Sunday, October 25, 2015

मुरली 26 अक्टूबर 2015

26-10-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - आत्मा रूपी बैटरी 84 मोटरों में जाने के कारण डल हो गई है, अब उसे याद की यात्रा से भरपूर करो”   
प्रश्न:
बाबा किन बच्चों को बहुत-बहुत भाग्यशाली समझते हैं?
उत्तर:
जिनके पास कोई झंझट नहीं है, जो निर्बन्धन हैं, ऐसे बच्चों को बाबा कहते तुम बहुत-बहुत भाग्यशाली हो, तुम याद में रहकर अपनी बैटरी फुल चार्ज कर सकते हो। अगर योग नहीं सिर्फ ज्ञान सुनाते तो तीर लग नहीं सकता। भल कोई कितना भी भभके से अपना अनुभव सुनाये लेकिन खुद में धारणा नहीं तो दिल खाता रहेगा।
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप समझाते हैं। रूहानी बाप का नाम क्या है? शिवबाबा। वह है ही भगवान, बेहद का बाप। मनुष्य को कभी बेहद का बाप अथवा ईश्वर वा भगवान नहीं कहा जा सकता। नाम भल बहुतों के शिव हैं परन्तु वह सब देहधारी हैं इसलिए उनको भगवान नहीं कहा जा सकता। यह बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। मैंने जिसमें प्रवेश किया है, उनका यह बहुत जन्मों के अन्त का जन्म है। तुम बच्चों से कई पूछते हैं - तुम इनको भगवान क्यों कहते हो? बाप पहले से ही समझाते हैं - कोई भी स्थूल वा सूक्ष्म देहधारी को भगवान नहीं कह सकते। सूक्ष्म देहधारी सूक्ष्मवतनवासी ही ठहरे। उन्हों को देवता कहा जाता है। ऊंच ते ऊंच है ही भगवान, परमपिता। ऊंच ते ऊंच नाम है, ऊंच उनका गांव। बाप सभी आत्माओं सहित वहाँ निवास करते हैं। बैठक भी ऊंच है। वास्तव में कोई बैठने की जगह नहीं है। जैसे स्टॉर कहाँ बैठे हैं क्या? खड़े हैं ना। तुम आत्मायें भी अपनी ताकत से वहाँ खड़ी हो। ताकत ऐसे मिलती है जो वहाँ जाकर खड़े होते हैं। बाप का नाम ही है सर्वशक्तिमान्, उनसे शक्ति मिलती है। आत्मा उसको याद करती है, बैटरी चार्ज हो जाती है। जैसे मोटर में बैटरी होती है, उसके ज़ोर से ही मोटर चलती है। बैटरी में करेन्ट भरी हुई होती है फिर चलते-चलते वह खाली हो जाती है फिर बैटरी मेन पावर से चार्ज कर मोटर में डालते हैं। वह होती हैं हद की बातें। यह है बेहद की बात। तुम्हारी बैटरी तो 5 हज़ार वर्ष चलती है। चलते-चलते फिर ढीली हो जाती है। मालूम पड़ता है - एकदम खत्म नहीं होती है, कुछ न कुछ रहती है। जैसे टार्च में डिम हो जाती है ना। आत्मा तो है ही इस शरीर की बैटरी। यह भी डल हो जाती है। बैटरी इस शरीर से निकलती भी है फिर दूसरी, तीसरी मोटर में जाकर पड़ती है। 