Tuesday, September 4, 2018

03-09-2018 प्रात:मुरली

03-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

''मीठे बच्चे - कोई भी भूल हो तो बाप से छिपाओ मत, अगर छिपायेंगे तो छिपाते-छिपाते स्वयं भी छिप जायेंगे''
प्रश्नः-
बिगड़ी को बनाने वाला बाप तुम बच्चों की बिगड़ी किस आधार पर बनाते हैं?
उत्तर:-
पवित्रता के आधार पर। तुम बच्चे जानते हो जब बाप बिगड़ी को सुधारने आते हैं तो इस पवित्रता पर ही अनेक झगड़े होते हैं। अबलाओं को सितम सहन करने पड़ते। पवित्र बनने बिगर देवता बन नहीं सकते। भारत को कौड़ी से हीरा, दु:खधाम से सुखधाम, पुराने को नया बनाने के लिए पवित्र जरूर बनना पड़े। तुम बच्चे इसी बात की मदद बाप को करते हो इसलिए बाप के साथ-साथ तुम्हारी भी पूजा होती है।
गीत:-
भोलेनाथ से निराला........  
ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत सुना? कौन से बच्चों ने? प्रजापिता ब्रह्माकुमार और कुमारियों ने। बाप कहते हैं मैं बी.के. के आगे ही ज्ञान सुनाता हूँ। बच्चे जानते हैं यहाँ कोई भी शूद्र कुमार वा रावण कुमार बैठ नहीं सकते। नाम ही पड़ा है ब्रह्माकुमार और कुमारियां अर्थात् प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान। तुम जानते हो कि हमारे ब्रह्मा बाबा का बाबा तो शिव है। हम आत्माओं का भी बाप शिव है। वह बाप ही है बिगड़ी को बनाने वाला। भारत की ही बिगड़ी है, उसको ही बनाते हैं। बाप कहते हैं भारत हीरे जैसा था, सुखधाम था। नई दुनिया में नया भारत, नया देवी-देवताओं का राज्य था। अभी भारत की बिगड़ी हुई है, असुरों का राज्य है। बिगड़ी को बनाने वाला अथवा सुधारने वाला कौन है? यह तुम ब्राह्मणों के सिवाए और कोई जान न सके। बरोबर भारत बहुत ऊंच था, अब नीच है। दूसरे कोई धर्म के लिए नहीं कहेंगे कि वह बहुत ऊंच थे, अब नीच हैं। जिन्होंने राजाई गंवाई है वही फिर से राजाई करते हैं। तब कहते हैं फिर से बिगड़ी को बनाने वाला। सतयुग के बाद फिर जरूर त्रेता, द्वापर, कलियुग आना ही है। सबकी बिगड़नी ही है। सतो, रजो, तमो में आना है जरूर। अब सभी की बिगड़ी हुई है। सब धर्मों का आपस में हंगामा बहुत है। चीनियों का आपस में, बौद्धियों का आपस में, सभी आपस में कितना लड़ते-झगड़ते रहते हैं। इतने जो अनेक धर्म हैं सबकी बिगड़ी हुई है। सब तमोप्रधान जड़-जड़ीभूत अवस्था में हैं। सबको सतोप्रधान से तमोप्रधान बनना ही है। रावण तमोप्रधान बना देते हैं फिर राम आकर रावण की बिगड़ी को बनाते हैं।

तुम जानते हो राम किसको कहा जाता है। राम-राम कह माला फेरते हैं तो परमात्मा को ही याद करते हैं। नाम ही है रूद्र माला। रूद्र शिव के गले की माला। सब धर्म वाले याद जरूर करते हैं। सभी धर्म वालों का सद्गति दाता शिव है। साथ में जरूर मददगार होंगे। रुद्र की माला बहुत सर्विस करती है। तुम बच्चों को बहुत सर्विस करनी है। सर्विस करते हो तब तो तुम्हारा पूजन होता है। रुद्र यज्ञ भी रचते हैं, न सिर्फ भारत में परन्तु सारी दुनिया में क्योंकि तुम सारी दुनिया को पावन बनाते हो। सर्वशक्तिमान बाप से शक्ति लेकर तुम स्वर्ग बनाते हो तो जरूर सारी सृष्टि को तुम्हारी पूजा करनी चाहिए। रुद्र है बाप। उनका बड़ा शिवलिंग मिट्टी का बनाते हैं और छोटे-छोटे सालिग्राम भी बनाते हैं। नाम है रुद्र यज्ञ। तुम्हारी पूजा होती है क्योंकि तुम सेवा करके गये हो। रुद्र यज्ञ रचते हैं, बहुत पूजा करते हैं। लाखों सालिग्राम बनाते हैं। पहले है आठ की माला फिर है 108 की और 16108 की। उन्होंने मदद की है, जो मदद बहुत करेंगे वही नज़दीक वाले होंगे।

