Monday, October 12, 2015

मुरली 13 अक्टूबर 2015

“मीठे बच्चे - श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनने के लिए स्वयं भगवान तुम्हें श्रेष्ठ मत दे रहे हैं, जिससे तुम नर्कवासी से स्वर्गवासी बन जाते हो”।

प्रश्न:

देवता बनने वाले बच्चों को विशेष किन बातों का ध्यान रखना है?

उत्तर:

कभी कोई बात में रूठना नहीं, शक्ल मुर्दे जैसी नहीं करनी है। किसी को भी दु:ख नहीं देना है। देवता बनना है तो मुख से सदैव फूल निकलें। अगर कांटे वा पत्थर निकलते हैं तो पत्थर के पत्थर ठहरे। गुण बहुत अच्छे धारण करने हैं। यहाँ ही सर्वगुण सम्पन्न बनना है। सज़ा खायेंगे तो फिर पद अच्छा नहीं मिलेगा।

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) मुख से ज्ञान रत्न निकालने की प्रैक्टिस करनी है। कभी मुख से कांटे वा पत्थर नहीं निकालने हैं। अपना और घर का कल्याण करने के लिए घर में चित्र सजा देने हैं, उस पर विचार सागर मंथन कर दूसरों को समझाना है। बिजी रहना है।

2) बाप से आशीर्वाद मांगने के बजाए उनकी श्रेष्ठ मत पर चलना है। बलिहारी शिवबाबा की है इसलिए उन्हें ही याद करना है। यह अभिमान न आये कि हमने बाबा को इतना दिया।

वरदान:

साधारण कर्म करते भी ऊंची स्थिति में स्थित रहने वाले सदा डबल लाइट भव!

जैसे बाप साधारण तन लेते हैं, जैसे आप बोलते हो वैसे ही बोलते हैं, वैसे ही चलते हैं तो कर्म भल साधारण है, लेकिन स्थिति ऊंची रहती है। ऐसे आप बच्चों की भी स्थिति सदा ऊंची हो। डबल लाइट बन ऊंची स्थिति में स्थित हो कोई भी साधारण कर्म करो। सदैव यही स्मृति में रहे कि अवतरित होकर अवतार बन करके श्रेष्ठ कर्म करने के लिए आये हैं। तो साधारण कर्म अलौकिक कर्म में बदल जायेंगे।

स्लोगन:

