Thursday, November 28, 2019

28-11-19 प्रात:मुरली

28-11-2019 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

“मीठे बच्चे - शिवबाबा आया है तुम्हारे सब भण्डारे भरपूर करने, कहा भी जाता है भण्डारा भरपूर काल कंटक दूर''
प्रश्न:
ज्ञानवान बच्चों की बुद्धि में किस एक बात का निश्चय पक्का होगा?
उत्तर:
उन्हें दृढ़ निश्चय होगा कि हमारा जो पार्ट है वह कभी घिसता-मिटता नहीं। मुझ आत्मा में 84 जन्मों का अविनाशी पार्ट नूँधा हुआ है, यही बुद्धि में ज्ञान है तो ज्ञानवान है। नहीं तो सारा ज्ञान बुद्धि से उड़ जाता है।
ओम् शान्ति।
बाप आकर रूहानी बच्चों प्रति क्या कहते हैं? क्या सेवा करते हैं? इस समय बाप यह रूहानी पढ़ाई पढ़ाने की सेवा करते हैं। यह भी तुम जानते हो। बाप का भी पार्ट है, टीचर का भी पार्ट है और गुरू का भी पार्ट है। तीनों पार्ट अच्छे बजा रहे हैं। तुम जानते हो वह बाप भी है, सद्गति देने वाला गुरू भी है और सबके लिए है। छोटे, बड़े, बूढ़े, जवान सबके लिए एक ही है। सुप्रीम बाप, सुप्रीम टीचर है। बेहद की शिक्षा देते हैं। तुम कॉन्फ्रेन्स में भी समझा सकते हो कि हम सबकी बायोग्राफी को जानते हैं। परमपिता परमात्मा शिवबाबा की जीवन-कहानी को भी जानते हैं। नम्बरवार सब बुद्धि में याद होना चाहिए। सारा विराट रूप जरूर बुद्धि में रहता होगा। हम अभी ब्राह्मण बने हैं, फिर हम देवता बनेंगे फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनेंगे। यह तो बच्चों को याद है ना। सिवाए तुम बच्चों के और किसको यह बातें याद नहीं होंगी। उत्थान और पतन का सारा राज़ बुद्धि में रहे। हम उत्थान में थे फिर पतन में आये, अब बीच में हैं। शूद्र भी नहीं हैं, पूरे ब्राह्मण भी नहीं बने हैं। अगर अभी पक्के ब्राह्मण हो तो फिर शूद्रपने की एक्ट न हो। ब्राह्मणों में भी फिर शूद्रपना आ जाता है। यह भी तुम जानते हो-कब से पाप शुरू किये हैं? जब से काम चिता पर चढ़े हो, तो तुम्हारी बुद्धि में सारा चक्र है। ऊपर में है परमपिता परमात्मा बाप, फिर तुम हो आत्मायें। यह बातें तुम बच्चों की बुद्धि में जरूर याद रहनी चाहिए। अभी हम ब्राह्मण हैं, देवता बन रहे हैं फिर वैश्य, शूद्र डिनायस्टी में आयेंगे। बाप आकरके हमको शूद्र से ब्राह्मण बनाते हैं फिर हम ब्राह्मण से देवता बनेंगे। ब्राह्मण बन कर्मातीत अवस्था को प्राप्त कर फिर वापिस जायेंगे। तुम बाप को भी जानते हो। बाजोली वा 84 के चक्र को भी तुम जानते हो। बाजोली से तुमको बहुत इज़ी कर समझाते हैं। तुमको बहुत हल्का बनाते हैं ताकि अपने को बिन्दी समझ और झट भागेंगे। स्टूडेन्ट क्लास में बैठे रहते हैं तो बुद्धि में स्टडी ही याद रहती है। तुमको भी यह पढ़ाई याद रहनी चाहिए। अभी हम संगमयुग पर हैं फिर ऐसे चक्र लगायेंगे। यह चक्र सदैव बुद्धि में फिरता रहना चाहिए। यह चक्र आदि का नॉलेज तुम ब्राह्मणों के पास ही है, न कि शूद्रों के पास। देवताओं के पास भी यह ज्ञान नहीं है। अभी तुम समझते हो भक्ति मार्ग में जो चित्र बने हैं सब डिफेक्टेड हैं। तुम्हारे पास हैं एक्यूरेट क्योंकि तुम एक्यूरेट बनते हो। अभी तुमको ज्ञान मिला है तब समझते हो भक्ति किसको कहा जाता है, ज्ञान किसको कहा जाता है? ज्ञान देने वाला बाप ज्ञान का सागर अभी मिला है। स्कूल में पढ़ते हैं एम ऑबजेक्ट का मालूम तो पड़ता है ना। भक्ति मार्ग में तो एम ऑबजेक्ट होती नहीं। यह थोड़ेही तुमको मालूम था कि हम ऊंच देवी-देवता थे फिर नीचे गिरे हैं। अब जब ब्राह्मण बने हो तब पता पड़ा है। ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ जरूर आगे भी बने थे। प्रजापिता ब्रह्मा का नाम तो बाला है। प्रजापिता तो मनुष्य है ना। उनके इतने ढेर बच्चे हैं जरूर एडाप्टेड होने चाहिए। कितने एडाप्टेड हैं। आत्मा के रूप में तो सब भाई-भाई हो। अभी तुम्हारी बुद्धि कितनी दूर जाती है। तुम जानते हो जैसे ऊपर में स्टॉर्स खड़े हैं। दूर से कितने छोटे दिखाई पड़ते हैं। तुम भी बहुत छोटी-सी आत्मा हो। आत्मा कभी छोटी-बड़ी नहीं होती है। हाँ, तुम्हारा मर्तबा बहुत ऊंच है। उनको भी सूर्य देवता, चन्द्रमा देवता कहते हैं। सूर्य बाप, चन्द्रमा माँ कहेंगे। बाकी आत्मायें सब हैं नक्षत्र सितारे। तो आत्मायें सब एक जैसी छोटी हैं। यहाँ आकर पार्टधारी बनती हैं। देवतायें तो तुम ही बनते हो।
हम बहुत पावरफुल बन रहे हैं। बाप को याद करने से हम सतोप्रधान देवता बन जायेंगे। नम्बरवार थोड़ा-थोड़ा फ़र्क तो रहता है। कोई आत्मा पवित्र बन सतोप्रधान देवता बन जाती है, कोई आत्मा पूरा पवित्र नहीं बनती है। ज्ञान को ज़रा भी नहीं जानती है। बाप ने समझाया है बाप का परिचय तो जरूर सबको मिलना चाहिए। पिछाड़ी में बाप को तो जानेंगे ना। विनाश के समय सभी को पता पड़ता है बाप आया हुआ है। अभी भी कोई-कोई कहते हैं भगवान जरूर कहाँ आया हुआ है परन्तु पता नहीं पड़ता। समझते कोई भी रूप में आ जायेगा। मनुष्य मत तो बहुत है ना, तुम्हारी है एक ही ईश्वरीय मत। तुम ईश्वरीय मत से क्या बनते हो? एक है मनुष्य मत, दूसरी है ईश्वरीय मत और तीसरी है देवता मत। देवताओं को भी मत किसने दी? बाप ने। बाप की श्रीमत है ही श्रेष्ठ बनाने वाली। श्री श्री बाप को ही कहेंगे, न कि मनुष्य को। श्री श्री ही आकर श्री बनाते हैं। देवताओं को श्रेष्ठ बनाने वाला बाप ही है, उनको श्री श्री कहेंगे। बाप कहते हैं मैं तुमको ऐसा लायक बनाता हूँ। उन लोगों ने फिर अपने पर श्री श्री का टाइटिल रख दिया है। कॉन्फ्रेन्स में भी तुम समझा सकते हो। तुम ही समझाने लिए निमित्त बने हुए हो। श्री श्री तो है ही एक शिवबाबा जो ऐसा श्री देवता बनाते हैं। वो लोग शास्त्रों आदि की पढ़ाई पढ़कर टाइटिल ले आते हैं। तुमको तो श्री श्री बाप ही श्री अर्थात् श्रेष्ठ बना रहे हैं। यह है ही तमोप्रधान भ्रष्टाचारी दुनिया। भ्रष्टाचार से जन्म लेते हैं। कहाँ बाप का टाइटिल, कहाँ यह पतित मनुष्य अपने पर रखाते हैं। सच्ची-सच्ची श्रेष्ठ महान आत्मायें तो देवी-देवता हैं ना। सतोप्रधान दुनिया में कोई भी तमोप्रधान मनुष्य हो न सके। रजो में रजो मनुष्य ही रहेंगे, न कि तमो-गुणी। वर्ण भी गाये जाते हैं ना। अभी तुम समझते हो, आगे तो हम कुछ नहीं समझते थे। अब बाप कितना समझदार बनाते हैं। तुम कितना धनवान बनते हो। शिवबाबा का भण्डारा भरपूर है। शिवबाबा का भण्डारा कौन-सा है? (अविनाशी ज्ञान रत्नों का) शिवबाबा का भण्डारा भरपूर काल कंटक दूर। बाप तुम बच्चों को ज्ञान रत्न देते हैं। खुद है सागर। ज्ञान रत्नों का सागर है। बच्चों की बुद्धि बेहद में जानी चाहिए। इतनी करोड़ आत्मायें सब अपने-अपने शरीर रूपी तख्त पर विराजमान हैं। यह बेहद का नाटक है। आत्मा इस तख्त पर विराजमान होती है। तख्त एक न मिले दूसरे से। सबके