Tuesday, September 18, 2018

18-09-2018 प्रात:मुरली

18-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

''मीठे बच्चे - आत्मा और परमात्मा का यथार्थ ज्ञान तुम्हारे पास है, इसलिए तुम्हें ललकार करनी है, तुम हो शिव शक्तियां''
प्रश्नः-
सबसे ऊंची मंज़िल कौन सी है, जिसका ही तुम बच्चे पुरुषार्थ कर रहे हो?
उत्तर:-
निरन्तर याद में रहना - यह है सबसे ऊंची मंजिल। याद से ही कर्मभोग चुक्तू हो कर्मातीत अवस्था होगी। जिस मात-पिता से अपार सुख मिल रहे हैं, उनके लिये बच्चे कहते - बाबा, आपकी याद भूल जाती है! वन्डर है ना। देही-अभिमानी रहने का पुरुषार्थ चलता रहे तो याद भूल नहीं सकती।
गीत:-
किसने यह सब खेल रचाया.......  
ओम् शान्ति।
भगवानुवाच - बच्चे अपने बाप भगवान् को जानते हैं। अभी बच्चे आकरके बाप द्वारा आस्तिक बने हैं, क्योंकि बाप द्वारा बाप को जाना है इसलिए आस्तिक कहलाते हैं। तुमने जाना है बरोबर हम आत्मा हैं, वह हम आत्माओं का बाप है। भल कोई मनुष्य अपने को आत्मा समझते भी हों परन्तु परमात्मा को कोई नहीं जानते। जब बाप खुद आकर बच्चे पैदा करे और उनको अपना परिचय दे, तब जानें। बाप को ही अपना परिचय देना है। वह है आत्माओं का फादर। सम्मुख आकर बतलाते हैं कि तुम आत्मायें हो, मैं तुम आत्माओं का परमपिता हूँ। तुम निश्चय करते हो। यह तो कॉमन बात है। आत्माओं का बाप जरूर है। गायन भी है आत्मा और परमात्मा अलग रहे बहुकाल.......। बाप को बच्चे ही जानते हैं। बाप 5 हजार वर्ष बाद फिर आये हुए हैं। जब सब बच्चे नास्तिक दु:खी बन जाते हैं, एक भी आस्तिक नहीं रहता है तब बाप आते हैं। आस्तिक बनाकर फिर छिप जाते हैं। फिर कोई भी बाप को जानते नहीं। अब तुम बच्चों में यह निश्चय नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार है। सबको पूरा निश्चय नहीं है। भल यहाँ सम्मुख बैठे हैं, जानते हैं परमपिता परमात्मा, पतित-पावन बाप पतित से पावन देवता बना रहे हैं। देवताओं की तो यहाँ सिर्फ मूर्तियां हैं। खुद तो हैं नहीं। जो भी मनुष्य मात्र हैं, सिवाए तुम ब्राह्मणों के, और कोई भी आत्मा और परमात्मा को नहीं जानते। हम सो परमात्मा कह देने से न आत्मा को, न परमात्मा को जानते। तुम बच्चे जानते हो कि एक भी मनुष्य नहीं जो अपने को यथार्थ रीति आत्मा समझ और परमात्मा को अपना बाप समझें। लेकिन अब यह ललकार कौन करें? शक्तियों ने ही ललकार की थी। परन्तु अभी तक वह शक्ति आई नहीं है जो तुम्हारे में आनी चाहिए। शिव शक्तियां तो मशहूर हैं, नामीग्रामी हैं। जगत अम्बा भी शक्ति है। अब कॉन्फ्रेन्स में रिलीजस हेड्स सब आते हैं, उन्हें भी समझाना है।

