मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - तुम्हारे दर पर कोई भी आये उसे कुछ न कुछ ज्ञान धन देना है,
प्रश्न:- जादूगर बाप की जादूगरी कौन सी है?
उत्तर:- जादूगर बाप की जादूगरी देखो - इतना ऊंचा बाप कहते हैं मैं तुम्हारी सेवा में आया हूँ,
गीत:- जो पिया के साथ है........
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) राइट और रांग को समझ बुद्धि बल से मन रूपी तूफानी घोड़े को वश करके मायाजीत,
2) शिव को बालक बनाकर उनकी पालना करनी है अर्थात् पहले उन्हें अपना वारिस बनाना है।
वरदान:- संगमयुग के इस नये युग में हर सेकण्ड नवीनता का अनुभव करने वाले फास्ट पुरूषार्थी भव
संगमयुग पर सब कुछ नया हो जाता है, इसलिए इसे नया युग भी कहते हैं। यहाँ उठना
स्लोगन:- परमात्म प्यार द्वारा जीवन में सदा अतीन्द्रिय सुख व आनंद की अनुभूति करना ही सहजयोग है।
पहले फॉर्म भराओ फिर दो बाप का परिचय दो''
प्रश्न:- जादूगर बाप की जादूगरी कौन सी है?
उत्तर:- जादूगर बाप की जादूगरी देखो - इतना ऊंचा बाप कहते हैं मैं तुम्हारी सेवा में आया हूँ,
मैं तुम्हारा बच्चा भी बन जाता हूँ। तुम बच्चे जब मेरे पर बलि चढ़ो तो फिर मैं 21 जन्मों वे
लिए तुम्हारे पर बलि चढूँ। यह भी वन्डरफुल बातें हैं। बाप कितने प्यार से तुम्हें पढ़ाई पढ़ाते
हैं। तुम्हारी सब मनोकामनायें पूरी करते हैं। तुमसे कोई भी फीस आदि नहीं लेते हैं। उन्हें
कहा जाता है - राझू-रमज़बाज।
गीत:- जो पिया के साथ है........
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) राइट और रांग को समझ बुद्धि बल से मन रूपी तूफानी घोड़े को वश करके मायाजीत,
जगतजीत बनना है। हार नहीं खानी है।
2) शिव को बालक बनाकर उनकी पालना करनी है अर्थात् पहले उन्हें अपना वारिस बनाना है।
उन पर पूरा बलि चढ़ना है।
वरदान:- संगमयुग के इस नये युग में हर सेकण्ड नवीनता का अनुभव करने वाले फास्ट पुरूषार्थी भव
संगमयुग पर सब कुछ नया हो जाता है, इसलिए इसे नया युग भी कहते हैं। यहाँ उठना
भी नया, बोलना भी नया, चलना भी नया। नया अर्थात् अलौकिक। स्मृति में भी नवीनता
आ गई। बातें भी नई, मिलना भी नया, देखना भी नया। देखेंगे तो आत्मा, आत्मा को देखेंगे,
शरीर को नहीं। भाई-भाई की दृष्टि से सम्पर्क में आयेंगे, दैहिक संबंध से नहीं। ऐसे हर सेकण्ड
अपने में नवीनता का अनुभव करना, जो एक सेकण्ड पहले अवस्था थी वह दूसरे सेकण्ड नहीं,
उससे आगे हो इसको ही फास्ट पुरूषार्थी कहा जाता है।
स्लोगन:- परमात्म प्यार द्वारा जीवन में सदा अतीन्द्रिय सुख व आनंद की अनुभूति करना ही सहजयोग है।