Saturday, October 3, 2015

मुरली 04 अक्टूबर 2015

“सूक्ष्मवतन की कारोबार”

वरदान:

सर्व के प्रति शुभ भाव और श्रेष्ठ भावना धारण करने वाले हंस बुद्धि होलीहंस भव!  

हंस बुद्धि अर्थात् सदा हर आत्मा के प्रति श्रेष्ठ और शुभ सोचने वाले। पहले हर आत्मा के भाव को परखने वाले और फिर धारण करने वाले। कभी भी बुद्धि में किसी भी आत्मा के प्रति अशुभ वा साधारण भाव धारण न हो। सदा शुभ भाव और शुभ भावना रखने वाले ही होलीहंस हैं। वे किसी भी आत्मा के अकल्याण की बातें सुनते, देखते भी अकल्याण को कल्याण की वृत्ति से बदल देंगे। उनकी दृष्टि हर आत्मा के प्रति श्रेष्ठ शुद्ध स्नेह की होगी।

स्लोगन:

प्रेम से भरपूर ऐसी गंगा बनो जो आपसे प्यार का सागर बाप दिखाई दे।

ओम् शांति ।

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04-10-15 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:01-02-80 मधुबन

“सूक्ष्मवतन की कारोबार”
आज बापदादा विशेष भाववान बच्चों से मिलने आये हैं। जितने भाववान हैं उतने भाग्यवान भी हैं। भाग्यवान बच्चों से भाग्यविधाता बाप मिलने आये हैं। बाप-दादा के पास सर्व बच्चों की भावना, स्नेह और सेवा का सारा चार्ट रहता है। जैसे पुरानी दुनिया के मार्शल्स के पास अपने एरिया और सेना का चार्ट व नक्शा रहता है वैसे बाप के पास भी हर सेवास्थान और सेवाधारियों का चार्ट व नक्शा है। जिस चार्ट द्वारा हरेक स्थान और सेवाधारियों के हर समय के सेवा की विधि और पुरूषार्थ की गति, दोनों ही एक स्थान पर बैठे हुए देखते रहते हैं। हरेक बच्चे की सारे दिन में कौन-कौन सी स्टेज़ेज रहती हैं, उसका स्पष्ट साक्षात्कार होता रहता है? सूक्ष्मवतन की सारी कारोबार किस पावर से चलती है? जैसे यहाँ भिन्न-भिन्न साधनों द्वारा कारोबार चलती है और सतयुग में विशेष एटॉमिक एनर्जी द्वारा चलेगी। सूक्ष्मवतन की कारोबार कैसे चलती है? कौन-सी शक्ति के आधार पर चलती है, कैसे चलती है, जानते हो? लाइट का वतन है तो लाइट के वतन में कारोबार कैसे चलती है? लाइट के आधार पर या और किसी आधार पर? आज पेपर्स देखे, आज बच्चे इमर्ज हुए.... तो यह भिन्न-भिन्न कारोबार कैसे चलती है?

कर्नाटक वाले सिकीलधे हैं ना तो सिकीलधे को खास गुह्य राज़ सुनाया जाता है। कर्नाटक की सेवा में जोड़ी भी मज़ेदार बनी हुई है। (ह्दयपुष्पा दादी और चन्द्रमणी दादी) करनहार और करावनहार दोनों की ही जोड़ी है। वह प्रेम स्वरूप, वह नॉलेज स्वरूप। वह लव और लॉफुल वह सिर्फ लवफुल। फिर भी कर्नाटक की फुलवाड़ी अच्छी फलीभूत है। वैराइटी प्रकार के सेवाधारी भी अच्छे-अच्छे हैं। जैसे डबल विदेशियों को बाप-दादा उनकी विशेषता के ऊपर विशेष याद-प्यार देते हैं। भिन्न धर्म में कनवर्ट होते हुए भी अपने प्राचीन धर्म को पहचानने और अपनाने में तीव्र पुरुषार्थी बन चल रहे हैं। मैजॉरिटी स्नेह और शान्ति की प्राप्ति के आधार पर संशयबुद्धि कम बनते हैं। यह डबल विदेशियों की विशेषता है। इस विशेषता के कारण बाप-दादा भी रिटर्न यादप्यार देते हैं। ऐसे कर्नाटक वाले भी भावना और प्रेम से सहज ही बाप के बन जाते हैं। स्नेह के कारण भोले हैं। वैसे नॉलेजफुल भी हैं लेकिन पहले स्नेह के कारण नजदीक आ जाते हैं फिर नॉलेज सुनकर आगे बढ़ते हैं।

