Saturday, December 28, 2019

28-12-2019 प्रात:मुरली

28-12-2019 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

“मीठे बच्चे - यह पढ़ाई जो बाप पढ़ाते हैं, इसमें अथाह कमाई है, इसलिए पढ़ाई अच्छी रीति पढ़ते रहो, लिंक कभी न टूटे''
प्रश्न:
जो विनाशकाले विपरीत बुद्धि हैं, उन्हें तुम्हारी किस बात पर हँसी आती है?
उत्तर:
तुम जब कहते हो अभी विनाश काल नज़दीक है, तो उन्हें हँसी आती है। तुम जानते हो बाप यहाँ बैठे तो नहीं रहेंगे, बाप की ड्युटी है पावन बनाना। जब पावन बन जायेंगे तो यह पुरानी दुनिया विनाश होगी, नई आयेगी। यह लड़ाई है ही विनाश के लिए। तुम देवता बनते हो तो इस कलियुगी छी-छी सृष्टि पर आ नहीं सकते।
ओम् शान्ति।
रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं। बच्चे समझते हैं हम बहुत बेसमझ बन गये थे। माया रावण ने बेसमझ बना दिया था। यह भी बच्चे समझते हैं कि बाप को जरूर आना ही है, जबकि नई सृष्टि स्थापन होनी है। त्रिमूर्ति का चित्र भी है - ब्रह्मा द्वारा स्थापना, विष्णु द्वारा पालना, शंकर द्वारा विनाश क्योंकि करनकरावनहार तो बाप है ना। एक ही है जो करता है और कराता है। पहले किसका नाम आयेगा? जो करता है फिर जिस द्वारा कराते हैं। करनकरावनहार कहा जाता है ना। ब्रह्मा द्वारा नई दुनिया की स्थापना कराते हैं। यह भी बच्चे जानते हैं हमारी जो नई दुनिया है, जो हम स्थापन कर रहे हैं, इसका नाम ही है देवी-देवताओं की दुनिया। सतयुग में ही देवी-देवता होते हैं। किसी और को देवी-देवता नहीं कहा जाता। वहाँ मनुष्य होते नहीं। है ही एक देवी-देवता धर्म, दूसरा कोई धर्म ही नहीं। अभी तुम बच्चे स्मृति में आये हो कि बरोबर हम देवी-देवता थे, निशानियाँ भी हैं। इस्लामी, बौद्धी, क्रिश्चियन आदि सबकी अपनी-अपनी निशानी है। हमारा जब राज्य था तो और कोई नहीं था। अभी फिर और सभी धर्म हैं, हमारा देवता धर्म है नहीं। गीता में अक्षर बड़े अच्छे-अच्छे हैं परन्तु कोई समझ नहीं सकते। बाप कहते हैं विनाश काले विप्रीत बुद्धि और विनाश काले प्रीत बुद्धि। विनाश तो इस समय ही होना है। बाप आते भी हैं संगमयुग पर, जबकि चेंज होती है। बाप तुम बच्चों को बदले में सब कुछ नया देते हैं। वह सोनार भी है, धोबी भी है, बड़ा व्यापारी भी है। बिरला ही कोई बाप से व्यापार करे। इस व्यापार में तो अथाह फायदा है। पढ़ाई में फायदा बहुत होता है। महिमा भी की जाती है कि पढ़ाई कमाई है, वह भी जन्म-जन्मान्तर के लिए कमाई है। तो ऐसी पढ़ाई अच्छी रीति पढ़नी चाहिए ना और पढ़ाता भी बहुत सहज हूँ। सिर्फ एक हफ्ता समझकर फिर भल कहाँ भी चले जाओ, तुम्हारे पास पढ़ाई आती रहेगी अर्थात् मुरली मिलती रहेगी तो फिर कभी लिंक नहीं टूटेगी। यह है आत्माओं की परमात्मा के साथ लिंक। गीता में भी यह अक्षर हैं विनाश काले विप्रीत बुद्धि विनशन्ती, प्रीत बुद्धि विजयन्ती। तुम जानते हो इस समय मनुष्य एक-दो को काटते-मारते रहते हैं। इन जैसा क्रोध वा विकार और कोई में होता नहीं। यह भी गायन है कि द्रोपदी ने पुकारा। बाप ने समझाया है तुम सब द्रोपदियाँ हो। भगवानुवाच, बाप कहते हैं-बच्चे, अब विकार में नहीं जाओ। मैं तुमको स्वर्ग में ले चलता हूँ, तुम सिर्फ मुझ बाप को याद करो। अब विनाशकाल है ना, किसकी भी सुनते नहीं, लड़ते ही रहते हैं। कितना उनको कहते हैं शान्त रहो, परन्तु शान्त रहते नहीं। अपने बच्चों आदि से बिछुड़कर लड़ाई के मैदान में जाते हैं। कितने मनुष्य मरते ही रहते हैं। मनुष्य की कोई वैल्यु नहीं। अगर वैल्यु है, महिमा है तो इन देवी-देवताओं की। अभी तुम यह बनने का पुरूषार्थ कर रहे हो। तुम्हारी महिमा वास्तव में इन देवताओं से भी जास्ती है। तुमको अभी बाप पढ़ा रहे हैं। कितनी ऊंच पढ़ाई है। पढ़ने वाले बहुत जन्मों के अन्त में बिल्कुल ही तमोप्रधान हैं। मैं तो सदैव सतोप्रधान ही हूँ।