आत्मिक दृष्टि-वृत्ति का अभ्यास करने वाले ही पवित्रता को सहज धारण कर सकते हैं।


ओम् शांति ।

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13-10-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनने के लिए स्वयं भगवान तुम्हें श्रेष्ठ मत दे रहे हैं, जिससे तुम नर्कवासी से स्वर्गवासी बन जाते हो”।  
प्रश्न:
देवता बनने वाले बच्चों को विशेष किन बातों का ध्यान रखना है?
उत्तर:
कभी कोई बात में रूठना नहीं, शक्ल मुर्दे जैसी नहीं करनी है। किसी को भी दु:ख नहीं देना है। देवता बनना है तो मुख से सदैव फूल निकलें। अगर कांटे वा पत्थर निकलते हैं तो पत्थर के पत्थर ठहरे। गुण बहुत अच्छे धारण करने हैं। यहाँ ही सर्वगुण सम्पन्न बनना है। सज़ा खायेंगे तो फिर पद अच्छा नहीं मिलेगा।
ओम् शान्ति।
नये विश्व वा नई दुनिया के मालिक बनने वाले रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप बैठ समझाते हैं। यह तो बच्चे समझते हैं कि बाप आये हैं बेहद का वर्सा देने। हम लायक नहीं थे। कहते हैं हे प्रभू मैं लायक नहीं हूँ, मुझे लायक बनाओ। बाप बच्चों को समझाते हैं - तुम मनुष्य तो हो, यह देवतायें भी मनुष्य हैं परन्तु इनमें दैवीगुण हैं। इन्हों को सच्चा- सच्चा मनुष्य कहेंगे। मनुष्यों में आसुरी गुण होते हैं तो उनको कहा जाता - इन-ह्युमन। चलन जानवरों मिसल हो जाती है। दैवीगुण नहीं हैं, तो उसको आसुरी गुण कहा जाता है। अब फिर बाप आकर तुमको श्रेष्ठ देवता बनाते हैं। सच खण्ड में रहने वाले सच्चे-सच्चे मनुष्य यह लक्ष्मी-नारायण हैं, इन्हों को फिर देवता कहा जाता है। इन्हों में दैवीगुण हैं। भल गाते भी हैं हे पतित-पावन आओ। परन्तु पावन राजायें कैसे होते हैं फिर पतित राजायें कैसे होते हैं, यह राज़ कोई नहीं जानते। वह है भक्ति मार्ग। ज्ञान को तो और कोई जानता नहीं। तुम बच्चों को बाप समझाते हैं और ऐसा बनाते हैं। कर्म तो यह देवतायें भी सतयुग में करते हैं परन्तु पतित कर्म नहीं करते हैं। उनमें दैवीगुण हैं। छी-छी काम न करने वाले ही स्वर्गवासी होते हैं। नर्कवासी से माया छी-छी काम कराती है। अब भगवान बैठ श्रेष्ठ काम कराते हैं और श्रेष्ठ मत देते हैं कि ऐसे छी-छी काम नहीं करो। श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनने के लिए श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत देते हैं। देवतायें श्रेष्ठ हैं ना। रहते भी हैं नई दुनिया स्वर्ग में। यह भी तुम्हारे में नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार जानते हैं इसलिए माला भी बनती है 8 की वा 108 की, करके 16108 की भी कहें, वह भी क्या हुआ। इतने करोड़ मनुष्य हैं, इनमें 16 हजार निकले तो क्या हुआ। क्वार्टर परसेन्ट भी नहीं। बाप बच्चों को कितना ऊंच बनाते हैं, रोज़ बच्चों को समझाते हैं कि कोई भी विकर्म नहीं करो। तुमको ऐसा बाप मिला है तो बहुत खुशी होनी चाहिए। तुम समझते हो कि हमको बेहद के बाप ने एडाप्ट किया है। हम उनके बने हैं। बाप है स्वर्ग का रचयिता। तो ऐसे स्वर्ग का मालिक बनने के लायक सर्वगुण सम्पन्न बनना पड़े। यह लक्ष्मी-नारायण सर्वगुण सम्पन्न थे। इन्हों के लायकी की महिमा की जाती है, फिर 84 जन्मों के बाद न लायक बन जाते हैं। एक जन्म भी नीचे उतरे तो ज़रा कला कम हुई। ऐसे धीरे-धीरे कम होती जाती है। जैसे ड्रामा भी जूँ मिसल चलता है ना। तुम भी धीरे-धीरे नीचे उतरते हो तो 1250 वर्ष में दो कला कम हो जाती हैं। फिर रावण राज्य में जल्दी-जल्दी कला कम हो जाती है। ग्रहण लग जाता है। जैसे सूर्य-चांद को भी ग्रहण लगता है ना। ऐसे नहीं कि चन्द्रमा सितारों को ग्रहण नहीं लगता है, सबको पूरा ग्रहण लगा हुआ है। अब बाप कहते हैं - याद से ही ग्रहण उतरेगा। कोई भी पाप नहीं करो। पहला नम्बर पाप है देह- अभिमान में आना। यह कड़ा पाप है। बच्चों को इस