अभी तुम पुरुषार्थ करते हो रुद्र माला में नजदीक पिरो जायें। सिर्फ बाप को याद करना है। बहुत सहज है। बच्चे के लिए बाप को याद करना बहुत सहज है, जन्मते ही बाबा-मम्मा कहना सीख जाते हैं। तो तुम भी बाबा-मम्मा के बच्चे बने हो। कहते भी हो तुम मात-पिता......। अभी तुम जानते हो हम मात-पिता के सम्मुख बैठे हैं। वह मात-पिता हमको राजाई प्राप्त करने के लिए शिक्षा देते हैं। यूं तो शिक्षा राजा को देनी चाहिए, राजा बनाने की। जैसे बैरिस्टर बनाने की शिक्षा बैरिस्टर देते हैं परन्तु यहाँ तो वन्डरफुल बात है। परमपिता परमात्मा ही ज्ञान का सागर है। वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी है। सभी वेदों, शास्त्रों, ग्रंथों आदि को वह जानते हैं। वह है निराकार, नॉलेजफुल, ब्लिसफुल, रहमदिल। सबके ऊपर रहम करते हैं। सारी सृष्टि पर दया करते हैं क्योंकि सारी सृष्टि तमोप्रधान बनी हुई है। 5 तत्व भी तमोप्रधान हैं। उन पर भी दया करते हैं, वह भी सतोप्रधान बन जायेंगे इसलिए उनको बेहद का सर्वोदया कहा जाता है। यह भी ड्रामा में नूंध है। आत्मा पवित्र बनने से हर चीज़ पवित्र बन जाती है। अभी यह तत्व आदि भी कितने ऩुकसान करते हैं। वहाँ तत्व भी सतोप्रधान होते हैं। कभी कोई बूढ़े नहीं होते। तो बिगड़ी को बनाने वाला बाप है। उनको ही वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी कहा जाता है। वही वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी राज्य स्थापन करते हैं। खुद तो निराकार है, उनको महाराजा या विश्व का मालिक, विश्व पर राज्य करने वाला नहीं कहेंगे। वह तो करनकरावनहार है। देवी-देवताओं की राजधानी स्थापन कराते हैं। खुद राजाई करते नहीं हैं।