कोई कोई धरती नालेज के आधार पर आगे आती है फिर स्नेह में आते हैं और कोई स्नेह में आकर फिर नालेज लेते हैं इसलिए भोलानाथ बाप के प्यारे हैं। समझा। आप सबका भी महत्व है। ऐसे कभी भी नहीं समझना कि हम भाषा नहीं जानते, इसलिए पीछे हैं लेकिन बाप-दादा के सदा समीप हैं। बाप-दादा भाषा को नहीं देखते, भावना को देखते हैं।

आप लोग सुनाओ कि सूक्ष्मवतन की कारोबार कैसे चलती है? किस आधार पर चलती है? यहाँ तो लाइट चली जाती है तो आप अन्य साधनों द्वारा कार्य चलाते हो ना! यहाँ तो जनरेटर है जिससे लाइट आती है, वहाँ क्या है? कौन-सी शक्ति द्वारा कारोबार चलती है? आकार साकार को प्रेर रहा है या साकार आकार को? बोलो, कैसे कारोबार चलती है? विशेष सूक्ष्मवतन की कारोबार शुद्ध संकल्प के आधार पर चलती है। जो गाया हुआ है ब्रह्मा ने संकल्प किया और सृष्टि रची, तो संकल्प किया और इमर्ज हुआ। मर्ज और इमर्ज का खेल है। रूप-रेखा इशारे की है लेकिन विशेष आकारी रूप की कारोबार मनोबल कहो या संकल्प कहो, इसी आधार पर चलती है। बाप-दादा संकल्प का स्वीच ऑन करते हैं तो सब इमर्ज हो जाता है। सुनाया ना उनकी कारोबार है दूर-दूर तक वायरलेस द्वारा और यहाँ तीनों लोक तक वाइसलेस की शक्ति द्वारा कनेक्शन कर सकते हैं। बुद्धियोग बिल्कुल रिफाइन हो। सूक्ष्मवतन तक संकल्प पहुँचने के लिए महीन सर्व सम्बन्धों के सार वाली याद चाहिए। यह है सबसे पावरफुल तार। इसमें बीच में माया इन्टरफेयर नहीं कर सकती।

बाप-दादा के वहाँ रौनक बहुत है। इस दुनिया मुआफिक नहीं (बिजली घड़ी-घड़ी चली जाती थी) सारे कल्प के अन्दर सूक्ष्मवतन इस समय इमर्ज होता है इसलिए सूक्ष्मवतन की रौनक भी अभी है। फिर स्वर्ग की रौनक आप लोगों के लिए है। (यहाँ बैठे सूक्ष्मवतन का अनुभव कर सकते हैं?) अनुभव तो बच्चे ही करेंगे। यह वतन है ही बच्चों के लिए। और कोई भी आत्मायें सूक्ष्मवतन का अनुभव कर ही नहीं सकती हैं क्योंकि ब्रह्मा और ब्राह्मणों का ही सम्बन्ध है। भक्त लोग सिर्फ कोई विशेष दृश्य का साक्षात्कार कर सकते हैं लेकिन सूक्ष्मवतन हमारा घर है, ब्रह्मा बाप का स्थान सो हमारा स्थान है। सूक्ष्मवतन के स्वेहजों का अनुभव, मिलने का अनुभव, बहलाने का अनुभव ब्राह्मण ही कर सकते हैं।

