Monday, October 19, 2015

मुरली 20 अक्टूबर 2015

“मीठे बच्चे - तुम अभी कांटे से फूल बने हो, तुम्हें हमेशा सबको सुख देना है, तुम किसी को भी दु:ख नहीं दे सकते हो”

प्रश्न:

अच्छे फर्स्टक्लास पुरुषार्थी बच्चे कौन से बोल खुले दिल से बोलेंगे?

उत्तर:

बाबा हम तो पास विद् ऑनर होकर दिखायेंगे। आप बेफिक्र रहो। उनका रजिस्टर भी अच्छा होगा। उनके मुख से कभी भी यह बोल नहीं निकलेंगे कि अभी तो हम पुरुषार्थी हैं। पुरूषार्थ कर ऐसा महावीर बनना है जो माया जरा भी हिला न सके।

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) आत्मा पर जो कट (जंक) चढ़ी है, उसे याद की यात्रा से उतार कर बहुत-बहुत लवली बनना है। लव ऐसा हो जो बाप की सदा कशिश रहे।

2) माया के तूफानों से डरना नहीं है, महावीर बनना है। अपने अवगुणों को निकालते जाना है, सदा हर्षित रहना है। कभी भी हिलना नहीं है।

वरदान:

स्वीट साइलेन्स की लवलीन स्थिति द्वारा नष्टोमोहा समर्थ स्वरूप भव!  

देह, देह के सम्बन्ध, देह के संस्कार, व्यक्ति या वैभव, वायुमण्डल, वायब्रेशन सब होते हुए भी अपनी ओर आकर्षित न करें। लोग चिल्ल्लाते रहें और आप अचल रहो। प्रकृति, माया सब लास्ट दांव लगाने के लिए अपनी तरफ कितना भी खीचें लेकिन आप न्यारे और बाप के प्यारे बनने की स्थिति में लवलीन रहो-इसको कहा जाता है देखते हुए न देखो, सुनते हुए न सुनो। यही स्वीट साइलेन्स स्वरूप की लवलीन स्थिति है, जब ऐसी स्थिति बनेंगी तब कहेंगे नष्टोमोष्टा समर्थ स्वरूप की वरदानी आत्मा।

स्लोगन:

होली हंस बन अवगुण रूपी कंकड़ को छोड़ अच्छाई रूपी मोती चुगते चलो।  


ओम् शांति ।

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20-10-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - तुम अभी कांटे से फूल बने हो, तुम्हें हमेशा सबको सुख देना है, तुम किसी को भी दु:ख नहीं दे सकते हो”  
प्रश्न:
अच्छे फर्स्टक्लास पुरुषार्थी बच्चे कौन से बोल खुले दिल से बोलेंगे?
उत्तर:
बाबा हम तो पास विद् ऑनर होकर दिखायेंगे। आप बेफिक्र रहो। उनका रजिस्टर भी अच्छा होगा। उनके मुख से कभी भी यह बोल नहीं निकलेंगे कि अभी तो हम पुरुषार्थी हैं। पुरूषार्थ कर ऐसा महावीर बनना है जो माया जरा भी हिला न सके।
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चे रूहानी बाप द्वारा पढ़ रहे हैं। अपने को आत्मा समझना चाहिए। निराकार बाप के हम निराकारी बच्चे आत्मायें पढ़ रहे हैं। दुनिया में साकारी टीचर ही पढ़ाते हैं। यहाँ है निराकार बाप, निराकार टीचर, बाकी इनकी कोई वैल्यु नहीं। शिवबाबा बेहद का बाप आकर इनको वैल्यु देते हैं। मोस्ट वैल्युबुल है शिवबाबा, जो स्वर्ग की स्थापना करते हैं। कितना ऊंच कार्य करते हैं। जितना बाप ऊंच ते ऊंच गाया जाता है, उतना ही बच्चों को भी ऊंच बनना है। तुम जानते हो सबसे ऊंच है बाप। यह भी तुम्हारी बुद्धि में है कि बरोबर, अभी स्वर्ग की राजाई स्थापन हो रही है, यह है संगमयुग। सतयुग और कलियुग का बीच, पुरूषोत्तम बनने का संगमयुग। पुरूषोत्तम अक्षर का अर्थ भी मनुष्य नहीं जानते। ऊंच ते ऊंच सो फिर नीच ते नीच बने हैं। पतित और पावन में कितना फ़र्क है। देवताओं के जो पुजारी होते हैं, वह खुद वर्णन करते हैं, आप सर्वगुण सम्पन्न....... विश्व के मालिक। हम विषय वैतरणी नदी में गोता खाने वाले हैं। कहने मात्र सिर्फ कहते हैं, समझते थोड़ेही हैं। ड्रामा विचित्र वण्डरफुल है। ऐसी-ऐसी बातें तुम कल्प-कल्प सुनते हो। बाप आकर समझाते हैं। जिनका बाप के साथ पूरा लव है उनको बहुत कशिश होती है। अब आत्मा बाप को कैसे मिले? मिलना होता है साकार में, निराकारी दुनिया में तो कशिश की बात ही नहीं। वहाँ तो हैं ही सब पवित्र। कट निकली हुई है। कशिश की बात नहीं। लव की बात यहाँ होती है। ऐसे बाबा को तो एकदम पकड़ लो। बाबा आप तो कमाल करते हो। आप हमारी जीवन ऐसी बनाते हो। बहुत लव चाहिए। लव क्यों नहीं है क्योंकि कट चढ़ी हुई है। याद की यात्रा के सिवाए कट निकलेगी नहीं, इतने लवली नहीं बनते हैं। तुम फूलों को तो यहाँ ही खिलना है, फूल बनना है। तब फिर वहाँ जन्म- जन्मान्तर फूल बनते हो। कितनी खुशी होनी चाहिए - हम कांटे से फूल बन रहे हैं। फूल हमेशा सबको सुख देते हैं। फूल को सब अपनी आंखों पर रखते हैं, उनसे खुशबू लेते हैं। फूलों का इत्र बनाते हैं। गुलाब का जल बनाते हैं। तुमको कांटों से फूल बनाते हैं। फूल बनाने वाला बाप है। तुम बच्चों को खुशी क्यों नहीं होती है। बाबा तो वन्डर खाता है। बाबा हमको स्वर्ग का फूल बनाते हैं। फूल भी पुराना होता है, तो फिर एकदम मुरझा जाता है। तुम्हारी बुद्धि में है अभी हम मनुष्य से देवता बनते हैं। तमोप्रधान मनुष्य और सतोप्रधान देवताओं में कितना फ़र्क है। यह भी सिवाए बाप के और कोई समझ न सके।

