"मीठे बच्चे - यहाँ तुम बदलने के लिए आये हो, तुम्हें आसुरी गुणों को बदल दैवी गुण धारण करने हैं,
यह देवता बनने की पढ़ाई है"
प्रश्र:-तुम बच्चे कौन-सी पढ़ाई बाप से ही पढ़ते हो, दूसरा कोई पढ़ा नही सकता?
उत्तर:- मनुष्य से देवता बनने की पढ़ाई, अपवित्र से पवित्र बनकर नई दुनिया में जाने की पढ़ाई एक बाप
के सिवाए और कोई भी पढ़ा नही सकता । बाप ही सहज ज्ञान और राजयोग की पढ़ाई द्वारा पवित्र
प्रवृत्ति मार्ग स्थापन करते है
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग । रूहानी बाप की
रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) श्रेष्ठ राज्य स्थापन करने के लिए श्रीमत पर चलकर बाप का मददगार बनना है ।
जैसे देवतायें निर्विकारी हैं, ऐसे गृहस्थ में रहते निर्विकारी बनना है । पवित्र प्रवृत्ति बनानी है ।
2) ड्रामा की प्वाइंट को उल्टे रूप से यूज नहीं करना है । ड्रामा कहकर बैठ नहीं जाना है ।
पढाई पर पूरा ध्यान देना है । पुरूषार्थ से अपनी श्रेष्ठ प्रालब्ध बनानी है ।
वरदान:- अपने सम्पर्क द्वारा अनेक आत्माओं की चिंताओं को मिटाने वाले सर्व के प्रिय भव !
वर्तमान समय व्यक्तियों में स्वार्थ भाव होने के कारण और वैभवों द्वारा अल्पकाल की प्राप्ति होने
के कारण आत्मायें कोई न कोई चिंता में परेशान है । आप शुभचिंतक आत्माओं के थोड़े समय
का सम्पर्क भी उन आत्माओं की चिंताओं को मिटाने का आधार बन जाता है । आज विश्व को
आप जैसी शुभचिंतक आत्माओं की आवश्यकता है इसलिए आप विश्व को अतिप्रिय हो ।
स्लोगन: - आप हीरे तुल्य आत्माओं के बोल भी रत्न समान मूल्यवान हो
ओम् शान्ति ।