(विदेशी नीचे बैठे मुरली सुन रहे थे) आज डबल विदेशियों का संकल्प पहुँच रहा है। नीचे होते भी बाप के सामने हैं इसलिए डबल विदेशियों को बाप-दादा विशेष यादप्यार दे रहे हैं। साथ-साथ चारों ओर के बच्चे जो दूर होते भी संकल्प शक्ति से अपने को समीप अनुभव कर रहे हैं, उन सहित कर्नाटक वासियों को भी खास याद प्यार। मधुबन वाले तो हैं ही ‘चुल पर सो दिल पर’ गर्म-गर्म तो मधुबन वालों को मिलता है। सेवा में अथक बनकर अच्छा सबूत दे रहे हैं। मैजॉरिटी निन्द्राजीत का गुण भी अच्छा दिखा रहे हैं। रात की नींद को छोड़ भी सेवा में अच्छे सहयोगी हैं। जी हाज़िर और जी हजूर का पार्ट बजा रहे हैं इसलिए मधुबन के सेवाधारियों को नम्बरवार सेवा के सबूत दिखाने वालों को विशेष यादप्यार। अच्छा - सभी बच्चों को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।

पार्टियों के साथ मुलाकात

1) सफलता का आधार - न्यारापन

सभी सदा अपने विश्व-कल्याणकारी स्टेज पर स्थित होकर सेवा के पार्ट में आते हो? विश्व-कल्याणकारी अर्थात् बेहद के सेवाधारी, किसी भी प्रकार की हद में नहीं आ सकते। विश्व बेहद है तो विश्व-सेवाधारी अर्थात् बेहद की स्थित में रहने वाले। विश्व-कल्याणकारी सदा सेवा करते हुए भी न्यारे और सदा बाप के प्यारे होंगे। सेवा के भी लगाव से न्यारे। सेवा का लगाव भी सोने की जंजीर है। यह भी बन्धन बेहद से हद में ले आता है इसलिए सदा सेवा में न्यारे और बाप के प्यारे बनकर चलो। ऐसी स्थिति में रहने वाले सदा सफलतामूर्त रहेंगे। सफलता का सहज साधन है - न्यारा और प्यारा बनना। कहीं भी सफलता की कमी है तो इसका कारण न्यारे बनने की कमी है। न्यारा अर्थात् देह के स्मृति से भी न्यारा, ईश्वरीय सम्बन्ध के लगाव से भी न्यारा और ईश्वरीय सेवा के साधनों के लगाव से भी न्यारा। जब ऐसा न्यारापन कम होता है तब सफलता की कमी होती है। तो सदा सफलता मूर्त - ऐसे समझते हो? या अपने को छोटा समझते हो? जब कोई भी डायरेक्शन मिलता है तो उस डायरेक्शन को प्रैक्टिकल में लाने के समय छोटा समझना ठीक है और सेवा करने में बड़ा होकर सेवा करो। डायरेक्शन के समय छोटा समझेंगे तो सदा सफल रहेंगे। बड़ा अर्थात् बेहद की वृत्ति वाला। समझा - सभी सन्तुष्ट हो? कुछ भी है, कोई भी बात दिल में आती है तो उसे सुनाने में कोई हर्जा नहीं है लेकिन सुनाने के बाद जो बड़ों का डायरेक्शन हो उसमें चलने के लिए सदा तैयार रहें। सुनाया तो आपकी जिम्मेवारी खत्म हुई फिर बड़ों की जिम्मेवारी हो जाती है इसलिए सुनाना जरूरी है लेकिन साथ-साथ डायरेक्शन पर चलना भी जरूरी है। कोई भी बात अन्दर नहीं रखो। सुनाकर हल्के हो जाओ, नहीं तो अन्दर कोई भी बात होगी तो सेवा में व स्व की उन्नति में बार-बार विघ्न रूप बन जायेगी इसलिए हल्का रहना भी जरूरी है। डायरेक्शन मिला, उसको अमल में लाया और हल्के हो गये। इसके लिए कौन-सी विशेष शक्ति चाहिए? स्व को परिवर्तन करने की। अगर परिवर्तन करने की शक्ति होगी तो जहाँ भी होंगे सफल होंगे। सदा स्व परिवर्तन का लक्ष्य रखो। दूसरा बदले तो मैं बदलूँ - नहीं। दूसरा बदले या न बदले मुझे बदलना है। ‘हे अर्जुन’ मुझे बनना है। सदा परिवर्तन करने में पहले मैं। जब इसमें ‘पहले मैं’ करेंगे तो सब में पहला नम्बर हो जायेंगे।

