Sunday, September 30, 2018

30-09-2018 प्रात:मुरली

30-09-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 20-01-84 मधुबन

महादानी बनो, वरदानी बनो
आज बापदादा सर्व बच्चों के प्युरिटी की पर्सनैलिटी और सर्व प्राप्ति स्वरूप की रॉयल्टी, रूहानी स्मृति-स्वरूप की रीयल्टी देख रहे हैं। सभी बच्चों को प्युरिटी की पर्सनैलिटी से चमकते हुए लाइट के क्राउनधारी देख रहे हैं। एक तरफ सर्व प्राप्ति स्वरूप बच्चों का संगठन देख रहे हैं। दूसरी तरफ विश्व की अप्राप्त आत्मायें जो सदा अल्पकाल की प्राप्ति होते हुए भी प्राप्ति स्वरूप नहीं हैं। सन्तुष्ट नहीं हैं। सदा कुछ न कुछ पाने की इच्छा बनी रहती है। सदा यह चाहिए, यह चाहिए की धुन लगी हुई है। भाग दौड़ कर रहे हैं। प्यासे बन यहाँ वहाँ तन से, मन से, धन से, जन से कुछ प्राप्त हो जाए, इसी इच्छा से भटक रहे हैं। विशेष तीन बातों की तरफ इच्छा रख अनेक प्रकार के प्रयत्न कर रहे हैं। एक तो शक्ति चाहिए तन की, फिर धन की, पद की, बुद्धि की और दूसरा भक्ति चाहिए। दो घड़ी सच्ची दिल से भक्ति कर पावें, ऐसे भक्ति की इच्छा भी भक्त आत्मायें रखती हैं। तीसरा-अनेक आत्मायें द्वापर से दु:ख और पुकार की दुनिया देख-देख दु:ख और अशान्ति के कारण अल्पकाल की प्राप्ति मृगतृष्णा समझते हुए दु:ख की दुनिया से, इस विकारी दु:खों के बन्धनों से मुक्ति चाहती हैं। भक्त, भक्ति चाहते हैं और अन्य कोई शक्ति चाहते, कोई मुक्ति चाहते। ऐसी असन्तुष्ट आत्माओं को सुख और शान्ति की, पवित्रता की, ज्ञान की अंचली देने वाले वा प्राप्ति कराने वाली सन्तुष्ट मणियां कौन हैं? आप हो? रहमदिल बाप के बच्चे जैसे बाप को रहम आता है कि दाता के बच्चे और अल्पकाल की प्राप्ति के लिए चाहिए - चाहिए-चाहिए के नारे लगा रहे हैं। ऐसे आप मास्टर दाता प्राप्ति स्वरूप बच्चों को विश्व की आत्माओं प्रति रहम आता है, उमंग आता है कि हमारे भाई अल्प-काल की इच्छा में कितने भटक रहे हैं? दाता के बच्चे अपने भाईयों के ऊपर दया और रहम की दृष्टि डालो। महादानी बनो, वरदानी बनो। चमकती हुई सन्तुष्ट मणियां बन सर्व को सन्तोष दो। आजकल सन्तोषी माँ को बहुत पुकारते हैं क्योंकि जहाँ सन्तुष्टता है वहाँ अप्राप्ति का अभाव है। सन्तुष्टता के आधार पर स्थूल धन में भी बरक्कत अनुभव करते हैं। सन्तुष्टता वाले का धन दो रूपया भी दो लाख समान है। करोड़पति हो लेकिन सन्तुष्टता नहीं तो करोड़ करोड़ नहीं, इच्छाओं के भिखारी हैं। इच्छा अर्थात् परेशानी। इच्छा कभी अच्छा बना नहीं सकती क्योंकि विनाशी इच्छा पूर्ण होने के साथ-साथ और अनेक इच्छाओं को जन्म देती हैं इसलिए इच्छाओं के चक्र में मकड़ी की जाल मुआफिक फँस जाते हैं। छूटने चाहते भी छूट नहीं सकते इसलिए ऐसे जाल में फँसे हुए अपने भाईयों को विनाशी इच्छा मात्रम् अविद्या बनाओ। परेशान अर्थात् शान से परे। हम सभी ईश्वरीय बच्चे हैं, दाता के बच्चे हैं, सर्व प्राप्तियां जन्म सिद्ध अधिकार हैं। इस शान से परे होने के कारण परेशान हैं। ऐसी आत्माओं को अपना श्रेष्ठ शान बताओ। समझा क्या करना है?

