Monday, November 18, 2019

17-11-19 प्रात:मुरली

17-11-19 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज: 09-03-85 मधुबन

“बाप और सेवा से स्नेह - यही ब्राह्मण जीवन का जीयदान है”
आज बापदादा सभी बच्चों के पुरूषार्थ की लगन को देख रहे थे। हर एक बच्चा अपने-अपने हिम्मत-उल्हास से आगे बढ़ते जा रहे हैं। हिम्मत भी सबमें हैं, उमंग-उल्हास भी सबमें हैं। हर एक के अन्दर एक ही श्रेष्ठ संकल्प भी है कि हमें बापदादा के समीप रत्न, नूरे रत्न, दिल तख्तनशीन दिलाराम के प्यारे बनना ही है। लक्ष्य भी सभी का सम्पन्न बनने का है। सभी बच्चों के दिल का आवाज़ एक ही है कि स्नेह के रिटर्न में हमें समान और सम्पन्न बनना है और इसी लक्ष्य प्रमाण आगे बढ़ने में सफल भी हो रहे हैं। किसी से भी पूछो क्या चाहते हो? तो सभी का एक ही उमंग का आवाज है कि सम्पूर्ण और सम्पन्न बनना ही है। बापदादा सभी का यह उमंग-उत्साह देख, श्रेष्ठ लक्ष्य देख हर्षित होते हैं और सभी बच्चों को ऐसे एक उमंग-उत्साह की, एक मत की आफरीन देते हैं कि कैसे एक बाप, एक मत, एक ही लक्ष्य और एक ही घर में, एक ही राज्य में चल रहे हैं वा उड़ रहे हैं। एक बाप और इतने योग्य वा योगी बच्चे, हर एक, एक दो से विशेषता में विशेष आगे बढ़ रहे हैं। सारे कल्प में ऐसा न बाप होगा न बच्चे होंगे जो कोई भी बच्चा उमंग-उत्साह में कम न हो। विशेषता सम्पन्न हो। एक ही लगन में मगन हो। ऐसा कभी हो नहीं सकता, इसलिए बापदादा को भी ऐसे बच्चों पर नाज़ है और बच्चों को बाप का नाज़ है। जहाँ भी देखो एक ही विशेष आवाज सभी की दिल अन्दर है - बाबा और सेवा! जितना बाप से स्नेह है उतना सेवा से भी स्नेह है। दोनों स्नेह हरेक के ब्राह्मण जीवन का जीयदान हैं। इसी में ही सदा बिजी रहने का आधार मायाजीत बना रहा है।
बापदादा के पास सभी बच्चों के सेवा के उमंग उत्साह के प्लैन्स पहुँचते रहते हैं। प्लैन सभी अच्छे ते अच्छे हैं। ड्रामा अनुसार जिस विधि से वृद्धि को प्राप्त करते आये हो वह आदि से अब तक अच्छे ते अच्छा ही कहेंगे। अभी सेवा के वा ब्राह्मणों के विजयी रत्न बनने के वा सफलता के बहुत वर्ष बीत चुके हैं। अभी गोल्डन जुबली तक पहुँच गये हो। गोल्डन जुबली क्यों मना रहे हो? क्या दुनिया के हिसाब से मना रहे हो वा समय के प्रमाण विश्व को तीव्रगति से सन्देश देने के उमंग से मना रहे हो? चारों ओर बुलन्द आवाज द्वारा सोई हुई आत्माओं को जगाने का साधन बना रहे हो! जहाँ भी सुनें, जहाँ भी देखें वहाँ चारों ओर यही आवाज गूँजता हुआ सुनाई दे कि समय प्रमाण अब गोल्डन एज सुनहरी समय, सुनहरी युग आने का सुनहरी सन्देश द्वारा खुशखबरी मिल रही है। इस गोल्डन जुबली द्वारा गोल्डन एज के आने की विशेष सूचना वा सन्देश देने के लिए तैयारी कर रहे हो। चारों ओर ऐसी लहर फैल जाए कि अब सुनहरी युग आया कि आया। चारों ओर ऐसा दृश्य दिखाई दे जैसे सवेरे के समय अंधकार के बाद सूर्य उदय होता है तो सूर्य का उदय होना और रोशनी की खुशखबरी चारों ओर फैलना। अंधकार भूल रोशनी में आ जाते। ऐसे विश्व की आत्मायें जो