अपने को मोल्ड करना अर्थात् रीयल गोल्ड बनना। दूसरे को मोल्ड करना अर्थात् मिक्स्ड गोल्ड बनना। तो सभी रीयल गोल्ड हो? रीयल की वैल्यु होती है, मिक्स की वैल्यु कम हो जाती है इसलिए सदा अपने को रीयल गोल्ड की स्थिति में रखो।

जिन बच्चों ने जन्म से विशेष कोई कमजोरी को टच नहीं किया है, वह जन्म से ही वैष्णव हुए। कोई-कोई बच्चे जन्म से सात्विक संस्कार वाले होते हैं। कोई रजोगुणी से सात्विक बनते हैं, कोई तमोगुणी से रजोगुणी बनते हैं, कोई तीनों में मिक्स चलते हैं। जन्म से वैष्णव अर्थात् सदा सेफ।

2) त्रिकालदर्शी स्टेज पर स्थित रहने से व्यर्थ का खाता समाप्त:-

सभी अपने को पदमापदम भाग्यशाली समझते हुए हर संकल्प व कर्म करते रहते हो? श्रेष्ठ संकल्प, बोल व कर्म के साथ-साथ व्यर्थ और समर्थ, दोनों इकट्ठा तो नहीं रहता? अभी-अभी व्यर्थ, अभी समर्थ - ऐसा खेल तो नहीं चलता? व्यर्थ एक सेकेण्ड में पदमों का नुकसान करता है। समर्थ एक सेकेण्ड में पदमों की कमाई करता है। सेकेण्ड का व्यर्थ भी कमाई में बहुत ही घाटा डाल देता है। जैसे कमाई का खाता जमा होता है। वैसे घाटे का खाता भी जमा होता है। घाटे का खाता ज्यादा होगा तो कमाई उसमें छिप जाती है। तो व्यर्थ समाप्त हो गया या अभी भी साथ है? जब त्रिकालदर्शी की स्टेज पर स्थित होते हैं। तो व्यर्थ सहज ही खत्म हो जाता है। त्रिकालदर्शी स्टेज से नीचे आकर एक कालदर्शी बनकर कर्म करते हैं तब व्यर्थ होता है। तो कौन हो - त्रिकालदर्शी हो या एक काल-दर्शी? सदा त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित रहो तो सदा सफलतामूर्त होंगे। समझा।

जो सदा अचल-अडोल बन करके श्रेष्ठ पार्ट बजाने वाले हैं, उनको कहा जाता है विशेष पार्टधारी। विशेष पार्टधारी हो या साधारण? विशेष पार्टधारी का विशेष गुण है - स्व सेवा और विश्व सेवा। दोनों का बैलेन्स।

3) देह और देह के सम्बन्धों की स्मृति से नष्टोमोहा बनो

पुरानी दुनिया में रहते अपने को संगमयुगी ब्राह्मण समझ कर चलते हो? संगमयुगी ब्राह्मण कलियुगी सृष्टि से किनारा कर चुके इसलिए उनकी ऑख पुरानी दुनिया की तरफ कभी नहीं जा सकती। पुरानी दुनिया, पुरानी देह या सम्बन्धी, किसी तरफ भी आकर्षण न हो। वैसे भी गवर्नमेन्ट के बिगर पासपोर्ट के कोई दूसरे देश में चले जाते हैं तो बन्दी बना लेते हैं, यहाँ भी जब बाप की छुट्टी नहीं है, तो बिगर छुट्टी अगर गये तो माया बन्दी बना लेगी। कभी भी देह के सम्बन्ध की स्मृति तो नहीं आती है? नष्टोमोहा हो? अगर थोड़ा भी मोह हुआ तो जैसे मगरमच्छ पहले थोड़ा पकड़ता है फिर सारा ले लेता है, ऐसे माया भी सारा हप कर लेगी इसीलिए ज़रा भी मोह न हो। सदा निर्मोही।

