Saturday, November 21, 2015

मुरली 21 नवंबर 2015

21-11-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - तुम दिल से बाबा-बाबा कहो तो खुशी में रोमांच खड़े हो जायेंगे, खुशी में रहो तो मायाजीत बन जायेंगे”  
प्रश्न:
बच्चों को किस एक बात में मेहनत लगती है लेकिन खुशी और याद का वही आधार है?
उत्तर:
आत्म-अभिमानी बनने में ही मेहनत लगती है लेकिन इसी से खुशी का पारा चढ़ता है, मीठा बाबा याद आता है। माया तुम्हें देह-अभिमान में लाती रहेगी, रूसतम से रूसतम होकर लड़ेगी, इसमें मूंझना नहीं। बाबा कहते बच्चे माया के तूफानों से डरो मत, सिर्फ कर्मेन्द्रियों से कोई विकर्म नहीं करो।
ओम् शान्ति।
रूहानी बाप रूहानी बच्चों को समझा रहे हैं वा शिक्षा दे रहे हैं, पढ़ा रहे हैं। बच्चे जानते हैं पढ़ाने वाला बाप सदैव देही-अभिमानी है। वह है ही निराकार, देह लेता ही नहीं है। पुनर्जन्म में नहीं आते हैं। बाप समझाते हैं तुम बच्चों को मेरे समान अपने को आत्मा समझना है। मैं हूँ परमपिता। परमपिता को देह होती नहीं। उनको देही-अभिमानी भी नहीं कहेंगे। वह तो है ही निराकार। बाप कहते हैं मुझे अपनी देह नहीं हैं। तुमको तो देह मिलती आई है। अब मेरे समान देह से न्यारा हो अपने को आत्मा समझो। अगर विश्व का मालिक बनना है तो और कोई डिफीकल्ट बात है नहीं। बाप कहते हैं देह-अभिमान को छोड़ मेरे समान बनो। सदैव बुद्धि में याद रहे हम आत्मा हैं, हमको बाबा पढ़ा रहे हैं। बाप तो निराकार है, परन्तु हमको पढ़ाये कैसे? इसलिए बाबा इस तन से आकर पढ़ाते हैं। गऊ मुख दिखाते हैं ना। अब गऊ के मुख से तो गंगा नहीं निकल सकती। माता को भी गऊ माता कहा जाता है। तुम सब गऊ हो। यह (ब्रह्मा) तो गऊ नहीं है। मुख द्वारा ज्ञान मिलता है। बाप की गऊ तो नहीं है ना - बैल पर भी सवारी दिखाते हैं। वह तो शिव-शंकर एक कह देते हैं। तुम बच्चे अभी समझते हो शिव-शंकर एक नहीं है। शिव तो है ऊंच ते ऊंच फिर ब्रह्मा-विष्णु-शंकर। ब्रह्मा है सूक्ष्मवतनवासी। तुम बच्चों को विचार सागर मंथन कर प्वाइंट निकाल समझाना पड़ता है, और निडर भी बनना है। तुम बच्चों को ही खुशी है। तुम कहेंगे हम ईश्वर के स्टूडेण्ट हैं, हमको बाबा पढ़ाते हैं। भगवानुवाच भी है-हे बच्चे, मैं तुमको राजाओं का राजा बनाने के लिए पढ़ाता हूँ। भल कहाँ भी जाते हो, सेन्टर्स पर जाते हो, बुद्धि में है कि बाबा हमको पढ़ाते हैं। जो अभी हम सेन्टर्स पर सुनते हैं, बाबा मुरली चलाते हैं। बाबा, बाबा करते रहो। यह भी तुम्हारी यात्रा हुई। योग अक्षर शोभता नहीं। मनुष्य अमरनाथ, बद्रीनाथ यात्रा करने पैदल जाते हैं। अभी तुम बच्चों को तो जाना है अपने घर। तुम जानते हो अब यह बेहद का नाटक पूरा होता है। बाबा आया हुआ है, हमको लायक बनाकर ले जाने के लिए। तुम खुद कहते हो हम पतित हैं। पतित थोड़ेही मुक्ति को