Saturday, November 14, 2015

मुरली 15 नवंबर 2015

15-11-15 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:18-01-81 मधुबन

“स्मृति-स्वरूप” का आधार याद और सेवा
आज बापदादा अपनी अमूल्य मणियों को देख रहे हैं। हरेक मणी अपने-अपने स्थिति रूपी स्थान पर चमकती हुई मणियों के स्वरूप में बाप-दादा का श्रृंगार है। आज बापदादा अमृतवेले से अपने श्रृंगार (मणियों) को देख रहे हैं। आप सभी साकारी सृष्टि में हर स्थान को सजाते हो, भिन्न-भिन्न प्रकार के पुष्पों से सजाते हो। यह भी बच्चों की मेहनत बाप-दादा ऊपर से देखते रहते हैं। आज के दिन जैसे आप सब बच्चे मधुबन के हर स्थान की परिक्रमा लगाते हो, बाप-दादा भी बच्चों के साथ परिक्रमा पर होते हैं। मधुबन में भी 4 धाम विशेष बनाये हैं, जिसकी परिक्रमा लगाते हो। तो भक्तों ने भी 4 धाम का महत्व रखा है। जैसे आज के दिन आप परिक्रमा लगाते हो, वैसे भक्तों ने फालो किया है। आप लोग भी क्यू बनाकर जाते हो, भक्त भी क्यू लगाए दर्शन के लिए इन्तजार करते हैं। जैसे भक्ति में सत वचन महाराज कहते हैं वैसे संगम पर सत वचन के साथ-साथ आपके सत कर्म महान हो जाते हैं अर्थात् यादगार बन जाते हैं। संगमयुग की यह विशेषता है। भक्त, भगवान के आगे परिक्रमा लगाते हैं लेकिन भगवान अब क्या करते हैं? भगवान बच्चों के पीछे परिक्रमा लगाते हैं। आगे बच्चों को करते पीछे खुद चलते हैं। सब कर्म में चलो बच्चे - चलो बच्चे कहते रहते हैं। यह विशेषता है ना। बच्चों को मालिक बनाते, स्वयं बालक बन जाते, इसलिए रोज़ मालेकम् सलाम कहते हैं।

भगवान ने आपको अपना बनाया है या आपने भगवान को अपना बनाया है। क्या कहेंगे? किसने किसको बनाया? बाप- दादा तो समझते हैं बच्चों ने भगवान को अपना बनाया है। बच्चे भी चतुर तो बाप भी चतुर। जिस समय आर्डर करते हो और हाजिर हो जाते हैं।

आज का दिन मिलन का दिन है, आज के दिन को वरदान है – ‘सदा स्मृति भव’। तो आज स्मृति भव का अनुभव किया?

आज स्मृति भव के रिर्टन में मिलन मनाने आये हैं। याद और सेवा दोनों का बैलेन्स स्मृति स्वरूप स्वत: ही बना देता है। बुद्धि में भी बाबा, मुख से भी बाबा। हर कदम विश्व कल्याण की सेवा प्रति। संकल्प में याद और कर्म में सेवा हो - यही ब्राह्मण जीवन है। याद और सेवा नहीं तो ब्राहमण जीवन ही नहीं। अच्छा -

सर्व अमूल्य मणियों को, स्मृति स्वरूप वरदानी बच्चों को हर कर्म सत कर्म करने वाले महान और महाराजन, सदा बाप के स्नेह और सहयोग में रहने वाले, ऐसी विशेष आत्माओं को बाप-दादा का यादप्यार और नमस्ते।



15-11-15 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ’अव्यक्त-बापदादा“ रिवाइज:20-01-81 मधुबन

“मन, बुद्धि, संस्कार के अधिकारी ही वरदानी मूर्त”

