Tuesday, December 31, 2019

29-12-2019 प्रात:मुरली

29-12-19 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 27-03-85 मधुबन

कर्मातीत अवस्था
आज बापदादा चारों ओर के बच्चों को विशेष देखने लिए चक्कर लगाने गये। जैसे भक्ति मार्ग में आप सभी ने बहुत बार परिक्रमा लगाई। तो बापदादा ने भी आज चारों ओर के सच्चे ब्राह्मणों के स्थानों की परिक्रमा लगाई। सभी बच्चों के स्थान भी देखे और स्थिति भी देखी। स्थान भिन्न-भिन्न विधिपूर्वक सजे हुए थे। कोई स्थूल साधनों से आकर्षण करने वाले थे, कोई तपस्या के वायब्रेशन से आकर्षण करने वाले थे। कोई त्याग और श्रेष्ठ भाग्य अर्थात् सादगी और श्रेष्ठता इस वायुमण्डल से आकर्षण करने वाले थे। कोई-कोई साधारण स्वरूप में भी दिखाई दिये। सभी ईश्वरीय याद के स्थान भिन्न-भिन्न रूप के देखे। स्थिति क्या देखी? इसमें भी भिन्न-भिन्न प्रकार के ब्राह्मण बच्चों की स्थिति देखी। समय प्रमाण बच्चों की तैयारी कहाँ तक है, यह देखने के लिए ब्रह्मा बाप गये थे। ब्रह्मा बाप बोले-बच्चे सर्व बंधनों से बंधनमुक्त, योगयुक्त, जीवनमुक्त एवररेडी हैं। सिर्फ समय का इन्तजार है। ऐसे तैयार हैं? इन्तजाम हो गया है सिर्फ समय का इन्तजार है? बापदादा की रूहरिहान चली। शिव बाप बोले चक्कर लगाके देखा तो बंधनमुक्त कहाँ तक बने हैं! योगयुक्त कहाँ तक बने हैं? क्योंकि बंधनमुक्त आत्मा ही जीवनमुक्त का अनुभव कर सकती है। कोई भी हद का सहारा नहीं अर्थात् बंधनों से किनारा है। अगर किसी भी प्रकार का छोटा बड़ा स्थूल वा सूक्ष्म मंसा से वा कर्म से हद का कोई भी सहारा है तो बंधनों से किनारा नहीं हो सकता। तो यह दिखाने के लिए ब्रह्मा बाप को आज विशेष सैर कराया। क्या देखा?

मैजारटी बड़े-बड़े बंधनों से मुक्त हैं। जो स्पष्ट दिखाई देने वाले बंधन हैं वा रस्सियाँ हैं उससे तो किनारा कर लिया है। लेकिन अभी कोई-कोई ऐसे अति सूक्ष्म बंधन वा रस्सियाँ रही हुई हैं जिसको महीन बुद्धि के सिवाए देख वा जान भी नहीं सकते हैं। जैसे आजकल के साइंस वाले सूक्ष्म वस्तुओं को पावरफुल ग्लास द्वारा देख सकते हैं। साधारण रीति से नहीं देख सकते। ऐसे सूक्ष्म परखने की शक्ति द्वारा उन सूक्ष्म बंधनों को देख सकते वा महीन बुद्धि द्वारा जान सकते हैं। अगर ऊपर-ऊपर के रूप से देखे तो न देखने वा जानने के कारण वह अपने को बंधनमुक्त ही समझते रहते हैं। ब्रह्मा बाप ने ऐसे सूक्ष्म सहारे चेक किये।

