Wednesday, October 23, 2019

22-10-19 प्रात:मुरली

22-10-2019 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - रावण का कायदा है आसुरी मत, झूठ बोलना, बाप का कायदा है श्रीमत, सच बोलना''
प्रश्नः-
किन बातों का विचार कर बच्चों को आश्चर्य खाना चाहिए?
उत्तर:-
1. कैसा यह बेहद का वन्डरफुल नाटक है, जो फीचर्स, जो एक्ट सेकण्ड बाई सेकण्ड पास हुआ वह फिर हूबहू रिपीट होगा। कितना वन्डर है, जो एक का फीचर न मिले दूसरे से। 2. कैसे बेहद का बाप आकरके सारे विश्व की सद्गति करते हैं, पढ़ाते हैं, यह भी वन्डर है।
ओम् शान्ति।
रूहानी बाप शिव बैठकर अपने रूहानी बच्चों सालिग्रामों को समझा रहे हैं, क्या समझा रहे हैं? सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाते हैं और यह समझाने वाला एक ही बाप है और तो जो भी आत्मायें अथवा सालिग्राम हैं सबके शरीर का नाम है। बाकी एक ही परम आत्मा है, जिसको शरीर नहीं है। उस परम आत्मा का नाम है शिव। उनको ही पतित-पावन परमात्मा कहा जाता है। वही तुम बच्चों को इस सारे विश्व के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझा रहे हैं। पार्ट बजाने के लिए तो सब यहाँ आते हैं। यह भी समझाया है विष्णु के दो रूप हैं। शंकर का तो कोई पार्ट है नहीं। यह सब बाप बैठ समझाते हैं। बाप कब आते हैं? जबकि नई सृष्टि की स्थापना और पुरानी का विनाश होना है। बच्चे जानते हैं नई दुनिया में एक आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना होती है। वह तो सिवाए परमपिता परमात्मा के और कोई कर ही नहीं सकते। वही एक परम आत्मा है जिसको परमात्मा कहा जाता है। उनका नाम है शिव। उनके शरीर का नाम नहीं पड़ता है। और जो भी हैं सबके शरीर का नाम पड़ता है। यह भी समझते हो मुख्य-मुख्य जो हैं वह तो सब आ गये हैं। ड्रामा का चक्र फिरते-फिरते अभी अन्त आकर हुई है। अन्त में बाप ही चाहिए। उनकी जयन्ती भी मनाते हैं। शिवजयन्ती भी इस समय मनाते हैं जबकि दुनिया बदलनी है। घोर अन्धियारे से घोर रोशनी होती है अर्थात् दु:खधाम से सुखधाम होना है। बच्चे जानते हैं परमपिता परमात्मा शिव एक ही बार पुरूषोत्तम संगमयुग पर आते हैं, पुरानी दुनिया का विनाश, नई दुनिया की स्थापना करने। पहले नई दुनिया की स्थापना, पीछे पुरानी दुनिया का विनाश होता है। बच्चे समझते हैं पढ़कर हमको होशियार होना है और दैवीगुण भी धारण करने है। आसुरी गुण पलटने हैं। दैवी गुणों और आसुरी गुणों का वर्णन चार्ट में दिखाना होता है। अपने को देखना है हम किसको तंग तो नहीं करते हैं? झूठ तो नहीं बोलते हैं? श्रीमत के खिलाफ तो नहीं चलते हैं? झूठ बोलना, किसको दु:ख देना, तंग करना - यह है रावण के कायदे और वह है राम के कायदे। श्रीमत और आसुरी मत का गायन भी है। आधाकल्प चलती है आसुरी मत, जिससे मनुष्य असुर, दु:खी, रोगी बन जाते हैं। पांच विकार प्रवेश हो जाते हैं। बाप आकर श्रीमत देते हैं। बच्चे जानते हैं श्रीमत से हमको दैवीगुण मिलते हैं। आसुरी गुणों को बदलना है। अगर आसुरी गुण रह जायेंगे तो पद कम हो पड़ेगा। जन्म-जन्मान्तर के पापों का बोझा जो सिर पर है, नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार हल्का हो जायेगा। यह भी समझते हो कि अभी यह है पुरूषोत्तम संगमयुग। बाप द्वारा अभी दैवीगुण धारण कर नई दुनिया के मालिक बनते हैं। तो सिद्ध होता है पुरानी दुनिया जरूर खलास होनी ही है। नई दुनिया की स्थापना ब्रह्माकुमार, कुमा-रियों द्वारा होनी है। यह भी पक्का निश्चय है इसलिए सर्विस पर लगे हुए हैं। कोई न कोई का कल्याण करने की मेहनत करते रहते हैं।