तुम बच्चे कहते हो हम वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी विश्व के मालिक बनते हैं। फिर तुम्हारे पर कोई की अथॉरिटी नहीं चलती। कोई हुक्म नहीं कर सकते। सतयुग-त्रेता में और कोई होते ही नहीं। तो तुम बच्चों को सिद्ध कर बताना है सर्व शास्त्र शिरोमणी गीता है। भगवान् ने ही राजयोग सिखलाया है। तुम बच्चे जानते हो हम मनुष्य से देवता बनते हैं। मनुष्यों की बिगड़ी है तब तो बाप आकर देवता बनाते हैं। सारा मदार है पवित्रता पर। बच्चियां लिखती हैं - बाबा, पवित्र बनने लिए बहुत सितम करते हैं। बच्चों को समझाया गया है बड़ा युक्ति से चलना चाहिए। इसमें बड़ी होशियारी चाहिए। एक खेल है जिसमें दिखाया है अपने को बचाने लिए स्त्री कितने चरित्र करती है। बाप कहते हैं - बच्चे, इसमें नष्टोमोहा बनना पड़े। बहुतों की पति में, बच्चों में मोह की रग जाती है। कन्या का तो सिर्फ माँ-बाप और भाई-बहन में मोह होगा फिर जब शादी करती है तो प्लस और भी बढ़ जाते हैं। पति, सासू फिर बच्चे पैदा हुए तो उनमें कितना मोह जुट जाता है। डबल वृद्धि हो जाती है इसलिए पहले तो नष्टोमोहा चाहिए, फिर परीक्षायें भी आती हैं। जैसे राजायें लोग घरबार छोड़ते हैं तो पहले गुरू के पास जाते हैं, वह फिर उनसे काठी (लकड़ी) कटाते, आश्रम की सफाई आदि कराते हैं ताकि देह-अभिमान टूट जाए। यहाँ भी ऐसे कायदे हैं। गरीब तो यह सब काम करते रहते हैं। बड़े घर वालों में बड़ा देह-अभिमान रहता है तो उन्हों की परीक्षा ली जाती है। शुरूआत में बाबा ने भी परीक्षा ली ना। देह-अभिमान तोड़ने लिए तुम सब कुछ करते थे। मोटर साफ करना, धोबी का काम करना। कोई भी आये तो बोलो - पहले तो यह काम करना पड़ेगा। बड़े घर वालों के लिए तो आना ही बड़ा मुश्किल है। गरीबों पर फिर मार खाने की मुसीबत है। पवित्र रहने नहीं देते हैं। उनके साथ फिर युक्ति से चलना पड़ता है लेकिन पूरा नष्टोमोहा जरूर चाहिए। अधूरे नष्टोमोहा होंगे तो एक टांग उस तरफ, एक टांग इस तरफ, लटक पड़ेंगे। फिर ऐसे बहुत लटक दु:खी हो पड़ते हैं। बाप को भूलने से छी-छी हो जाते हैं।

बाप बच्चों को निरन्तर याद करने के लिए कितनी युक्तियां बतलाते हैं। याद से ही विकर्माजीत बनेंगे। कल्प-कल्प श्रीमत देते आये हैं। राजधानी तो जरूर स्थापन होती है। जो कल्प पहले मुआफिक पुरुषार्थ करते हैं वह छिपे नहीं रह सकते। झट मालूम पड़ जाता है। दास-दासियां भी बनने हैं ना। यहाँ रहते हैं तो राजधानी में तो आ जाते हैं क्योंकि बच्चे तो फिर भी बने ना। दास-दासी बन फिर कुछ न कुछ पद पा लेते हैं। नहीं तो दास-दासियां कहाँ से आये। प्रजा को तो अन्दर आने का एलाउ हो न सके। दास-दासियां तो अन्दर रहते हैं। बहुत कहते हैं हम कृष्ण के दास-दासी बनें तो भी अच्छा है। माँ से भी जास्ती उनकी गोद में आयेगा। आजकल बच्चों को नर्सें ही सम्भालती हैं। वहाँ तो कृष्ण को सम्भालने में बड़ी खुशी होती है। कृष्ण जन्माष्टमी पर सब मातायें कृष्ण को झुलाती हैं। वहाँ भी दासियां सम्भालती हैं।