बाप कहते हैं मैं तुम बच्चों का ओबीडियन्ट सर्वेन्ट बनकर आया हूँ। विचार करो हम कितने छी-छी बन गये हैं। बाप ही हमको वाह-वाह बनाते हैं। भगवान बैठ मनुष्यों को पढ़ाकर कितना ऊंच बनाते हैं। बाप खुद कहते हैं मैं बहुत जन्मों के अन्त में तुम सबको तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाने आया हूँ। अभी तुमको पढ़ा रहा हूँ। बाप कहते हैं मैंने तुमको स्वर्गवासी बनाया फिर तुम नर्कवासी कैसे बने, किसने बनाया? गायन भी है विनाश काले विप्रीत बुद्धि विनशन्ती। प्रीत बुद्धि विजयन्ती। फिर जितना-जितना प्रीत बुद्धि रहेंगे अर्थात् बहुत याद करेंगे, उतना तुम्हारा ही फायदा है। लड़ाई का मैदान है ना। कोई भी यह नहीं जानते हैं कि गीता में कौन-सी युद्ध बताई है। उन्होंने तो फिर कौरवों और पाण्डवों की युद्ध दिखाई है। कौरव सम्प्रदाय, पाण्डव सम्प्रदाय भी हैं परन्तु युद्ध तो कोई है नहीं। पाण्डव उनको कहा जाता है जो बाप को जानते हैं। बाप से प्रीत बुद्धि हैं। कौरव उनको कहा जाता जो बाप से विप्रीत बुद्धि हैं। अक्षर तो बहुत अच्छे-अच्छे समझने लायक हैं।

अभी है संगमयुग। तुम बच्चे जानते हो नई दुनिया की स्थापना हो रही है। बुद्धि से काम लेना है। अभी दुनिया कितनी बड़ी है। सतयुग में कितने थोड़े मनुष्य होंगे। छोटा झाड़ होगा ना। वह झाड़ फिर बड़ा होता है। मनुष्य सृष्टि रूपी यह उल्टा झाड़ कैसे है, यह भी कोई समझते नहीं हैं। इनको कल्प वृक्ष कहा जाता है। वृक्ष का नॉलेज भी चाहिए ना? और वृक्षों का नॉलेज तो बहुत-बहुत इज़ी है, झट बता देंगे। इस वृक्ष का नॉलेज भी ऐसा इज़ी है परन्तु यह है ह्युमन वृक्ष। मनुष्यों को अपने वृक्ष का पता ही नहीं पड़ता है। कहते भी हैं गॉड इज़ क्रियेटर, तो जरूर चैतन्य है ना। बाप सत है, चैतन्य है, ज्ञान का सागर है। उनमें कौन-सा ज्ञान है, यह भी कोई नहीं समझते हैं। बाप ही बीज रूप, चैतन्य है। उनसे ही सारी रचना होती है। तो बाप बैठ समझाते हैं, मनुष्यों को अपने झाड़ का पता नहीं है, और झाड़ों को तो अच्छी रीति जानते हैं। झाड़ का बीज अगर चैतन्य होता तो बतलाता ना परन्तु वह तो है जड़। तो अब तुम बच्चे ही रचता और रचना के राज़ को जानते हो। यह सत है, चैतन्य है, ज्ञान का सागर है। चैतन्य में तो बातचीत कर सकते हैं ना। मनुष्य का तन सबसे ऊंच अमूल्य गाया गया है। इनका मूल्य कथन नहीं कर सकते। बाप आकर आत्माओं को समझाते हैं।

