी जीवन की भाषा है। यह अलौकिक भाषायें बहुत शक्तिशाली हैं। समय प्रमाण इन तीनों भाषाओं द्वारा ही सहज सफलता प्राप्त होगी इसलिए अब रूहानी भाषा के अभ्यासी बनो।
स्लोगन:
आप इतने हल्के बन जाओ जो बाप आपको अपनी पलकों पर बिठाकर साथ ले जाए।