आज वरदाता और विधाता बाप अपने महादानी और वरदानी बच्चों को देख रहे हैं। वर्तमान समय महादानी का पार्ट सभी यथा शक्ति बजा रहे हैं। लेकिन अब अन्तिम समय समीप आते हुए विशेष वरदानी रूप का पार्ट प्रैक्टिकल में बजाना पड़े। महादानी विशेष वाणी द्वारा सेवा करते हैं, लेकिन साथ में मंसा की परसेन्टेज कम होती है। वाणी की परसेन्टेज ज्यादा और मन्सा की उससे कम। और वरदानी रूप में वाणी कम और मन्सा की परसेन्टेज ज्यादा होती है। मन्सा अर्थात् संकल्प द्वारा शुभ भावना और कामना द्वारा थोड़े समय में ज्यादा सेवा का प्रत्यक्ष फल देख सकते हो।

वरदानी रूप द्वारा सेवा करने के लिए पहले स्वयं में शुद्ध संकल्प चाहिए। तथा अन्य संकल्पों को सेकेण्ड में कन्ट्रोल करने का विशेष अभ्यास चाहिए। सारा दिन शुद्ध संकल्पों के सागर में लहराता रहे और जिस समय चाहे शुद्ध संकल्पों के सागर के तले में जाकर साइलेंस स्वरूप हो जाए अर्थात् ब्रेक पावरफुल हो। संकल्प शक्ति अपने कन्ट्रोल में हो। साथ- साथ आत्मा की और भी विशेष दो शक्तियाँ बुद्धि और संस्कार, तीनों ही अपने अधिकार में हों। तीनों में से एक शक्ति के ऊपर भी अगर अधिकारी कम हैं तो वरदानी स्वरूप की सेवा जितनी करनी चाहिए, उतनी नहीं कर सकते।

इस वर्ष में जितना ही महा कार्य, महायज्ञ का रचा है उतना ही इस महायज्ञ में महादानी का पार्ट भी विशेष बजाना है। और साथ-साथ आत्मा की तीनों शक्तियों के ऊपर सम्पूर्ण अधिकार की जो भी कमी हो उसको भी महायज्ञ में स्वाहा करना। जितना ही विशाल कार्य करना है उतना ही इस विशाल कार्य के बाद स्व चिन्तक, शुभ चिंतक, सर्व शक्तियों के मास्टर विधाता, श्रेष्ठ संकल्प द्वारा मास्टर वरदाता सदा सागर के तले के अन्दर अति मीठे शान्त स्वरूप लाइट और माइट हाउस बन इसी स्वरूप की सेवा करना।