तुम जानते हो हमारे भाई-बहन कितनी सर्विस करते हैं। सबको बाप का परिचय देते रहते हैं। बाप आये हैं जरूर पहले-पहले थोड़ों को ही मिलेगा। फिर वृद्धि को पाते जायेंगे। एक ब्रह्मा द्वारा कितने ब्रह्माकुमार बनते हैं। ब्राह्मण कुल तो जरूर चाहिए ना। तुम जानते हो हम सभी ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं शिवबाबा के बच्चे, सब भाई-भाई हैं। असुल में भाई-भाई हैं फिर प्रजापिता ब्रह्मा के बनने से भाई-बहन बनते हैं। फिर देवता कुल में जायेंगे तो सम्बन्ध की वृद्धि होती जायेगी। इस समय ब्रह्मा के बच्चे और बच्चियां हैं तो एक ही कुल हुआ, इनको डिनायस्टी नहीं कहेंगे। राजाई न कौरवों की है, न पाण्डवों की। डिनायस्टी तब होती है जब राजा-रानी नम्बरवार गद्दी पर बैठते हैं। अभी तो है ही प्रजा का प्रजा पर राज्य। शुरू से लेकर पवित्र डिनायस्टी और अपवित्र डिनायस्टी चली आई है। पवित्र डिनायस्टी देवताओं की ही चली है। बच्चे जानते हैं 5 हज़ार वर्ष पहले हेविन था तो पवित्र डिनायस्टी थी। उन्हों के चित्र भी हैं, मन्दिर कितने आलीशान बने हुए हैं। और कोई के मन्दिर नहीं हैं। इन देवताओं के ही बहुत मन्दिर हैं।

बच्चों को समझाया है कि और सबके शरीर के नाम बदलते हैं। इनका ही नाम शिव चला आया है। शिव भगवानुवाच, कोई भी देहधारी को भगवान नहीं कहा जाता। बाप बिगर और कोई बाप का परिचय दे न सके क्योंकि वह तो बाप को जानते ही नहीं। यहाँ भी बहुत हैं जिनकी बुद्धि में नहीं आता है - बाप को कैसे याद करें। मूँझते हैं। इतनी छोटी बिन्दी उनको कैसे याद करें। शरीर तो बड़ा है, उनको ही याद करते रहते हैं। यह भी गायन है भ्रकुटी के बीच चमकता है सितारा अर्थात् आत्मा सितारे मिसल है। आत्मा को सालिग्राम कहा जाता है। शिवलिंग की भी बड़े रूप में पूजा होती है। जैसे आत्मा को देख नहीं सकते, शिवबाबा भी किसको देखने में तो आ न सके। भक्ति मार्ग में बिन्दी की पूजा कैसे करें क्योंकि पहले-पहले शिवबाबा की अव्यभिचारी पूजा शुरू होती है ना। तो पूजा के लिए जरूर बड़ी चीज़ चाहिए। सालिग्राम भी बड़े अण्डे मिसल बनाते हैं। एक तरफ अंगुष्ठे मिसल भी कहते और फिर सितारा भी कहते हैं। अभी तुमको तो एक बात पर ठहरना है। आधाकल्प बड़ी चीज की पूजा की है। अब फिर बिन्दी समझना इसमें मेहनत भी है, देख नहीं सकते। यह बुद्धि से जाना जाता है। शरीर में आत्मा प्रवेश करती है जो फिर निकलती है, कोई देख तो नहीं सकता। बड़ी चीज हो तो देखने में भी आये। बाप भी ऐसे बिन्दी है परन्तु वह ज्ञान का सागर है, और कोई को ज्ञान का सागर नहीं कहेंगे। शास्त्र तो हैं भक्ति मार्ग के। इतने सब वेद-शास्त्र आदि किसने बनाये? कहते हैं व्यास ने बनाये। क्राइस्ट की आत्मा ने कोई शास्त्र बनाया नहीं। यह तो बाद में मनुष्य बैठ बनाते हैं। ज्ञान तो उनमें है नहीं। ज्ञान सागर है ही एक बाप। शास्त्रों में ज्ञान की, सद्गति की बातें हैं नहीं। हरेक धर्म वाला अपने-अपने धर्म स्थापक को याद करते हैं। देहधारी को याद करते हैं। क्राइस्ट का भी चित्र है ना। सबके चित्र हैं। शिवबाबा तो है ही परम आत्मा। अभी तुम समझते हो आत्मायें सब हैं ब्रदर्स। ब्रदर्स में ज्ञान हो न सके, जो किसको ज्ञान देकर और सद्गति करें। सद्गति करने वाला है ही एक बाप। इस समय ब्रदर्स भी हैं और बाप भी है। बाप आकर सारे विश्व की आत्माओं को सद्गति देते हैं। विश्व का सद्गति दाता है ही एक। श्री श्री 108 जगतगुरू कहो अथवा विश्व का गुरू कहो, बात एक ही है। अभी तो है आसुरी राज्य। संगम पर ही बाप आकर यह सब बातें समझाते हैं।