पायेंगे। बाप कहते हैं-हे आत्माओं, तुम पतित बने हो। वह शरीर को पतित समझ गंगा में स्नान करने जाते हैं। आत्मा को तो वह निर्लेप समझ लेते हैं। बाप समझाते हैं - मूल बात है ही आत्मा की। कहते भी हैं पाप आत्मा, पुण्य आत्मा। यह अक्षर अच्छी रीति याद करो। समझना और समझाना है। तुमको ही भाषण आदि करना है। बाप तो गांव-गांव में, गली-गली में नहीं जायेंगे। तुम घर-घर में यह चित्र रख दो। 84 का चक्र कैसे फिरता है। सीढ़ी में बड़ा क्लीयर है। अब बाप कहते हैं - सतोप्रधान बनो। अपने घर जाना है, पवित्र बनने बिगर तो घर जायेंगे नहीं। यही फुरना लगा रहे। बहुत बच्चे लिखते हैं, बाबा हमको बहुत तूफान आते हैं। मन्सा में बहुत खराब ख्यालात आते हैं। आगे नहीं आते थे। बाप कहते हैं तुम यह ख्याल नहीं करो। आगे कोई तुम युद्ध के मैदान में थोड़ेही थे। अभी तुमको बाप की याद में रह माया पर जीत पानी है। यह घड़ी-घड़ी याद करते रहो। गांठ बांध लो। जैसे मातायें गांठ बांध लेती हैं, पुरूष लोग फिर नोट बुक में लिखते हैं। तुम्हारा तो यह बैज अच्छी निशानी है। हम प्रिन्स बनते हैं, यह है ही बेगर टू प्रिन्स बनने की गॉडली युनिवर्सिटी। तुम प्रिन्स थे ना। श्रीकृष्ण वर्ल्ड का प्रिन्स था। जैसे इंगलैण्ड का भी प्रिन्स ऑफ वेल्स कहा जाता है। वह हैं हद की बातें, राधे-कृष्ण तो बहुत नामीग्रामी है। स्वर्ग के प्रिन्स-प्रिन्सेज थे ना इसलिए उन्हों को सभी प्यार करते हैं। श्रीकृष्ण को तो बहुत प्यार करते हैं। करना तो दोनों को चाहिए। पहले तो राधे को करना चाहिए। परन्तु बच्चे पर जास्ती प्यार रहता है क्योंकि वह वारिस बनता है। स्त्री का भी पति पर प्यार रहता है। पति के लिए ही कहते हैं यह तुम्हारा गुरू ईश्वर है। स्त्री के लिए ऐसे नहीं कहेंगे। सतयुग में तो माताओं की महिमा है। पहले लक्ष्मी फिर नारायण। अम्बा का कितना रिगार्ड रखते हैं। ब्रह्मा की बेटी है। ब्रह्मा का इतना नहीं है, ब्रह्मा का मन्दिर अजमेर में हैं। जहाँ मेले आदि लगते हैं। अम्बा के मन्दिर में भी मेला लगता है। वास्तव में यह सब मेले मैला बनाने के लिए ही हैं। तुम्हारा यह मेला है स्वच्छ बनने का।

स्वच्छ बनने के लिए तुमको स्वच्छ बाप को याद करना है। पानी से कोई पाप नाश नहीं होते हैं। गीता में भी भगवानुवाच है मनमनाभव। आदि और अन्त में यह अक्षर हैं। तुम बच्चे जानते हो हमने ही पहले-पहले भक्ति शुरू की है। सतोप्रधान भक्ति फिर सतो-रजो-तमो भक्ति होती है। अभी तो देखो मिट्टी पत्थर आदि सबकी करते हैं। यह सब है अन्धश्रद्धा। इस समय तुम संगम पर बैठे हो। यह उल्टा झाड़ है ना। ऊपर में है बीज। बाप कहते हैं इस मनुष्य सृष्टि का बीज रचता मैं हूँ। अभी नई दुनिया की स्थापना कर रहे हैं। सैपलिंग लगाते हैं ना। झाड़ के पुराने पत्ते झड़ जाते हैं। नये-नये पत्ते निकलते हैं। अभी बाप