बाप समझाते हैं - बच्चे, तुमको तो देही-अभिमानी बनना है। हम आत्मा हैं, परमपिता परमात्मा से वर्सा ले रहे हैं - यह निश्चय नहीं है, कोई संशय है तो ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। अच्छे-अच्छे बच्चे भी चलते-चलते माया का तूफान लगने से गिर पड़ते हैं। निश्चयबुद्धि से संशयबुद्धि हो पड़ते हैं। नहीं तो बच्चे कभी भी संशयबुद्धि नहीं होते हैं कि हमारा यह बाप नहीं है। यहाँ यह वन्डर है। कहते भी हैं परमपिता परमात्मा हम सब आत्माओं का बाप है, वह हमको पढ़ाते हैं फिर भी बाप को भूल जाते हैं। रोज़ समझाते रहते हैं - बच्चे, अपने बाप को याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। विकर्म तो जन्म-जन्मान्तर के सिर पर बहुत हैं। तुम जानते हो मम्मा-बाबा, जिसको ब्रह्मा-सरस्वती कहते हो, वह नम्बरवन में हैं। वह भी खुद कहते हैं - इतना योग लगाते हैं, मेहनत करते हैं तो भी अनेक जन्मों के पाप कटे नहीं हैं। कुछ न कुछ भोगना पड़ता है। अन्त में इस भोगना से छूट कर्मातीत अवस्था को पाना है। पुरुषार्थ करना है। माया भी कम रुसतम नहीं है, दोनों ही सर्वशक्तिमान हैं। रावण माया ने सब मनुष्य मात्र को पतित बना दिया है। गाते भी हैं पतित-पावन, तालियां बजाते रहते हैं, तो जरूर पतित हैं ना परन्तु अपने को समझते नहीं हैं कि हम पतित हैं। यह समझाना भी जरूरी है कि अब यह पतित दुनिया है। पावन दुनिया सतयुग को कहा जाता है। पावन दुनिया में ऐसे पतित-पावन को नहीं बुलायेंगे। वहाँ तो भारत बहुत सुखी था, एक ही धर्म था। अभी तुम जानते हो परमपिता परमात्मा ज्ञान सागर है, वह इन सब वेदों-शास्त्रों आदि के राज़ को जानते हैं। वही पढ़ा रहे हैं परन्तु कोई-कोई ऐसे हैं जो यह भी भूल जाते हैं कि हमको परमात्मा पढ़ाते हैं। बेहद का बाप हमें पढ़ाते हैं, वह नशा नहीं चढ़ता। यहाँ से बाहर घर जाने से नशा चकनाचूर हो जाता है। कोई मुश्किल हैं जो युक्तियुक्त पुरुषार्थ करते हैं। माया बड़ी जबरदस्त है। देह-अभिमान तो नम्बरवन है। बाबा ने समझाया है अपने को देही समझो। हम आत्मा हैं, इस शरीर द्वारा हम कर्म करते हैं। अपने को परमात्मा तो कभी नहीं समझना है। बाप कहते हैं मैं तुमको पतित से पावन बनाने आया हूँ। मुझे घड़ी-घड़ी याद करो। परन्तु बहुत अच्छे-अच्छे बच्चे भी बाप को याद नहीं करते हैं और फिर सच भी नहीं बतलाते हैं। चार्ट जो लिखकर भेजते हैं, उसमें भी झूठ। सच्चा चार्ट लिखते नहीं। बाबा समझाते हैं अपने को आत्मा समझो, हम आत्मा 84 जन्म पूरे कर अब बाबा के पास जाती हूँ। सवेरे उठकर बाबा को याद करो तो उसका नशा सारा दिन रहेगा। मनुष्य धन कमाते हैं तो नशा रहता है ना कि आज इतना कमाया। यह भी धन्धा है, व्यापार है तो उसमें कितनी मेहनत करनी चाहिए। बाबा अपना अनुभव बतलाते हैं, कितनी मेहनत करते हैं। सवेरे उठकर अपने से बातें करनी है। अब पार्ट पूरा हुआ, अभी हम गये कि गये, फिर 21 जन्म राज्य करना है। कितना मीठा, कितना प्यारा वन्डरफुल बाबा है। ऐसे बाप को कोई भी मनुष्य मात्र जानते नहीं हैं। बाप आकर बच्चों को अपने से भी ऊंच ले जाते हैं और बच्चे फिर बाप को सर्वव्यापी कह अपने से भी नीचे ले गये हैं इसलिए बाप कहते हैं तुम बहुत दु:खी बन पड़े हो। मैं तुम बच्चों को ब्रह्माण्ड और विश्व दोनों का मालिक बनाता हूँ और फिर तुम बच्चे मुझ बाप को सर्वव्यापी कह देते हो। यह भी ड्रामा में खेल है। अब बाप डायरेक्शन देते हैं - ऐसे-ऐसे समझाओ।