फीचर्स अलग-अलग हैं, इनको कहा जाता है कुदरत। हर एक का कैसा अविनाशी पार्ट है। इतनी छोटी-सी आत्मा में 84 का रिकॉर्ड भरा हुआ रहता है। अति सूक्ष्म है। इससे सूक्ष्म वन्डर कोई हो नहीं सकता। इतनी छोटी आत्मा में सारा पार्ट भरा हुआ है, जो यहाँ ही पार्ट बजाती है। सूक्ष्मवतन में तो कोई पार्ट बजाती नहीं है। बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं। बाप द्वारा तुम सब-कुछ जान जाते हो। यही नॉलेज है। ऐसे नहीं कि सबके अन्दर को जानने वाला है। यह नॉलेज जानते हैं, जो नॉलेज तुम्हारे में भी इमर्ज हो रही है। जिस नॉलेज से ही तुम इतना ऊंच पद पाते हो। यह भी समझ रहती है ना। बाप है बीजरूप। उनमें झाड़ के आदि, मध्य, अन्त की नॉलेज है। मनुष्यों ने तो लाखों वर्ष आयु दे दी है, तो ज्ञान आ न सके। अभी तुमको संगम पर यह सारा ज्ञान मिल रहा है। बाप द्वारा तुम सारे चक्र को जान जाते हो। इनके पहले तुम कुछ नहीं जानते थे। अभी तुम संगम पर हो। यह है तुम्हारा अन्त का जन्म। पुरूषार्थ करते-करते फिर तुम पूरा ब्राह्मण बन जायेंगे। अभी नहीं हो। अभी तो अच्छे-अच्छे बच्चे भी ब्राह्मण से फिर शूद्र बन जाते हैं। इसको कहा जाता है माया से हार खाना। बाबा की गोद से हारकर रावण की गोद में चले जाते हैं। कहाँ बाप की श्रेष्ठ बनने की गोद, कहाँ भ्रष्ट बनने की गोद। सेकण्ड में जीवनमुक्ति। सेकण्ड में पूरी दुर्दशा हो जाती है। ब्राह्मण बच्चे अच्छी रीति जानते हैं-कैसे दुर्दशा हो जाती है। आज बाप के बनते, कल फिर माया के पंजे में आकर रावण के बन जाते हैं। फिर तुम बचाने की कोशिश करते हो तो कोई-कोई बच भी जाते हैं। तुम देखते हो डूबते हैं तो बचाने की कोशिश करते रहो। कितनी खिटखिट होती है।
बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। यहाँ स्कूल में तुम पढ़ते हो ना। तुमको मालूम है कैसे हम यह चक्र लगाते हैं। तुम बच्चों को श्रीमत मिलती है ऐसे-ऐसे करो। भगवानुवाच तो जरूर है। उनकी श्रीमत हुई ना। मैं तुम बच्चों को अब शूद्र से देवता बनाने आया हूँ। अभी कलियुग में हैं शूद्र सम्प्रदाय। तुम जानते हो कलियुग पूरा हो रहा है। तुम संगम पर बैठे हो। यह बाप द्वारा तुमको नॉलेज मिली है। शास्त्र जो भी बनाये हैं उन सबमें है मनुष्य मत। ईश्वर तो शास्त्र बनाते नहीं। एक गीता के ऊपर ही कितने नाम रख दिये हैं। गांधी गीता, टैगोर गीता आदि-आदि। ढेर नाम हैं। गीता को मनुष्य इतना क्यों पढ़ते हैं? समझते तो कुछ भी नहीं। अध्याय वही उठाकर अर्थ अपना-अपना करते रहते हैं। वह तो सब मनुष्यों के बनाये हुए हो गये ना। तुम कह सकते हो मनुष्य मत की बनाई हुई गीता पढ़ने से आज यह हाल हुआ है। गीता ही पहला नम्बर का शास्त्र है ना। वह है देवी-देवता धर्म का शास्त्र। यह तुम्हारा ब्राह्मण कुल है। यह भी ब्राह्मण धर्म है ना। कितने धर्म हैं, जिस-जिस ने जो धर्म रचा है उनका वह नाम चलता है। जैनी लोग महावीर कहते हैं। तुम बच्चे सब महावीर-महावीरनियां हो। तुम्हारा मन्दिर में यादगार है। राजयोग है ना। नीचे योग तपस्या में बैठे हैं, ऊपर में राजाई का चित्र है। राजयोग का एक्यूरेट मन्दिर है। फिर कोई ने क्या नाम रख दिया है, कोई ने क्या। यादगार है बिल्कुल एक्यूरेट, बुद्धि से काम ले ठीक बनाया है फिर जिसने जो नाम कहा वह रख दिया है। यह मॉडल रूप में बनाया है। स्वर्ग और राजयोग