Saturday, October 26, 2019

26-10-2019 प्रात:मुरली

26-10-2019 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - बुद्धि को रिफाइन बनाना है तो एक बाप की याद में रहो, याद से ही आत्मा स्वच्छ बनती जायेगी''
प्रश्नः-
वर्तमान समय मनुष्य अपना टाइम व मनी वेस्ट कैसे कर रहे हैं?
उत्तर:-
जब कोई शरीर छोड़ता है तो उनके पीछे कितना पैसा आदि खर्च करते रहते हैं। जब शरीर छोड़कर चला गया तो उसकी कोई वैल्यु तो रही नहीं, इसलिए उसके पिछाड़ी जो कुछ करते हैं उसमें अपना टाइम और मनी वेस्ट करते हैं।
उत्तर:-
रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं, यह भी ऐसे कहते हैं ना, फिर बाप है या दादा है। दादा भी कहेंगे रूहानी बाप तुम बच्चों को यह नॉलेज सुनाते हैं - पास्ट, प्रेजन्ट, फ्युचर का। वास्तव में सतयुग से लेकर त्रेता अन्त तक क्या हुआ है, यह है मुख्य बात। बाकी द्वापर-कलियुग में कौन-कौन आये, क्या हुआ, उनकी हिस्ट्री-जॉग्राफी तो बहुत है। सतयुग-त्रेता की कोई हिस्ट्री-जॉग्राफी है नहीं और तो सबकी हिस्ट्री-जॉग्राफी है, बाकी देवी-देवताओं को लाखों वर्ष पहले ले गये हैं। यह है बेहद की बेसमझी। तुम भी बेहद की बेसमझी में थे। अभी थोड़ा-थोड़ा समझ रहे हो। कोई तो अभी भी कुछ समझते नहीं हैं। बहुत कुछ समझने का है। बाप ने आबू की महिमा पर समझाया है, इस पर ख्याल करना चाहिए। तुम्हारी बुद्धि में आना चाहिए तुम यहाँ बैठे हो। तुम्हारा यादगार देलवाड़ा मन्दिर कब बना है, कितने वर्ष बाद बना है। कहते हैं 1250 वर्ष हुए हैं तो बाकी कितने वर्ष रहे? 3750 वर्ष रहे। तो उन्होंने भी अभी का यादगार और बैकुण्ठ का यादगार बनाया है। मन्दिरों की भी काम्पीटीशन होती है ना। एक-दो से अच्छा बनायेंगे। अभी तो पैसा ही कहाँ है जो बनावें। पैसा तो बहुत था, तो सोमनाथ का मन्दिर कितना बड़ा बनाया है। अभी तो बना न सकें। भल आगरे आदि में बनाते रहते हैं परन्तु वह सब है फालतू। मनुष्य तो अन्धियारे में हैं ना। जब तक बनावें तब तक विनाश भी आ जायेगा। यह बातें कोई भी नहीं जानते हैं। तोड़ते और बनाते रहते हैं। पैसे मुफ्त में आते रहते हैं। सब वेस्ट होता रहता है। वेस्ट ऑफ टाइम, वेस्ट ऑफ मनी, वेस्ट ऑफ एनर्जी। कोई मरता है तो कितना टाइम गँवाते हैं। हम कुछ भी नहीं करते। आत्मा तो चली गई, बाकी खाल क्या काम की। सर्प खाल छोड़ देता है, उनकी कोई वैल्यु है क्या। कुछ भी नहीं। भक्ति मार्ग में खाल की वैल्यु है। जड़ चित्र की कितनी पूजा करते हैं। परन्तु यह कब आये, कैसे आये। कुछ भी पता नहीं है। इनको कहा जाता है भूत पूजा। पांच तत्वों की पूजा करते हैं। समझो यह लक्ष्मी-नारायण स्वर्ग में राज्य करते थे, अच्छा 150 वर्ष आयु पूरी हुई, शरीर छोड़ दिया, बस। शरीर तो कोई काम का न रहा। उनकी वहाँ क्या वैल्यु होगी। आत्मा चली गई, शरीर चण्डाल के हाथ दे दिया, वह रसम-रिवाज अनुसार जला देंगे। ऐसे नहीं उनकी मिट्टी लेकर उड़ायेंगे नाम करने के लिए। कुछ भी नहीं। यहाँ तो कितना करते हैं। ब्राह्मण खिलाते हैं, यह करते हैं। वहाँ यह कुछ होता नहीं। खाल तो कोई काम की नहीं रही। खाल को जला देते