सबसे ज्यादा सहारा दो प्रकार का देखा, एक अति सूक्ष्म स्वरूप किसी न किसी सेवा के साथी का सूक्ष्म सहारा देखा, इसमें भी अनेक प्रकार देखे। सेवा के सहयोगी होने के कारण, सेवा में वृद्धि करने के निमित्त बने हुए होने के कारण या विशेष कोई विशेषता, विशेष गुण होने के कारण, विशेष कोई संस्कार मिलने के कारण वा समय प्रति समय कोई एकस्ट्रा मदद देने के कारण, ऐसे कारणों से, रूप सेवा का साथी है, सहयोगी है लेकिन विशेष झुकाव होने के कारण सूक्ष्म लगाव का रूप बनता जाता है। इसका परिणाम क्या होता है? यह भूल जाते हैं कि यह बाप की देन है। समझते हैं यह बहुत अच्छा सहयोगी है, अच्छा विशेषता स्वरूप है, गुणवान है। लेकिन समय प्रति समय बाप ने ऐसा अच्छा बनाया है, यह भूल जाता है। संकल्प मात्र भी किसी आत्मा के तरफ बुद्धि का झुकाव है तो वह झुकाव सहारा बन जाता है। तो साकार रूप में सहयोगी होने के कारण समय पर बाप के बदले पहले वह याद आयेगा। दो चार मिनट भी अगर स्थूल सहारा स्मृति में आया तो बाप का सहारा उस समय याद होगा? दूसरी बात अगर दो चार मिनट के लिए भी याद की यात्रा का लिंक टूट गया तो टूटने के बाद जोड़ने की फिर मेहनत करनी पड़ेगी क्योंकि निरन्तर में अन्तर पड़ गया ना! दिल में दिलाराम के बदले और किसी की तरफ किसी भी कारण से दिल का झुकाव होता है, इससे बात करना अच्छा लगता है, इससे बैठना अच्छा लगता है “इसी से ही'', शब्द माना दाल में काला है। “इसी से ही'' का ख्याल आना माना हीनता आई। ऐसे तो सब अच्छे लगते हैं लेकिन इससे ज्यादा अच्छा लगता है! सबसे रूहानी स्नेह रखना, बोलना या सेवा में सहयोग लेना वा देना वह दूसरी बात है। विशेषता देखो, गुण देखो लेकिन इसी का ही यह गुण बहुत अच्छा है, यह “ही'' बीच में नहीं लाओ। यह “ही'' शब्द गड़बड़ करता है, इसको ही लगाव कहा जाता है। फिर चाहे बाहर का रूप सेवा हो, ज्ञान हो, योग हो, लेकिन जब इसी से “ही'' योग करना है, इसका ही योग अच्छा है! यह “ही'' शब्द नहीं आना चाहिए। ये ही सेवा में सहयोगी हो सकता है। ये ही साथी चाहिए...तो समझा लगाव की निशानी क्या है! इसलिए यह “ही'' निकाल दो। सभी अच्छे हैं। विशेषता देखो। सहयोगी बनो भी, बनाओ भी लेकिन पहले थोड़ा होता है फिर बढ़ते-बढ़ते विकराल रूप हो जाता है। फिर खुद ही उससे निकलना चाहते तो निकल नहीं सकते क्योंकि पक्का धागा हो जाता है। पहले बहुत सूक्ष्म होता फिर पक्का हो जाता है तो टूटना मुश्किल हो जाता। सहारा एक बाप है। कोई मनुष्य आत्मा सहारा नहीं है। बाप किसको भी सहयोगी निमित्त बनाता है लेकिन बनाने वाले को नहीं भूलो। बाप ने बनाया है। बाप बीच में आने से जहाँ बाप होगा वहाँ पाप नहीं! बाप बीच से निकल जाता तो पाप होता है। तो एक बात है यह सहारे की।