जितना ही साधनों द्वारा सेवा की स्टेज पर आना है उतना ही सिद्धि स्वरूप बन साइलेन्स के स्वरूप की अनुभूति करनी है। सेवा के साधन भी बहुत अच्छे बनाये हैं। जितना विशाल सेवा का यज्ञ रच रहे हैं, वैसे ही संगठित रूप का, ज्वाला रूप शान्ति कुण्ड का महायज्ञ रचना है। यह सेवा का यज्ञ है - विश्व की आत्माओं में वाणी द्वारा हल चलाना। हल चलाने में हलचल होती है। उसके बाद जो बीज डालेंगे उसको शीतलता के रूप से, साइलेन्स की पावर से शीतल जल डालेंगे तभी शीतल जल पड़ने से फल निकलेगा। ऐसे नहीं समझना कि महायज्ञ हुआ तो सेवा का बहुत पार्ट समाप्त किया। यह तो हल चला करके बीज डालेंगे। मेहनत ज्यादा इसमें लगती है। उसके बाद फल निकालने के लिए महादानी के बाद वरदानी की सेवा करनी पड़े। वरदानी मूर्त अर्थात् स्वयं सदा वरदानों से सम्पन्न। सबसे पहला वरदान कौन सा है? सभी को दिव्य जन्म मिलते ही पहला वरदान कौन-सा मिला? वरदान अर्थात् जिसमें मेहनत नहीं। सहज प्राप्ति हो जाए वह वरदान क्या मिला? हरेक का अलग-अलग वरदान है या एक ही है? सुनाने में तो अलग-अलग अपना वरदान सुनाते हो ना। सभी का एक ही वरदान है जो बिना मेहनत के, बिना सोचे समझे हुए बाप ने कैसी भी कमजोर आत्मा को हिम्मतहीन आत्मा को अपना स्वीकार कर लिया। जो है जैसा है मेरा है। यह सेकेण्ड में वर्से के अधिकारी बनाने की लाटरी कहो, भाग्य कहो, वरदान कहो, बाप ने स्वयं दिया। स्मृति के स्वीच को ऑन कर दिया कि तू मेरा है। सोचा नहीं था कि ऐसा भाग्य भी मिल सकता है। लेकिन भाग्य विधाता बाप ने भाग्य का वरदान दे दिया। इसी सेकेण्ड के वरदान ने जन्म-जन्मान्तर के वर्से का अधिकारी बनाया, इस वरदान को स्मृति स्वरूप में लाना अर्थात् वरदानी बनना। बाप ने तो सबको एक ही सेकेण्ड में एक जैसा वरदान दिया। चाहे छोटा बच्चा हो, चाहे वृद्ध हो, चाहे बड़े आक्यूपेशन वाले हों, चाहे साधारण हो, तन्दरूस्त हो वा बीमार हो, किसी भी धर्म के हों, किसी भी देश के हों, पढ़ा हुआ हो वा अनपढ़ हो सभी को एक ही वरदान दिया। इसी वरदान को जीवन में लाना, स्मृति स्वरूप बनना इसमें नम्बर बन गये। कोई ने निरंतर बनाया, कोई ने कभी-कभी का बनाया। इस अन्तर के कारण दो मालायें बन गई। जो सदा वरदान के स्मृति स्वरूप रहे उनकी माला भी सदा सिमरी जाती है। और जिन्होंने वरदान को कभी-कभी जीवन में लाया वा स्मृति स्वरूप में लाया उन्हों की माला भी कभी-कभी सिमरी जाती है। वह वरदानी स्वरूप अर्थात् इस पहले वरदान में सदा स्मृति स्वरूप रहे। जो स्वयं बाप का सदा बना हुआ होगा, वही औरों को भी बाप का सदा बना सकेगा। यह वरदान लेने में कोई मेहनत नहीं की। यह तो बाप ने स्वंय अपनाया। इस एक वरदान को ही सदा याद रखो तो मेहनत से छूट जायेंगे। वरदान को भूलते हो तो मेहनत करते हो। अब वरदानी मूर्त द्वारा संकल्प शक्ति की सेवा करो।

इस वर्ष स्वयं की शक्तियों द्वारा, स्वयं के गुणों द्वारा निर्बल आत्माओं को बाप के समीप लाओ। वर्तमान समय मैजारिटी में शुभ इच्छा उत्पन्न हो रही है कि आध्यात्मिक शक्ति जो कुछ कर सकती है वह और कोई कर नहीं सकता। लेकिन आध्यात्मिकता की ओर चलने के लिए अपने को हिम्मतहीन समझते। तो इच्छा रूपी एक टाँग अब प्रत्यक्ष रूप में दिखाई दे रही है। लेकिन उन्हें अपनी शक्ति से हिम्मत की दूसरी टाँग दो। तब बाप के समीप चल करके आ सकेंगे। अभी तो समीप आने में भी हिम्मतहीन हैं। पहले तो अपने वरदानों से हिम्मत में लाओ, उल्लास में लाओ कि आप भी बन सकते हो। तब निर्बल आत्मायें आपके सहयोग से वर्से के अधिकारी बन सकेंगी। लंगडों को चलाना है, तब आप वरदानी मूर्तों का बार-बार शुक्रिया मानेंगे। कुछ भक्त बनेंगे, कुछ प्रजा बनेंगे और कोई फिर लास्ट सो फास्ट भी होंगे। तो समझा इस वर्ष क्या करना है?