हैं। बाकी चित्र रहते हैं। सो भी एक्यूरेट चित्र मिल न सकें। यह आदि देव की पत्थर की मूर्ति एक्यूरेट थोड़ेही है। पूजा जब शुरू की है तब के पत्थर की है। असुल जो था वह तो जलकर खत्म हो गया ना फिर भक्ति मार्ग में यह निकला है। इन बातों पर भी सोच तो चलता है ना। आबू की महिमा को अच्छी रीति सिद्ध करना है। तुम भी यहाँ बैठे हो। यहाँ ही बाप सारे विश्व को नर्क से स्वर्ग बना रहे हैं तो यही सबसे ऊंच ते ऊंच तीर्थ ठहरा। अभी इतनी भावना नहीं है सिर्फ एक शिव में भावना है, कहाँ भी जाओ शिव का मन्दिर जरूर होगा। अमरनाथ में भी शिव का ही है। कहते हैं शंकर ने पार्वती को कथा सुनाई। वहाँ तो कथा की बात ही नहीं। मनुष्यों को कुछ भी समझ नहीं है। अभी तुमको समझ आई है, आगे पता था क्या।

अभी बाबा आबू की कितनी महिमा करते हैं। सर्व तीर्थों में यह महान् तीर्थ है। बाबा समझाते तो बहुत हैं, परन्तु जबकि अनन्य बच्चों की बुद्धि में बैठे, अभी तो देह-अभिमान बहुत है। ज्ञान तो बहुत ढेर चाहिए। रिफाइननेस बहुत आनी है। अभी तो योग बड़ा मुश्किल कोई का लगता है। योग के साथ फिर नॉलेज भी चाहिए। ऐसे नहीं सिर्फ योग में रहना है। योग में नॉलेज जरूर चाहिए। देहली में ज्ञान-विज्ञान भवन नाम रखा है परन्तु इनका अर्थ क्या है, यह समझते थोड़ेही हैं। ज्ञान-विज्ञान तो सेकण्ड का है। शान्तिधाम, सुखधाम। परन्तु मनुष्यों में जरा भी बुद्धि नहीं है। अर्थ थोड़ेही समझते हैं। चिन्मियानंद आदि कितने बड़े-बड़े सन्यासी आदि हैं, गीता सुनाते हैं, कितने उन्हों के ढेर फालोअर्स हैं। सबसे बड़ा जगत का गुरू तो एक ही बाप है। बाप और टीचर से बड़ा गुरू होता है। स्त्री कभी दूसरा पति नहीं करेगी तो गुरू भी दूसरा नहीं करना चाहिए। एक गुरू किया, उनको ही सद्गति करनी है फिर और गुरू क्यों? सतगुरू तो एक ही बेहद का बाप है। सबकी सद्गति करने वाला है। परन्तु इन बातों को बहुत हैं जो बिल्कुल समझते नहीं। बाप ने समझाया है यह राज-धानी स्थापन हो रही है, तो नम्बरवार होंगे ना। कोई तो रिंचक भी समझ नहीं सकते। ड्रामा में पार्ट ऐसा है। टीचर तो समझ सकते हैं। जिस शरीर द्वारा समझाते हैं उनको भी तो मालूम पड़ता होगा। यह तो गुड़ जाने, गुड़ की गोथरी जाने। गुड़ शिवबाबा को कहा जाता है, वह सबकी अवस्था को जानते हैं। हरेक की पढ़ाई से समझ सकते हैं - कौन कैसे पढ़ते हैं, कितनी सर्विस करते हैं। कितना बाबा की सर्विस में जीवन सफल करते हैं। ऐसे नहीं, इस ब्रह्मा ने घरबार छोड़ा है इसलिए लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। मेहनत करते हैं ना। यह नॉलेज बहुत ऊंची है। कोई अगर बाप की अवज्ञा करते हैं तो एकदम पत्थर बन पड़ते हैं। बाबा ने समझाया था - यह इन्द्रसभा है। शिवबाबा ज्ञान वर्षा करते हैं। उनकी अवज्ञा की तो शास्त्रों में लिखा हुआ है पत्थरबुद्धि हो गये इसलिए बाबा सबको लिखते रहते हैं। साथ में सम्भाल से कोई को ले आओ। ऐसे नहीं, विकारी अपवित्र यहाँ आकर बैठे। नहीं तो फिर ले आने वाली ब्राह्मणी पर दोष पड़ जाता है। ऐसे कोई को ले नहीं आना है। बड़ी रेसपॉन्सिबिलिटी है। बहुत ऊंच ते ऊंच बाप है। तुमको