दूसरी बात-कोई न कोई साकार साधनों को सहारा बनाया है। साधन हैं तो सेवा है। साधन में थोड़ा नीचे ऊपर हुआ तो सेवा भी नीचे ऊपर हुई। साधनों को कार्य में लगाना वह अलग बात है। लेकिन साधनों के वश हो सेवा करना यह है साधनों को सहारा बनाना। साधन सेवा की वृद्धि के लिए हैं इसलिए उन साधनों को उसी प्रमाण कार्य में लाओ, साधनों को आधार नहीं बनाओ। आधार एक बाप है, साधन तो विनाशी हैं। विनाशी साधनों को आधार बनाना अर्थात् जैसे साधन विनाशी हैं वैसे स्थिति भी कभी बहुत ऊंची कभी बीच की, कभी नीचे की बदलती रहेगी। अविनाशी एकरस स्थिति नहीं रहेगी। तो दूसरी बात-विनाशी साधनों को सहारा, आधार नहीं समझो। यह निमित्त मात्र है। सेवा के प्रति है। सेवा अर्थ कार्य में लगाया और न्यारे। साधनों के आकर्षण में मन आकर्षित नहीं होना चाहिए। तो यह दो प्रकार के सहारे सूक्ष्म रूप में आधार बना हुआ देखा। जब कर्मातीत अवस्था होनी है तो हर व्यक्ति, वस्तु, कर्म के बन्धन से अतीत होना, न्यारा होना इसको ही कर्मातीत अवस्था कहते हैं। कर्मातीत माना कर्म से न्यारा हो जाना नहीं। कर्म के बन्धनों से न्यारा। न्यारा बनकर कर्म करना अर्थात् कर्म से न्यारे। कर्मातीत अवस्था अर्थात् बंधनमुक्त, योग-युक्त, जीवनमुक्त अवस्था!

और विशेष बात यह देखी कि समय प्रति समय परखने की शक्ति में कई बच्चे कमजोर हो जाते हैं। परख नहीं सकते हैं इसलिए धोखा खा लेते हैं। परखने की शक्ति कमजोर होने का कारण है बुद्धि की लगन एकाग्र नहीं है। जहाँ एकाग्रता है वहाँ परखने की शक्ति स्वत: ही बढ़ती है। एकाग्रता अर्थात् एक बाप के साथ सदा लगन में मगन रहना। एकाग्रता की निशानी सदा उड़ती कला के अनुभूति की एकरस स्थिति होगी। एक-रस का अर्थ यह नहीं कि वही रफ्तार हो तो एकरस है। एकरस अर्थात् सदा उड़ती कला की महसूसता रहे, इसमें एकरस। जो कल था उससे आज परसेन्टेज में वृद्धि का अनुभव करें। इसको कहा जाता है उड़ती कला। तो स्व उन्नति के लिए, सेवा की उन्नति के लिए परखने की शक्ति बहुत आवश्यक है। परखने की शक्ति कमजोर होने के कारण अपनी कमजोरी को कमजोरी नहीं समझते हैं। और ही अपनी कमजोरी को छिपाने के लिए या सिद्ध करेंगे या जिद्द करेंगे। यह दो बातें छिपाने का विशेष साधन है। अन्दर में कभी महसूस भी होगा लेकिन फिर भी पूरी परखने की शक्ति न होने के कारण अपने को सदा राइट और होशियार सिद्ध करेंगे। समझा! कर्मातीत तो बनना है ना। नम्बर तो लेना है ना इसलिए चेक करो। अच्छी तरह से योगयुक्त बन परखने की शक्ति धारण करो। एकाग्र बुद्धि बन करके फिर चेक करो। तो जो भी सूक्ष्म कमी होगी वह स्पष्ट रूप में दिखाई देगी। ऐसा न हो जो आप समझो मैं बहुत राइट, बहुत अच्छी चल रही हूँ। कर्मातीत मैं ही बनूँगी और जब समय आवे तो यह सूक्ष्म बंधन उड़ने न देवें। अपनी तरफ खींच लेवें। फिर समय पर क्या करेंगे? बंधा हुआ व्यक्ति अगर उड़ना चाहे तो उड़ेगा वा नीचे आ जोयगा! तो यह सूक्ष्म बंधन समय पर नम्बर लेने में वा साथ चलने में वा एवररेडी बनने में बंधन न बन जाएं इसलिए ब्रह्मा बाप चेक कर रहे थे। जिसको यह सहारा समझते हैं वह सहारा नहीं है लेकिन वह रॉयल धागा है। जैसे सोनी हिरण का मिसाल है ना। सीता को कहाँ ले गया! तो सोना हिरण यह बंधन है, इसको सोना समझना माना अपने श्रेष्ठ भाग्य को खोना। सोना नहीं है खोना है। राम को खोया, अशोक वाटिका को खोया।