तुम जानते हो हम देवता बनने के लिए पढ़ रहे हैं। पढ़ाई में नशा रहता है ना। तुम भी समझते हो हम बाबा द्वारा पढ़कर विश्व के मालिक बनते हैं। तुम्हारी पढ़ाई है फार फ्यूचर। फ्युचर के लिए पढ़ाई कब सुनी है? तुम ही कहते हो हम पढ़ते हैं नई दुनिया के लिए। नये जन्म के लिए। कर्म-अकर्म-विकर्म की गति भी बाप समझाते हैं। गीता में भी है परन्तु उनका अर्थ गीता वालों को थोड़ेही आता है। अभी बाप द्वारा तुमने जाना है कि सतयुग में कर्म अकर्म हो जाता है फिर रावण राज्य में कर्म विकर्म होना शुरू होते हैं। 63 जन्म तुम ऐसे कर्म करते आये हो। विकर्मों का बोझा सिर पर बहुत है। सब पाप आत्मायें बन गये हैं। अब वह पास्ट के विकर्म कैसे कटेंगे। तुम जानते हो पहले सतोप्रधान थे फिर 84 जन्म लेते हैं। बाप ने ड्रामा की पहचान दी है। जो पहले-पहले आयेंगे, पहले-पहले जिनका राज्य होगा वही 84 जन्म लेंगे। फिर बाप आकर राज्य-भाग्य देगा। अभी तुम राज्य ले रहे हो। समझते हो हमने कैसे 84 का चक्र लगाया है। अब फिर पवित्र बनना है। बाबा को याद करते-करते आत्मा पवित्र हो जायेगी फिर यह पुराना शरीर खत्म हो जायेगा। बच्चों को अपार खुशी होनी चाहिए। यह महिमा तो कभी भी कहाँ नहीं सुनी कि बाप, बाप भी है, टीचर भी है, गुरू भी है। सो भी तीनों ही ऊंच ते ऊंच हैं। सत बाप, सत टीचर, सतगुरू तीनों एक ही हैं। अभी तुमको भासना आती है। बाबा जो ज्ञान का सागर है, सभी आत्माओं का बाप है, वह हमको पढ़ा रहे हैं। युक्ति रच रहे हैं। मैगजीन में भी अच्छी-अच्छी प्वाइंट्स निकलती रहती हैं। हो सकता है रंगीन चित्रों की भी मैगजीन निकले। सिर्फ अक्षर छोटे-छोटे हो जाते हैं। चित्र तो बने हुए हैं। कहाँ भी कोई बना सकते हैं। ऊपर से लेकर हर एक चित्र का आक्यूपेशन तुम जानते हो। शिवबाबा का भी आक्यूपेशन तुम जानते हो। बच्चे बाप का आक्यूपेशन जरूर बाप द्वारा ही जानेंगे ना। तुम कुछ भी नहीं जानते थे। छोटे बच्चे पढ़ाई से क्या जानें। 5 वर्ष के बाद पढ़ना शुरू करते हैं। फिर पढ़ते-पढ़ते कई वर्ष लग जाते हैं, ऊंच इम्तहान पास करने में। तुम हो कितने साधारण और बनते क्या हो! विश्व के मालिक। तुम्हारा कितना श्रृंगार होगा। गोल्डन स्पून इन माउथ। वहाँ का तो गायन ही है। अभी भी कोई अच्छे बच्चे शरीर छोड़ते हैं तो बहुत अच्छे घर में जन्म लेते हैं। तो गोल्डन स्पून इन माउथ मिलता है। इनएडवान्स तो जायेंगे ना कोई पास। निर्विकारी के पास तो पहले-पहले जन्म श्रीकृष्ण को ही लेना है। बाकी तो जो भी जायेंगे वह विकारी पास ही जन्म लेंगे। परन्तु गर्भ में इतनी सज़ायें नहीं भोगेंगे। बड़े अच्छे घर में जन्म लेंगे। सज़ायें तो कट गई, बाकी करके थोड़ी होंगी। इतना दु:ख नहीं होगा। आगे चल देखना तुम्हारे पास बड़े-बड़े घर के बच्चे प्रिन्स-प्रिन्सेज कैसे आते हैं। बाप तुम्हारी कितनी महिमा करते हैं। तुमको हम अपने से भी ऊंच बनाता हूँ। जैसे कोई लौकिक बाप बच्चों को सुखी बनाते हैं। 