देवी-देवता धर्म की स्थापना कर रहे हैं। बहुत पत्ते हैं जो मिक्स हो गये हैं। अपने को हिन्दू कहलाते हैं। वास्तव में हिन्दू हैं ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म वाले। हिन्दुस्तान का वास्तव में नाम ही है भारत, जहाँ देवतायें रहते थे। और किसी देश का नाम नहीं बदलता, इनका नाम बदल दिया है। हिन्दुस्तान कह देते हैं। बौद्धी लोग ऐसे नहीं कहेंगे कि हमारा धर्म जापानी वा चीनी है। वह तो अपने धर्म को बौद्धी ही कहेंगे। तुम्हारे में कोई भी अपने को आदि सनातन देवी-देवता धर्म का नहीं कहते हैं। अगर कोई कहे भी तो बोलो वह धर्म कब और किसने स्थापन किया? कुछ भी बता नहीं सकेंगे। कल्प की आयु ही लम्बी-चौड़ी कर दी है, इसको कहा जाता है अज्ञान अन्धेरा। एक तो अपने धर्म का पता नहीं, दूसरा लक्ष्मी- नारायण के राज्य को बड़ा दूर ले गये हैं इसलिए घोर अन्धियारा कहा जाता है। ज्ञान और अज्ञान में कितना फर्क है। ज्ञान सागर है ही एक शिवबाबा। उनसे जैसे एक लोटा देते हैं। सिर्फ किसको यह सुनाओ कि शिवबाबा को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। यह जैसे चुल्लु पानी हुआ ना। कोई तो स्नान करते हैं, कोई घड़ा भर ले जाते हैं। कोई छोटी-छोटी लोटी ले जाते हैं। रोज़ एक-एक बूंद मटके में डाल उसको ज्ञान जल समझ पीते हैं। विलायत में भी वैष्णव लोग गंगा जल के घड़े भरकर ले जाते हैं। फिर मंगाते रहते हैं। अब यह तो सारा पानी पहाड़ों से ही आता है। ऊपर से भी पानी गिराते हैं। आजकल देखो मकान भी कितने ऊंचे 100 मंजिल तक के बनाते हैं। सतयुग में तो ऐसे नहीं होगा। वहाँ तो तुमको जमीन इतनी मिलती है बात मत पूछो। यहाँ रहने के लिए जमीन नहीं है, तब इतने मंजिल बनाते हैं। वहाँ अनाज भी अथाह पैदा होता है। जैसे अमेरिका में बहुत अनाज होता है तो जला देते हैं। यह है मृत्युलोक। वह है अमरलोक। आधाकल्प वहाँ तुम सुख में रहते हो। काल अन्दर घुस न सके। इस पर एक कथा भी है। यह है बेहद की बात। बेहद की बातों से फिर हद की कथायें बैठ बनाई हैं। ग्रंथ पहले कितना छोटा था। अब तो कितना बड़ा कर दिया है। शिवबाबा कितना छोटा है, उनकी भी कितनी बड़ी प्रतिमा बना दी है। बुद्ध के चित्र, पाण्डवों के चित्र बड़े-बड़े लम्बे बनाये हैं। ऐसे तो कोई होते नहीं। तुम बच्चों को तो यह एम ऑब्जेक्ट का चित्र घर-घर में रखना चाहिए। हम पढ़कर यह बन रहे हैं। फिर रोना थोड़ेही चाहिए। जो रोते हैं वह खोते हैं। देह-अभिमान में आ जाते हैं। तुम बच्चों को आत्म-अभिमानी बनना है, इसमें ही मेहनत लगती है। आत्म-अभिमानी बनने से ही खुशी का पारा चढ़ता है। मीठा बाबा याद आता है। बाबा से हम स्वर्ग का वर्सा ले रहे हैं। बाबा हमको इस भाग्यशाली रथ में आकर पढ़ाते हैं। रात-दिन बाबा-बाबा याद करते रहो। तुम आधाकल्प के आशिक हो। भक्त भगवान को याद करते