विश्व की बादशाही देते हैं तो उनका कितना रिगार्ड रखना चाहिए। बहुतों को मित्र-सम्बन्धी आदि याद पड़ते हैं, बाप की याद है नहीं। अन्दर ही घुटका खाते रहते हैं। बाप समझाते हैं - यह है आसुरी दुनिया। अभी दैवी दुनिया बनती है, हमारी एम ऑबजेक्ट यह है। यह लक्ष्मी-नारायण बनना है। जो भी चित्र हैं, सबकी बायोग्राफी को तुम जानते हो। मनुष्यों को समझाने के लिए कितनी मेहनत की जाती है। तुम भी समझते होंगे, यह कुछ अच्छा बुद्धिवान है। यह तो कुछ नहीं सम-झते हैं। तुम बच्चों में जिसने जितना ज्ञान उठाया है, उस अनुसार ही सर्विस कर रहे हैं। मुख्य बात है ही गीता के भगवान की। सूर्यवंशी देवी-देवताओं का यह एक ही शास्त्र है। अलग-अलग नहीं है। ब्राह्मणों का भी अलग नहीं है। यह बड़ी समझने की बातें हैं। इस ज्ञान मार्ग में भी चलते-चलते अगर विकार में गिर पड़े, तो ज्ञान बह जायेगा। बहुत अच्छे-अच्छे जाकर विकारी बने तो पत्थरबुद्धि हो गये। इसमें बड़ी समझ चाहिए। बाप जो समझाते हैं उनको उगारना चाहिए। यहाँ तो तुमको बहुत सहज है, कोई गोरखधन्धा, हंगामा आदि नहीं। बाहर में रहने से धन्धे आदि की कितनी चिंता रहती है। माया खूब त़ूफान में लाती है। यहाँ तो कोई गोरखधन्धा नहीं। एकान्त लगी पड़ी है। बाप तो फिर भी बच्चों को पुरूषार्थ कराते रहते हैं। यह बाबा भी पुरूषार्थी है। पुरूषार्थ कराने वाला तो बाप है। इसमें विचार सागर मंथन करना पड़ता है। यहाँ तो बाप बच्चों के साथ बैठे हैं। जो पूरी अंगुली देते हैं उनको ही सर्विसएबुल कहेंगे। बाकी घुटका खाने वाले तो नुकसान करते हैं और ही डिससर्विस करते हैं, विघ्न डालते हैं। यह तो जानते हो - महाराजा-महारानी बनेंगे तो उन्हों के दास-दासियां भी चाहिए। वह भी यहाँ के ही आयेंगे। सारा मदार पढ़ाई पर है। इस शरीर को भी खुशी से छोड़ना है, दु:ख की बात नहीं। पुरूषार्थ के लिए टाइम तो मिला हुआ है। ज्ञान सेकेण्ड का है, बुद्धि में है शिवबाबा से वर्सा मिलता है। थोड़ा भी ज्ञान सुना, शिवबाबा को याद किया तो भी आ सकते हैं। प्रजा तो बहुत बनने की है हमारी राजधानी सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी यहाँ स्थापन हो रही है। बाप का बनकर अगर ग्लानि करते हैं तो बहुत बोझा चढ़ता है। एकदम जैसे रसातल में चले जाते हैं। बाबा ने समझाया है जो अपनी पूजा बैठ कराते हैं वह पूज्य कैसे कहला सकते। सर्व का सद्गति दाता, कल्याण करने वाला तो एक ही बाप है। मनुष्य तो शान्ति का भी अर्थ नहीं समझते हैं। हठयोग से प्राणायाम आदि चढ़ाना, उसको ही शान्ति समझते हैं। उसमें भी बहुत मेहनत लगती है, कोई की ब्रेन खराब हो जाती है। प्राप्ति कुछ भी नहीं। वह है अल्पकाल की शान्ति। जैसे सुख को अल्पकाल काग विष्टा समान कहते हैं वैसे वह शान्ति भी काग विष्टा के समान है। वह है ही अल्पकाल के लिए। बाप तो 21 जन्मों के लिए तुमको सुख-शान्ति दोनों देते हैं। कोई तो शान्तिधाम में पिछाड़ी तक रहते होंगे। जिनका पार्ट है, वह इतना सुख थोड़ेही देख सकेंगे। वहाँ भी नम्बरवार मर्तबे तो होंगे ना। भल दास-दासियां होंगे परन्तु अन्दर थोड़ेही घुस सकेंगे। कृष्ण को भी देख न सकें। सबके अलग-अलग महल होंगे ना। कोई टाइम होगा देखने का। जैसे देखो पोप आता है तो उनका दर्शन करने के लिए कितने लोग जाते हैं। ऐसे बहुत निकलेंगे, जिनका बहुत प्रभाव होगा। लाखों मनुष्य जायेंगे दर्शन करने के लिए। यहाँ शिवबाबा का दर्शन कैसे होगा? यह तो समझने की बात है।

