Saturday, January 23, 2016

मुरली 24 जनवरी 2016

24-01-16 प्रातःमुरली ओम् शान्ति अव्यक्त-बापदादा रिवाइजः15-03-81 मधुबन

"स्वदर्शन चक्रधारी तथा चक्रवर्ती ही विश्व-कल्याणकारी"
आज नॉलेजफुल बाप अपने मास्टर नॉलेजफुल बच्चों को देखकर हर्षित हो रहे हैं। हर एक बच्चे बाप द्वारा मिली हुई नॉलेज में अच्छी तरह से रमण कर रहे हैं। हरेक नम्बरवार यथा योग, यथा शक्ति अनुसार नॉलेजफुल स्टेज का अनुभव कर रहे हैं। नॉलेजफुल स्टेज अर्थात् सारी नॉलेज के हरेक प्वाइंट के अनुभवी स्वरूप बनना। जब बाप-दादा डायरेक्शन देते हैं कि नॉलेजफुल स्टेज पर स्थित हो जाओ तो एक सेकेण्ड में उस स्थिति में स्थित हो सकते हो? हो सकते हो या हो गये हो? उस स्थिति में स्थित होकर फिर विश्व की आत्माओं तरफ देखो। क्या अनुभव करते हो? सर्व आत्मायें कैसे दिखाई देती हैं, अनुभव करो कि इतनी शक्तिशाली विशाल बुद्धि की स्टेज है! त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री, दूरांदेशी, वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी, सर्व गुण और प्राप्ति सम्पन्न खजाने के मालिकपन की कितनी ऊंची स्टेज है। उस ऊंची स्टेज पर बैठ नीचे देखो। सब प्रकार की आत्माओं को देखो। पहले-पहले अपनी भक्त आत्माओं को देखो– क्या दिखाई दे रहा है? हरेक ईष्ट देव की अनेक प्रकार की भक्ति करने वाले भिन्न-भिन्न प्रकार के भक्तों की लाइनें हैं। अनगिनत भक्त हैं। कोई सतोप्रधान भक्त हैं अर्थात् भावना पूर्वक भक्ति करने वाले भक्त हैं। कोई रजो, तमोगुणी अर्थात् स्वार्थ से भक्ति करने वाले भगत हैं। लेकिन हैं वह भी भक्तों की लाइन में। बिचारे ढूंढ रहे हैं, भटक रहे हैं, चिल्ला रहे हैं। क्या उन्हों की पुकार सुन सकते हो? (एक मक्खी बाबा के आगे घूम रही थी।) जैसे यह मक्खी भटक रही है तो इसको ठिकाना देने का संकल्प आता है वैसे भक्तों के लिए ऐसा तीव्र संकल्प आता है? अच्छा– भक्तों को तो देख लिया।

अब धार्मिक लोगों को देखो। कितने प्रकार के नाम, वेष और कार्य की विधि है, कितने वैरायटी प्रकार के आकर्षण करने वाले साधन अपनाये हुए हैं। यह भी बड़ी अच्छी रौनक की धर्म की बड़ी बाजार लगी हुई है, हर एक के शोकेस में अपने-अपने विधि का शोपीस दिखाई देता है। कोई खूब खा पी रहा है, कोई खाना छोड़ कर तपस्या कर रहा है। एक की विधि है खाओ, पियो, मौज करो, दूसरे की विधि है - सबका त्याग करो। वन्डरफुल दृश्य है ना। कोई लाल तो कोई पीला। भाँति-भाँति की थ्योरी है। उन्हों को देख– हे मास्टर नॉलेजफुल - क्या संकल्प आता है? धर्म आत्माओं के भी कल्याणकारी मास्टर परमात्मा, क्या सोच चलता है? विश्व के उद्धारमूर्त को इन आत्माओं के भी उद्धार का संकल्प उत्पन्न होता है वा स्व के उद्धार में ही बिजी हो। अपने सेवाकेन्द्रों में ही बिजी हो? सर्व आत्माओं के पिता के बच्चे हो, सर्व आत्मायें आपके भाई हैं। हे मास्टर नॉलेजफुल अपने भाईयों के तरफ संकल्प की नज़र भी कब जाती है? विशाल बुद्धि दूरांदेशी अनुभव करते हो? छोटी-छोटी बातों में तो समय नहीं जा रहा है? ऊंची स्टेज पर स्थित हो विशाल कार्य दिखाई देता है?