हैं। भक्त हैं अनेक। ज्ञान में सब एक बाप को याद करते हैं। वही सबका बाप है। ज्ञान सागर बाप हमको पढ़ाते हैं, तुम बच्चों के तो रोमांच खड़े हो जाने चाहिए। तूफान तो माया के आयेंगे ही। बाबा कहते हैं - सबसे जास्ती तूफान तो मुझे आते हैं क्योंकि सबसे आगे मैं हूँ। हमारे पास आते हैं तब तो मैं समझता हूँ - बच्चों के पास कितने आते होंगे। मूँझते होंगे। अनेक प्रकार के तूफान आते हैं जो अज्ञान काल में भी कभी नहीं आते होंगे, वह भी आते हैं। पहले मुझे आने चाहिए, नहीं तो मैं बच्चों को समझाऊंगा कैसे। यह है फ्रंट में। रूसतम है तो माया भी रूसतम से रूसतम होकर लड़ती है। मल्लयुद्ध में सब एक जैसे नहीं होते हैं। फर्स्ट, सेकण्ड, थर्ड ग्रेड होती है। बाबा के पास सबसे जास्ती तूफान आते हैं, इसलिए बाबा कहते हैं इन तूफानों से डरो मत। सिर्फ कर्मेन्द्रियों से कोई विकर्म नहीं करो। कई कहते हैं - ज्ञान में आये हैं तो यह क्यों होता है, इससे तो ज्ञान नहीं लेते तो अच्छा था। संकल्प ही नहीं आते। अरे यह तो युद्ध है ना। स्त्री के सामने होते भी पवित्र दृष्टि रहे, समझना है शिवबाबा के बच्चे हम भाई-भाई हैं फिर प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान होने से भाई-बहन हो गये। फिर विकार कहाँ से आया। ब्राह्मण हैं ऊंच चोटी। जो ही फिर देवता बनते हैं तो हम बहन-भाई हैं। एक बाप के बच्चे कुमार-कुमारी। अगर दोनों कुमार-कुमारी होकर नहीं रहते तो फिर झगड़ा होता है। अबलाओं पर अत्याचार होते हैं। पुरूष भी लिखते हैं हमारी स्त्री तो जैसे पूतना है। बड़ी मेहनत है। जवानों को तो बहुत मेहनत होती है। और जो गन्धर्वी विवाह कर इकट्ठे रहते, कमाल है उन्हों की। उन्हों का बहुत ऊंच पद हो सकता है। परन्तु जब ऐसी अवस्था धारण करें। ज्ञान में तीखे हो जाएं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1)माया के तूफानों से डरना वा मूँझना नहीं हैं। सिर्फ ध्यान रखना है कर्मेन्द्रियों से कोई विकर्म न हो। ज्ञान सागर बाबा हमको पढ़ाते हैं - इसी खुशी में रहना है।
2)सतोप्रधान बनने के लिए आत्म अभिमानी बनने की मेहनत करनी है, ज्ञान का विचार सागर मंथन करना है, याद की यात्रा में रहना है।
वरदान:
सन्तुष्टता की विशेषता द्वारा सेवा में सफलतामूर्त बनने वाले सन्तुष्टमणी भव!   
सेवा का विशेष गुण सन्तुष्टता है। यदि नाम सेवा हो और स्वयं भी डिस्टर्ब हो व दूसरों को भी डिस्टर्ब करे तो ऐसी सेवा न करना अच्छा है। जहाँ स्वयं के प्रति वा सम्पर्क वालों से सन्तुष्टता नहीं वह सेवा न स्वयं को फल की प्राप्ति कराती है न दूसरों को, इसलिए पहले एकान्तवासी बन स्व परिवर्तन द्वारा सन्तुष्टमणी का वरदान प्राप्त कर फिर सेवा में आओ तब सफलतामूर्त बनेंगे।
स्लोगन:
विघ्नों रूपी पत्थर को तोड़ने में समय न गंवाकर उसे हाई जम्प देकर पार करो।