तुम रूप भी हो, बसन्त भी हो। बाप है ज्ञान का सागर। उनसे तुमको रत्न मिलते हैं। यह ज्ञान रत्न हैं, जिन रत्नों से वह रत्न भी तुमको ढेर मिल जाते हैं। लक्ष्मी-नारायण के पास देखो कितने रत्न हैं। हीरे-जवाहरों के महलों में रहते हैं। नाम ही है स्वर्ग, जिसके तुम मालिक बनने वाले हो। कोई गरीब को अचानक बड़ी लॉटरी मिलती है तो पागल हो जाते हैं ना। बाप भी कहते हैं तुमको विश्व की बादशाही मिलती है तो माया कितना आपोजीशन करती है। तुमको आगे चल पता पड़ेगा कि माया कितने अच्छे-अच्छे बच्चों को भी हप कर लेती है। एकदम खा लेती है। तुमने सर्प को देखा है-मेढक को कैसे पकड़ता है, जैसे गज को ग्राह हप करते हैं। सर्प मेढक को एकदम सारे का सारा हप कर लेता है। माया भी ऐसी है, बच्चों को जीते जी पकड़कर एकदम खत्म कर देती है जो फिर कभी बाप का नाम भी नहीं लेते हैं। योगबल की ताकत तुम्हारे में बहुत कम है। सारा मदार योगबल पर है। जैसे सर्प मेढक को हप करता है, तुम बच्चे भी सारी बादशाही को हप करते हो। सारे विश्व की बादशाही तुम सेकण्ड में ले लेंगे। बाप कितना सहज युक्ति बताते हैं। कोई हथियार आदि नहीं। बाप ज्ञान-योग के अस्त्र-शस्त्र देते हैं। उन्होंने फिर स्थूल हथियार आदि दे दिये हैं।

तुम बच्चे इस समय कहते हो-हम क्या से क्या बन गये थे! जो चाहे सो कहो, हम ऐसे थे जरूर। भल थे तो मनुष्य ही परन्तु गुण और अवगुण तो होते हैं ना। देवताओं में दैवीगुण हैं इसलिए उन्हों की महिमा गाते हैं-आप सर्वगुण सम्पन्न..... हम निर्गुण हारे में कोई गुण नाही। इस समय सारी दुनिया ही निर्गुण है अर्थात् एक भी देवताई गुण नहीं है। बाप जो गुण सिखलाने वाला है, उनको ही नहीं जानते इसलिए कहा जाता विनाश काले विप्रीत बुद्धि। अब विनाश तो होना ही है संगमयुग पर। जबकि पुरानी दुनिया विनाश होती है और नई दुनिया स्थापन होती है। इनको कहा जाता है विनाश काल। यह है अन्तिम विनाश फिर आधाकल्प कोई लड़ाई आदि होती ही नहीं। मनुष्यों को कुछ भी पता नहीं है। विनाश काले विप्रीत बुद्धि हैं तो जरूर पुरानी दुनिया का विनाश होगा ना। इस पुरानी दुनिया में कितनी आपदायें हैं। मरते ही रहते हैं। बाप इस समय की हालत बतलाते हैं। फ़र्क तो बहुत है ना। आज भारत का यह हाल है, कल भारत क्या होगा? आज यह है, कल तुम कहाँ होंगे? तुम जानते हो पहले नई दुनिया कितनी छोटी थी। वहाँ तो महलों में कितने हीरे-जवाहर आदि होते हैं। भक्ति मार्ग में भी तुम्हारा मन्दिर कोई कम थोड़ेही होता है। सिर्फ कोई एक सोमनाथ का मन्दिर थोड़ेही होगा। एक कोई बनायेगा तो उनको देख और भी बनायेंगे। एक सोमनाथ मन्दिर से ही कितना लूटा है। फिर बैठ अपना यादगार बनाया है। तो दीवारों में पत्थर आदि लगाते हैं। इन पत्थरों की क्या वैल्यु होगी? इतने छोटे-से हीरे का भी कितना दाम है। बाबा जौहरी था, एक रत्ती का हीरा होता था, 90 रूपया रत्ती। अभी तो उसकी कीमत हज़ारों रूपया है। मिलते भी नहीं। बहुत वैल्यु बढ़ गई है। इस समय विलायत आदि तरफ धन बहुत है, परन्तु सतयुग के आगे यह कुछ भी नहीं है।

