मुरली सार :- ''मीठे बच्चे - तुम इस पाठशाला में आये हो अपनी ऊंची तकदीर बनाने, तुम्हें निराकार बाप से पढ़कर राजाओं का राजा बनना है''
प्रश्न:- कई बच्चे हैं भाग्यशाली लेकिन बन जाते हैं दुर्भाग्यशाली कैसे?
उत्तर:- वह बच्चे भाग्यशाली हैं - जिन्हें कोई भी कर्मबन्धन नहीं है अर्थात् कर्म बन्धनमुक्त हैं। परन्तु फिर भी यदि पढ़ाई में अटेन्शन नहीं देते, बुद्धि इधर उधर भटकती रहती है, एक बाप जिससे इतना भारी वर्सा मिलता, उसे याद नहीं करते हैं तो भाग्यशाली होते भी दुर्भाग्यशाली ही कहेंगे।
प्रश्न:- श्रीमत में कौन-कौन से रस भरे हुए हैं?
उत्तर:- श्रीमत ही है - जिसमें मात-पिता, टीचर, गुरू सबकी मत इकट्ठी है। श्रीमत जैसे सैक्रीन है, जिसमें यह सब रस भरे हुए हैं।
गीत:- तकदीर जगाकर आई हूँ....
धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) बुद्धि में स्वदर्शन चक्र का ज्ञान रख, राहू के ग्रहण से मुक्त होना है। श्रेष्ठ कर्म और योगबल से विकर्मों का खाता चुक्तू कर विकर्माजीत बनना है।
2) अपनी ऊंची तकदीर बनाने के लिए पढ़ाई पर पूरा-पूरा ध्यान देना है।
वरदान:- एकरस और निरन्तर खुशी की अनुभूति द्वारा नम्बरवन लेने वाले अखुट खजाने से सम्पन्न भव
नम्बरवन में आने के लिए एकरस और निरन्तर खुशी की अनुभूति करते रहो, किसी भी झमेले में नहीं जाओ। झमेले में जाने से खुशी का झूला ढीला हो जाता है फिर तेज नहीं झूल सकते इसलिए सदा और एकरस खुशी के झूले में झूलते रहो। बापदादा द्वारा सभी बच्चों को अविनाशी, अखुट और बेहद का खजाना मिलता है। तो सदा उन खजानों की प्राप्ति में एकरस और सम्पन्न रहो। संगमयुग की विशेषता है अनुभव, इस युग की विशेषता का लाभ उठाओ।
स्लोगन:- मन्सा महादानी बनना है तो रूहानी स्थिति में सदा स्थित रहो।
प्रश्न:- कई बच्चे हैं भाग्यशाली लेकिन बन जाते हैं दुर्भाग्यशाली कैसे?
उत्तर:- वह बच्चे भाग्यशाली हैं - जिन्हें कोई भी कर्मबन्धन नहीं है अर्थात् कर्म बन्धनमुक्त हैं। परन्तु फिर भी यदि पढ़ाई में अटेन्शन नहीं देते, बुद्धि इधर उधर भटकती रहती है, एक बाप जिससे इतना भारी वर्सा मिलता, उसे याद नहीं करते हैं तो भाग्यशाली होते भी दुर्भाग्यशाली ही कहेंगे।
प्रश्न:- श्रीमत में कौन-कौन से रस भरे हुए हैं?
उत्तर:- श्रीमत ही है - जिसमें मात-पिता, टीचर, गुरू सबकी मत इकट्ठी है। श्रीमत जैसे सैक्रीन है, जिसमें यह सब रस भरे हुए हैं।
गीत:- तकदीर जगाकर आई हूँ....
धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) बुद्धि में स्वदर्शन चक्र का ज्ञान रख, राहू के ग्रहण से मुक्त होना है। श्रेष्ठ कर्म और योगबल से विकर्मों का खाता चुक्तू कर विकर्माजीत बनना है।
2) अपनी ऊंची तकदीर बनाने के लिए पढ़ाई पर पूरा-पूरा ध्यान देना है।
वरदान:- एकरस और निरन्तर खुशी की अनुभूति द्वारा नम्बरवन लेने वाले अखुट खजाने से सम्पन्न भव
नम्बरवन में आने के लिए एकरस और निरन्तर खुशी की अनुभूति करते रहो, किसी भी झमेले में नहीं जाओ। झमेले में जाने से खुशी का झूला ढीला हो जाता है फिर तेज नहीं झूल सकते इसलिए सदा और एकरस खुशी के झूले में झूलते रहो। बापदादा द्वारा सभी बच्चों को अविनाशी, अखुट और बेहद का खजाना मिलता है। तो सदा उन खजानों की प्राप्ति में एकरस और सम्पन्न रहो। संगमयुग की विशेषता है अनुभव, इस युग की विशेषता का लाभ उठाओ।
स्लोगन:- मन्सा महादानी बनना है तो रूहानी स्थिति में सदा स्थित रहो।