Monday, November 9, 2015

मुरली 09 नवंबर 2015

09-11-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - तुम इस रूहानी युनिवर्सिटी के स्टूडेण्ट हो, तुम्हारा काम है सारी युनिवर्स को बाप का मैसेज देना''  
प्रश्न:
अभी तुम बच्चे कौन सा ढिंढोरा पीटते और कौन सी बात समझाते हो?
उत्तर:
तुम ढिंढोरा पीटते हो कि यह नई दैवी राजधानी फिर से स्थापन हो रही है। अनेक धर्मो का अब विनाश होना है। तुम सबको समझाते हो कि सब बेफिकर रहो, यह इन्टरनेशनल रोला है। लड़ाई जरूर लगनी है, इसके बाद दैवी राजधानी आयेगी।
ओम् शान्ति।
यह है रूहानी युनिवर्सिटी। सारे युनिवर्स की जो भी आत्मायें हैं, युनिवर्सिटी में आत्मायें ही पढ़ती हैं। युनिवर्स अर्थात् विश्व। अब कायदे अनुसार युनिवर्सिटी अक्षर तुम बच्चों का है। यह है रूहानी युनिवर्सिटी। जिस्मानी युनिवर्सिटी होती ही नहीं। यह एक ही गॉड फादरली युनिवर्सिटी है। सभी आत्माओं को लेसन मिलता है। तुम्हारा यह पैगाम कोई न कोई प्रकार से सबको जरूर पहुँचना चाहिए, मैसेज देना है ना और यह मैसेज बिल्कुल सिम्पुल है। बच्चे जानते हैं वह हमारा बेहद का बाप है, जिसको सब याद करते हैं। ऐसे भी कहें वह हमारा बेहद का माशूक है, जो भी विश्व में जीव आत्मायें हैं वह उस माशूक को याद जरूर करती हैं। यह प्वाइंट्स अच्छी रीति धारण करनी है। जो फ्रेश बुद्धि होंगे वह अच्छी रीति धारण कर सकेंगे। युनिवर्स में जो भी आत्मायें हैं उन सबका बाप एक ही है। युनिवर्सिटी में तो मनुष्य ही पढ़ेंगे ना। अभी तुम बच्चे यह भी जानते हो - हम ही 84 जन्म लेते हैं। 84 लाख की तो बात ही नहीं। युनिवर्स में जो भी आत्मायें हैं, इस समय सब पतित हैं। यह है ही छी-छी दुनिया, दु:खधाम। उसे सुखधाम में ले जाने वाला एक ही बाप है, उनको लिबरेटर भी कहते हैं। तुम सारे युनिवर्स वा विश्व के मालिक बनते हो ना। बाप सबके लिए कहते हैं यह मैसेज पहुँचाकर आओ। बाप को सब याद करते हैं, उनको गाइड, लिबरेटर, मर्सीफुल (रहमदिल) भी कहते हैं। अनेक भाषायें हैं ना। सभी आत्मायें एक को पुकारती हैं तो वह एक ही सारी युनिवर्स का टीचर भी हुआ ना। बाप तो है ही परन्तु यह किसको पता नहीं कि वह हम सब आत्माओं का टीचर भी है, गुरू भी है। सबको गाइड भी करते हैं। इस बेहद के गाइड को सिर्फ तुम बच्चे ही जानते हो। तुम ब्राह्मणों के सिवाए और कोई नहीं जानते। आत्मा को भी तुमने जाना है कि आत्मा क्या चीज़ है। दुनिया में तो एक भी मनुष्य नहीं, खास भारत आम दुनिया किसको भी पता नहीं कि आत्मा क्या चीज़ है। भल कहते हैं भ्रकुटी के बीच चमकता है अजब सितारा। परन्तु समझ कुछ नहीं। अभी तुम जानते हो आत्मा तो अविनाशी है। वह कभी बड़ी या छोटी नहीं होती। जैसे तुम्हारी आत्मा है, बाप भी वही बिन्दी है। बड़ा छोटा नहीं। वह भी है आत्मा सिर्फ परम आत्मा है, सुप्रीम है। बरोबर सभी आत्मायें परमधाम में रहने वाली हैं। यहाँ आती हैं पार्ट बजाने। फिर अपने परमधाम जाने की कोशिश करते हैं। परमपिता परमात्मा को सब याद करते हैं क्योंकि आत्माओं को परमपिता ने ही मुक्ति में भेजा था तो उनको ही याद करते हैं। आत्मा ही तमोप्रधान बनी है। याद क्यों करते हैं? इतना भी पता