60 वर्ष हुए बस खुद वानप्रस्थ में चले जाते हैं, भक्ति में लग जाते हैं। ज्ञान तो कोई दे न सके। ज्ञान से सर्व की सद्गति मैं करता हूँ। तुम्हारे निमित्त सबका कल्याण हो जाता है क्योंकि तुम्हारे लिए जरूर नई दुनिया चाहिए। तुम कितने खुश होते हो। अब वेजीटेरियन की कान्फ्रेन्स में भी तुम बच्चों को निमन्त्रण मिला हुआ है। बाबा तो कहते रहते हैं हिम्मत करो। देहली जैसे शहर में तो एकदम आवाज़ फैल जाए। दुनिया में अन्धश्रद्धा की भक्ति बहुत है। सतयुग-त्रेता में भक्ति की कोई बात होती नहीं। वह डिपार्टमेंट अलग है। आधाकल्प ज्ञान की प्रालब्ध होती है। तुमको 21 जन्म का वर्सा मिलता है, बेहद के बाप से। फिर 21 पीढ़ी तुम सुखी रहते हो। बुढ़ापे तक दु:ख का नाम नहीं रहता। फुल आयु सुखी रहते हो। जितना वर्सा पाने का पुरूषार्थ करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। तो पुरूषार्थ पूरा करना चाहिए। तुम देखते हो नम्बरवार माला कैसे बनती है। पुरूषार्थ अनुसार ही बनेगी। तुम हो स्टूडेन्ट, वन्डरफुल। स्कूल में भी बच्चों को दौड़ाते हैं ना निशान तक। बाबा भी कहते हैं तुमको निशान तक दौड़कर फिर यहाँ ही आना है। याद की यात्रा से तुम दौड़कर जाओ फिर तुम नम्बरवन में आ जायेंगे। मुख्य है याद की यात्रा। कहते हैं - बाबा हम भूल जाते हैं। अरे बाप इतना तुमको विश्व का मालिक बनाते हैं, उनको तुम भूल जाते हो। भल तूफान तो आयेंगे। बाप हिम्मत दिलायेंगे ना। साथ-साथ कहते हैं यह युद्ध-स्थल है। युद्धिष्ठिर भी वास्तव में बाप को कहना चाहिए जो युद्ध सिखलाते हैं। युद्धिष्ठिर बाप तुमको सिखलाते हैं - माया से तुम युद्ध कैसे कर सकते हो। इस समय युद्ध का मैदान है ना। बाप कहते हैं - काम महाशत्रु है, उन पर जीतने से तुम जगत जीत बनेंगे। तुमको मुख से कुछ भी जपना, करना नहीं है, चुप रहना है। भक्ति मार्ग में कितनी मेहनत करते हैं। अन्दर राम-राम जपते हैं, उसको ही कहा जाता है नौधा भक्ति। तुम जानते हो बाबा हमको अपनी माला का बना रहे हैं। तुम रूद्र माला के मणके बनने वाले हो जिसको फिर पूजेंगे। रूद्र माला और रूण्ड माला बन रही है। विष्णु की माला को रूण्ड कहा जाता है। तुम विष्णु के गले का हार बनते हो। कैसे बनेंगे? जब दौड़ी में विन करेंगे। बाप को याद करना है और 84 के चक्र काे जानना है। बाप की याद से ही विकर्म विनाश होंगे। तुम कैसे लाइट हाउस हो। एक आंख में मुक्तिधाम, एक में जीवनमुक्तिधाम। इस चक्र को जानने से तुम चक्रवर्ता राजा, सुखधाम के मालिक बन जायेंगे। तुम्हारी आत्मा कहती है - अभी हम आत्मायें जायेंगे अपने घर। घर को याद करते-करते जायेंगे। यह है याद की यात्रा। तुम्हारी यात्रा देखो कैसी फर्स्टक्लास है। बाबा जानते हैं हम ऐसे बैठे-बैठे क्षीरसागर में जायेंगे। विष्णु को क्षीर सागर में दिखाते हैं ना। बाप को याद करते-करते क्षीर सागर में चले जायेंगे। क्षीर सागर अभी तो है नहीं। जिन्हों ने तलाव बनाया है जरूर क्षीर डाला होगा। आगे तो क्षीर (दूध) बहुत सस्ता था। एक पैसे का लोटा भरकर आता था। तो क्यों नहीं तलाव भरता होगा। अभी तो क्षीर है कहाँ। पानी ही पानी हो गया है। बाबा ने नेपाल में देखा है - बहुत बड़ा विष्णु का चित्र है। सांवरा ही बनाया है। अभी तुम विष्णुपुरी के मालिक बन रहे हो - याद की यात्रा से और स्वदर्शन चक्र फिराने से। दैवीगुण भी यहाँ धारण करने हैं। यह है पुरूषोत्तम संगमयुग। पढ़ते-पढ़ते तुम पुरूषोत्तम बन जायेंगे। आत्मा का कनिष्टपना छूट जायेगा। बाबा रोज़-रोज़ समझाते हैं - नशा चढ़ना चाहिए। कहते हैं बाबा पुरूषार्थ कर रहे हैं। अरे खुले दिल से बोलो ना - बाबा हम तो पास विद आनर होकर दिखायेंगे। आप फिकर मत