बापदादा को बच्चे बड़े अच्छे चाहिए। बाप तो कहते हैं, कितनी मेहनत करनी पड़ती है - राजधानी स्थापन करने में। झाड़-झाड़ की काठी है, सम्भालने वाले ही तंग हो जाते हैं। कोई-कोई पर चलते-चलते ग्रहचारी बैठ जाती है। बात मत पूछो। यह तो गुड़ जाने गुड़ की गोथरी जाने, यानी बापदादा जाने। गुड़ तो है ही बाप, मीठा है ना। उनकी गोथरी, जिनमें वह आते हैं तो वह जाने और यह जानें। माया रावण ऐसा थप्पड़ लगा देती जो पता भी नहीं पड़ता है। अवज्ञा हो जाती है तो म़ाफी तो ले लो, नहीं तो कर्म भोगना बहुत हो जाती है। समझाने से भी समझते नहीं। ऐसा माया का ग्रहण लग जाता है। बाबा खुद बतलाते हैं। कभी तो योग बड़ा अच्छा लगता है, कभी तो माया इतना त़ूफान में ले आती है, बात मत पूछो। बाबा कहते हैं पहले तुम अनुभव करेंगे, तब तो औरों को बतायेंगे ना। तो त़ूफान पहले सब बाबा के आगे आते हैं। बाबा बतलाते हैं अपने को मिया मिट्ठू नहीं समझना है। स़ाफ दिल है तो ऊंची मुराद हांसिल होती है। अन्दर बाहर दिल के स़ाफ हों तब ही सच्ची दिल पर साहेब राज़ी हो सकता है। तुम बच्चे जानते हो हमारी बिगड़ी को बाबा बना रहे हैं। हम एकदम बन्दर मिसल थे। बाबा मन्दिर लायक बनाते हैं। विश्व के हम मालिक बनते हैं फिर मन्दिर में बैठने की एक कोठरी मिलती है। सतयुग को कहा जाता है शिवालय। सारे विश्व के मालिक बन राज्य करते हैं फिर बाद में हमारे लिए मन्दिर बनते हैं जिनमें हम पूजे जाते हैं। पूजा करने वाले भी पहले हम ही थे, हम ही पूज्य थे फिर हम ही पुजारी बने हैं फिर पूज्य बनते हैं। समझाया तो बहुत अच्छा जाता है। माया अच्छे-अच्छे बच्चों का भी माथा खराब कर देती है। देह-अभिमान बड़ा ऩुकसान कर देता है फिर कुछ न कुछ पाप हो जाता है। शिवबाबा की शल कोई अवज्ञा न करे, उनसे कोई न छिपाये। धर्मराज भी है, बड़ा दण्ड देते हैं। उनका डर रहना चाहिए। अवज्ञा होती है तो क्षमा ले लेनी चाहिए - बाबा, आज हमसे यह भूल हुई। शिवबाबा थ्रू ब्रह्मा। डर रहता है ब्रह्मा तो पहले पढ़ेंगे। अरे, वह तो बाबा है, शिक्षा देते हैं। मम्मा भी शिक्षा देती है। तुमको भी कोई बतलाते हैं तो तुम फिर शिवबाबा को समाचार देते हो। मम्मा-बाबा को भी मालूम पड़ जाता है। समझाया तो बहुत जाता है। मकनाहाथी नहीं बनना है। हाथी को बहुत देह-अभिमान होता है। देह-अभिमान भी बहुत नुकसानकारक है, आधाकल्प चला है ना। वहाँ तो समझते हैं हम आत्मा हैं, यह पुराना शरीर छोड़ नया लेते हैं। वहाँ आत्म-अभिमानी कहेंगे। यहाँ तो सब देह-अभिमानी हैं। तो बच्चों को श्रीमत लेते रहना है। भूल कभी छिपाना नहीं चाहिए। छिपाते-छिपाते छिप ही जाते हैं। योग टूट पड़ता है। बिगड़ी को बनाने वाला एक ही भगवान् अथॉरिटी है। अभी तुम उनके बच्चे बने हो। अच्छा!

अति मीठे-मीठे सिकीलधे ज्ञान सितारों प्रति मात-पिता बापदादा का नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अन्दर-बाहर दिल की सफाई से साहेब बाप को राज़ी रखना है। माया के ग्रहण से बचने के लिए बाप को सच्चाई से सब सुनाना है।
2) नष्टोमोहा पूरा बनना है। जरा भी किसी देहधारी में रग नहीं रखनी है। देह-अभिमान को तोड़ने का पूरा-पूरा पुरुषार्थ करना है।
वरदान:-
मास्टर ज्ञान सूर्य बन सारे विश्व को सर्व शक्तियों की किरणें देने वाले विश्व कल्याणकारी भव
जैसे सूर्य अपनी किरणों द्वारा विश्व को रोशन करता है ऐसे आप सभी भी मास्टर ज्ञान सूर्य हो तो अपने सर्व शक्तियों की किरणें विश्व को देते रहो। यह ब्राह्मण जन्म मिला ही है विश्व कल्याण के लिए तो सदा इसी कर्तव्य में बिजी रहो। जो बिजी रहते हैं वो स्वयं भी निर्विघ्न रहते और सर्व के प्रति भी विघ्न-विनाशक बनते। उनके पास कोई भी विघ्न आ नहीं सकता।
स्लोगन:-
जिम्मेवारी सम्भालते हुए सब कुछ बाप को अर्पण कर डबल लाइट रहना ही फरिश्ता बनना है।