ब्रह्मा बाप का बच्चों से विशेष प्यार है इसलिए ब्रह्मा बाप सदा बच्चों को अपने समान एवररेडी बंधनमुक्त देखने चाहते हैं। बंधनमुक्त का ही नजारा देखा ना! कितने में एवररेडी हुआ! किसी के बंधन में बंधा! कोई याद आया कि फलानी कहाँ है! फलानी सेवा की साथी है। याद आया? तो एवररेडी का पार्ट कर्मातीत स्टेज का पार्ट देखा ना! जितना ही बच्चों से अति प्यार रहा उतना ही प्यारा और न्यारा देखा ना! बुलावा आया और गया। नहीं तो सबसे ज्यादा बच्चों से प्यार ब्रह्मा का रहा ना! जितना प्यारा उतना न्यारा। किनारा करना देख लिया ना। कोई भी चीज़ अथवा भोजन जब तैयार हो जाता है तो किनारा छोड़ देता है ना! तो सम्पूर्ण होना अर्थात् किनारा छोड़ना। किनारा छोड़ना माना किनारे हो गये। सहारा एक ही अविनाशी सहारा है। न व्यक्ति को, न वैभव वा वस्तु को सहारा बनाओ। इसको ही कहते हैं-कर्मातीत। छिपाओ कभी नहीं। छिपाने से और वृद्धि को पाता जाता है। बात बड़ी नहीं होती। लेकिन जितना छिपाते हैं उतना बात को बड़ा करते हैं। जितना अपने को राइट सिद्ध करने का प्रयत्न करते हैं उतना बात को बढ़ाते हैं। जितना जिद्द करते हैं उतना बात बढ़ाते हैं इसलिए बात को बड़ा न कर छोटे रूप से ही समाप्त करो। तो सहज होगा और खुशी होगी। यह बात हुई, यह भी पार किया, इसमें भी विजयी बने तो यह खुशी होगी। समझा! विदेशी कर्मातीत अवस्था को पाने वाले उमंग उत्साह वाले हैं ना! तो डबल विदशी बच्चों को ब्रह्मा बाप विशेष सूक्ष्म पालना दे रहे हैं। यह प्यार की पालना है शिक्षा सावधानी नहीं। समझा! क्योंकि ब्रह्मा बाप ने आप बच्चों को विशेष आह्वान से पैदा किया। ब्रह्मा के संकल्प से आप पैदा हुए हो। कहते हैं ना - ब्रह्मा ने संकल्प से सृष्टि रची। ब्रह्मा के संकल्प से यह ब्राह्मणों की इतनी सृष्टि रच गई ना। तो ब्रह्मा के संकल्प से आह्वान से रची हुई विशेष आत्मायें हो। लाडले हो गये ना। ब्रह्मा बाप समझते हैं कि यह फास्ट पुरूषार्थ कर फर्स्ट आने के उमंग-उत्साह वाले हैं। विदेशी बच्चों की विशेषताओं से विशेष श्रृंगार करने की बातें चल रही हैं। प्रश्न भी करेंगे, फिर समझेंगे भी जल्दी, विशेष समझदार हो इसलिए बाप अपने समान सब बंधनों से न्यारे और प्यारे बनने के लिए इशारा दे रहे हैं। ऐसा नहीं कि जो सामने हैं उन्हों को बता रहे हैं, सभी बच्चों को बता रहे हैं। बाप के आगे सदा सभी ब्राह्मण बच्चे चाहे देश के चाहे विदेश के सब हैं। अच्छा-आज रूह-रूहाण कर रहे हैं। सुनाया ना-अगले वर्ष से इस वर्ष की रिजल्ट बहुत अच्छी है। इससे सिद्ध है वृद्धि को पाने वाले हैं। उड़ती कला में जाने वाली आत्मायें हो। जिसको योग्य देखा जाता है उनको सम्पूर्ण योगी बनाने का इशारा दिया जाता है। अच्छा!

