मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - सिर्फ दो अक्षर याद करो-हम हैं सतगुरू पोत्रे जो ब्रह्मा बाप
प्रश्न:- चढ़े तो चाखे वैकुण्ठ रस... यह गायन तुम बच्चों से लगता, दूसरों से नहीं - क्यों?
उत्तर:- क्योंकि तुम्हारे सामने जबरदस्त मंजिल है। तुम बाप के पास परमधाम घर जाते हो,
गीत:- हमें उन राहों पर चलना है........
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) देह-भान को भूलने के लिए जीते जी मरना है। आप मुये मर गई दुनिया। बार-बार इस देह
2) हम दादे पोत्रे हैं। हमें लायक बन उनसे पूरा-पूरा वर्सा लेना है। आत्मा को योगबल से पावन
वरदान:- हर सेकण्ड स्वयं को भरपूर अनुभव कर सदा सेफ रहने वाले स्मृति सो समर्थ स्वरूप भव
बापदादा द्वारा संगमयुग पर जो भी खजाने मिले हैं उनसे स्वयं को सदा भरपूर रखो, जितना भरपूर
स्लोगन:- विश्व का नव निर्माण करने के लिए अपनी स्थिति निर्मानचित बनाओ।
द्वारा दादे का वर्सा लेते हैं''
प्रश्न:- चढ़े तो चाखे वैकुण्ठ रस... यह गायन तुम बच्चों से लगता, दूसरों से नहीं - क्यों?
उत्तर:- क्योंकि तुम्हारे सामने जबरदस्त मंजिल है। तुम बाप के पास परमधाम घर जाते हो,
फिर नई दुनिया में आते हो। दूसरे किसी के लिए भी यह गायन नहीं हो सकता है। भल उनमें
भी कच्चे-पक्के नम्बरवार होते हैं लेकिन उनके सामने मंजिल नहीं होती। वह वैकुण्ठ रस को
जानते भी नहीं। तुम बच्चे ही कहते हो अब हमें उन राहों पर चलना है जहाँ गिरना और सम्भलना है।
गीत:- हमें उन राहों पर चलना है........
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) देह-भान को भूलने के लिए जीते जी मरना है। आप मुये मर गई दुनिया। बार-बार इस देह
से न्यारा होने की प्रैक्टिस करनी है।
2) हम दादे पोत्रे हैं। हमें लायक बन उनसे पूरा-पूरा वर्सा लेना है। आत्मा को योगबल से पावन
बनाना है। खुशी में रहना है।
वरदान:- हर सेकण्ड स्वयं को भरपूर अनुभव कर सदा सेफ रहने वाले स्मृति सो समर्थ स्वरूप भव
बापदादा द्वारा संगमयुग पर जो भी खजाने मिले हैं उनसे स्वयं को सदा भरपूर रखो, जितना भरपूर
उतना हलचल नहीं, भरपूर चीज़ में दूसरी कोई चीज़ आ नहीं सकती, ऐसे नहीं कह सकते कि
सहनशक्ति वा शान्ति की शक्ति नहीं है, थोड़ा क्रोध या आवेश आ जाता है, कोई दुश्मन जबरदस्ती
तब आता है जब अलबेलापन है या डबल लॉक नहीं है। याद और सेवा का डबल लॉक लगा दो,
स्मृति स्वरूप रहो तो समर्थ बन सदा ही सेफ रहेंगे।
स्लोगन:- विश्व का नव निर्माण करने के लिए अपनी स्थिति निर्मानचित बनाओ।