एक जन्म के लिए ही शिक्षा मिलती है क्योंकि अभी दुनिया को चेन्ज होना है। फिर ऐसी शिक्षा कभी मिलती नहीं। बैरिस्टरी आदि की शिक्षा तो तुम जन्म-जन्मान्तर लेते आये हैं। स्कूल आदि तो सदा हैं ही। यह ज्ञान एक बार मिला, बस। ज्ञान सागर बाप एक ही बार आते हैं। वह अपना और अपनी रचना के आदि-मध्य-अन्त की सारी नॉलेज देते हैं। बाप कितना सहज समझाते हैं - तुम आत्मायें पार्टधारी हो। आत्मायें अपने घर से आकर यहाँ पार्ट बजाती हैं। उनको मुक्तिधाम कहा जाता है। स्वर्ग है जीवनमुक्ति। यहाँ तो है जीवन बंध। यह अक्षर भी यथार्थ रीति याद करने हैं। मोक्ष कभी होता नहीं। मनुष्य कहते हैं मोक्ष मिल जाए अर्थात् आवागमन से निकल जाएं। परन्तु पार्ट से तो निकल नहीं सकते। यह अनादि बना बनाया खेल है। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी हूबहू रिपीट होती है। सतयुग में वही देवता आयेंगे। फिर पीछे इस्लामी, बौद्धी आदि सब आयेंगे। यह ह्युमन झाड़ बन जायेगा। इनका बीज ऊपर में है। बाप है मनुष्य सृष्टि का बीजरूप। मनुष्य सृष्टि तो है ही परन्तु सतयुग में बहुत छोटी होती है फिर धीरे-धीरे बहुत वृद्धि होती जाती है। अच्छा, फिर छोटी कैसे होगी? बाप आकर पतित से पावन बनाते हैं। कितने थोड़े पावन बनते हैं। कोटों में कोई निकलते हैं। आधाकल्प बहुत थोड़े होते हैं। आधाकल्प में कितनी वृद्धि होती है। तो सबसे जास्ती सम्प्रदाय उन देवताओं की होनी चाहिए क्योंकि पहले-पहले यह आते हैं परन्तु और-और धर्मों में चले जाते हैं क्योकि बाप को ही भूल गये हैं। यह है एकज भूल का खेल। भूलने से कंगाल हो जाते हैं। भूलते-भूलते एकदम भूल जाते हैं। भक्ति भी पहले एक की करते हैं क्योंकि सर्व की सद्गति करने वाला एक है फिर दूसरे किसी की भक्ति क्यों करनी चाहिए। इन लक्ष्मी- नारायण को भी बनाने वाला तो शिव है ना। कृष्ण बनाने वाला कैसे होगा। यह तो हो नहीं सकता। राजयोग सिखलाने वाला कृष्ण कैसे होगा। वह तो है सतयुग का प्रिन्स। कितनी भूल कर दी है। बुद्धि में बैठता नहीं है। अब बाप कहते हैं मुझे याद करो और दैवीगुण धारण करो। कोई भी प्रापर्टी का झगड़ा आदि है तो उनको खलास कर दो। झगड़ा करते-करते तो प्राण भी निकल जायेंगे। बाप समझाते हैं इसने छोड़ा तो कोई झगड़ा आदि थोड़ेही किया। कम मिला तो जाने दो, उसके बदले कितनी राजाई मिल गई। बाबा बताते हैं मुझे साक्षात्कार हुआ विनाश और राजाई का तो कितनी खुशी हुई। हमको विश्व की बादशाही मिलनी है तो यह सब क्या है। ऐसे थोड़ेही कोई भूख मरेंगे। बिगर पैसे वाले भी पेट तो भरते हैं ना। मम्मा ने कुछ लाया क्या। कितना मम्मा को याद करते हैं। बाप कहते हैं याद करते हो, यह तो ठीक है, परन्तु अभी मम्मा के नाम-रूप को याद नहीं करना है। हमको भी उन जैसी धारणा करनी है। हम भी मम्मा जैसे अच्छा बनकर गद्दी लायक बनें। सिर्फ मम्मा की महिमा करने से थोड़ेही हो जायेंगे। बाप तो कहते हैं मामेकम् याद करो, याद की यात्रा में रहना है। मम्मा जैसा ज्ञान सुनाना है। मम्मा की महिमा का सबूत तब हो जब तुम भी ऐसे महिमा लायक बनकर दिखाओ। सिर्फ मम्मा-मम्मा कहने से पेट नहीं भरेगा। और ही पेट पीठ से लग जायेगा। शिवबाबा को याद करने से पेट भरेगा। इस दादा को भी याद करने से पेट नहीं भरेगा। याद करना है एक को। बलिहारी एक की है। युक्तियां रचनी चाहिए सर्विस की। सदैव मुख से फूल निकलें। अगर कांटे पत्थर निकलते हैं तो पत्थर के पत्थर ठहरे। गुण बहुत अच्छे धारण करने हैं। तुमको यहाँ सर्वगुण सम्पन्न बनना है। सज़ा खायेंगे तो फिर पद अच्छा नहीं मिलेगा। यहाँ बच्चे आते हैं बाप से डायरेक्ट सुनने। यहाँ ताजा-ताजा नशा बाबा चढ़ाते हैं। सेन्टर पर नशा चढ़ता है फिर घर गये, सम्बन्धी आदि देखे तो खलास। यहाँ तुम समझते हम बाबा के परिवार में बैठे हैं। वहाँ आसुरी परिवार होता है। कितने झगड़े