मुरली सार:- ''मीठे बच्चे-अभी तुम बाप, टीचर, सतगुरू-तीनों के सम्मुख बैठे हो, बाप की यही कृपा है जो टीचर बन तुम्हें पढ़ा रहे हैं, सतगुरू बन साथ में ले जायेंगे''
प्रश्न:- तुम बच्चों का बाप से कौन-सा वायदा है? तुम्हारा कर्तव्य क्या है?
उत्तर:- बाप से वायदा है-बाबा, हम आपसे जो कुछ सुनते हैं वह दूसरों को भी अवश्य सुनायेंगे। आप समान बनायेंगे। हमारा कर्तव्य है-बाप समान सबको पढ़ाना क्योंकि अभी बुद्धि का ताला खुला है। जैसे हम वर्सा ले रहे हैं ऐसे रहमदिल बन दूसरों को भी वर्सा दिलाना है।
उत्तर:- बाप से वायदा है-बाबा, हम आपसे जो कुछ सुनते हैं वह दूसरों को भी अवश्य सुनायेंगे। आप समान बनायेंगे। हमारा कर्तव्य है-बाप समान सबको पढ़ाना क्योंकि अभी बुद्धि का ताला खुला है। जैसे हम वर्सा ले रहे हैं ऐसे रहमदिल बन दूसरों को भी वर्सा दिलाना है।
गीत:- ले लो दुआयें माँ-बाप की........
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) पढ़ाई में मात-पिता को फालो करना है। खुशी में रहना है कि ऊंचे ते ऊंचे धाम से भगवान् हमें पढ़ाने आते हैं।
2) अब हमें वापस स्वीटहोम जाना है, इसलिए अशरीरी बनने का अभ्यास करना है। देह सहित सब कुछ भूल जाना है।
वरदान:- इच्छाओं रूपी मृगतृष्णा के पीछे भागने के बजाए सच्ची कमाई जमा करने वाले इच्छा मात्रम् अविद्या भव
कई बच्चे सोचते हैं कि अगर हमारे नाम से लाटरी निकल आये तो हम यज्ञ में लगा दें। लेकिन ऐसा पैसा यज्ञ में नहीं लगता। कई बार इच्छा स्वयं की होती है और कहते हैं कि लाटरी आयेगी तो सेवा करेंगे! लेकिन अब के करोड़पति बनना अर्थात् सदा के करोड़ गंवाना। इच्छाओं के पीछे भागना तो ऐसे है जैसे मृगतृष्णा इसलिए सच्ची कमाई जमा करो, हद की इच्छाओं से इच्छा मात्रम् अविद्या बनो।
स्लोगन:- विघ्न को विघ्न के बजाए खेल समझकर चलो तो खेल में हंसते गाते पास हो जायेंगे।