तुम जानते हो बरोबर अब नई दुनिया की स्थापना हो रही है और पुरानी दुनिया का विनाश होता है। यह भी समझाया है पतित-पावन एक ही निराकार बाप है। कोई देहधारी पतित-पावन हो न सके। पतित-पावन पर-मात्मा ही है। अगर पतित-पावन सीताराम भी कहें तो भी बाप ने समझाया है भक्ति का फल देने भगवान आता है। तो सभी सीतायें ठहरी ब्राइड्स और ब्राइडग्रुम एक राम, जो सभी को सद्गति देने वाला है। यह सब बातें बाप ही बैठ समझाते हैं। ड्रामा अनुसार तुम ही फिर 5 हज़ार वर्ष बाद यह बातें सुनेंगे। अभी तुम सब पढ़ रहे हो। स्कूल में कितने ढेर पढ़ते हैं। यह सब ड्रामा बना हुआ है। जिस समय जो पढ़ते हैं, जो एक्ट चलती है वही एक्ट फिर कल्प बाद हूबहू होगी, हूबहू 5 हज़ार वर्ष बाद फिर पढ़ेंगे। यह अनादि ड्रामा बना हुआ है। जो भी देखेंगे सेकण्ड बाई सेकण्ड नई चीज दिखाई पड़ेगी। चक्र फिरता रहेगा। नई-नई बातें तुम देखते रहेंगे। अभी तुम जानते हो यह 5 हज़ार वर्ष का ड्रामा है जो चलता रहता है। इनकी डीटेल तो बहुत है। मुख्य-मुख्य बातें समझाई जाती है। जैसे कहते हैं परमात्मा सर्वव्यापी है, बाप समझाते हैं मैं सर्वव्यापी नहीं हूँ। बाप आकर अपना और रचना के आदि-मध्य-अन्त का परिचय देते हैं। तुम अभी जानते हो बाप कल्प-कल्प आते हैं हमको वर्सा देने। यह भी गायन है ब्रह्मा द्वारा स्थापना। इसमें समझानी बहुत अच्छी है। विराट रूप का भी जरूर अर्थ होगा ना। परन्तु सिवाए बाप के कब कोई समझा न सके। चित्र तो बहुत हैं परन्तु एक की भी सम-झानी कोई के पास है नहीं। ऊंच ते ऊंच शिवबाबा है, उनका भी चित्र है परन्तु जानते कोई नहीं। अच्छा फिर सूक्ष्मवतन है उनको छोड़ दो, उनकी दरकार ही नहीं। हिस्ट्री-जॉग्राफी यहाँ की समझनी होती है, वह तो है साक्षात्कार की बात। जैसे यहाँ इसमें बाप बैठ समझाते हैं वैसे सूक्ष्मवतन में कर्मातीत शरीर में बैठकर इनसे मिलते हैं अथवा बोलते हैं। बाकी वहाँ तो वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी है नहीं। हिस्ट्री-जॉग्राफी यहाँ की है। बच्चों की बुद्धि में बैठा हुआ है सतयुग में देवी-देवता थे, जिनको 5 हज़ार वर्ष हुआ। इस आदि सनातन देवता धर्म की स्थापना कैसे हुई - यह भी कोई जानते नहीं। और धर्मों की स्थापना के बारे में तो सब जानते हैं। किताब आदि भी हैं। लाखों वर्ष की तो बात ही नहीं हो सकती। यह तो बिल्कुल रांग है परन्तु मनुष्यों की बुद्धि कुछ काम नहीं करती। हर बात बाप समझाते हैं - मीठे-मीठे बच्चों, अच्छी रीति धारण करो। मुख्य बात है बाप की याद। यह याद की ही दौड़ी है। रेस होती है ना। कोई अकेले-अकेले दौड़ते हैं। कोई जोड़ी को इकट्ठा बांध फिर दौड़ते हैं। यहाँ जो जोड़ी है वह इकट्ठे दौड़ी लगाने की प्रैक्टिस करते हैं। सोचते हैं सतयुग में भी ऐसे इकट्ठे जोड़ी बन जायें। भल नाम-रूप तो बदल जाता है, वही शरीर थोड़ेही मिलता है। शरीर तो बदलता रहता है। समझते हैं आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। फीचर्स