सभी डबल विदेशी बच्चे अपने-अपने स्थानों पर जा रहे हैं ना। क्या जाकर करेंगे? महादानी-वरदानी बन सर्व आत्माओं की सुख-शान्ति की प्राप्तियों द्वारा झोली भर देना। यही संकल्प लेकर जा रहे हो ना। बापदादा बच्चों की हिम्मत और स्नेह को देख बच्चों को सदा स्नेह के रिटर्न में पदमगुणा स्नेह देते हैं। दूर देश वाले पहचान और प्राप्ति से समीप बन गये और देश वाले पहचान और प्राप्ति से दूर रह गये हैं इसलिए सदा डबल विदेशी बच्चे प्राप्ति स्वरूप की दृढ़ता और सन्तुष्टता के उमंग में आगे बढ़ते चलो। भाग्य विधाता सर्व प्राप्तियों का दाता सदा आपके साथ है। अच्छा।

ऐसे रहमदिल बाप के रहमदिल बच्चों को, सर्व को सन्तुष्टता के खजाने से सम्पन्न बनाने वाले सन्तुष्ट मणी बच्चों को, सदा प्राप्ति स्वरूप बन सर्व को प्राप्ति कराने की शुभ भावना में रहने वाले शुभ चिन्तक बच्चों को, सर्व को विनाशी इच्छाओं से इच्छा मात्रम् अविद्या बनाने वाले, सर्व समर्थ बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

विदेशी बच्चों को देखते हुए बापदादा बोले:-

इस ग्रुप में किसी को भी कहें कि यहाँ बैठ जाओ तो एवररेडी हो? कोई का पीछे का कोई बन्धन तो नहीं है? ऐसे भी होगा, जब समय आयेगा सभी की टिकेट कैन्सिल कराके यहाँ बिठा देंगे। ऐसे समय पर कोई सैलवेशन भी नहीं लेंगे। सभी को याद है - जब ब्रह्मा बाप अव्यक्त हुए तो वह 4 दिन कैसे बिताये? मकान बड़ा था? खाना बनाया था? फिर 4 दिन कैसे बीता था! विनाश के दिन भी ऐसे ही बीत जायेंगे। उस समय लवलीन थे ना। ऐसे ही लवलीन स्थिति में समाप्ति होगी। फिर यहाँ की पहाड़ियों पर रहकर तपस्या करेंगे। तीसरी ऑख से सारा विनाश देखेंगे। ऐसे निश्चिंत हो ना। कोई चिंता नहीं। न मकान की, न परिवार की, न काम की। सदा निश्चिंत, क्या होगा यह क्वेश्चन नहीं। जो होगा अच्छा होगा। इसको कहा जाता है निश्चिंत। सेन्टर का मकान याद आ जाए, बैंक बैलन्स याद आ जाए... कुछ भी याद न आये क्योंकि आपका सच्चा धन है ना। चाहे मकान में लगा है, चाहे बैंक में रहा हुआ है। लेकिन आपका तो पदमगुणा होकर आपको मिलेगा। आपने तो इनश्योर कर लिया ना। मिट्टी, मिट्टी हो जायेगी और आपका हक आपको पदमगुणा होकर मिल जायेगा और क्या चाहिए। सच्चा धन कभी भी वेस्ट नहीं जा सकता। समझा! ऐसे सदा निश्चिंत रहो। पता नहीं पीछे सेन्टर का क्या होगा? घर का क्या होगा? यह क्वेश्चन नहीं। सफल हुआ ही पड़ा है। सफल होगा या नहीं, यह क्वेश्चन नहीं। पहले से ही विल कर दिया है ना। जैसे कोई विल करके जाता है, पहले से ही निश्चिन्त होता है ना। तो आप सबने अपना हर श्वांस, संकल्प, सेकण्ड, सम्पत्ति, शरीर सब विल कर दिया है ना। बिल की हुई चीज कभी भी स्व के प्रति यूज नहीं कर सकते।