सदा कर्मबंधन मुक्त, योगयुक्त आत्माओं को सदा एक बाप को सहारा बनाने वाले बच्चों को सदा सूक्ष्म कमजोरियों से भी किनारा करने वाले बच्चों को, सदा एकाग्रता द्वारा परखने के शक्तिशाली बच्चों को, सदा व्यक्ति वा वस्तु के विनाशी सहारे से किनारे करने वाले बच्चों को ऐसे बाप समान जीवनमुक्त कर्मातीत स्थिति में स्थित रहने वाले विशेष बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते!

निर्मलशान्ता दादी से:- सदा बाप के साथ रहने वाले तो हैं ही। जो आदि से बाप के संग-संग चल रहे हैं, उन्हों का सदा साथ का अनुभव कभी भी कम हो नहीं सकता। बचपन का वायदा है। तो सदा साथ हैं और सदा साथ चलेंगे। तो सदा साथ का वायदा कहो या वरदान कहो, मिला हुआ है। फिर भी जैसे बाप प्रीति की रीति निभाने अव्यक्त से व्यक्त रूप में आते हैं वैसे बच्चे भी प्रीत की रीति निभाने के लिए पहुंच जाते हैं। ऐसे है ना! संकल्प में तो क्या लेकिन स्वप्न में भी, जिसको सबकानशियस कहते हैं... उस स्थिति में भी बाप का साथ कभी छूट नहीं सकता। इतना पक्का सम्बन्ध जुटा हुआ है। कितने जन्मों का सम्बन्ध है। पूरे कल्प का है। सम्बन्ध इस जन्म के हिसाब से पूरा कल्प ही रहेगा। यह तो अन्तिम जन्म में कोई-कोई बच्चे सेवा के लिए कहाँ-कहाँ बिखर गये हैं। जैसे यह लोग विदेश में पहुंच गये, आप लोग सिन्ध में पहुंच गये। कोई कहाँ पहुंचे, कोई कहाँ पहुंचे। अगर यह विदेश में नहीं पहुंचते तो इतने सेन्टर कैसे खुलते। अच्छा सदा साथ रहने वाली, साथ का वायदा निभाने वाली परदादी हो! बापदादा बच्चों की सेवा का उमंग-उत्साह देख खुश होते हैं। वरदानी आत्मायें बनी हो। अभी से देखो भीड़ लगनी शुरू हो गई है। जब और वृद्धि होगी तो कितनी भीड़ होगी। यह वरदानी रूप की विशेषता की नींव पड़ रही है। जब भीड़ हो जाये फिर क्या करेंगे। वरदान देंगे, दृष्टि देंगे। यहाँ से ही चैतन्य मूर्तियां प्रसिद्ध होंगी। जैसे शुरू में आप लोगों को सब देवियां-देवियां कहते थे.. अन्त में भी पहचान कर देवियां-देवियां करेंगे। ‘जय देवी, जय देवी' यहाँ से ही शुरू हो जायेगा। अच्छा!
वरदान:
ईश्वरीय विधान को समझ विधि से सिद्धि प्राप्त करने वाले फर्स्ट डिवीजन के अधिकारी भव
एक कदम की हिम्मत तो पदम कदमों की मदद - ड्रामा में इस विधान की विधि नूंधी हुई है। अगर यह विधि, विधान में नहीं होती तो सभी विश्व के पहले राजा बन जाते। नम्बरवार बनने का विधान इस विधि के कारण ही बनता है। तो जितना चाहे हिम्मत रखो और मदद लो। चाहे सरेन्डर हो, चाहे प्रवृत्ति वाले हो - अधिकार समान है लेकिन विधि से सिद्धि है। इस ईश्वरीय विधान को समझ अलबेलेपन की लीला को समाप्त करो तो फर्स्ट डिवीजन का अधिकार मिल जायेगा।
स्लोगन:
संकल्प के खजाने के प्रति एकानामी के अवतार बनो।