Monday, October 7, 2013

Murli[7-10-2013]-Hindi

मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - तुम्हारी दिल में खुशी के नगाड़े बजने चाहिए क्योंकि 
बेहद का बाप तुम्हें बेहद का वर्सा देने आया है'' 

प्रश्न:- माया ने मनुष्यों को किस भ्रम में भरमा दिया है जिस कारण वे स्वर्ग में चलने 
का पुरूषार्थ नहीं कर सकते? 
उत्तर:- माया का यह जो पिछाड़ी का पाम्प है, 100 वर्ष के अन्दर एरोप्लेन, बिजली 
आदि क्या-क्या निकल गया है..... इस पाम्प को देखते हुए मनुष्य समझते हैं स्वर्ग 
तो यहाँ ही है। धन है, महल हैं, गाड़ियां हैं.... बस, हमारे लिए यहाँ ही स्वर्ग है। यह 
माया का सुख है जो भरमा देता है। इसके कारण ही वे स्वर्ग में चलने का पुरूषार्थ 
नहीं करते हैं। 

गीत:- माता ओ माता........ 

धारणा के लिए मुख्य सार:- 

1) पुरूषार्थ में कभी भी थकना नहीं है। बड़ी सावधानी से श्रीमत पर चलते रहना है। 
मूँझना नहीं है। 

2) कोई भी पाप कर्म नहीं करना है। सच्चे-सच्चे स्वर्ग में चलने लिए पवित्र बनने 
और बनाने की सेवा करनी है। 

वरदान:- पवित्रता की विशेष धारणा द्वारा अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करने वाले ब्रह्माचारी भव 

ब्राह्मण जीवन की विशेष धारणा पवित्रता है, यही निरन्तर अतीन्द्रिय सुख और स्वीट 
साइलेन्स का विशेष आधार है। पवित्रता सिर्फ ब्रह्मचर्य नहीं लेकिन ब्रह्मचारी और सदा 
ब्रह्माचारी अर्थात् ब्रह्मा बाप के आचरण पर हर कदम चलने वाले। संकल्प, बोल और 
कर्म रूपी कदम ब्रह्मा बाप के कदम ऊपर कदम हो, ऐसे जो ब्रह्माचारी हैं उनका चेहरा 
और चलन सदा ही अन्तर्मुखी और अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति करायेगा। 

स्लोगन:- सेवा में त्रिकालदर्शा का सेन्स और रूहानियत का इसेन्स भरने वाले ही 
सार्विसबुल हैं।