4) सेवाधारी भाई-बहनों से:- अनेक जन्मों की कमाई जमा करके जा रहे हो? मधुबन अर्थात् वरदान भूमि। वरदान भूमि से वरदानों की झोली भरकर जा रहे हो? अनेक जन्मों के लिए जमा कर लिया? यहाँ का वातावरण, यहाँ का अनुभव सदा साथ रखेंगे या एक वर्ष, आधा वर्ष तक साथ रखेंगे? सदा इसी वायुमण्डल को स्मृति में रखते हुए स्वयं को समर्थ बनाना। वातावरण कैसा भी हो लेकिन स्मृति समर्थ है तो वातावरण को परिवर्तन कर देंगे। ऐसे महावीर बनकर जा रहे हो ना? कि थोड़े टाइम के बाद लिखेंगे – ‘माया आ गई’। वायुमण्डल को बदलने वाले हो न कि वायुमण्डल में बदलने वाले। सभी महाबीर अपने संग का रंग औरों को भी लगाते रहना तो जहाँ भी जायेंगे, वहाँ जागती-ज्योति का कार्य करेंगे। सदा जगे हुए औरों को भी जगायेंगे।

5) विदेशी भाई-बहनों से:- सभी अपने को लाइट-हाउस समझते हो? लाइट हाउस का कार्य है - सभी को रास्ता दिखाना। तो समझते हो कि लाइट हाउस व माइट हाउस बनके जा रहे हैं। किसी भी प्रकार की भटकती हुई आत्मा को सहज ही यथार्थ मंजिल दिखाने जा रहे हो। इसके लिए विशेष दो बातें ध्यान में रखना। एक - सदा परखने की शक्ति धारण करके आत्मा की चाहना को परखना। जैसे योग्य डॉक्टर उसको कहा जाता है जो नब्॰ज को जानता है। तो परखने की शक्ति सदा यू॰ज करते रहना। दूसरी बात - सदा अपने पास सर्व खज़ानों का अनुभव कायम रखना। सर्व खज़ानों के अनुभवी औरों को भी सहज अनुभव करा सकेंगे। सदा ये लक्ष्य रखना कि सुनाना नहीं है लेकिन अनुभव कराना है। तो सर्व अनुभवी मूर्त बनके जा रहे हो? अनुभवी मूर्त, स्पीकर नहीं। सर्व सम्बन्धों का, सर्व शक्तियों का सबका अनुभव। तो टाइटल क्या हो जायेगा? शक्तियों के अनुभवी का टाइटल है मास्टर सर्वशक्तिवान और गुणों के अनुभवी का टाइटल हैं - गुणमूर्त। सर्व सम्बन्धों के अनुभवी का टाइटल है सर्व स्नेही। तो कितने टाइटल हो गये। यह सब टाइटल लेकर जा रहे हो ना? जैसे उस नॉलेज को पढ़ने वाले या कोई डिपार्टमेन्ट में कार्य करने वाले मैडल्स लेते जाते हैं तो आपको कितने मैडल्स मिले हैं? सब मैडल्स ले लिए हैं? जितने ज्यादा मैडल्स होते हैं तो सबका अटेन्शन जाता है ना। ऐसे आपके मस्तक से नयनों से दिखाई दे कि यह सर्व प्राप्ति स्वरूप हैं। ऐसे बन कर जा रहे हो? अच्छा।
वरदान:
सर्व के प्रति शुभ भाव और श्रेष्ठ भावना धारण करने वाले हंस बुद्धि होलीहंस भव!   
हंस बुद्धि अर्थात् सदा हर आत्मा के प्रति श्रेष्ठ और शुभ सोचने वाले। पहले हर आत्मा के भाव को परखने वाले और फिर धारण करने वाले। कभी भी बुद्धि में किसी भी आत्मा के प्रति अशुभ वा साधारण भाव धारण न हो। सदा शुभ भाव और शुभ भावना रखने वाले ही होलीहंस हैं। वे किसी भी आत्मा के अकल्याण की बातें सुनते, देखते भी अकल्याण को कल्याण की वृत्ति से बदल देंगे। उनकी दृष्टि हर आत्मा के प्रति श्रेष्ठ शुद्ध स्नेह की होगी।
स्लोगन:
प्रेम से भरपूर ऐसी गंगा बनो जो आपसे प्यार का सागर बाप दिखाई दे।