84 मोटरों में उनको डाला जाता है तो अब बाप कहते हैं तुम कितने डलहेड पत्थरबुद्धि बन गये हो। अब फिर अपनी बैटरी को भरो। सिवाए बाप की याद के आत्मा कभी पवित्र हो नहीं सकती। एक ही सर्वशक्तिमान् बाप है, जिनसे योग लगाना है। बाप खुद अपना परिचय देते हैं कि मैं क्या हूँ, कैसा हूँ। कैसे तुम्हारी आत्मा की बैटरी डल हो जाती है। अब तुमको राय देता हूँ मेरे को याद करो तो बैटरी सतोप्रधान फर्स्टक्लास हो जायेगी। पवित्र बनने से आत्मा 24 कैरेट बन जाती है। अभी तुम मुलम्मे के बन गये हो। ताकत बिल्कुल खत्म हो गई है। वह शोभा नहीं रही है। अब बाप तुम बच्चों को समझाते हैं बच्चे मुख्य बात है योग में रहना, पवित्र बनना। नहीं तो बैटरी भरेगी नहीं। योग लगेगा नहीं। भल कुक्कड़ ज्ञानी तो बहुत हैं। ज्ञान भल देते हैं परन्तु वह अवस्था नहीं है। यहाँ बड़े भभके से अनुभव सुनाते हैं। अन्दर खाता रहता है। मैं जो वर्णन करता हूँ ऐसी अवस्था तो है नहीं। कई फिर योगी तू आत्मा बच्चे भी हैं। बाप तो बच्चों की बहुत महिमा करते हैं। बाप कहते हैं-बच्चे, तुम बहुत- बहुत भाग्यशाली हो। तुमको तो इतने झंझट नहीं। जिसको बच्चे जास्ती होते हैं उनको बंधन भी होता है। बाबा को कितने ढेर बच्चे हैं। सबकी सम्भाल देख-रेख करनी पड़ती है। बाबा को भी याद करना है। माशूक की याद तो बिल्कुल पक्की होनी चाहिए। भक्ति मार्ग में तो तुम बाप को कितना याद करते आये हो-हे भगवान, पूजा भी पहले-पहले उनकी करते हो। पहले निराकार भगवान की ही करते हैं। ऐसे नहीं कि उस समय तुम आत्म-अभिमानी बनते हो। आत्म-अभिमानी फिर पूजा थोड़ेही करेंगे।

बाप समझाते हैं पहले-पहले भक्ति शुरू होती है तो पहले एक बाप की पूजा करते हैं। एक ही शिव की पूजा करते हैं। यथा राजा-रानी तथा प्रजा। ऊंच ते ऊंच है ही भगवान, उनको ही याद करना है। दूसरे जो भी सब नीचे हैं-ब्रह्मा-विष्णु- शंकर को भी याद करने की दरकार नहीं है। ऊंच ते ऊंच बाप को ही याद करना है। परन्तु ड्रामा का पार्ट ऐसा है जो तुम नीचे उतरने के लिए बांधे हुए हो। बाप समझाते हैं तुम कैसे नीचे उतरते हो। हर बात आदि से अन्त तक ऊपर से नीचे तक बाप समझाते हैं। भक्ति भी पहले सतोप्रधान फिर सतो-रजो-तमो होती है। अभी तुम फिर सतोप्रधान बन रहे हो, इसमें ही मेहनत है। पवित्र बनना है। अपने को देखना है, माया कहाँ धोखा तो नहीं देती है? मेरी क्रिमिनल आई तो नहीं बनती है? कोई पाप का ख्याल तो नहीं आता है? गायन है प्रजापिता ब्रह्मा तो उनकी सन्तान ब्राह्मण-ब्राह्मणियां बहन-भाई ठहरे ना। यहाँ के ब्राह्मण लोग भी अपने को ब्रह्मा की औलाद कहलाते हैं। तुम भी ब्राह्मण भाई-बहन हुए ना। फिर विकारी दृष्टि क्यों रखते हो। ब्राह्मणों को तुम अच्छी रीति दृष्टि दे सकते हो। अभी तुम बच्चे ही जानते हो ब्रह्मा की सन्तान ब्राह्मण-ब्राह्मणी बनकर फिर देवता बनते हैं। कहते भी हैं बाप आकर ब्राह्मण देवी-देवता धर्म की स्थापना करते हैं। यह समझ की बात है ना। हम ब्रह्मा की सन्तान भाई-बहन हो गये तो कुदृष्टि कभी नहीं जानी चाहिए। उनको रोकना है। यह भी हमारी मीठी बहन है। वह लव रहना चाहिए। जैसे ब्लड कनेक्शन में लव रहता है, वह बदलकर रूहानी बन जाए। इसमें बहुत-बहुत मेहनत है। है भी सहज याद। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है। विकार की दृष्टि नहीं रख सकते। बाबा ने समझाया है - यह आंखें बहुत धोखा देने वाली हैं, उनको बदलना है। हम आत्मा हैं। अभी तो हम शिवबाबा के बच्चे हैं। एडाप्ट किये हुए भाई-बहन हैं। हम अपने को बी.के. कहलाते हैं। चलन में फ़र्क तो रहता है ना। टीचर्स का काम है क्लास में सबसे पूछना - तुम समझते हो हमारी भाई-बहन की दृष्टि रहती है या कुछ चंचलता चलती है? सच्चे बाप के आगे सच न बताया, झूठ बोला तो बहुत दण्ड पड़ जायेगा। कोर्ट में कसम उठाते हैं ना। सच्चे ईश्वर बाप के आगे सच कहेंगे। सच्चे बाप का बच्चा भी सच्चा होगा। बाप ट्रुथ है ना। वह सत्य ही बतलाते हैं। बाकी सब हैं गपोड़े। श्री श्री 108 अपने को कहलाते हैं, वास्तव में यह तो माला है ना, जो सिमरते हैं। यह भी जानते नहीं कि हम क्यों सिमरते हैं। बौद्धियों की भी माला, क्रिश्चियन की भी माला होती है। हर एक अपने ढंग से माला फेरते हैं। तुम बच्चों को अब ज्ञान मिला हुआ है। बोलो, 108 की जो माला है उसमें ऊपर में फूल तो है निराकार। उनको ही सब याद करते हैं। उनकी याद से ही हम स्वर्ग की पटरानी अर्थात् महारानी बनते हैं। नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनना - यह है सूर्यवंशी मखमल की पटरानी बनना फिर खादी की हो जाती है। तो ऐसी-ऐसी प्वाइंट्स बुद्धि में रख फिर समझाना चाहिए। फिर तुम्हारा नाम बहुत बाला हो जायेगा। बात करने में शेरनी बनो। तुम शिव शक्ति सेना हो ना। अनेक प्रकार की सेनायें हैं ना। वहाँ भी तुम जाकर देखो क्या सिखलाते हैं। लाखों मनुष्य जाते हैं। बाबा ने समझाया है - क्रिमिनल आई बहुत धोखा देने वाली है। अपनी अवस्था का वर्णन करना चाहिए। अनुभव सुनाना चाहिए - हम घर में कैसे रहते हैं? अवस्था पर क्या असर पड़ता है? डायरी रखो-कितना समय इस अवस्था में रहता हूँ? बाप समझाते हैं रूसतम से माया भी रूसतम होकर लड़ती है। युद्ध का मैदान है ना। माया बड़ी बलवान है। माया अर्थात् 5 विकार। धन को सम्पत्ति कहा जाता है, जिसके पास जास्ती सम्पत्ति होती है, अजामिल भी जास्ती वह बनते हैं।

बाप कहते हैं - पहले-पहले तुम वेश्याओं को तो बचाओ। तो वह फिर अपनी एसोसिएशन बनायेंगी। हमको तो बाप से वर्सा लेना है। बाप कहते हैं मैं तुमको शिवालय का मालिक बनाने आया हूँ। यह अन्तिम जन्म है। वेश्याओं को समझाना चाहिए - तुम्हारे नाम के कारण भारत की इतनी आबरू (इज्जत) गई है। अब बाप आये हैं शिवालय में ले चलने। हम श्रीमत पर आये हैं तुम्हारे पास। अभी तुम विश्व की मालिक बन जाओ। भारत का नाम बाला करो, हमारे मुआफ़िक। हम भी बाप को याद करने से पवित्र बन रहे