12-05-13 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज:02-02-76 मधुबन
भक्तों और पाण्डवों का पोतामेल
वरदान:- श्रेष्ठ कर्म रूपी डाली में लटकने के बजाए उड़ता पंछी बनने वाले हीरो पार्टधारी भव
संगमयुग पर जो श्रेष्ठ कर्म करते हो - यह श्रेष्ठ कर्म हीरे की डाली है। संगमयुग का कैसा भी
स्लोगन:- अन्दर की स्थिति का दर्पण चेहरा है, चेहरा कभी खुश्क न हो, खुशी का हो।
भक्तों और पाण्डवों का पोतामेल
वरदान:- श्रेष्ठ कर्म रूपी डाली में लटकने के बजाए उड़ता पंछी बनने वाले हीरो पार्टधारी भव
संगमयुग पर जो श्रेष्ठ कर्म करते हो - यह श्रेष्ठ कर्म हीरे की डाली है। संगमयुग का कैसा भी
श्रेष्ठ कर्म हो लेकिन श्रेष्ठ कर्म के बंधन में भी फंसना अथवा हद की कामना रखना - यह सोने
की जंजीर है। इस सोने की जंजीर अथवा हीरे की डाली में भी लटकना नहीं है क्योंकि बंधन
तो बंधन है इसलिए बापदादा सभी उड़ते पंछियों को स्मृति दिलाते हैं कि सर्व बंधनों अर्थात्
हदों को पार कर हीरो पार्टधारी बनो।
स्लोगन:- अन्दर की स्थिति का दर्पण चेहरा है, चेहरा कभी खुश्क न हो, खुशी का हो।