जैसे महायज्ञ की सेवा की धूम चारों और मचाई है वैसे इस यज्ञ के कार्य के साथ-साथ शान्ति कुण्ड के वायुमण्डल, वायब्रेशन्स - उसकी धूम चारों ओर मचाओ। जैसे महायज्ञ के नये चित्र बनाये हैं, झाँकियाँ बना रहे हो, भाषण तैयार कर रहे हो, स्टेज तैयार कर रहे हो, वैसे चारों ओर हर ब्राहमण बाप-सामन चैतन्य चित्र बन जाए, लाइट और माइट हाउस की झाँकी बन जाएं, संकल्प शक्ति का, साइलेन्स का भाषण तैयार करे और कर्मातीत स्टेज पर वरदानी मूर्त का पार्ट बजावे तब सम्पूर्णता समीप आयेगी। इसी वर्ष में अति विशाल सेवा का कार्य जो करना है वह भी इतना ही संगठित रूप में प्रत्यक्षता का, एक बल एक भरोसे का नारा लेकर सेवा की स्टेज पर आना है। सर्व ब्राहमणों की अंगुली से कार्य को सम्पन्न करना है। वैसे ही इस ही वर्ष में सर्व के एक संकल्प द्वारा वरदानी रूप का भी ऐसा ही विशाल कार्य प्रैक्टिकल में लाना है। समझा - अभी क्या करना है?

ऐसे आवाज़ में आते हुए भी आवाज़ से परे स्थिति में स्थित रहने वाले, अपनी हिम्मत द्वारा अन्य आत्माओं को हिम्मत देने वाले, अपनी समीपता द्वारा औरों को भी समीप लाने वाले लंगड़ी आत्माओं को दौड़ की रेस में लगाने वाले, ऐसे वरदानी और महादानी, बाप-दादा के समीप आत्माओं को बाप-दादा का यादप्यार और नमस्ते।