तो दूसरा होगा। परन्तु बच्चों को वन्डर लगना चाहिए जो फीचर्स, जो एक्ट सेकण्ड बाई सेकण्ड पास्ट हुई वह फिर हूबहू 5000 वर्ष के बाद रिपीट होनी है। कितना वन्डरफुल यह नाटक है, और कोई समझा नहीं सकते। तुम जानते हो हम सब पुरू-षार्थ करते हैं। नम्बरवार तो बनेंगे ही। सब तो कृष्ण नहीं बनेंगे। फीचर्स सबके डिफरेन्ट होंगे। कितना बड़ा वन्डरफुल नाटक है। एक का फीचर न मिले दूसरे से। वही हूबहू खेल रिपीट होता है। यह सब विचार कर आश्चर्य खाना होता है। कैसे बेहद का बाप आकर पढ़ाते हैं। जन्म-जन्मान्तर तो भक्ति मार्ग के शास्त्र आदि पढ़ते आये, साधुओं की कथायें आदि भी सुनी। अब बाप कहते हैं भक्ति का समय पूरा हुआ। अब भक्तों को भगवान द्वारा फल मिलता है। यह नहीं जानते भगवान कब किस रूप में आयेगा? कभी कहते हैं शास्त्र पढ़ने से भगवान मिलेगा? कभी कहते यहाँ आयेंगे। शास्त्रों से ही अगर काम हो जाता तो फिर बाप को क्यों आना पड़े। शास्त्र पढ़ने से ही भगवान मिल जाए तो बाकी भगवान आकर क्या करेंगे। आधाकल्प तुम यह शास्त्र पढ़ते-पढ़ते तमोप्रधान ही बनते आये हो। तो बच्चों को सृष्टि का चक्र भी समझाते रहते हैं और दैवी चलन भी चाहिए। एक तो किसको दु:ख नहीं देना है। ऐसे नहीं, कोई को विष चाहिए, वह नहीं देते हो तो यह कोई दु:ख देना है। ऐसे तो बाप कहते नहीं हैं। कई ऐसे भी बुद्धू निकलते हैं जो कहते हैं बाबा कहते हैं ना - किसको दु:ख नहीं देना है। अब यह विष मांगते हैं तो उनको देना चाहिए, नहीं तो यह भी किसको दु:ख देना हुआ ना। ऐसे समझने वाले मूढ़मती भी हैं। बाप तो कहते हैं "पवित्र जरूर बनना है''। आसुरी चलन और दैवी चलन की भी समझ चाहिए। मनुष्य तो यह भी नहीं समझते, वह तो कह देते आत्मा निर्लेप है। कुछ भी करो, कुछ भी खाओ-पियो, विकार में जाओ, कोई हर्जा नहीं। ऐसे भी सिखलाते हैं। कितनों को पकड़-कर ले आते हैं। बाहर में भी वेजीटेरियन बहुत रहते हैं। जरूर अच्छा है तब तो वेजीटेरियन बनते हैं। सब जातियों में वैष्णव होते हैं। छी-छी चीज़ नहीं खाते हैं। मैनारिटी होते हैं। तुम भी मैनारिटी हो। इस समय तुम कितने थोड़े हो। आहिस्ते-आहिस्ते वृद्धि को पाते रहेंगे। बच्चों को यही शिक्षा मिलती है - दैवीगुण धारण करो। छी-छी वस्तु ऐसी कोई के हाथ की बनाई हुई नहीं खानी चाहिए। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपने चार्ट में देखना है - (1) हम श्रीमत के खिलाफ तो नहीं चलते हैं? (2) झूठ तो नहीं बोलते हैं? (3) किसको तंग तो नहीं करते हैं? दैवीगुण धारण किये हैं?
2) पढ़ाई के साथ-साथ दैवी चलन धारण करनी है। "पवित्र जरूर बनना है''। कोई भी छी-छी वस्तुएं नहीं खानी हैं। पूरा वैष्णव बनना है। रेस करनी है।
वरदान:-
सेवा द्वारा खुशी, शक्ति और सर्व की आशीर्वाद प्राप्त करने वाली पुण्य आत्मा भव
सेवा का प्रत्यक्षफल - खुशी और शक्ति मिलती है। सेवा करते आत्माओं को बाप के वर्से का अधिकारी बना देना - यह पुण्य का काम है। जो पुण्य करता है उसको आशीर्वाद जरूर मिलती है। सभी आत्माओं के दिल में जो खुशी के संकल्प पैदा होते, वह शुभ संकल्प आशीर्वाद बन जाते हैं और भविष्य भी जमा हो जाता है इसलिए सदा अपने को सेवाधारी समझ सेवा का अविनाशी फल खुशी और शक्ति सदा लेते रहो।
स्लोगन:-
मन्सा-वाचा की शक्ति से विघ्न का पर्दा हटा दो तो अन्दर कल्याण का दृश्य दिखाई दे।