मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - याद के अभ्यास को सहज बनाने के लिए बाप को कभी बाप रूप में, कभी
प्रश्न:- तुम बच्चों को अभी सारे विश्व में कौन-सा ढिंढोरा पिटवाना है?
उत्तर:- अब ढिंढोरा पिटवाओ कि सुख की दुनिया (स्वर्ग) का रचयिता स्वयं राजयोग सिखलाने आया
गीत:- कौन आया मेरे मन के द्वारे.......
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप समान त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री, त्रिलोकीनाथ बनना है। बाप की महिमा में स्वयं को मास्टर बनाना है।
2) डबल आहिंसक बनना है। किसी भी विकार के वशीभूत हो हिंसा नहीं करनी है। बाप का मददगार
वरदान:- उमंग-उत्साह द्वारा विघ्नों को समाप्त करने वाले बाप समान समीप रत्न भव
बच्चों के दिल में जो उमंग-उत्साह है कि मैं बाप समान समीप रत्न बन सपूत बच्चे का सबूत दूँ - यह
स्लोगन:- जैसे तपस्वी सदा आसन पर बैठते हैं ऐसे आप एकरस अवस्था के आसन पर विराजमान रहो।
टीचर रूप में तो कभी सतगुरू रूप में याद करो''
प्रश्न:- तुम बच्चों को अभी सारे विश्व में कौन-सा ढिंढोरा पिटवाना है?
उत्तर:- अब ढिंढोरा पिटवाओ कि सुख की दुनिया (स्वर्ग) का रचयिता स्वयं राजयोग सिखलाने आया
हुआ है। वो बच्चों के लिए हथेली पर बहिश्त लेकर आया है इसलिए राजयोग सीखो। बाप स्वयं कहते
हैं - बच्चे, अब तुम्हारे 84 जन्म पूरे हुए हैं, तुम्हें मेरे साथ घर चलना है इसलिए देह का भान छोड़
अशरीरी बनो। दैवीगुण धारण करो तो दैवी दुनिया में चले जायेंगे।
गीत:- कौन आया मेरे मन के द्वारे.......
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप समान त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री, त्रिलोकीनाथ बनना है। बाप की महिमा में स्वयं को मास्टर बनाना है।
2) डबल आहिंसक बनना है। किसी भी विकार के वशीभूत हो हिंसा नहीं करनी है। बाप का मददगार
बन सबको पावन बनाने की सेवा करनी है।
वरदान:- उमंग-उत्साह द्वारा विघ्नों को समाप्त करने वाले बाप समान समीप रत्न भव
बच्चों के दिल में जो उमंग-उत्साह है कि मैं बाप समान समीप रत्न बन सपूत बच्चे का सबूत दूँ - यह
उमंग-उत्साह उड़ती कला का आधार है। यह उमंग कई प्रकार के आने वाले विघ्नों को समाप्त कर
सम्पन्न बनने में सहयोग देता है। यह उमंग-उत्साह का शुद्ध और दृढ़ संकल्प विजयी बनाने में
विशेष शक्तिशाली शस्त्र बन जाता है इसलिए दिल में सदा उमंग-उत्साह को वा इस उड़ती कला के
साधन को कायम रखना।
स्लोगन:- जैसे तपस्वी सदा आसन पर बैठते हैं ऐसे आप एकरस अवस्था के आसन पर विराजमान रहो।