संगमयुग का बनाया हुआ है। तुम आदि, मध्य, अन्त को जानते हो। आदि को भी तुमने देखा है। आदि संगमयुग को कहो या सतयुग को कहो। संगमयुग की सीन नीचे दिखाते हैं फिर राजाई ऊपर में दिखाई है। तो सतयुग है आदि फिर मध्य में है द्वापर। अन्त को तुम देखते ही हो। यह सब खत्म हो जाना है। पूरा यादगार बना हुआ है। देवी-देवता ही फिर वाम मार्ग में जाते हैं। द्वापर से वाम मार्ग शुरू होता है। यादगार पूरा एक्यूरेट है। यादगार में बहुत मन्दिर बनाये हैं। यहाँ ही सब निशानियाँ हैं। मन्दिर भी यहाँ ही बनते हैं। देवी-देवता भारतवासी ही राज्य करके गये हैं ना। फिर बाद में कितने मन्दिर बनाते हैं। सिक्ख लोग बहुत होंगे तो वह अपना मन्दिर बना देंगे। मिलेट्री वाले भी अपना मन्दिर बना देते हैं। भारतवासी अपने कृष्ण का वा लक्ष्मी-नारायण का मन्दिर बनायेंगे। हनूमान, गणेश का बनायेंगे। यह सारा सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है, कैसे स्थापना, विनाश, पालना होती है-यह तुम ही जानते हो। इसको कहा जाता है अन्धियारी रात। ब्रह्मा का दिन और रात ही गाई जाती है क्योंकि ब्रह्मा ही चक्र में आते हैं। अभी तुम ब्राह्मण हो फिर देवता बनेंगे। मुख्य तो ब्रह्मा हुआ ना। ब्रह्मा को रखें या विष्णु को रखें! ब्रह्मा है रात का और विष्णु है दिन का। वही रात से फिर दिन में आते हैं। दिन से फिर 84 जन्मों के बाद रात में आते हैं। कितना सहज समझानी है। यह भी पूरा याद नहीं कर सकते। पूरी रीति नहीं पढ़ते हैं तो नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार पद पाते हैं। जितना याद करेंगे सतोप्रधान बनेंगे। सतोप्रधान सो भारत तमोप्रधान। बच्चों में कितना ज्ञान है। यह नॉलेज सिमरण करनी है। यह ज्ञान है ही नई दुनिया के लिए, जो बेहद का बाप आकर देते हैं। सब मनुष्य बेहद के बाप को याद करते हैं। अंग्रेज लोग भी कहते हैं ओ गॉड फादर लिब्रेटर, गाइड अर्थ तो तुम बच्चों की बुद्धि में है। बाप आकरके दु:ख की दुनिया आइरन एज से निकाल गोल्डन एज में ले जाते हैं। गोल्डन एज जरूर पास होकर गया है तब तो याद करते हैं ना। तुम बच्चों को अन्दर में बहुत खुशी रहनी चाहिए और दैवी कर्म भी करने चाहिए। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप से जो अविनाशी ज्ञान रत्नों का अखुट खजाना मिल रहा है-उसे स्मृति में रख बुद्धि को बेहद में ले जाना है। इस बेहद नाटक में कैसे आत्मायें अपने-अपने तख्त पर विराजमान हैं-इस कुदरत को साक्षी हो देखना है।
2) सदा बुद्धि में याद रहे कि हम संगमयुगी ब्राह्मण हैं, हमें बाप की श्रेष्ठ गोद मिली है। हम रावण की गोद में जा नहीं सकते। हमारा कर्तव्य है-डूबने वालों को भी बचाना।
वरदान:
सेवा-भाव से सेवा करते हुए आगे बढ़ने और बढ़ाने वाले निर्विघ्न सेवाधारी भव
सेवा-भाव सफलता दिलाता है, सेवा में अगर अहम् भाव आ गया तो उसको सेवा-भाव नहीं कहेंगे। किसी भी सेवा में अगर अहम्-भाव मिक्स होता है तो मेहनत भी ज्यादा, समय भी ज्यादा लगता और स्वयं की सन्तुष्टी भी नहीं होती। सेवा-भाव वाले बच्चे स्वयं भी आगे बढ़ते और दूसरों को भी आगे बढ़ाते हैं। वे सदा उड़ती कला का अनुभव करते हैं। उनका उमंग-उत्साह स्वयं को निर्विघ्न बनाता और दूसरों का कल्याण करता है।
स्लोगन:
ज्ञानी तू आत्मा वह है जो महीन और आकर्षण करने वाले धागों से भी मुक्त है।