Monday, November 9, 2015

मुरली 10 नवंबर 2015

10-11-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - यह सारी दुनिया रोगियों की बड़ी हॉस्पिटल है, बाबा आये हैं सारी दुनिया को निरोगी बनाने”   
प्रश्न:
कौन-सी स्मृति रहे तो कभी भी मुरझाइस वा दु:ख की लहर नहीं आ सकती है?
उत्तर:
अभी हम इस पुरानी दुनिया, पुराने शरीर को छोड़ घर में जायेंगे फिर नई दुनिया में पुनर्जन्म लेंगे। हम अभी राजयोग सीख रहे हैं - राजाई में जाने के लिए। बाप हम बच्चों के लिए रूहानी राजस्थान स्थापन कर रहे हैं, यही स्मृति रहे तो दु:ख की लहर नहीं आ सकती।
गीतः
तुम्हीं हो माता........  
ओम् शान्ति।
गीत कोई तुम बच्चों के लिए नहीं हैं, नये-नये को समझाने के लिए हैं। ऐसे भी नहीं कि यहाँ सब समझदार ही हैं। नहीं, बेसमझ को समझदार बनाया जाता है। बच्चे समझते हैं हम कितने बेसमझ बन गये थे, अब बाप हमको समझदार बनाते हैं। जैसे स्कूल में पढ़कर बच्चे कितना समझदार बन जाते हैं। हर एक अपनी-अपनी समझ से बैरिस्टर, इन्जीनियर आदि बनते हैं। यह तो आत्मा को समझदार बनाना है। पढ़ती भी आत्मा है शरीर द्वारा। परन्तु बाहर में जो भी शिक्षा मिलती है, वह है अल्पकाल के लिए शरीर निर्वाह अर्थ। भल कोई कनवर्ट भी करते हैं, हिन्दुओं को क्रिश्चियन बना देते हैं - किसलिए? थोड़ा सुख पाने के लिए। पैसे नौकरी आदि सहज मिलने के लिए, आजीविका के लिए। अब तुम बच्चे जानते हो हमको पहले-पहले तो आत्म-अभिमानी बनना पड़े। यह है मुख्य बात क्योंकि यह है ही रोगी दुनिया। ऐसा कोई मनुष्य नहीं जो रोगी नहीं बनता हो। कुछ न कुछ होता जरूर है। यह सारी दुनिया बड़े ते बड़ी हॉस्पिटल है, जिसमें सब मनुष्य पतित रोगी हैं। आयु भी बहुत कम होती है। अचानक मृत्यु को पा लेते हैं। काल के चम्बे में आ जाते हैं। यह भी तुम बच्चे जानते हो। तुम बच्चे सिर्फ भारत की ही नहीं, सारे विश्व की सर्विस करते हो गुप्त रीति। मूल बात है कि बाप को कोई नहीं जानते। मनुष्य होकर और पारलौकिक बाप को नहीं जानते, उनसे प्यार नहीं रखते। अब बाप कहते हैं मेरे साथ प्यार रखो। मेरे साथ प्यार रखते-रखते तुमको मेरे साथ ही वापिस चलना है। जब तक वापिस चलो तब तक इस छी- छी दुनिया में रहना पड़ता है। पहले-पहले तो देह-अभिमानी से देही-अभिमानी बनो तब तुम धारणा कर सकते हो और बाप को याद कर सकते हो। अगर देही-अभिमानी नहीं बनते तो कोई काम के नहीं। देह-अभिमानी तो सब हैं। तुम समझते भी हो कि हम आत्म-अभिमानी नहीं बनते, बाप को याद नहीं करते तो हम वही हैं जो पहले थे। मूल बात ही है देही-अभिमानी बनने की। न कि रचना को जानने की। गाया भी जाता है रचता और रचना का ज्ञान। ऐसे नहीं कि पहले रचना फिर रचता का ज्ञान कहेंगे। नहीं, पहले रचता, वही बाप है। कहा भी जाता है-हे गॉड फादर। वह आकर तुम बच्चों को आपसमान बनाते हैं। बाप तो सदैव आत्म-अभिमानी है ही इसलिए वह सुप्रीम है। बाप कहते हैं मैं तो आत्म- अभिमानी हूँ। जिसमें प्रवेश किया है उनको भी आत्म-अभिमानी बनाता हूँ। इनमें प्रवेश करता हूँ इनको कनवर्ट करने क्योंकि यह भी देह-अभिमानी थे, इनको भी कहता हूँ अपने को आत्मा समझ मुझे यथार्थ रीति याद करो। ऐसे बहुत