आदि रहते हैं। वहाँ जाने से ही किचड़पट्टी में जाकर पड़ते हैं। यहाँ तो तुमको बाप भूलना नहीं चाहिए। दुनिया में सच्ची शान्ति किसको भी मिल न सके। पवित्रता, सुख, शान्ति, सम्पत्ति सिवाए बाप के कोई दे नहीं सकता। ऐसे नहीं कि बाप आशीर्वाद करते हैं - आयुश्वान भव, पुत्रवान भव। नहीं, आशीर्वाद से कुछ भी नहीं मिलता। यह मनुष्यों की भूल है। सन्यासी आदि भी आशीर्वाद नहीं कर सकते। आज आशीर्वाद देते, कल खुद ही मर जाते। पोप भी देखो कितने होकर गये हैं। गुरू लोगों की गद्दी चलती है, छोटेपन में भी गुरू मर जाते हैं फिर दूसरा कर लेते या छोटे चेले को गुरू बना देते हैं। यह तो बापदादा है देने वाला। यह लेकर क्या करेंगे। बाप तो निराकार है ना। लेंगे साकार। यह भी समझने की बात है। ऐसा कभी नहीं कहना चाहिए कि हम शिवबाबा को देते हैं। नहीं, हमने शिवबाबा से पद्म लिया, दिया नहीं। बाबा तो तुमको अनगिनत देते हैं। शिवबाबा तो दाता है, तुम उनको देंगे कैसे? मैंने दिया, यह समझने से फिर देह-अभिमान आ जाता है। हम शिवबाबा से ले रहे हैं। बाबा के पास इतने ढेर बच्चे आते हैं, आकर रहते हैं तो प्रबंध चाहिए ना। गोया तुम देते हो अपने लिए। उनको अपना थोड़ेही कुछ करना है। राजधानी भी तुमको देते हैं इसलिए करते भी तुम हो। तुमको अपने से भी ऊंच बनाता हूँ। ऐसे बाप को तुम भूल जाते हो। आधाकल्प पूज्य, आधाकल्प पुजारी। पूज्य बनने से तुम सुखधाम के मालिक बनते हो फिर पुजारी बनने से दु:खधाम के मालिक बन जाते हो। यह भी किसको पता नहीं कि बाप कब आकर स्वर्ग की स्थापना करते हैं। इन बातों को तुम संगमयुगी ब्राह्मण ही जानते हो। बाबा इतना अच्छी रीति समझाते हैं फिर भी बुद्धि में नहीं बैठता। जैसे बाबा समझाते हैं ऐसे युक्ति से समझाना चाहिए। पुरूषार्थ कर ऐसा श्रेष्ठ बनना है। बाप बच्चों को समझाते हैं बच्चों में बहुत अच्छे दैवीगुण होने चाहिए। कोई बात में रूठना नहीं, शक्ल मुर्दे जैसी नहीं करनी है। बाप कहते हैं ऐसे कोई काम अभी नहीं करो। चण्डी देवी का भी मेला लगता है। चण्डिका उनको कहते हैं जो बाप की मत पर नहीं चलती। जो दु:ख देती है, ऐसी चण्डिकाओं का भी मेला लगता है। मनुष्य अज्ञानी हैं ना, अर्थ थोड़ेही समझते हैं। कोई में ताकत नहीं, वह तो जैसे खोखले हैं। तुम बाबा को अच्छी रीति याद करते हो तो बाप द्वारा तुम्हें ताकत मिलती है। परन्तु यहाँ रहते भी बहुतों की बुद्धि बाहर में भटकती रहती है इसलिए बाबा कहते हैं यहाँ चित्रों के सामने बैठ जाओ तो तुम्हारी बुद्धि इसमें बिजी रहेगी। गोले पर, सीढ़ी पर किसको समझाओ तो बोलो सतयुग में बहुत थोड़े मनुष्य होते हैं। अभी तो ढेर मनुष्य हैं। बाप कहते हैं मैं ब्रह्मा के द्वारा नई दुनिया की स्थापना कराता हूँ, पुरानी दुनिया का विनाश कराता हूँ। ऐसे-ऐसे बैठ प्रैक्टिस करनी चाहिए। अपना मुख आपेही खोल सकते हैं। अन्दर में जो चलता है वह बाहर में भी निकलना चाहिए। गूँगे तो नहीं हो ना। घर में रड़ियां मारने के लिए मुख खुलता है, ज्ञान सुनाने के लिए नहीं खुलता! चित्र तो सबको मिल सकते हैं, हिम्मत रखनी चाहिए-अपने घर का कल्याण करें। अपना कमरा चित्रों से सजा दो तो तुम बिजी रहेंगे। यह जैसे तुम्हारी लाइब्रेरी हो जायेगी। दूसरों का कल्याण करने के लिए चित्र आदि लगा देना चाहिए। जो आये उनको समझाओ। तुम बहुत सर्विस कर सकते हो। थोड़ा भी सुना तो प्रजा बन जायेंगे। बाबा इतनी उन्नति की युक्तियां बतलाते हैं। बाप को याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। बाकी गंगा में जाकर एकदम डूब जाओ तो भी विकर्म विनाश नहीं होंगे। यह सब है अन्धश्रद्धा। हरिद्वार में तो सारे शहर का गंद आकर गंगा में पड़ता है। सागर में कितना गंद पड़ता है। नदियों में भी किचड़ा पड़ता रहता है, उससे फिर पावन कैसे बन सकते। माया ने सबको बिल्कुल बेसमझ बना दिया है।