दु:ख अशान्ति के समाचार सुन सुन, विनाश के भय में भयभीत हो, दिलशिकस्त हो गई हैं, नाउम्मींद हो गई हैं ऐसे विश्व की आत्माओं को इस गोल्डन जुबली द्वारा शुभ उम्मीदों का सूर्य उदय होने का अनुभव कराओ। जैसे विनाश की लहर है वैसे सतयुगी सृष्टि के स्थापना की खुशखबरी की लहर चारों ओर फैलाओ। सभी के दिल में यह उम्मीद का सितारा चमकाओ। क्या होगा, क्या होगा के बजाए समझें कि अब यह होगा। ऐसी लहर फैलाओ। गोल्डन जुबली गोल्डन एज के आने की खुशखबरी का साधन है। जैसे आप बच्चों को दु:खधाम देखते हुए भी सुखधाम सदा स्वत: ही स्मृति में रहता है और सुखधाम की स्मृति दु:खधाम भुला देती है। और सुखधाम वा शान्तिधाम जाने की तैयारियों में खोये हुए रहते हो। जाना है और सुखधाम में आना है। जाना है और आना है - यह स्मृति समर्थ भी बना रही है और खुशी-खुशी से सेवा के निमित्त भी बना रही है। अभी लोग ऐसे दु:ख की खबरें बहुत सुन चुके हैं। अब इस खुशखबरी द्वारा दु:खधाम से सुखधाम जाने के लिए खुशी-खुशी से तैयारी करो, उन्हों में भी यह लहर फैल जाए कि हमें भी जाना है। नाउम्मीद वालों को उम्मीद दिलाओ। दिलशिकस्त आत्माओं को खुशखबरी सुनाओ। ऐसे प्लैन बनाओ जो विशेष समाचार पत्रों में वा जो भी आवाज फैलाने के साधन हैं-एक ही समय एक ही खुशखबरी वा सन्देश चारों ओर सभी को पहुँचे। जहाँ से भी कोई आवे तो यह एक ही बात सभी को मालूम पड़े। ऐसे तरीके से चारों ओर एक ही आवाज हो। नवीनता भी करनी है। अपने नॉलेजफुल स्वरूप को प्रत्यक्ष करना है। अभी समझते हैं कि शान्त स्वरूप आत्मायें हैं। शान्ति का सहज रास्ता बताने वाले हैं। यह स्वरूप प्रत्यक्ष हुआ भी है और हो रहा है। लेकिन नॉलेजफुल बाप की नॉलेज है तो यही है। अब यह आवाज हो। जैसे अब कहते हैं शान्ति का स्थान है तो यही है। ऐसे सबके मुख से यह आवाज निकले कि सत्य ज्ञान है तो यही है। जैसे शान्ति और स्नेह की शक्ति अनुभव करते हैं वैसे सत्यता सिद्ध हो, तो और सब क्या हैं, वह सिद्ध हो ही जायेगा। कहने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। अब वह सत्यता की शक्ति कैसे प्रत्यक्ष करो, वह विधि क्या अपनाओ जो आपको कहना न पड़े। लेकिन वह स्वयं ही कहें कि इससे यह सिद्ध होता है कि सत्य ज्ञान, परमात्म ज्ञान, शक्तिशाली ज्ञान है तो यही है। इसके लिए विधि फिर सुनायेंगे। आप लोग भी इस पर सोचना। फिर दूसरे बारी सुनायेंगे। स्नेह और शान्ति की धरनी तो बन गई है ना। अभी ज्ञान का बीज पड़ना है तब तो ज्ञान के बीज का फल स्वर्ग के वर्से के अधिकारी बनेंगे।
बापदादा सभी देखते-सुनते रहते हैं। क्या-क्या रूह-रूहान करते हैं। अच्छा प्यार से बैठते हैं, सोचते हैं। मथनी अच्छी चला रहे हैं। माखन खाने लिए मंथन तो कर रहे हैं। अभी गोल्डन जुबली का मंथन कर रहे हैं। शक्तिशाली माखन ही निकलेगा। सबके दिल में लहर अच्छी है। और यही दिल के उमंगों की लहर वायुमण्डल बनाती है। वायुमण्डल बनते-बनते आत्माओं में समीप आने की आकर्षण बढ़ती जाती है। अभी जाना चाहिए, देखना चाहिए यह लहर फैलती जा रही है। पहले था कि पता नहीं क्या है। अभी है कि अच्छा है, जाना चाहिए। देखना चाहिए। फिर आखरीन कहेंगे कि यही हैं। अभी आपके दिल का उमंग उत्साह उन्हों में भी उमंग पैदा कर रहा है। अभी आपकी दिल नाचती है। उन्हों के पांव चलने शुरू होते हैं। जैसे यहाँ कोई बहुत अच्छा डांस करता है तो दूर बैठने वालों का भी पांव चलना शुरू हो जाता है। ऐसा उमंग उत्साह का वातावरण अनेकों के पांव को चलाने शुरू कर रहा है। अच्छा-