मनुष्य हैं जो समझते हैं आत्मा अलग है, जीव अलग है। आत्मा देह से निकल जाती है तो दो चीज़ हुई ना। बाप समझाते हैं तुम आत्मा हो। आत्मा ही पुनर्जन्म लेती है। आत्मा ही शरीर लेकर पार्ट बजाती है। बाबा बार-बार समझाते हैं अपने को आत्मा समझो, इसमें बड़ी मेहनत चाहिए। जैसे स्टूडेण्ट पढ़ने के लिए एकान्त में, बगीचे आदि में जाकर पढ़ते हैं। पादरी लोग भी घूमने जाते हैं तो एकदम शान्त रहते हैं। वह कोई आत्म-अभिमानी नहीं रहते। क्राइस्ट की याद में रहते हैं। घर में रहकर भी याद तो कर सकते हैं परन्तु खास एकान्त में जाते हैं क्राइस्ट को याद करने और कोई तरफ देखते भी नहीं। जो अच्छे- अच्छे होते हैं, समझते हैं हम क्राइस्ट को याद करते-करते उनके पास चले जायेंगे। क्राइस्ट हेविन में बैठा है, हम भी हेविन में चले जायेंगे। यह भी समझते हैं क्राइस्ट हेविनली गॉड फादर के पास गया। हम भी याद करते-करते उनके पास जायेंगे। सब क्रिश्चियन उस एक के बच्चे ठहरे। उनमें कुछ ज्ञान ठीक है। लेकिन तुम कहेंगे कि यह उनकी समझ भी रांग है क्योंकि क्राइस्ट की आत्मा तो ऊपर गई ही नहीं। क्राइस्ट नाम तो शरीर का है, जिसको फाँसी पर चढ़ाया। आत्मा तो फाँसी पर नहीं चढ़ती है। अब क्राइस्ट की आत्मा गॉड फादर के पास गई, यह कहना भी रांग हो जाता है। वापिस कोई कैसे जायेंगे? हर एक को स्थापना फिर पालना जरूर करनी होती है। मकान को पोताई आदि कराई जाती है, यह भी पालना है ना।

अब बेहद के बाप को तुम याद करो। यह नॉलेज बेहद के बाप के सिवाए कोई दे न सके। अपना ही कल्याण करना है। रोगी से निरोगी बनना है। यह रोगियों की बड़ी हॉस्पिटल है। सारी विश्व रोगियों की हॉस्पिटल है। रोगी जरूर जल्दी मर जायेंगे, बाप आकर इस सारे विश्व को निरोगी बनाते हैं। ऐसे नहीं कि यहाँ ही निरोगी बनेंगे। बाप कहते हैं - निरोगी होते ही हैं नई दुनिया में। पुरानी दुनिया में निरोगी हो न सकें। यह लक्ष्मी-नारायण निरोगी, एवरहेल्दी हैं। वहाँ आयु भी बड़ी होती है, रोगी विशश होते हैं। वाइसलेस रोगी नहीं होते। वह है ही सम्पूर्ण निर्विकारी। बाप खुद कहते हैं इस समय सारी विश्व, खास भारत रोगी है। तुम बच्चे पहले-पहले निरोगी दुनिया में आते हो, निरोगी बनते हो याद की यात्रा से। याद से तुम चले जायेंगे अपने स्वीट होम। यह भी एक यात्रा है। आत्मा की यात्रा है, बाप परमात्मा के पास जाने की। यह है स्प्रीचुअल यात्रा। यह अक्षर कोई समझ नहीं सकेंगे। तुम भी नम्बरवार जानते हो, परन्तु भूल जाते हो। मूल बात है यह, समझाना भी बहुत सहज है। परन्तु समझाये वह जो खुद भी रूहानी यात्रा पर हो। खुद होगा नहीं, दूसरे को बतायेंगे तो तीर नहीं लगेगा। सच्चाई का जौहर चाहिए। हम बाबा को इतना याद करते हैं जो बस। स्त्री पति को कितना याद करती है। यह है पतियों का पति, बापों का बाप, गुरूओं का गुरू। गुरू लोग भी उस बाप को ही याद करते हैं। क्राइस्ट भी बाप को ही याद करते थे। परन्तु उनको कोई जानते नहीं हैं। बाप जब आये तब आकर अपनी पहचान देवे। भारतवासियों को ही बाप का पता नहीं है तो औरों को कहाँ से मिल सकता। विलायत से भी यहाँ आते हैं, योग सीखने के लिए। समझते हैं प्राचीन योग भगवान ने सिखाया। यह है