बिना श्रीमत के एक सेकण्ड या एक पैसा भी यूज़ नहीं कर सकते। परमात्मा का सब हो गया तो आत्मायें अपने प्रति या आत्माओं के प्रति यूज़ नहीं कर सकती हैं। डायरेक्शन प्रमाण कर सकती हैं। नहीं तो अमानत में ख्यानत हो जायेगी ना। थोड़ा भी धन बिना डायरेक्शन के कहाँ भी कार्य में लगाया, तो वह धन आपको भी उस तरफ खींच लेगा। धन, मन को खींच लेगा। और मन तन को खींच लेगा और परेशान करेगा। तो विल कर लिया है ना। डायरेक्शन प्रमाण करते हो तो कोई भी पाप नहीं। कोई बोझ नहीं। उसके लिए फ्री हो। डायरेक्शन तो समझते हो ना। सब डायरेक्शन मिले हुए हैं! क्लीयर हैं ना! कभी मूँझते तो नहीं? इस कार्य में यह करें या नहीं करें, ऐसे मूँझते तो नहीं? जहाँ भी कुछ मूँझ हो तो जो निमित्त बने हुए हैं उन्हों से वेरीफाय कराओ या फिर स्व स्थिति शक्तिशाली है तो अमृतवेले की टचिंग सदा यथार्थ होगी। अमृतवेले मन का भाव मिक्स करके नहीं बैठो लेकिन प्लेन बुद्धि होकर बैठो फिर टचिंग यथार्थ होगी।

कई बच्चे जब कोई प्राबलम आती है तो अपने ही मन का भाव भर करके बैठते हैं। करना तो यही चाहिए, होना तो यही चाहिए, मेरे विचार से यह ठीक है... तो टचिंग भी यथार्थ नहीं होती। अपने मन के संकल्प का ही रेसपान्ड में आता है इसलिए कहाँ न कहाँ सफलता नहीं होती। फिर मूंझते हैं कि अमृतवेले डायरेक्शन तो यही मिला था फिर पता नहीं ऐसा क्यों हुआ, सफलता क्यों नहीं मिली! लेकिन मन का भाव जो मिक्स किया, उस भाव का ही फल मिल जाता है। मनमत का फल क्या मिलेगा? मूंझेगा ना! इसको कहा जाता है अपने मन के संकल्प को भी विल करना। मेरा संकल्प यह कहता है लेकिन बाबा क्या कहता। अच्छा!

टीचर्स से:- बापदादा का टीचर्स से विशेष प्यार है क्योंकि समान हैं। बाप भी टीचर और आप मास्टर टीचर। वैसे भी समान प्यारे लगते हैं। बहुत अच्छा उमंग-उत्साह से सेवा में आगे बढ़ रही हो। सभी चक्रवर्ती हो। चक्र लगाते अनेक आत्माओं के सम्बन्ध में आए, अनेक आत्माओं को समीप लाने का कार्य कर रही हो। बापदादा खुश हैं। ऐसा लगता है ना कि बापदादा हमारे पर खुश हैं, या समझती हो कि अभी थोड़ा सा कुछ करना है। खुश हैं और भी खुश करना है। मेहनत अच्छी करती हो, मेहनत मुहब्बत से करती हो इसलिए मेहनत नहीं लगती। बापदादा सर्विसएबुल बच्चों को सदा ही सिर का ताज कहते हैं। सिरताज हो। बापदादा बच्चों के उमंग-उत्साह को देख और आगे उमंग-उत्साह बढ़ाने का सहयोग देते हैं। एक कदम बच्चों का, पदम कदम बाप के। जहाँ हिम्मत है वहाँ उल्लास की प्राप्ति स्वत: होती है। हिम्मत है तो बाप की मदद है, इसलिए बेपरवाह बादशाह हो, सेवा करते चलो। सफलता मिलती रहेगी। अच्छा -

आबू सम्मेलन में आये हुए मेहमानों से मुलाकात(13-2-84)

1-(डा.जोन्हा) असिस्टेन्ट पोट्री जनरल, यू.एन.ओ.)