सदा अपने को गोल्डन दुनिया के अधिकारी अनुभव करने वाले, सदा अपनी गोल्डन एजड स्थिति बनाने के उमंग-उत्साह में रहने वाले, सदा रहमदिल बन सर्व आत्माओं को गोल्डन एज का रास्ता बताने की लगन में रहने वाले, सदा बाप के हर एक गोल्डन वरशन को जीवन में धारण करने वाले, ऐसे सदा बापदादा के दिल तख्तनशीन, सदा स्नेह में समाये हुए विजयी रत्नों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
बृजइन्द्रा दादी जी से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात
चलाने वाला चला रहा है ना। हर सेकेण्ड करावनहार निमित्त बनाए करा रहा है। करावनहार के हाथ में चाबी है। उसी चाबी से चल रही है। आटोमेटिक चाबी मिल जाती है और चलते फिरते कितना न्यारे और प्यारेपन का अनुभव होता है। चाहे कर्म का हिसाब चुक्तू भी कर रहे हैं लेकिन कर्म के हिसाब को भी साक्षी हो देखते हुए, साथी के साथ मौज में रहते हैं। ऐसे है ना! आप तो साथी के साथ मौज में हैं बाकी यह हिसाब किताब साक्षी हो चुक्तू कैसे हो रहा है, वह देखते हुए भी मौज में रहने कारण लगता कुछ नहीं है क्योंकि जो आदि से स्थापना के निमित्त बने हैं तो जब तक हैं तब तक बैठे हैं या चल रहे हैं, स्टेज पर हैं या घर में हैं लेकिन महावीर बच्चे सदा ही अपने श्रेष्ठ स्टेज पर होने के कारण सेवा की स्टेज पर हैं। डबल स्टेज पर हैं। एक स्वयं की श्रेष्ठ स्टेज पर हैं और दूसरी सेवा की स्टेज पर हैं। तो सारा दिन कहाँ रहती हो? मकान में या स्टेज पर? बेड पर बैठती, कोच पर बैठती हो या स्टेज पर रहती हो? कहाँ भी हो लेकिन सेवा की स्टेज पर हो। डबल स्टेज है। ऐसे ही अनुभव होता है ना! अपने हिसाब को भी आप साक्षी होकर देखो। इस शरीर से जो भी पिछला किया हुआ है वह चुक्तू कैसे कर रहा है, वह साक्षी होकर देखते। इसे कर्मभोग नहीं कहेंगे। भोगने में दु:ख होता है। तो भोगना शब्द नहीं कहेंगे क्योंकि दुखदर्द की महसूसता नहीं है। आप लोगों के लिए कर्मभोग नहीं है, यह कर्मयोग की शक्ति से सेवा का साधन बना हुआ है। यह कर्म भोगना नहीं, सेवा की योजना है। भोगना भी सेवा की योजना में बदल गई। ऐसे है ना! इसलिए सदा साथ की मौज में रहने वाली। जन्म से यही आशा रही - साथ रहने की। यह आशा भक्ति रूप में पूरी हुई, ज्ञान में भी पूरी हुई, साकार रूप में भी पूरी हुई और अभी अव्यक्त रूप में भी पूरी हो रही है। तो यह जन्म की आशा वरदान के रूप में बन गई। अच्छा! जितना साकार बाप के साथ रहने का अनुभव इनका है उतना और किसका नहीं। साथ रहने का विशेष पार्ट मिला, यह कम थोड़ेही है। हरेक का भाग्य अपना-अपना है। आप भी कहो - ‘वाह रे मैं'!
आदि रत्न सदा सन शोज़ फादर करने के निमित्त हैं। हर कर्म से बाप के चरित्र को प्रत्यक्ष करने वाले दिव्य दर्पण हैं। दर्पण कितना आवश्यक होता है। अपना दर्शन या दूसरे का दर्शन कराने के लिए। तो आप सभी दर्पण हो बाप का साक्षात्कार कराने के लिए। जो विशेष आत्मायें निमित्त हैं उनको देख सभी को क्या याद आता है? बापदादा याद आ जाता है। बाप क्या करते थे, कैसे चलते थे...यह याद आता है ना। तो बाप को प्रत्यक्ष करने के दर्पण हो। बापदादा ऐसे विशेष बच्चों को सदा अपने से भी आगे बढ़ाते हैं। सिर का ताज बना देते हैं। सिर के ताज की चमकती हुई मणी हो। अच्छा-
जगदीश भाई से:- जो बाप से वरदान में विशेषता मिली हैं, उन्हीं विशेषताओं को कार्य में लाते हुए सदा वृद्धि को प्राप्त करते रहते हो, अच्छा है! संजय ने क्या किया था? सभी को दृष्टि दी थी ना! तो यह नॉलेज की दृष्टि दे रहे हो। यही दिव्य दृष्टि है, नॉलेज ही दिव्य है ना। नॉलेज की दृष्टि सबसे शक्तिशाली है, यह भी वरदान है। नहीं तो इतनी बड़ी विश्व विद्यालय का क्या नॉलेज है, उसका पता कैसे चलता? सुनते तो बहुत कम हैं ना! लिटरेचर द्वारा स्पष्ट हो जाता है। यह भी एक वरदान मिला हुआ है। यह भी एक विशेष आत्मा की विशेषता है। हर संस्था की सब साधनों से विशेषता प्रसिद्ध होती है। जैसे भाषणों से, सम्मेलनों से, ऐसे ही लिटरेचर, चित्र जो भी साधन हैं, यह भी संस्था या विश्व विद्यालय की एक विशेषता प्रसिद्ध करने का साधन है। यह भी तीर हैं जैसे तीर पंछी को ले आता है ना - ऐसे यह भी एक तीर है जो आत्माओं को समीप ले आता है। यह भी ड्रामा में पार्ट मिला है। लोगों के क्वेश्चन तो बहुत उठते हैं, जो क्वेश्चन उठते हैं - उसके स्पष्टीकरण का साधन जरूरी है। जैसे सम्मुख भी सुनाते हैं लेकिन यह लिटरेचर भी अच्छा साधन है। यह भी जरूरी है। शुरू से देखो ब्रह्मा बाप ने कितनी रुचि से यह साधन बनाये। दिन रात स्वयं बैठकर लिखते थे ना। कार्ड बना बनाकर आप लोगों को देते रहे ना। आप लोग उसे रत्न जड़ित करते रहे। तो यह भी करके दिखाया ना। तो यह भी साधन अच्छे हैं। कान्फ्रेन्स के पीछे पीठ करने के लिए यह जो (चार्टर आदि) निकालते हो यह भी जरूरी है। पीठ करने का कोई साधन जरूर चाहिए। पहले का यह है, दूसरे का यह है, तीसरे का यह है। इससे वह लोग भी समझते हैं कि बहुत कायदे प्रमाण यह विश्व विद्यालय वा