बाप बच्चों को ही कहते हैं कि मुझे याद करो। तुम्हारी आत्मा बुलाती है ना - हे पतित-पावन आओ। वह तुम्हारे शरीर का लौकिक बाप तो है। पतित-पावन एक ही बाप है। अभी हम उस पावन बनाने वाले बाप को याद करते हैं। जीवनमुक्ति दाता एक ही है, दूसरा न कोई। इतनी सहज बात का अर्थ भी कोई समझते नहीं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) मुख से ज्ञान रत्न निकालने की प्रैक्टिस करनी है। कभी मुख से कांटे वा पत्थर नहीं निकालने हैं। अपना और घर का कल्याण करने के लिए घर में चित्र सजा देने हैं, उस पर विचार सागर मंथन कर दूसरों को समझाना है। बिजी रहना है।
2) बाप से आशीर्वाद मांगने के बजाए उनकी श्रेष्ठ मत पर चलना है। बलिहारी शिवबाबा की है इसलिए उन्हें ही याद करना है। यह अभिमान न आये कि हमने बाबा को इतना दिया।
वरदान:
साधारण कर्म करते भी ऊंची स्थिति में स्थित रहने वाले सदा डबल लाइट भव!  
जैसे बाप साधारण तन लेते हैं, जैसे आप बोलते हो वैसे ही बोलते हैं, वैसे ही चलते हैं तो कर्म भल साधारण है, लेकिन स्थिति ऊंची रहती है। ऐसे आप बच्चों की भी स्थिति सदा ऊंची हो। डबल लाइट बन ऊंची स्थिति में स्थित हो कोई भी साधारण कर्म करो। सदैव यही स्मृति में रहे कि अवतरित होकर अवतार बन करके श्रेष्ठ कर्म करने के लिए आये हैं। तो साधारण कर्म अलौकिक कर्म में बदल जायेंगे।
स्लोगन:
आत्मिक दृष्टि-वृत्ति का अभ्यास करने वाले ही पवित्रता को सहज धारण कर सकते हैं।