नहीं। जैसे बच्चा कहेगा – “बाबा”, बस। उनको कुछ भी पता ही नहीं। तुम भी बाबा मम्मा कहते हो, जानते कुछ नहीं हो। भारत में एक नेशनल्टी थी, उनको डीटी नेशनल्टी कहा जाता है। फिर बाद में और भी उनमें इन्टर हुए हैं। अभी कितने ढेर हो गये हैं, इसलिए इतने झगड़े आदि होते हैं। जहाँ-जहाँ जास्ती घुस गये हैं, उनको वहाँ से निकालने की कोशिश करते रहते हैं। बहुत झगड़े हो गये हैं। अन्धियारा भी बहुत हो गया है। कुछ तो लिमिट भी होनी चाहिए ना। एक्टर्स की लिमिट होती है। यह भी बना बनाया खेल है। इसमें जितने भी एक्टर्स हैं, उसमें कम जास्ती हो न सके। जब सब एक्टर्स स्टेज पर आ जाते हैं फिर उनको वापिस भी जाना है। जो भी एक्टर्स रहे हुए होंगे, आते रहेंगे। भल कितना भी कन्ट्रोल आदि करने के लिए माथा मारते रहते हैं, परन्तु कर नहीं सकते। बोलो, हम बी.के. ऐसा बर्थ कन्ट्रोल कर देते हैं जो बाकी 9 लाख जाकर रहेंगे। फिर सारी आदमशुमारी ही कम हो जायेगी। हम आपको सत्य बताते हैं, अब स्थापना कर रहे हैं। नई दुनिया, नया झाड़ जरूर छोटा ही होगा। यहाँ तो यह कन्ट्रोल कर नहीं सकेंगे क्योंकि तमोप्रधान और होता जाता है। वृद्धि होती जाती है। एक्टर्स जो भी आने वाले हैं, यहाँ ही आकर शरीर धारण करेंगे। इन बातों को कोई समझते नहीं हैं। शुरूड़ बुद्धि समझते हैं राजधानी में तो हर प्रकार के पार्टधारी होते हैं। सतयुग में जो राजधानी थी वह फिर से स्थापन हो रही है। ट्रांसफर हो जायेंगे। तुम अभी तमोप्रधान से सतोप्रधान क्लास में ट्रांसफर होते हो। पुरानी दुनिया से नई दुनिया में जाते हो। तुम्हारी पढ़ाई इस दुनिया के लिए नहीं है। ऐसी युनिवर्सिटी और कोई हो न सके। गॉड फादर ही कहते हैं हम तुमको अमरलोक के लिए पढ़ाते हैं। यह मृत्युलोक खलास होना है। सतयुग में इन लक्ष्मी-नारायण की राजधानी थी। यह स्थापन कैसे हुई, यह किसको पता नहीं है।

बाबा हमेशा कहते हैं जहाँ तुम भाषण करते हो तो यह लक्ष्मी-नारायण का चित्र जरूर रखो। इनमें डेट भी जरूर लिखी हुई हो। तुम समझा सकते हो कि नये विश्व की शुरूआत से 1250 वर्ष तक इस डिनायस्टी का राज्य था। जैसे कहते हैं ना - क्रिश्चियन डिनायस्टी का राज्य था। एक दो के पिछाड़ी चले आते हैं। तो जब ये देवता डिनायस्टी थी तो दूसरा कोई था नहीं। अब फिर यह डिनायस्टी स्थापन हो रही है। बाकी सबका विनाश होना है। लड़ाई भी सामने खड़ी है। भागवत आदि में इस पर भी कहानी लिख दी है। छोटेपन में यह कहानियां आदि सुनते रहते थे। अभी तुम जानते हो यह राजाई कैसे स्थापन होती है। जरूर बाप ने ही राजयोग सिखाया है। जो पास होते हैं वह विजय माला का दाना बनते हैं और कोई इस माला को जानते नहीं। तुम ही जानते हो। तुम्हारा प्रवृत्ति मार्ग है। ऊपर में बाबा खड़ा है, उनको अपना शरीर है नहीं। फिर ब्रह्मा सरस्वती सो लक्ष्मी-नारायण। पहले चाहिए बाप फिर जोड़ा। रूद्राक्ष के दाने होते हैं ना। नेपाल में एक वृक्ष है, जहाँ से यह रूद्राक्ष के दाने आते हैं। उनमें सच्चे भी होते हैं। जितना छोटे उतना दाम बहुत। अभी तुम अर्थ को समझ गये हो। यह विष्णु की विजय माला अथवा रूण्ड माला बनती है। वो लोग तो सिर्फ माला फेरते-फेरते राम-राम करते रहेंगे, अर्थ कुछ भी नहीं। माला का जाप करते हैं। यहाँ तो बाप कहते हैं मुझे याद करो। यह है अजपाजाप। मुख से कुछ बोलना नहीं है। गीत भी स्थूल हो जाता है। बच्चों को तो सिर्फ बाप को याद करना है। नहीं तो फिर गीत आदि याद आते रहेंगे। यहाँ मूल बात है ही याद की। तुमको आवाज से परे जाना है। बाप का डायरेक्शन है ही मनमनाभव। बाप थोड़ेही कहते हैं गीत गाओ, रड़ी मारो। मेरी महिमा गायन करने की भी दरकार नहीं है। यह तो तुम जानते हो वह ज्ञान का सागर, सुख-शान्ति का सागर है। मनुष्य नहीं जानते। ऐसे ही नाम रख दिये हैं। तुम्हारे सिवाए और कोई भी नहीं जानते। बाप ही आकर अपना नाम रूप आदि बताते हैं - मैं कैसा हूँ, तुम आत्मा कैसी हो! तुम बहुत मेहनत करते हो - पार्ट बजाने। आधाकल्प भक्ति की है, मैं तो ऐसे पार्ट में आता नहीं हूँ। मैं दु:ख सुख से न्यारा हूँ। तुम दु:ख भोगते हो फिर तुम ही सुख भोगते हो - सतयुग में। तुम्हारा पार्ट मेरे से भी ऊंच है। मैं तो आधाकल्प वहाँ ही आराम से बैठा रहता हूँ वानप्रस्थ में। तुम मुझे पुकारते आते हो। ऐसे नहीं कि मैं वहाँ बैठ तुम्हारी पुकार सुनता हूँ। मेरा पार्ट ही इस समय का है। ड्रामा के पार्ट को मैं जानता हूँ। अब ड्रामा पूरा हुआ है, मुझे जाकर पतितों को पावन बनाने का पार्ट बजाना है और कोई बात है नहीं। मनुष्य समझते हैं परमात्मा सर्वशक्तिमान् है, अन्तर्यामी है। सबके अन्दर क्या-क्या चलता है, वह जानते हैं। बाप कहते हैं ऐसे है नहीं। तुम जब बिल्कुल तमोप्रधान बन जाते हो - तब एक्यूरेट टाइम पर मुझे आना पड़ता है। साधारण तन में ही आता हूँ। तुम बच्चों को आकर दु:ख से छुड़ाता हूँ। एक धर्म की स्थापना ब्रह्मा द्वारा, अनेक धर्मो का विनाश शंकर द्वारा...हाहाकार के बाद जयजयकार हो जायेगी। कितना हाहाकार होना है। आफतों में मरते रहेंगे। नेचुरल कैलेमिटीज की भी बहुत मदद रहती है। नहीं तो मनुष्य बहुत रोगी, दु:खी हो जाएं। बाप कहते हैं बच्चे दु:खी न पड़े रहें इसलिए नेचुरल कैलेमिटीज भी ऐसी जोर से आती हैं जो सबको खत्म कर देती हैं। बाम्बस तो कुछ नहीं हैं, नेचुरल कैलेमिटीज बहुत मदद करती हैं। अर्थक्वेक में ढेर खत्म हो जाते हैं। पानी का एक दो घुटका आया यह खत्म। समुद्र भी जरूर उछल खायेगा। धरती को हप करेगा, 100 फुट पानी उछल खाये तो क्या कर देगा। यह है हाहाकार की सीन। ऐसी सीन देखने के लिए हिम्मत चाहिए। मेहनत भी करना है, निर्भय भी बनना है। तुम बच्चों में अहंकार बिल्कुल नहीं होना चाहिए। देही-अभिमानी बनो। देही-अभिमानी रहने वाले बड़े मीठे होते हैं। बाप कहते हैं - मैं तो हूँ निराकार और विचित्र। यहाँ आता हूँ - सर्विस करने के लिए। हमारी बड़ाई देखो कितनी करते हैं। ज्ञान का सागर... हे बाबा और फिर कहते हैं पतित दुनिया में आओ। तुम निमन्त्रण तो बड़ा अच्छा देते हो। ऐसा भी नहीं कहते कि स्वर्ग में आकर सुख तो देखो। कहते हैं हे पतित-पावन हम पतित हैं, हमको पावन बनाने आओ। निमन्त्रण देखो कैसा है। एकदम तमोप्रधान पतित दुनिया और फिर पतित शरीर में बुलाते हैं। बड़ा अच्छा निमन्त्रण देते हैं भारतवासी! ड्रामा में राज़ ही ऐसा है। इनको भी थोड़ेही पता था कि मेरा बहुत जन्मों के अन्त का जन्म