युनिवर्सिटी हैं। तो यह अच्छे साधन है। मेहनत करते हो तो उसमें बल भर जाता है। अभी गोल्डन जुबली के प्लैन बनायेंगे फिर मनायेंगे। जितने प्लैन करेंगे उतना बल भरता जायेगा। सभी के सहयोग से, सभी के उमंग-उत्साह के संकल्प से सफलता तो हुई पड़ी है। सिर्फ रिपीट करना है। अभी तो गोल्डन जुबली का बहुत सोच रहे हैं ना। पहले बड़ा लगता है फिर बहुत सहज हो जाता है। तो सहज सफलता है ही। सफलता हरेक के मस्तक पर लिखी हुई है।
पार्टियों से:- सदा डबल लाइट हो? किसी भी बात में स्वयं को कभी भी भारी न बनाओ। सदा डबल लाइट रहने से संगमयुग के सुख के दिन रूहानी मौजों के दिन सफल होंगे। अगर जरा भी बोझ धारण किया तो क्या होगा? मूंझ होगी या मौज? भारीपन है तो मूंझ है। हल्कापन है तो मौज है! संगमयुग का एक-एक दिन कितना वैल्युबल है, कितना महान है, कितना कमाई करने का समय है, ऐसे कमाई के समय को सफल करते चलो। राजयुक्त और योगयुक्त आत्मायें सदा उड़ती कला का अनुभव करती हैं। तो खूब याद में रहो, पढ़ाई में, सेवा में आगे जाओ। रूकने वाले नहीं। पढ़ाई और पढ़ाने वाला सदा साथ रहे। राजयुक्त और योगयुक्त आत्मायें सदा ही आगे हैं। बाप के जो भी इशारे मिलते हैं उसमें संगठित रूप से आगे बढ़ते रहो। जो भी निमित्त बनी हुई विशेष आत्मायें हैं उन्हों की विशेषताओं को, धारणाओं को कैच कर, उन्हें फालो करते आगे बढ़ते चलो। जितना बाप के समीप उतना परिवार के समीप। अगर परिवार के समीप नहीं होंगे तो माला में नहीं आयेंगे। अच्छा!
वरदान:
इस अन्तिम जन्म में मिली हुई सर्व पावर्स को यूज करने वाले विल पावर सम्पन्न भव
यह स्वीट ड्रामा बहुत अच्छा बना-बनाया है, इसे कोई बदल नहीं सकता। लेकिन ड्रामा में इस श्रेष्ठ ब्राह्मण जन्म को बहुत ही पावर्स मिली हुई हैं। बाप ने विल किया है इसीलिए विल पावर है। इस पावर को यूज़ करो - जब चाहो इस शरीर के बन्धन से न्यारे कर्मातीत स्थिति में स्थित हो जाओ। न्यारा हूँ, मालिक हूँ, बाप द्वारा निमित्त आत्मा हूँ - इस स्मृति से मन बुद्धि को एकाग्र कर लो तब कहेंगे विल पावर सम्पन्न।
स्लोगन:
दिल से सेवा करो तो दुआओं का दरवाजा खुल जायेगा। सूचनाः- आज मास का तीसरा रविवार है, सभी संगठित रूप में सायं 6.30 से 7.30 बजे तक अन्तर्राष्ट्रीय योग में सम्मिलित हो साक्षात्कार मूर्त बन अपने दिव्य स्वरूप का अनुभव करें और सबको करायें।