लक्ष्मी-नारायण आदि देवी-देवतायें 100 परसेन्ट सालवेन्ट बुद्धि थे, अभी नहीं हैं। फ़र्क देखो कितना है - कहाँ भारत स्वर्ग था, अभी नर्क है। यह ज्ञान कोई भी मनुष्य में नहीं है। तुम बच्चों में भी वह ताकत नहीं है। देह-अभिमान बहुत है। देही-अभिमानी को तो धारणा होनी चाहिए। बाप डायरेक्शन देते हैं - ऐसे-ऐसे ललकार करो। आत्मा क्या है, परमात्मा क्या है - कोई को पता नहीं है। तुम जानते हो हम आत्मा बिन्दी हैं, हमारा बाप परमपिता परमात्मा भी बिन्दी है। वह नॉलेजफुल, पतित-पावन है। जन्म-मरण में नहीं आते हैं। हम आत्मायें जन्म-मरण में आती हैं। परमपिता परमात्मा कहते हैं मेरा भी पार्ट है, मैं आता हूँ, तुम सबको सुखी बनाकर फिर निर्वाणधाम में बैठ जाता हूँ। मनुष्य बूढ़े होते हैं तो वानप्रस्थ में चले जाते हैं, परन्तु अर्थ नहीं समझते। वानप्रस्थ माना वाणी से परे स्थान। वह थोड़ेही वाणी से परे बैठते हैं। अभी वानप्रस्थी तो सब हैं। हम आत्मायें वाणी से परे रहने वाली हैं। परन्तु उस स्थान को भी जानते नहीं। तुम्हारे में भी कोई-कोई की बुद्धि में यह बातें हैं। देह-अभिमान बहुत है। बाप को फालो नहीं करते हैं। माया भी बहुत प्रबल है। आत्मा और परमात्मा के संबंध को कोई भी नहीं जानते हैं। बाप के संबंध को ही नहीं जानते। तुम भी घड़ी-घड़ी भूल जाते हो। बाप का बनकर बाप को पूरा याद करना चाहिए ना। कहते हैं - बाबा, घड़ी-घड़ी याद करना भूल जाता हूँ। अरे, तुम मात-पिता को याद करना भूल जाते हो! निरन्तर याद करने की ही मंजिल है, जिस मात-पिता से स्वर्ग का वर्सा ले रहे हो, तुम उनको भूल जाते हो! वन्डर है। मात-पिता तो एक ही है। बाप कहते हैं मैं ही तुम्हारा मात-पिता हूँ। यह हैं बड़ी गुह्य बातें। कई समझते हैं जगत अम्बा माता है, परन्तु नहीं वह तो साकारी है ना। तुम मात-पिता गाते हो निराकार को। यह सब बातें पहले नहीं बतलाते थे। दिन-प्रतिदिन गुह्य बातें सुनाई जाती हैं। कोई भी बात न समझा सको तो बोलो - बाबा ने अजुन सुनाया नहीं है, बाप से पूछेंगे। दिन-प्रतिदिन बहुत नई-नई प्वाइंट्स मिलती रहती हैं। नॉलेज तो बहुत बड़ी है। समझने वाले कोई समझें। पढ़ते-पढ़ते थक जाते हैं। बाबा को लिखते हैं - मैं नहीं चल सकूंगा, तंग हो गया हूँ। तंग होकर पढ़ाई को छोड़ देते हैं। विकार में जाते हैं तो पढ़ाई छूट जाती है। यह पढ़ाई ब्रह्मचर्य की धारणा से ही होगी। अगर ब्रह्मचर्य को तोड़ा तो धारणा नहीं हो सकेगी। दूसरे को कह नहीं सकेंगे कि काम महाशत्रु है। बुद्धि का ताला ही बन्द हो जाता है। मंज़िल बहुत ऊंची है।