है। बाबा ने प्रवेश किया है तब बताते हैं। बाबा ने हर एक बात का राज़ समझाया है। ब्रह्मा को ही वन्नी (पत्नी) बनना है। बाबा खुद कहते हैं - मेरी यह वन्नी है। मैं इनमें प्रवेश कर इन द्वारा तुमको अपना बनाता हूँ। यह सच्ची- सच्ची बड़ी माँ हो गई और वह एडाप्टेड मॉ ठहरी। मॉ बाप तुम इनको कह सकते हो। शिवबाबा को सिर्फ फादर ही कहेंगे। यह है ब्रह्मा बाबा। मम्मा गुप्त है। ब्रह्मा है मॉ परन्तु तन पुरूष का है। यह तो सम्भाल नहीं सकेंगे इसलिए एडाप्ट किया है बच्ची को। नाम रख दिया है मातेश्वरी। हेड हो गई। ड्रामा अनुसार है ही एक सरस्वती। बाकी दुर्गा, काली आदि सब अनेक नाम हैं। मॉ बाप तो एक ही होते हैं ना। तुम सब हो बच्चे। गायन भी है ब्रह्मा की बेटी सरस्वती। तुम ब्रह्माकुमार कुमारियां हो ना। तुम्हारे ऊपर नाम बहुत हैं। यह सब बातें तुम्हारे में भी नम्बरवार समझेंगे। पढ़ाई में भी नम्बरवार तो होते हैं ना। एक न मिले दूसरे से। यह राजधानी स्थापन हो रही है। यह बना बनाया ड्रामा है। इनको विस्तार से समझना है। बहुत ढेर प्वाइंट्स हैं। बैरिस्टरी पढ़ते हैं फिर उनमें भी नम्बरवार होते हैं। कोई बैरिस्टर तो 2-3 लाख कमाते हैं। कोई देखो कपड़े भी फटे हुए पहनेंगे। इसमें भी ऐसे हैं।

तो बच्चों को समझाया गया है कि यह इन्टरनेशनल रोला है। अभी तुम समझाते हो कि सब बेफिकर रहो। लड़ाई तो जरूर लगनी ही है। तुम ढिंढोरा पीटते हो कि नई दैवी राजधानी फिर से स्थापन हो रही है। अनेक धर्मो का विनाश होगा। कितना क्लीयर है। प्रजापिता ब्रह्मा से यह प्रजा रची जाती है। कहते हैं यह है मेरी मुख वंशावली। तुम मुख वंशावली ब्राह्मण हो। वह कुख वंशावली ब्राह्मण हैं। वह हैं पुजारी, तुम अभी पूज्य बन रहे हो। तुम जानते हो हम सो देवता पूज्य बन रहे हैं। तुम्हारे ऊपर अभी लाइट का ताज नहीं है। तुम्हारी आत्मा जब पवित्र बनेंगी तब यह शरीर छोड़ देगी। इस शरीर पर तुमको लाइट का ताज नहीं दे सकते, शोभेगा नहीं। इस समय तुम हो गायन लायक। इस समय कोई की भी आत्मा पवित्र नहीं है, इसलिए किसके ऊपर भी इस समय लाइट नहीं होनी चाहिए। लाइट सतयुग में होती है। दो कला कम वाले को भी यह लाइट नहीं देनी चाहिए। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अपनी स्थिति ऐसी अचल और निर्भय बनानी है जो अन्तिम विनाश की सीन को देख सकें। मेहनत करनी है देही-अभिमानी बनने की।
2) नई राजधानी में ऊंच पद पाने के लिए पढ़ाई पर पूरा-पूरा ध्यान देना है। पास होकर विजय माला का दाना बनना है।
वरदान:
स्थूल देश और शरीर की स्मृति से परे सूक्ष्म देश के वेशधारी भव!   
जैसे आजकल की दुनिया में जैसा कर्तव्य वैसा वेश धारण कर लेते हैं, ऐसे आप भी जिस समय जैसा कर्म करना चाहते हो वैसा वेश धारण कर लो। अभी-अभी साकारी और अभी-अभी आकारी। ऐसे बहुरूपी बन जाओ तो सर्व स्वरूपों के सुखों का अनुभव कर सकेंगे। यह अपना ही स्वरूप है। दूसरे के वस्त्र फिट हो या न हों लेकिन अपने वस्त्र सहज ही धारण कर सकते हो इसलिए इस वरदान को प्रैक्टिकल अभ्यास में लाओ तो अव्यक्त मिलन के विचित्र अनुभव कर सकेंगे।
स्लोगन:
सबका आदर करने वाले ही आदर्श बन सकते हैं। सम्मान दो तब सम्मान मिलेगा।