Friday, July 20, 2012

Murli [20-07-2012]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - वाह्यात (व्यर्थ) बातों में तुम्हें अपना अमूल्य समय बरबाद नहीं करना है, बाप की याद से आबाद होना है'' 
प्रश्न: बापदादा दोनों ही निरंहकारी बन बच्चों के कल्याण के लिए कौन सी राय देते हैं? 
उत्तर: बच्चे, सदैव समझो हमें शिवबाबा पढ़ाते हैं। भल ब्रह्मा बाबा भी तुम्हें पढ़ा सकते हैं लेकिन शिवबाबा को याद करने में ही तुम्हारा कल्याण है इसलिए यह दादा निरहंकारी बन कहते हैं मैं तुम्हें नहीं पढ़ाता हूँ। पढ़ाने वाला एक बाप है, उसे ही याद करो। उनकी याद से ही तुम विकर्माजीत बनेंगे, विकर्म विनाश होंगे। मेरी याद से नहीं। 
धारणा के लिए मुख्य सार: 
1) ऊंच पद पाने के लिए अपनी पढ़ाई में तत्पर रहना है। झरमुई झगमुई की व्यर्थ बातें नहीं सुननी है। अपना समय व्यर्थ नहीं गॅवाना है। 
2) एक दो को ज्ञान सुनाकर कल्याण करना है। कभी भी मन्सा तूफानों के वश हो कर्मेन्द्रियों से कोई विकर्म नहीं करना है। 
वरदान: स्व और सेवा के बैलेन्स द्वारा दुआयें लेने और देने वाले सदा सफलतामूर्त भव 
जैसे सेवा में बहुत आगे बढ़ रहे हो ऐसे स्वउन्नति पर भी पूरा अटेन्शन रहे। जिनको यह बैलेन्स रखना आता है वे सदा दुआयें लेते और दुआयें देते हैं। बैलेन्स की प्राप्ति ही है ब्लैसिंग। बैलेन्स वाले को ब्लैसिंग नहीं मिले - यह हो नहीं सकता। मात-पिता और परिवार की दुआओं से सदा आगे बढ़ते चलो। यह दुआयें ही पालना हैं। सिर्फ दुआयें लेते चलो और सबको दुआयें देते चलो तो सहज सफलतामूर्त बन जायेंगे। 
स्लोगन: गुणमूर्त बनना और सर्व को गुणमूर्त बनाना-यही महादान है।