हैं। तुम भी यह एक जन्म छी-छी काम छोड़ दो। रहम तो करना है ना। फिर तुम्हारा नाम बाला बहुत हो जायेगा। कहेंगे इनमें तो ऐसी ताकत है जो ऐसा गन्दा धंधा इनसे छुड़ा दिया। सबकी एसोसिएशन है। तुम अपनी एसोसिएशन बनाकर गवर्मेंन्ट से जो चाहे ले सकती हो। तो अब ऐसे छी-छी जिन्होंने भारत का नाम बदनाम किया है, उन्हों की सेवा करो। तुम्हारी भी युनियन बहुत पक्की चाहिए। जो 10-12 आपस में मिलकर जाए समझायें। मातायें भी अच्छी हों। कोई नया युगल हो, बोले हम पवित्र रहते हैं। पवित्र रहने से ही विश्व के मालिक बनते हैं। तो क्यों नहीं पवित्र बनेंगे। सारा झुण्ड का झुण्ड जाये। बड़ी नम्रता से जाकर कहना है, हम आपको परमपिता परमात्मा का पैगाम देने आये हैं। अब विनाश सामने खड़ा है। बाप कहते हैं मैं सबका उद्धार करने आया हूँ। तुम भी यह एक जन्म विकार में मत जाओ। तुम समझा सकते हो हम ब्रह्माकुमार-कुमारियां अपने ही तन-मन-धन से सर्विस करते हैं। हम भीख तो मांगते नहीं। ईश्वर के बच्चे हैं। ऐसे-ऐसे प्लैन बनाओ। ऐसे नहीं कि तुम मदद नहीं कर सकते हो। ऐसा काम करो जिसमें वाह-वाह हो। हजारों मदद देने वाले निकल आयेंगे। यह अपना संगठन बनाओ। मुख्य-मुख्य को चुनो, सेमीनार करो। बच्चों को सम्भालने वाले तो बहुत निकल सकते हैं। तुम ईश्वरीय सर्विस में लग जाओ। ऐसी फ्राकदिल होनी चाहिए जो झट सर्विस पर निकल पड़े। एक तरफ यह सर्विस और दूसरी बात गीता की, इन बातों को मिलकर उठाओ। तुम पढ़ते ही हो यह लक्ष्मी-नारायण बनने के लिए। तो यहाँ तुम बच्चों का आपस में मतभेद नहीं रहना चाहिए। अगर कोई बात बाप से छिपाते हो, सच नहीं बताते हो तो भी अपना ही नुकसान करते हो और ही सौगुणा पाप चढ़ जाता है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) हम मीठे बाप के बच्चे हैं, आपस में मीठे बहन-भाई होकर रहना है। कभी भी विकार की दृष्टि नहीं रखनी है। दृष्टि में कोई भी चंचलता हो तो रूहानी सर्जन को सच बताना है।
2) कभी भी आपस में मतभेद में नहीं आना है। फ्राकदिल बन सर्विस करनी है। अपने तन-मन धन से, बहुत-बहुत नम्रता से सेवा कर सबको बाप का परिचय (पैगाम) देना है।
वरदान:
करनहार और करावनहार की स्मृति से लाइट के ताजधारी बेफिक्र बादशाह भव!   
मैं निमित्त कर्मयोगी, करनहार हूँ, करावनहार बाप है-अगर यह स्मृति स्वत:रहती है तो सदा लाइट के ताजधारी वा बेफिकर बादशाह बन जाते। बस बाप और मैं तीसरा न कोई-यह अनुभूति सहज बेफिकर बादशाह बना देती है। जो ऐसे बादशाह बनते हैं वही मायाजीत, कर्मेन्द्रिय जीत और प्रकृतिजीत बन जाते हैं। लेकिन यदि कोई गलती से भी, किसी भी व्यर्थ भाव का अपने ऊपर बोझ उठा लेते तो ताज के बजाए फिकर के अनेक टोकरे सिर पर आ जाते हैं।
स्लोगन:
सर्व बन्धनों से मुक्त होने के लिए दैहिक नातों से नष्टोमोहा बनो।