अब तीसरे तरफ भी देखो - वर्तमान संगम समय पर और साथ-साथ भविष्य में भी आपके राज्य में सहयोग देने वाले विज्ञानी आत्मायें वह भी कितनी मेहनत कर रहे हैं। क्या-क्या इन्वेन्शन निकाल रहे हैं। अभी भी आप जो सुन रहे हो, वैज्ञानियों के सहयोग (माइक, हैडफोन आदि) से सुन रहे हो। रिफाइन इन्वेन्शन तैयार कर आप श्रेष्ठ आत्माओं को गिफ्ट में देकर चले जायेंगे। इन आत्माओं का भी कितना त्याग है। कितनी मेहनत है, कितना दिमाग है। मेहनत खुद करते हैं, प्रालब्ध आपको देते हैं। इन आत्माओं के कल्याण की भी विद्धि संकल्प में आती है? वा यह समझकर छोड़ देते कि यह तो नास्तिक हैं। यह क्या जानें? लेकिन नास्तिक हैं वा आस्तिक हैं, फिर भी बच्चे तो हैं ना। आपके भाई तो हैं। ब्रदरहुड के नाते से भी इन आत्माओं को भी किसी प्रकार से वर्सा तो मिलेगा ना। विश्व-कल्याणकारी के रूप में इस तरफ कल्याण की नज़र नहीं डालेंगे? यह भी अधिकारी हैं। हरेक के अधिकार लेने का रूप अपना-अपना है। अच्छा चलो आगे। देश और विदेश के राज्य अधिकारियों को देखो। देखा? राज्य हिल रहा है वा अचल है? राजनीति का दृश्य क्या नज़र आता है? कल्प पहले के यादगार में एक खेल दिखाया हुआ है - जानते हो कौन-सा खेल? जो साकार बाप का भी प्रिय खेल था। चौपड़ का खेल। अभी-अभी किसके तरफ पऊं बारह, अभी-अभी फिर इतनी हार जो अपने परिवार को पालने की भी हिम्मत नहीं। अभी-अभी बेताज़ बादशाह और अभी-अभी वोट के भिखारी। ऐसा खेल देख रहे हो? नाम और शान के भूखे हैं। ऐसी आत्माओं को भी कुछ तो अंचली देंगे। इन्हों पर भी रहमदिल आत्मायें बन रहम की दृष्टि, दाता के स्वरूप से कुछ कणा दाना देकर सन्तुष्ट करेंगे ना।

हर सेक्शन की सेवा अपनी-अपनी है। वह फिर विस्तार आप करना। आगे चलो।

चारों ओर की आम पब्लिक जिसमें बहुत प्रकार की वैरायटी है। कोई क्या गीत गा रहे हैं, कोई क्या गीत गा रहे हैं। चारों ओर ‘चाहिए’ ‘चाहिए’ के गीत बज रहे हैं। अब ऐसे गीत गाने वालों को कौन-सा गीत सुनाओ जो यह गीत समाप्त हो जाए। सर्व आत्माओं के प्रति महाज्ञानी, महादानी, महाशक्ति स्वरूप वरदानी मूर्त, मास्टर दाता, सेकेण्ड के दृष्टि विधाता, ऐसे कल्याण करने का श्रेष्ठ संकल्प उत्पन्न होता है? फुर्सत है चारों तरफ देखने की? सर्च लाइट बने हो वा लाइट हाउस बने हो? अब चारों ओर चक्र लगाया।

ऐसे विश्व कल्याणकारी त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री, मास्टर नॉलेजफुल, मास्टर विश्व रचयिता, विश्व के चारों आरे परिक्रमा लगाओ। नजर डालो। रोज़ विश्व का च्रक लगाओ तब स्वदर्शन चक्रधारी कहलायेंगे। साथ-साथ चक्रवर्ती कहलायेंगे। सिर्फ स्वदर्शन चक्रधारी हो वा चक्रवर्ती भी हो। दोनों ही हो ना।

ऐसे मास्टर नॉलेजफुल, विश्व परिक्रमा देने वाले, चक्रवर्ती स्वराज्य अधिकारी, सदा सर्व आत्माओं के प्रति रहमदिल, कल्याण की भावना रखने वाले, ऐसे बाप समान श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

(आज दीदी-दादी दोनों ही बापदादा के सम्मुख बैठी हैं)