दादियों से – समय समीप आ रहा है वा आप समय के समीप आ रही हो? स्वयं को ला रहे हैं वा समय स्वयं को खींच रहा है? ड्रामा आपको चला रहा है या आप ड्रामा को चला रहे हैं? मास्टर आप हो या ड्रामा? रचता ड्रामा है या आप हो? अभी कई बार वाणी से निकलता है कि जो ड्रामा में होगा वही होगा। लेकिन आगे चलते हुए ड्रामा में क्या होना है वह इतना स्पष्ट टच होगा जो फिर ऐसा नहीं कहेंगे कि जो होना होगा वह होगा। अथॉरिटी से कहेंगे कि यही ड्रामा में होना है और वही होगा। जैसे भविष्य प्रालब्ध स्पष्ट है वैसे ड्रामा में क्या होना है वह भी स्पष्ट होगा। कोई कितना भी कहे कि यह नूंध है नहीं, बनते हैं वा नहीं बनते, क्या पता। तो मानेंगे? नहीं। जैसे इस बात में नॉलेजफुल के आधार पर मास्टर हो गये, बस होना ही है। जो कल होना है वा एक सेकेण्ड के बाद होना है वह भी इतना अथॉरिटी से, नॉलेजफुल की पावर से स्पष्टता की पावर से ऐसे बोलेंगे कि यह होना ही है। जो होगा वह देख लेंगे - नहीं। देखा हुआ है, और वही होगा। इतना अथॉरिटी वाले बनते जायेंगे। यह भी एक अथॉरिटी है ना। बनना ही है, राज्य हमारा होना ही है। कितना भी कोई हिलाने की कोशिश करे लेकिन वह स्पष्ट है जैसे इस प्वाइंट की अथॉरिटी हो जायेंगे। यह तब होगा जब थोड़ा सा एकान्तवासी होंगे। जितना एकान्तवासी होंगे उतना ट्चिंग्स अच्छी आयेंगी। क्या होना है, यह वर्तमान समान भविष्य क्लीयर हो जायेगा। अभी समय कम मिलता है। पर्दे के अन्दर ड्रामा की यह सीन है। यह भी अनुभूति होगी इसलिए कहा कि इस वर्ष में जितना सेवा की हलचल उतना ही बिल्कुल जैसे अण्डरग्राउण्ड चले जाओ। कोई भी नई इन्वेन्शन और शक्तिशाली इन्वेन्शन होती है तो उतना अन्डरग्राउण्ड करते हैं, तो एकान्तवासी बनना ही अन्डरग्राउण्ड है। जो भी समय मिले, इकट्ठा एक घण्टा वा आधा घण्टा समय नहीं मिलेगा। यह भी अभ्यास हो जायेगा। अभी-अभी बात की, अभी-अभी 5 मिनट भी मिले तो सागर के तले में चले जायेंगे। जो आने वाला भी समझेगा कि यह कहाँ और स्थान पर है। यहाँ नहीं है। उनके भी संकल्प ब्रेक में आ जायेंगे। वाणी में आना चाहेंगे तो आ नहीं सकेंगे। साइलेन्स द्वारा ऐसा स्पष्ट उत्तर मिलेगा जो वाणी द्वारा भी कम स्पष्ट होता। जैसे साकार में देखा बीच-बीच में कारोबार में रहते भी गुम अवस्था की अनुभूति होती थी ना। सुनते- सुनाते डायरेक्शन देते अन्डरग्राउण्ड हो जाते थे। तो अभी इस अभ्यास की लहर चाहिए। चलते-चलते देखें कि यह जैसेकि गायब है। इस दुनिया में है नहीं। यह फरिश्ता इस देह की दुनिया और देह के भान से परे हो गये। इसको ही सब साक्षात्कार कहेंगे। जो भी सामने आयेगा वह इसी स्टेज में साक्षात्कार का अनुभव करेगा। जैसे शुरू में साक्षात्कार की लहर थी ना, उसी से ही आवाज़ फैला ना। चाहे जादू अथवा कुछ भी समझते थे परन्तु आवाज़ तो इससे हुआ ना। ऐसी स्टेज में जब अनुभव समान साक्षात्कार होंगे तो फिर प्रत्यक्षता होगी। नाम बाला होगा। साक्षात्कार होगा। प्रत्यक्षफल अनुभव होगा। इसी प्रत्यक्ष फल की सीजन में प्रत्यक्षता होगी। इसी को ही वरदानी रूप कहा जाता। जो आये वह अनुभव कर जाए। बात करते-करते खुद भी गुम दूसरे को भी गुम कर देंगे। यह भी होना है। वाणी द्वारा कार्य चलाकर देख रहे हैं। लेकिन यह अनुभव करने और कराने की स्टेज समस्याओं का हल सेकेण्ड में करेगी। टाइम कम और सफलता ज्यादा होगी। आजकल किसको भी कोई बात वाणी द्वारा दो तो क्या कह देते? हाँ यह तो सब पता है। नॉलेजफुल हो गये हैं। सेकेण्ड में कहेंगे यह तो हम जानते हैं। यही सुनने को मिलेगा। यह भी सब समझ गये हैं कि फलानी भूल की क्या शिक्षा मिलेगी। तो अब नया तरीका चाहिए। वह यह है। अनुभूति की कमी है, प्वाइंटस की कमी नहीं है। एक सेकेण्ड भी किसी को अनुभूति करा दो, शक्ति रूप की, शान्ति रूप की तो वह चुप हो जायेंगे। अच्छा - ओम् शान्ति।
वरदान:
विशाल बुद्धि द्वारा संगठन की शक्ति को बढ़ाने वाले सफलता स्वरूप भव!   
संगठन की शक्ति को बढ़ाना - यह ब्राह्मण जीवन का पहला श्रेष्ठ कार्य है। इसके लिए जब कोई भी बात मैजारटी वेरीफाय करते हैं, तो जहाँ मैजारटी वहाँ मैं-यही है संगठन की शक्ति को बढ़ाना। इसमें यह बड़ाई नहीं दिखाओ कि मेरा विचार तो बहुत अच्छा है। भल कितना भी अच्छा हो लेकिन जहाँ संगठन टूटता है वह अच्छा भी साधारण हो जायेगा। उस समय अपने विचार त्यागने भी पड़े तो त्याग में ही भाग्य है। इससे ही सफलता स्वरूप बनेंगे। समीप संबंध में आयेंगे।
स्लोगन:
सर्व सिद्धियां प्राप्त करने के लिए मन की एकाग्रता को बढ़ाओ।