भावना। बाप समझाते हैं सच्चा-सच्चा योग तो मैं ही कल्प-कल्प आकर सिखलाता हूँ, एक ही बार। मुख्य बात है अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो, इसको ही रूहानी योग कहा जाता है। बाकी सबका है जिस्मानी योग। ब्रह्म से योग रखते हैं। वह भी बाप तो नहीं है। वह तो महतत्व है, रहने का स्थान। तो राइट एक ही बाप है। एक बाप को ही सत्य कहा जाता है। यह भी भारतवासियों को पता नहीं कि बाप ही सत्य कैसे है। वही सचखण्ड की स्थापना करते हैं। सचखण्ड और झूठ खण्ड। तुम जब सचखण्ड में रहते हो तो वहाँ रावण राज्य ही नहीं होता। आधाकल्प बाद रावण राज्य झूठ खण्ड शुरू होता है। सच खण्ड पूरा सतयुग को कहेंगे। फिर झूठ खण्ड पूरा कलियुग का अन्त। अभी तुम संगम पर बैठे हो। न इधर हो, न उधर हो। तुम ट्रेवल (यात्रा) कर रहे हो। आत्मा ट्रेवल कर रही है, शरीर नहीं। बाप आ करके यात्रा करना सिखलाते हैं। यहाँ से वहाँ जाना है। तुमको यह सिखलाते हैं। वो लोग फिर स्टॉर्स मून आदि तरफ जाने की ट्रेवल करते हैं। अभी तुम जानते हो उनमें कोई फायदा नहीं। इन चीजों से ही सारा विनाश होना है। बाकी जो भी इतनी मेहनत करते हैं सब व्यर्थ। तुम जानते हो यह सब चीज़ें जो साइंस से बनती हैं वह भविष्य में तुम्हारे ही काम आयेंगी। यह ड्रामा बना हुआ है। बेहद का बाप आकर पढ़ाते हैं तो कितना रिगार्ड रखना चाहिए। टीचर का वैसे भी बहुत रिगार्ड रखते हैं। टीचर फरमान करते हैं - अच्छी रीति पढ़कर पास हो जाओ। अगर फरमान को नहीं मानेंगे तो नापास हो जायेंगे। बाप भी कहते हैं तुमको पढ़ाते हैं विश्व का मालिक बनाने। यह लक्ष्मी-नारायण मालिक हैं। भल प्रजा भी मालिक है, परन्तु दर्जे तो बहुत हैं ना। भारतवासी भी सब कहते हैं ना - हम मालिक हैं। गरीब भी भारत का मालिक अपने को समझेगा। परन्तु राजा और उनमें फ़र्क कितना है। नॉलेज से मर्तबे का फर्क हो जाता है। नॉलेज में भी होशियारी चाहिए। पवित्रता भी जरूरी है तो हेल्थ-वेल्थ भी चाहिए। स्वर्ग में सब हैं ना। बाप एम ऑब्जेक्ट समझाते हैं। दुनिया में और कोई की बुद्धि में यह एम आब्जेक्ट होगी नहीं। तुम फट से कहेंगे हम यह बनते हैं। सारे विश्व में हमारी राजधानी होगी। यह तो अभी पंचायती राज्य है। पहले थे डबल ताजधारी फिर एक ताज अभी नो ताज। बाबा ने मुरली में कहा था - यह भी चित्र हो - डबल सिरताज राजाओं के आगे सिंगल ताज वाले माथा झुकाते हैं। अभी बाप कहते हैं मैं तुमको राजाओं का राजा डबल सिरताज बनाता हूँ। वह है अल्पकाल के लिए, यह है 21 जन्मों की बात। पहली मुख्य बात है पावन बनने की। बुलाते भी हैं कि आकर पतित से पावन बनाओ। ऐसे नहीं कहते कि राजा बनाओ। अभी तुम बच्चों का है बेहद का सन्यास। इस दुनिया से ही चले जायेंगे अपने घर। फिर हेविन में आयेंगे। अन्दर में खुशी रहनी चाहिए जबकि समझते हैं हम घर जायेंगे फिर राजाई में आयेंगे फिर मुरझाइस दु:ख आदि यह सब क्यों होना चाहिए। हम आत्मा घर जायेंगी फिर पुनर्जन्म नई दुनिया में लेंगी। बच्चों को स्थाई खुशी क्यों नहीं रहती है? माया का आपोजीशन बहुत है इसलिए खुशी कम हो जाती है। पतित-पावन खुद कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के पाप भस्म हो