बापदादा विशेष निमित्त आत्माओं को देख क्यों खुश होते हैं? कोई भी बाप अपने बच्चों को तख्त देने के बाद कैसे तख्त पर बैठ राज्य चला रहे हैं, वह इस कलियुगी दुनिया में नही देखते हैं लेकिन अलौकिक बाप, पारलौकिक बाप, बच्चे सेवा के तख्तनशीन बन कैसे सेवा का कार्य चला रहे हैं, वह प्रैक्टिकल में देख हर्षित होते हैं। यह संगमयुग की विशेषता है जो बाप स्वयं बच्चों को देख सकते हैं। यही परम्परा सतयुग में भी चलेगी। वहाँ भी बाप बच्चों को राजतिलक देकर देखेंगे, कलियुग में कोई नहीं देखता। बापदादा तो रोज़ देखते हैं। हर घड़ी का दृश्य, संकल्प, बोल, कर्म, सर्व के सम्पर्क बापदादा के पास इतना स्पष्ट है जो आप लोगों से भी ज्यादा क्लीयर है। हर घड़ी का कार्य देख बाप खुश होते हैं। प्रैक्टिकल रिटर्न देख रहे हैं। बाप ने आप समान बनाया और बच्चों ने रेसपान्ड दिया, इसलिए बच्चों को देख हर्षित होते हैं। एक दृश्य देख विशेष हर्षाते हैं। रोज़ की एक वन्डरफुल रास देखते हैं आप लोगों की। जो सारे दिन में बहुत करते हो। करते सभी हैं लेकिन विशेष निमित्त यह हैं इसलिए निमित्त वालों को भी ज्यादा करनी पड़ती हैं। वह है संस्कार मिलाने की रास। वैसे भी कोई कार्य शुरू करते तो रास मिलाते हैं ना। और रास करने में भी एक दो का मिलन होता है, तो सारा दिन यह रास कितना समय करते हो? बापदादा के पास टी.वी. अथवा रेडियो आदि सब हैं, उसमें कैसी सीन लगती होगी। जब संस्कार, संस्कार में टकराते हैं, वह भी सीन अच्छी होती है। फिर जैसे फारेन वालों की बाडी इलास्टिक होती है, जहाँ मोड़ने चाहें मोड़ लेते, तो वर्तमान समय अपने को मोड़ने में भी इज़ी होते जा रहे हैं इसलिए वह भी दृश्य अच्छा लगता है। पहले टाइट होते फिर थोड़ा लूज़ होते, फिर लूज़ होने के बाद मिलन हो जाता। फिर मिलने के बाद खुशी का नाच करते। तो सीन कितनी अच्छी होगी। बापदादा के पास सब आटोमेटिकली चलता है। सब साज, सब साधन एवररेडी हैं। संकल्प किया और इमर्ज हुआ। आजकल की साइन्स भी सब साधनों को बहुत सूक्ष्म कर रही है ना। अति छोटा और अति पावरफुल। सूक्ष्मवतन तो है ही पावरफुल वतन। इतनी बिन्दी के अन्दर आप सब देख सकते हो। विस्तार करो तो बहुत बड़ा देखेंगे, छोटा करो तो बिल्कुल बिन्दी। फिर भी बच्चों की मेहनत और हिम्मत के ऊपर बापदादा भी न्योछावर हो जाते हैं क्योंकि भले कैसे भी बच्चे हैं लेकिन एक बार जब बाबा कहा तो न्योछावर हो ही गये फिर भी बच्चे ही हैं। और बाप सदा बच्चे की भूल में भी भले को ही देखते हैं। जैसे आपकी इस साकारी दुनिया में छोटे-छोटे बच्चों को खुश करने के लिए अगर कोई गिरता है तो उनको कहते हैं क्या मिला। चेन्ज कर लेते हैं। तो यहाँ भी बच्चे अगर चलते-चलते ठोकर खा लेते हैं तो बाप कहते ठोकर से अनुभवी बन ठाकुर बन गया। बाप ठोकर को नहीं देखते। ठोकर से ठाकुर-पन कितना आया, बाप वह देखते हैं इसलिए बाप को हर बच्चा अति प्रिय है। चाहे प्यादा है, चाहे घोड़ेसवार है, लेकिन प्यादा न हो तो भी विजय नहीं पा सकते इसलिए हरेक आत्मा की आवश्यकता है। बाप तीनों कालों को देखते हैं। सिर्फ वर्तमान नहीं देखते, बच्चे सिर्फ वर्तमान देखते हैं इसलिए कभी-कभी घबरा जाते हैं कि यह क्यों, यह क्या।