सन्यासी तो गृहस्थ धर्म को छोड़ भाग जाते हैं। वो हैं हठयोगी सन्यासी, यह है राजयोग। बाप ही आकर राजयोग सिखलाते हैं। हठयोगी कभी राजयोग नहीं सिखला सकेंगे। यह बात पूरा समझाने का ढंग नहीं आया है। उन्हों का है हठयोग सन्यास। वह पतित को पावन बना नहीं सकते। तुम्हारा है बेहद का सन्यास, वह है हद का सन्यास। तुम्हारी बुद्धि में है कि हमारे 84 जन्म पूरे हुए, अब हम वापिस जाते हैं। यह बेहद का सन्यास बुद्धि से किया जाता है। उनका है हठयोग कर्म सन्यास। तुम्हारा है राजयोग, कर्मयोग, जो भगवान् ने सिखलाया है। अभी तुम अच्छी रीति समझा सकते हो कि वह है हठयोग और यह है राजयोग। शिव को भी कोई समझते नहीं हैं। जैसे आत्मा बिन्दी है, वैसे शिव भी बिन्दी है। बिन्दी का निशान भी भ्रकुटी में ही दिया जाता है और कोई जगह बिन्दी नहीं देंगे। भ्रकुटी में ही बिन्दी दी जाती है। आत्मा भी यहाँ ही निवास करती है - यह किसको पता नहीं है। इतनी छोटी बिन्दी में 84 जन्मों का अविनाशी पार्ट नूंधा हुआ है, यह कितनी डीप बातें हैं। कोई को समझाने नहीं आयेंगी। रीयल्टी में समझाना है। जैसे आत्मा बिन्दी है, वैसे परमात्मा भी बिन्दी है। अगर दूसरी आत्मा आयेगी तो वह भी बाजू में आकर बैठेगी ना। ब्राह्मण में आत्मा को बुलाते हैं, आत्मा आकर बोलती है - हमने फलानी जगह जन्म लिया है, तो वह आत्मा कहाँ आकर बैठेगी? क्या माथे में? उनमें अपनी भी आत्मा है ना। बाप कहते हैं मैं भी बिन्दी हूँ, मुझे परमपिता परम आत्मा कहते हैं। उनकी महिमा बड़ी भारी है। शिवाए नम: .... यह किसने महिमा की? आत्मा सालिग्राम ने, तो जरूर वह अलग है। दुनिया इन बातों को नहीं जानती, तुम जानते हो उनका एक ही नाम शिव है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को ब्रह्मा देवताए नम:, विष्णु देवताए नम: कहेंगे। उनको शिव परमात्माए नम: कहेंगे। तो शिव ऊंच ठहरा ना। यह बातें तुम समझ सकते हो। यह नॉलेज भी तुमको अभी है। तुम्हारा यह हीरे जैसा जन्म है। देवतायें तो प्रालब्ध भोगते हैं। यह प्रालब्ध देने वाला बाप वन्डरफुल है। ऐसे पारलौकिक बाप का कितना रिगॉर्ड रखना चाहिए। बुद्धियोग इस ब्रह्मा में नहीं, उनमें रखना है। वह बाप पढ़ाते हैं इस द्वारा, यह शरीर लोन लिया है। सारी सृष्टि में कितना बड़ा मेहमान है। शिवबाबा परमधाम से आते हैं। कितना बड़ा भारत का मेहमान है। कहाँ से आया हुआ है? उन मिनिस्टर आदि की कितनी इज्जत होती है। यह गुप्त वेश में कितना बड़ा मेहमान पतित को पावन बनाने आया है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सवेरे-सवेरे उठ याद में बैठ कमाई जमा करनी है। अपने आप से बातें करनी हैं। देही-अभिमानी रहना है।
2) राजयोग, कर्मयोग सीखना और सिखलाना है। कभी भी तंग होकर पढ़ाई नहीं छोड़नी है। बाप का रिगार्ड जरूर रखना है।
वरदान:-
महावीर बन बाप का साक्षात्कार कराने वाले वाहनधारी सो अलंकारधारी भव
महावीर अर्थात् शस्त्रधारी। शक्तियों वा पाण्डवों को सदा वाहन में दिखाते हैं और शस्त्र भी दिखाते हैं। शस्त्र अर्थात् अलंकार। वाहन है श्रेष्ठ स्थिति और अलंकार हैं सर्व शक्तियां। ऐसे वाहनधारी और अलंकारधारी ही साक्षात्कार मूर्त बन बाप का साक्षात्कार करा सकते हैं। यही महावीर बच्चों का कर्तव्य है। महावीर उसे ही कहा जाता है जो अपनी उड़ती कला द्वारा सर्व परिस्थितियों को पार कर ले।
स्लोगन:-
एकरस पुरुषार्थ द्वारा ऊंची स्थिति बना लो तो हिमालय जैसा बड़ा पेपर भी रूई हो जायेगा।