बापदादा बच्चे के दिल के संकल्प को सदा ही सहयोग देते पूर्ण करते रहेंगे। जो आपका संकल्प है उसी संकल्प को साकार में लाने के योग्य स्थान पर पहुँच गये हो। ऐसे समझते हो कि यह सब मेरे संकल्प को पूरा करने वाले साथी हैं। सदा शान्ति का अनुभव याद से करते रहेंगे। बहुत मीठी सुखमय शान्ति की अनुभूति होती रहेगी। शान्ति प्रिय परिवार में पहुँच गये हो इसलिए सेवा के निमित्त बने। सेवा के निमित्त बनने का रिटर्न जब भी बाप को याद करेंगे तो सहज सफलता का अनुभव करते रहेंगे। अपने को सदा ''मैं शान्ति स्वरूप आत्मा हूँ, शान्ति के सागर का बच्चा हूँ। शान्ति प्रिय आत्मा हूँ'' इस स्मृति में रहना और इसी अनुभव द्वारा जो भी सम्पर्क में आये उन्हों को सन्देशी बन सन्देश देते रहना। यही अलौकिक आक्यूपेशन सदा श्रेष्ठ कर्म और श्रेष्ठ कर्म द्वारा श्रेष्ठ प्राप्ति कराता रहेगा। वर्तमान और भविष्य दोनों ही श्रेष्ठ रहेंगे। शान्ति का अनुभव करने वाली योग्य आत्मा हो। सदा शान्ति के सागर में लहराते रहना।

जब भी कोई कार्य में मुश्किल हो तो शान्ति के फरिश्तों से अपना सम्पर्क रखेंगे तो मुश्किल सहज हो जायेगी। समझा। फिर भी बहुत भाग्यवान हो। इस भाग्य विधाता की धरनी पर पहुँचने वाले कोटों में कोई, कोई में भी कोई होते हैं। भाग्यवान तो बन ही गये। अभी पद्मापदम भाग्यवान जरूर बनना है। ऐसा ही लक्ष्य है ना! जरूर बनेंगे सिर्फ शान्ति के फरिश्तों का साथ रखते रहना। विशेष आत्मायें, विशेष पार्ट बजाने वाली आत्मायें यहाँ पहुँचती हैं। आपका आगे भी विशेष पार्ट है जो आगे चल मालूम पड़ता जायेगा। यह कार्य तो सफल हुआ ही पड़ा है। सिर्फ जो भी श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाली हैं उन्हों का भाग्य बनाने के लिए यह सेवा का साधन है। यह तो हुआ ही पड़ा है, यह अनेक बार हुआ है। आपका संकल्प बहुत अच्छा है। और जो भी आपके साथी हैं, जो यहाँ से होकर गये हैं, स्नेही हैं, सहयोगी हैं। उन सबको भी विशेष स्नेह के पुष्पों के साथ-साथ बापदादा का याद-प्यार देना।

2- मैडम अनवर सादात से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात - इजिप्ट के लिए सन्देश

अपने देश में जाकर धन की एकानामी का तरीका सिखलाना। मन की खुशी से धन की अनुभूति होती है। और धन की एकानामी ही मन की खुशी का आधार है। ऐसे धन की एकानामी और मन की खुशी का साधन बताना तो वे लोग आपको धन और मन की खुशी देने वाले - खुशी के फरिश्ते अनुभव करेंगे। तो अभी यहाँ से शान्ति और खुशी का फरिश्ता बनकर जाना। इस शान्ति कुण्ड के सदा अविनाशी के वरदान को साथ रखना। जब भी कोई बात सामने आये तो ''मेरा बाबा'' कहने से वह बात सहज हो जायेगी। सदा उठते ही पहले बाप से मीठी-मीठी बातें करना और दिन में भी बीच-बीच में अपने आपको चेक करना कि बाप के साथ हैं! और रात को बाप के साथ ही सोना, अकेला नहीं सोना। तो सदा बाप का साथ अनुभव करती रहेंगी। सभी को बाप का सन्देश देती रहेंगी। आप बहुत सेवा कर सकती हो क्योंकि इच्छा है सभी को खुशी मिले, शान्ति मिले, जो दिल की इच्छा है उससे जो कार्य करते हैं उसमें सफलता मिलती ही है। अच्छा! ओम शान्ति!
वरदान:-
सर्व संबंध एक बाप से जोड़कर माया को विदाई देने वाले सहजयोगी भव
जहाँ संबंध होता है वहाँ याद स्वत: सहज हो जाती है। सर्व संबंधी एक बाप को बनाना ही सहजयोगी बनना है। सहजयोगी बनने से माया को सहज विदाई मिल जाती है। जब माया विदाई ले लेती है तब बाप की बंधाईयां बहुत आगे बढ़ाती हैं। जो हर कदम में परमात्म दुआयें, ब्राह्मण परिवार की दुआयें प्राप्त करते रहते हैं वह सहज उड़ते रहते हैं।
स्लोगन:-
सदा बिजी रहने वाले बिजनेस मैन बनो तो कदम-कदम में पदमों की कमाई है।