अब बाप कहते हैं विनाश काले विप्रीत बुद्धि हैं। तुम कहते हो विनाश समीप है तो मनुष्य हँसते हैं। बाप कहते हैं मैं कितना समय बैठा रहूँगा, मुझे कोई यहाँ मजा आता है क्या? मैं तो न सुखी, न दु:खी होता हूँ। मेरे ऊपर ड्यूटी है पावन बनाने की। तुम यह थे, अब यह बन गये हो, फिर तुमको ऐसा ऊंच बनाता हूँ। तुम जानते हो हम फिर वह बनने वाले हैं। अब तुमको यह समझ आई है, हम इस दैवी घराने के भाती थे। राजाई थी। फिर ऐसे अपनी राजाई गँवाई। फिर और-और आने लगे। अब यह चक्र पूरा होता है। अभी तुम समझते हो लाखों वर्ष की तो बात ही नहीं है। यह लड़ाई है ही विनाश की, उस तरफ तो बहुत आराम से मरेंगे। कोई तकलीफ नहीं होगी। हॉस्पिटल्स आदि ही नहीं होंगे। कौन बैठ सेवा करेंगे और रोयेंगे। वहाँ तो यह रस्म ही नहीं। उन्हों की मौत सहज होती है। यहाँ तो दु:खी होकर मरते हैं क्योंकि तुमने सुख बहुत उठाया है तो दु:ख भी तुमको देखना है। खून की नदी यहाँ ही बहेगी। वह समझते हैं यह लड़ाई फिर शान्त हो जायेगी परन्तु शान्त तो होनी नहीं है। मिरूआ मौत मलूका शिकार। तुम देवता बनते हो, फिर कलियुगी छी-छी सृष्टि पर तो तुम आ नहीं सकते। गीता में भी है भगवानुवाच, विनाश भी देखो, स्थापना देखो। साक्षात्कार हुआ ना! यह साक्षात्कार सब अन्त में होंगे - फलाने-फलाने यह बनते हैं फिर उस समय रोयेंगे, बहुत पछतायेंगे, सजा खायेंगे, नसीब कूटेंगे। लेकिन कर क्या सकेंगे? यह तो 21 जन्मों की लॉटरी है। स्मृति तो आती है ना। साक्षात्कार बिगर किसको सज़ा नहीं मिल सकती है। ट्रिब्युनल बैठती है ना। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) स्वयं में ज्ञान रत्न धारण कर रूप-बसन्त बनना है। ज्ञान रत्नों से विश्व के बादशाही की लॉटरी लेनी है।
2) इस विनाश काल में बाप से प्रीत रख एक की ही याद में रहना है। ऐसा कोई कर्म नहीं करना है जो अन्त समय में पछताना पड़े या नसीब कूटना पड़े।
वरदान:
अलबेलेपन वा अटेन्शन के अभिमान को छोड़ बाप की मदद के पात्र बनने वाले सहज पुरुषार्थी भव
कई बच्चे हिम्मत रखने के बजाए अलबेलेपन के कारण अभिमान में आ जाते हैं कि हम तो सदा पात्र हैं ही। बाप हमें मदद नहीं करेंगे तो किसको करेंगे! इस अभिमान के कारण हिम्मत की विधि को भूल जाते हैं। कईयों में फिर स्वयं पर अटेन्शन देने का भी अभिमान रहता जो मदद से वंचित कर देता है। समझते हैं हमने तो बहुत योग लगा लिया, ज्ञानी-योगी तू आत्मा बन गये, सेवा की राजधानी बन गई..इस प्रकार के अभिमान को छोड़ हिम्मत के आधार पर मदद के पात्र बनो तो सहज पुरुषार्थी बन जायेंगे।
स्लोगन:
जो वेस्ट और निगेटिव संकल्प चलते हैं उन्हें परिवर्तन कर विश्व कल्याण के कार्य में लगाओ।