करो। फर्स्टक्लास बच्चे जो अच्छी रीति पढ़ते हैं, उनका रजिस्टर भी अच्छा होगा। बाबा को कहना चाहिए - बाबा आप बेफिकर रहो, हम ऐसा बनकर दिखायेंगे। बाबा भी जानते हैं ना, बहुत टीचर्स बड़ी फर्स्टक्लास हैं। सब तो फर्स्टक्लास नहीं बन सकते। अच्छे-अच्छे टीचर्स एक दो को भी जानते हैं। सबको महारथियों की लाइन में नहीं ला सकते। अच्छे बड़े-बड़े सेन्टर्स खोलो तो बड़े-बड़े आदमी आयेंगे। कल्प पहले भी हुण्डी भरी थी। सांवलशाह बाबा हुण्डी जरूर भरेंगे। दोनों बाप बचड़ेवाल हैं। प्रजापिता ब्रह्मा के कितने बच्चे हैं। कोई गरीब, कोई साधारण, कोई साहूकार, कल्प पहले भी इनके द्वारा राजाई स्थापन हुई थी, जिसको दैवी राजस्थान कहा जाता था। अब तो आसुरी राजस्थान है। सारी विश्व दैवी राजस्थान थी, इतने खण्ड थे नहीं। यही देहली जमुना का कण्ठा था, उनको परिस्तान कहा जाता है। वहाँ की नदियाँ आदि उछलती थोड़ेही हैं। अभी तो कितनी उछलती हैं, डैम्स फट पड़ते हैं। प्रकृति के जैसे हम दास बन गये हैं। फिर तुम मालिक बन जायेंगे। वहाँ माया की ताकत नहीं रहती है जो बेइज्जती करे। धरती की ताकत नहीं जो हिल सके। तुमको भी महावीर बनना चाहिए। हनूमान को महावीर कहते हैं ना। बाप कहते हैं तुम सब महावीर हो। महावीर बच्चे कभी हिल न सकें। महावीर महावीरनी के मन्दिर बने हुए हैं। चित्र इतने थोड़ेही सबके रखेंगे। माडल रूप में बनाया हुआ है। अभी तुम भारत को स्वर्ग बना रहे हो तो कितनी खुशी होनी चाहिए। कितने अच्छे गुण होने चाहिए। अवगुणों को निकालते जाओ। सदैव हर्षित रहना है। तूफान तो आयेंगे। तूफान आयें तब तो महावीरनी की ताकत देखने में आये। तुम जितना मजबूत बनेंगे उतना तूफान आयेंगे। अभी तुम पुरूषार्थ कर महावीर बन रहे हो, नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। ज्ञान का सागर बाप ही है। बाकी सब शास्त्र आदि हैं भक्ति मार्ग की सामग्री। तुम्हारे लिए है - पुरूषोत्तम संगमयुग। कृष्ण की आत्मा यहाँ ही बैठी है। भागीरथ यह है। ऐसे तुम सब भागीरथ हो, भाग्यशाली हो ना। भक्ति मार्ग में बाप तो कोई का भी साक्षात्कार करा सकते हैं। इस कारण मनुष्यों ने सर्वव्यापी कह दिया है, यह भी ड्रामा की भावी। तुम बच्चे बहुत ऊंच पढ़ाई पढ़ रहे हो। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) आत्मा पर जो कट (जंक) चढ़ी है, उसे याद की यात्रा से उतार कर बहुत-बहुत लवली बनना है। लव ऐसा हो जो बाप की सदा कशिश रहे।
2) माया के तूफानों से डरना नहीं है, महावीर बनना है। अपने अवगुणों को निकालते जाना है, सदा हर्षित रहना है। कभी भी हिलना नहीं है।
वरदान:
स्वीट साइलेन्स की लवलीन स्थिति द्वारा नष्टोमोहा समर्थ स्वरूप भव!   
देह, देह के सम्बन्ध, देह के संस्कार, व्यक्ति या वैभव, वायुमण्डल, वायब्रेशन सब होते हुए भी अपनी ओर आकर्षित न करें। लोग चिल्ल्लाते रहें और आप अचल रहो। प्रकृति, माया सब लास्ट दांव लगाने के लिए अपनी तरफ कितना भी खीचें लेकिन आप न्यारे और बाप के प्यारे बनने की स्थिति में लवलीन रहो-इसको कहा जाता है देखते हुए न देखो, सुनते हुए न सुनो। यही स्वीट साइलेन्स स्वरूप की लवलीन स्थिति है, जब ऐसी स्थिति बनेंगी तब कहेंगे नष्टोमोष्टा समर्थ स्वरूप की वरदानी आत्मा।
स्लोगन:
होली हंस बन अवगुण रूपी कंकड़ को छोड़ अच्छाई रूपी मोती चुगते चलो।