टीचर्स के साथः- टीचर्स ने आप समान कितनी टीचर्स तैयार की हैं? बड़े तो बड़े छोटे समान बाप हैं। जब हैण्डस तैयार हो जायेंगे तो सेवा के बिना रह नहीं सकेंगे। फिर सेवा स्वतः ही बढ़ेगी। बापदादा के एडवांस में जो उच्चारे हुए महावाक्य हैं वह फिर प्रैक्टिकल हो जायेंगे। अभी कहाँ तक पहुँचे हो? जैसे नक्शे में हरेक स्टेट भी बिन्दी मुआफिक दिखाते हैं। वैसे सेवा में कहाँ तक पहुँचे हो। अभी तो बहुत सेवा पड़ी हुई है। अभी बहुत-बहुत बढाते जाओ। कितने वर्ष पहले के बोल अभी सुन रहे हो। बाप की यही आश है कि एक-एक अनेक सेन्टर सम्भाले, तब कहेंगे नम्बरवन टीचर। जब कलियुगी प्राइम मिनिस्टर एक दिन में कितने चक्र लगाते, तो संगमयुगी टीचर्स को कितने चक्र लगाने चाहिए तब कहेंगे चक्रवर्ती राजा। तो क्या करना पड़ेगा? प्लैन बनाओ। विदेश की सेवा में इतनी मेहनत नहीं करनी पड़ती, भारत में बहुत मेहनत लगती है। विदेश की धरनी फिर भी सुनी सुनाई बातों से साफ है। भारत में यह भी मेहनत करनी पड़ती है। दूसरी बात– विदेशी आत्मायें अभी सब कुछ देखकर थक गई हैं, और भारत वालों ने देखना शुरू किया है। भारत वालों के अन्दर अभी इच्छा उत्पन्न हुई है, और उन्हों की पूरी हो गई है इसलिए भारत की सेवा से विदेश की सेवा इजी है। लक्की हो। जल्दी प्रत्यक्षफल निकाल सकते हो।

पार्टियों से– लौकिक में जब कोई घर से जाता है तो घर वालों को खुशी नहीं होती। लेकिन बापदादा बच्चों को बाहर जाते हुए देख खुश होते हैं, क्यों? क्योंकि समझते हैं कि एक-एक सपूत बच्चा सबूत निकालने के लिए जा रहा है? जाते नहीं हो लेकिन दूसरों को लाने के लिए जाते हो। एक जायेंगे अनेकों को लायेंगे तो खुशी होगी ना। कहाँ भी जायेंगे, बापदादा साथ छोड़ नहीं सकते। बाप छोड़ने चाहें तो भी नहीं छोड़ सकते, बच्चे छोड़ने चाहें तो भी नहीं छोड़ सकते। दोनों बंधन में बँधे हुए हैं। (सतयुग में तो छोड़ देते) सतयुग में भी राज्यभाग्य देकर खुश हो जाते हैं। फेथ है ना बच्चों में कि यह अच्छा राज्य करेंगे इसलिए निश्चिन्त रहते हैं। लण्डन वालों ने अपने आस-पास वृद्धि तो अच्छी की है। अभी और भी चारों ओर विश्व में फैलाना चाहिए। जो भी स्थान खाली हैं, लण्डन में इतने हैण्डस हैं जो सेवा में सहयोगी बन सकते हैं। सबूत अच्छा दिया है।

अमृतवेले पावरफुल स्टेज रखने का भिन्न-भिन्न अनुभव करते रहो। कभी नॉलेजफुल स्टेज की अनुभूति करो, कभी प्रेम स्वरूप की अनुभूति करो। ऐसे भिन्न-भिन्न स्टेज के अनुभव में रहने से एक तो अनुभव बढता जायेगा दूसरा याद में जो कभी-कभी आलस्य व थकावट आती है वह भी नहीं आयेगी क्योंकि रोज़ नया अनुभव होगा। भिन्न-भिन्न स्टेज का अनुभव करते रहो। कभी कर्मातीत स्टेज का, कभी फरिश्ते रूप का, कब रूहरिहान का अनुभव करो। वैरायटी अनुभव करो। कब सेवाधारी बनकर सूक्ष्म रूप से परिक्रमा लगाओ। इसी अनुभव को आगे बढाते रहो। अच्छा - ओम् शान्ति।
वरदान:
नये जीवन की स्मृति से कर्मेन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने वाले मरजीवा भव !  
जो बच्चे पूरा मरजीवा बन गये उन्हें कर्मेन्द्रियों की आकर्षण हो नहीं सकती। मरजीवा बने अर्थात् सब तरफ से मर चुके, पुरानी आयु समाप्त हुई। जब नया जन्म हुआ, तो नये जन्म, नई जीवन में कर्मेन्द्रियों के वश हो कैसे सकते। ब्रह्माकुमार-कुमारी के नये जीवन में कर्मेन्द्रियों के वश होना क्या चीज़ होती है– इस नॉलेज से भी परे। शूद्र पन का जरा भी सांस अर्थात् संस्कार कहाँ अटका हुआ न हो।
स्लोगन:
अमृतवेले दिल में परमात्म स्नेह को समा लो तो और कोई स्नेह आकर्षित नहीं कर सकता।