जायेंगे। तुम स्वदर्शन चक्रधारी बनते हो। जानते हो फिर हम अपने राजस्थान में चले जायेंगे। यहाँ भिन्न-भिन्न प्रकार के राजायें हुए हैं, अब फिर रूहानी राजस्थान बनना है। स्वर्ग के मालिक बन जायेंगे। क्रिश्चियन लोग हेविन का अर्थ नहीं समझते हैं। वह मुक्तिधाम को हेविन कह देते हैं। ऐसे नहीं कि हेविनली गॉड फादर कोई हेविन में रहते हैं। वह तो रहते ही हैं शान्तिधाम में। अभी तुम पुरूषार्थ करते हो पैराडाइज में जाने के लिए। यह फ़र्क बताना है। गॉड फादर है मुक्तिधाम में रहने वाला। हेविन नई दुनिया को कहा जाता है। वहाँ तो क्रिश्चियन नहीं होते। फादर ही आकर पैराडाइज स्थापन करते हैं। तुम जिसको शान्तिधाम कहते हो उनको वो लोग हेविन समझते हैं। यह सब समझने की बातें हैं।

बाप कहते हैं नॉलेज तो बहुत सहज है। यह है पवित्र बनने की नॉलेज, मुक्ति-जीवनमुक्ति में जाने की नॉलेज, जो बाप ही दे सकते हैं। जब किसको फाँसी दी जाती है तो अन्दर में यही रहता है हम भगवान पास जाते हैं। फाँसी देने वाले भी कहते हैं गॉड को याद करो। गॉड को जानते दोनों नहीं हैं। उनको तो उस समय मित्र-सम्बन्धी आदि जाकर याद पड़ते हैं। गायन भी है अन्तकाल जो स्त्री सिमरे...... कोई न कोई याद जरूर रहता है। सतयुग में ही मोहजीत रहते हैं। वहाँ जानते हैं एक खाल छोड़ दूसरी ले लेंगे। वहाँ याद करने की दरकार नहीं इसलिए कहते हैं दु:ख में सिमरण सब करें....... यहाँ दु:ख है इसलिए याद करते हैं भगवान से कुछ मिले। वहाँ तो सब कुछ मिला ही हुआ है। तुम कह सकते हो हमारा उद्देश्य है मनुष्य को आस्तिक बनाना, धणी का बनाना। अभी सब निधन के हैं। हम धणका बनते हैं। सुख, शान्ति, सम्पत्ति का वर्सा देने वाला बाप ही है। इन लक्ष्मी-नारायण की कितनी बड़ी आयु थी। यह भी जानते हैं भारतवासियों की पहले-पहले आयु बहुत बड़ी रहती थी। अब छोटी है। क्यों छोटी हुई है-यह कोई भी नहीं जानते। तुम्हारे लिए तो बहुत सहज हो गया है समझना और समझाना। सो भी नम्बरवार हैं। समझानी हर एक की अपनी-अपनी है, जो जैसी धारण करते हैं ऐसे समझाते हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) जैसे बाप सदैव आत्म-अभिमानी हैं, ऐसे आत्म-अभिमानी रहने का पूरा-पूरा पुरूषार्थ करना है। एक बाप को दिल से प्यार करते-करते बाप के साथ घर चलना है।
2) बेहद के बाप का पूरा-पूरा रिगार्ड रखना है अर्थात् बाप के फरमान पर चलना है। बाप का पहला फरमान है - बच्चे अच्छी रीति पढ़कर पास हो जाओ। इस फरमान को पालन करना है।
वरदान:
देह अभिमान के रॉयल रूप को भी समाप्त करने वाले साक्षी और दृष्टा भव!   
दूसरों की बातों को रिगार्ड न देना, कट कर देना-यह भी देह अभिमान का रॉयल रूप है जो अपना वा दूसरों का अपमान कराता है। क्योंकि जो कट करता है उसे अभिमान आता है और जिसकी बात को कट करता उसे अपमान लगता है इसलिए साक्षी दृष्टा के वरदान को स्मृति में रख, ड्रामा की ढाल व ड्रामा के पट्टे पर हर कर्म और संकल्प करते हुए, मैं पन के इस रॉयल रूप को भी समाप्त कर हर एक की बात को सम्मान दो, स्नेह दो तो वह सदा के लिए सहयोगी हो जायेगा।
स्लोगन:
परमात्म श्रीमत रूपी जल के आधार से कर्म रूपी बीज को शक्तिशाली बनाओ।