अब दुनिया को कैसे पता पड़े कि यह सबसे ऊंच तीर्थ है। देलवाड़ा जैसा मन्दिर शायद आसपास और भी हो, वह भी जाकर देखना चाहिए। कैसे बना हुआ है। उनको ज्ञान देने की भी दरकार नहीं। वह फिर तुमको ज्ञान देने लग जायेंगे। राय देते हैं ना - यह करना चाहिए, यह करना चाहिए। यह तो जानते नहीं कि इनको पढ़ाने वाला कौन है। एक-एक को समझाने में मेहनत लगती है। उन पर कहानियाँ भी हैं। कहते थे शेर आया, शेर आया.......। तुम भी कहते हो मौत आया कि आया तो वह विश्वास नहीं करते हैं। समझते हैं अभी तो 40 हज़ार वर्ष पड़े हैं, मौत कहाँ से आयेगा। परन्तु मौत आना तो जरूर है, सबको ले जायेंगे। वहाँ कोई भी किचड़ा होता नहीं। यहाँ की गऊ और वहाँ की गऊ में भी कितना फ़र्क है। कृष्ण थोड़ेही गऊयें चराता था। उन्हों के पास तो दूध हेलीकाप्टर में आता होगा। यह किचड़पट्टी दूर रहती होगी। सामने घर में थोड़ेही किचड़ा रहेगा। वहाँ तो अपरमअपार सुख हैं, जिसके लिए पूरा पुरूषार्थ करना है। कितने अच्छे-अच्छे बच्चे सेन्टर से आते हैं। बाबा देखकर कितना खुश होते हैं। नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार फूल निकलते हैं। फूल जो हैं वह अपने को भी फूल समझते हैं। देहली में भी बच्चे कितनी सर्विस करते हैं रात-दिन। ज्ञान भी कितना ऊंच है। आगे तो कुछ नहीं जानते थे। अब कितनी मेहनत करनी पड़ती है। बाबा के पास तो सब समाचार आते हैं। कोई का सुनाते हैं, कोई का नहीं सुनाते हैं क्योंकि ट्रेटर भी बहुत होते हैं। बहुत फर्स्टक्लास भी ट्रेटर्स बन पड़ते हैं। थर्डक्लास भी ट्रेटर हैं। थोड़ा ज्ञान मिला तो समझते हैं हम शिवबाबा के भी बाबा बन गये। पहचान तो है नहीं कि कौन नॉलेज देते हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) विश्व की बादशाही देने वाले बाप का बहुत-बहुत रिगार्ड रखना है। बाप की सर्विस में अपनी जीवन सफल करनी है, पढ़ाई पर पूरा-पूरा ध्यान देना है।
2) बाप से जो ज्ञान मिलता है उस पर विचार सागर मंथन करना है। कभी भी विघ्न रूप नहीं बनना है। डिस-सर्विस नहीं करनी है। अहंकार में नहीं आना है।
वरदान:-
निराकार और साकार दोनों रूपों के यादगार को विधिपूर्वक मनाने वाली श्रेष्ठ आत्मा भव
दीपमाला अविनाशी अनेक जगे हुए दीपकों का यादगार है। आप चमकती हुई आत्मायें दीपक की लौ मिसल दिखाई देती हो इसलिए चमकती हुई आत्मायें दिव्य ज्योति का यादगार स्थूल दीपक की ज्योति में दिखाया है तो एक तरफ निराकारी आत्मा के रूप का यादगार है, दूसरी तरफ आपके ही भविष्य साकार दिव्य स्वरूप लक्ष्मी के रूप में यादगार है। यही दीपमाला देव-पद प्राप्त करती है। तो आप श्रेष्ठ आत्मायें अपना यादगार स्वयं ही मना रहे हो।
वरदान:-
निगेटिव को पॉजिटिव में चेंज करने के लिए अपनी भावनाओं को शुभ और बेहद की बनाओ।